Monday 13 July 2020

टुटहा नाँगर*अश्वनी कोसरे

*टुटहा नाँगर*अश्वनी कोसरे

आय असाढ़ के दिन म खोरबहरा के नींद हजा के हे रात भर संसो करत चटपिट चटपिट म पहावत हे | दू बेटी अउ दू बेटा हे| रइमत  ले दे के घर के काम बुता कर पाथे आए दिन खटिया धर लेथे |बेटी सग्यान होगे हे , सगा सगोदर पुछे लगे हवँय ,बड़े नोनी के बर बिहाव माढे़ के बात चलत हवय |आँसो के दिन हर निकल जही फेर अवइया सुक्खा घरी बने रिश्ता नता देख के हाथ म हरदी रचाय ल परही| चिंता म बूड़े खोरबहरा के आजो आधा रात ले नींद नइ परे हे | रइमत  अलथी कलथी करत खोरबहरा के फिकर  ल जानथे | रइमत कहत हे पाँव दबादेंव का चुकनी के बाबू| काली के बड़ पार चढ़ा के आयेहव हाथबाह पिरावत होही| खोरबहरा करवट बदलत रइमत ल देखे लगिस| रइमत भले बैमरहिन अस भेख होगे हे पर अपन के जीवन साथी के संसो ल जानत हे | देवव कहत खोरबहरा के पैर ल दबाय लगिस| खोर बहरा बात ल टारत कहत हे नइ लगे सोनू के अम्मा तँय सो जा लइका मन जाग परही|
छोटे असन दू खोली के आवास बने हे | एक खोली म तीन भाई बहिनी बड़े नोनी कमला ,छोटी चुकन अउ  मँझिला राजू सोय हे छोटे सोनू अभी चार साल के हवय रइमत बिना एक छिन नइ राहय| रइमत एक बेर अउ कहिस काबर चिंता करत हव मालिक के घर देर हवय कुछू तो दया करही सब बने बने निपट जही| देवव मुड़ म ठंडा तेल सार दँव| फेरे खोरबहरा हरुकन कहत हे सोय के बखत लायेतो रहेव |र इमत खोरबहरा के मुड़ म हाथ फेरत कहत हे काबर संसो करत हव मँय तो  बने हँव | लइका मन ल भी बने के देखरेख करत हँव तुमन खेती बारी अउ बाहिर के काम ल सम्हारे हव| ते कोनो अउरे बात हे| खोरबहरा अउ रइमत  दुखसुख बांटत गोठियावत हे रात दू बजत हे| तुमन ल घर चुल्हा चौका के काम बुताअउ  ल इका मन ल सम्हारे ल पर थे सो जा सोनू के अम्मा मँहू सोवत हँव कहत खोर बहरा आँखी ल मूँदे लगिस| रइमत सोनू ल अपन अँचरा ल ढाँकत खटिया म ढरकत हवय| खोरबहरा आँखी मूँदे देखत के काली धवरा बइठ गे रहिस एको हरइ नइ रेगे हे | आज बने  करई कोढहा भूसा डारेहँव कोटना भर के खाडरे होही| बिनसरहा ले रेगिहँव जोते बर| सोचते सोचत चार बजगे उठके धँवरा- बलहा मन ले खोरबहरा ढीले लगीस पाही खार म धनहा हवय सबो सबो नँगरिहा संगे आगू पीछू जावन लगे हे | नाँगर बोहे खोरबहरा बइला ल हकालत जाए लगिस| बाउग के पाग देहे आज तो दू इकड़ म बावत हो जही सोचत घर ले निकलत हे धान के बीजा बोहे रइमत पीछू पीछू आवत हे खेत पहुँच गे बीजा टोकनी उतार के रइमत घर लहुटत हे | खोरबहरा मूदरहा ले नाँगर फाँद डरे हे| जल बेटा  धवरा - बलहा तता ..तता घँच जा कहत ! नाँगर जोते लगिस|खेत भर ल दू हरइ धर के धान बीजा छिचे हे| बेरा चढ़े लगीस धवँरा कालि के सुसताय बने बलहाके सग रेंत हे एक हरइ भुइँया जोता बोंवा गए दुसरइया हरइ के मुड़ा ल दूनत खनी मोरी मधवँरा बइठ गे | खोरबहरा पुचकारत धवरा ल
मनखे कस कहत हे | तँय अइसने बइठ बे रोजे त धान क इसे बोहँव धवरा? अभीन तो एक हरइ  ए डोली म अउ दू दूसर खँड़ म रेंगेल हे| हाँके म नँइ उठीच धवँरा ह थोकन घाम जनाय रहय  फेर बादर ढाँक लीच|रइमत राँध पो के ल इका मन ल खवा जताबता के  पेजपसिया पानी धरे खेत म आगे|
खोरबहरा धवँरा ल ढ़िल के देखिस उठ खड़ा होही त फेर फाँद लेहूँ | फेर धवँरा नइ  उठत हे| ललहा अपन जोड़ी ल चाँटे लगिस जैसे मया करत मनावत हे चल उठ मालिक के करजा अभी छूटेला बाँचे हे|
