Friday 17 July 2020

-----कहानी----- दीपक निषाद

-----कहानी----- दीपक निषाद

 " *बने* *कहे* *बबा* !"

गाँव भर मा ए खबर बिजली कस बगर गे कि फत्ते के गोसइन दुलारी हा जहर पी लिस। चौंक- चौंरा, गुड़ी -चौपाल सबो जघा  इही बात के चर्चा।
       बखरी जाय बर निकले रहय रमेलाल, पान ठेला करा जुरियाय भीड़ ला देख के बिलम गे। चार झन के गोठ बात मा जहर पिए के घटना के जानबा होइस।
      बिहनिया ले फत्ते अउ दुलारी धान नींदे बर खेत गे रीहिन। वींहिचे कुछु  बात मा बात बनेच बाढ़गे, अउ दुलारी ह तातारोसी मा कुँदरा मा रखाय कीटनाशक दवई ला पी डरीस। वो तो धन भाग, कि परोस के खेत मा बनिहार मन घलो नींदई-कोड़ई करत रीहिन, धरा रपटा दउड़िन, ओला सम्हालिन अउ माँछी घलो खवइन, उल्टी होही कहिके, फेर दुलारी ओकिया के रहिगे, उल्टी नइ होइस,गजरा फेंकेल धर लिस अउ बेहूस होगे। तब तुरते ताही एक सौ आठ ला फोन करके बलइन, ताहन एम्बुलेंस मा भर के मैकाहारा लेगिन।
          जम्मो बात ल जानिस, त रमेलाल से घलो नइ रहे गिस। पूछ परिस--"त भउजी बने हे नहीं जी। "
        एक झन खिसियागे--"अभीच के घटना ए रमेलाल!बने जात के इलाज-पानी नइ शुरू होय होही, त बने गिनहा ला का बताबो। तहीं हा धान बोथच, त का दू पहर मा कंसा निकल जथे। अरे धीर राख। सबो पता चल जही। "
     रमेलाल ला अउ कुछु पूछे के हिम्मत नइ होइस।
      दुलारी के गोतियारी बड़ा ससुर हा  कहिथे--"बिचारी गरीबिन दुलारी ह डेड़हौली हरय, तीने बछर मा दू-दी झन लइका दे दीस भगवान हा कोरा मा। वीही नान-नान कुकुर मन के जादा फिकर हे। "
       "शुभ-शुभ गोठिया कका। अस्पताल पहँच गे त बने होके आही। "एक झन कहिथे।
       "इही उमींद मा तो हमू मन हावन, बाबू!" सियनहा के बोली मा  बिश्वास  ले जादा घबराहट  रीहिसे।
        इही गोठबात मा भुलाय रमेलाल के वो जघा ले टरे के मने नइ होवय, फेर खेती-बारी घलो देखना हे, सोचके मजबूरी मा अपन पाँव पायडिल मा रखिस अउ सायकिल चलावत बखरी पहुँचगे।
       बखरी के राचर ला खोलिस अउ धान ऊपर नजर दउड़इस, फेर धान ला का देखय, आँखी मा तो दुलारी भउजी के चेहरा झूलत हे। कतका सुघ्घर चेहरा-मोहरा अउ बोली-बतरा।
           "का साग खाय पेटला?"
    "हमर बहिनी ला काबर रिसवा देच?"
   "हमरो दरवाजा ला खूंदे बर आ जाय कर कभू-कभू। "
हाँसती बदन भउजी, गाँव -बसेरी मा देवर के नता रमेलाल करा हाँसी-ठिठोली करे बर नइ छोड़िस। ओकर सुरता करत रमेलाल के जी घलो दुखा गेहे। ओकर अंतस इही बिनोवत हवय-"बउपरी ला झटकुन बने कर देतेच भगवान!"
             अनमना असन रमेलाल आज नींदे-कोड़े बर खेत मा उतरत नइये। मेड़ पार मा बइठे गुनत हावय। घाम चरचरइस ताहन कुँदरा मा रखाय खटिया मा आके बइठगे।
          सोचत- बिचारत  खटिया मा थोकिन ढँलग गे