    रइमत मेढ़ म खाना के झउँहा ल उतारत आरो करत खोरबहरा ल कहत हे| बेरा होगे हवय पेज पसिया पीलव फेर जोतिहव|
 खोरबहरा धवरा बइला ल देखत कहत हे मोर पेज पियत ले सुसता ले फेर बने तरर तरर रेंगबे| ले मुखारी घिसलव ओ मन ल भी सुरतावन दव बेचारा मन के सियानी जाँगर आ गे हवय|
थोर थोर करके पार लगाबे करही लक्षमी यहराज ह|  रइमत बठकी भर पेज अउ माली म चेंच भाजी निकाल के देदिस|खोरबहरा संसो करत अउँवा- झउवा खाय लगिस |रइमत कहत हे धिरलगहा खावव अपन खेत -खार म  काय जल्द बाजी हे? खोरबहरा  कहत हे सोनू के दाई बने बने चेंच भाजी बनाय हस| बड़ मिठावत हे|
 खोरबहरा खाके मुँह पोछत उच गे|  रइमत कहत हे थोकिन बइठ लेव फेर तुहँर काम तो लगेच हे|
खोरबहरा मुड़ डोलावत रेंगत हवय सोना बतर बनत हे बइठे के बेरा नइहे | नाँगर संग धवँरा फाँद के फेरे उठावत हे| ले दे के धवँरा उठगे डिगिर डिगिर रेंगत हे | खोरबहरा बने दबावत अरई देवत बहिरहा  ललहा ल हाकत हे| ललहा गुणधरे बने सपेटे तिरत हे फेर धवरा पहली कस बने नइ रेंगत हे| रइमत बरतन मन ल धो मढ़ा के धनहा के बनझार कांद दुबी ल बिनत हवय | हरई म चार कुँड़ बाचे रहिस के धवरा लस ले बइठ गे| खोरबहरा धवरा ल दबा के डाँटत कड़ा भाखा ले कहत हे हत रे कब ले गरियार होगे ,दस बछर म आँसो अतका पदोवत हस  अका बीसा चार दून करदे तहाँ बइठ लेबे | आज अ उ न इ जोतँव रे धवँरा कहत | तुतारी लगॎवत हे| फेर धवरा नइ उचत हे|  दू तुतारी धवरा ल पीट डरिस खोरबहरा गुस्सा म |दस बछर म कभू न इ मारे हे| फेर पुचकारत हे नइ मारव बेटा धवँरा उठ जा  रे|रइमत खोरबहरा ल डाटे लगीस लक्षमी ल काबर मारत हस | थोकन सुसतावन दे| एक मोरी बर मारत हव| मया करत बइला बर बाँचेपसिया ल रइमत  धवरा व देवत हे| धवँरा ह जीभ निकाले हफरत हे , लाहकत हे|  पसिया ल नइ देखिस न सुँघत हे| रइमत खोरबहरा  ल कहत हे जादा थक गे हवय इमन ल ढिल दव काली बिहना घुमा लेहू|
    खोरबहरा ल एक एक दाना ल बने  राग - पाग  म बोय के संसो हे |ते पाय के एक बखत अउ धवँरा ल उठाय के कोशिश करिन| उठबे नइ करिस  तिर के देख डरिस|
 धवँरा ल खींच के हरइ ले घूँचा डरिस खोर बहरा ,फेर धवँरा ल नइ ढ़केल सकिच|
              धवँरा के हँफरइ बढ़ गे|
धवँरा के जोंता ल ढील दिस| धँवरा चारो गोड़ ल खुरचे लगिस|
 खोरबहरा समझ नइ सकत हे| खोरबहरा रइमत ल  कहत हे देखव तो धवँरा कइसे करे लगिस रइमत कइसे  करत हस लक्षमी पार लगादे कहत धवँरा ल छुवत जय करत हे| खोरबहरा मुड़ी पकड़ के बैठ गय | धवँरा चारो गोड़ ल उपर टाँग दिस मुँह ले खासत एके बेर म परान निकल गे| रइमत अउ खोरबहरा दूनो  चिल्ला चिल्ला खेत म दहाड़ मार के रोय लगिन हमर नाँगर टूट गे हमर नागर टूट गे हमर करम फूटगे | आस पास के नँगरिहा जुरिया गें , करल ई देख चुप करावत हे| दूनो ल समझावत हे|
तुहँर लक्षमी के करजा छूटागे अतके दिन बर तोर घर म आए रहिस | धिरज धरावत पंचु कहत हे करम के लेखा इही मेर तक रहिस| चल लक्षमी ल तोप माटी दे | उठा के गासा पार परिया म धँवरा ल  मिट्टी देदिन | रोवत रइमत  खोरबहरा ललहा ल घर ले गए| रात बिते पाछू दूसर दिन  ललहा संग खोरबहरा एक पार फँदाये हे रइमत  टुटहा नाँगर ले बाचे मोरा ल पुरा करिन हे|

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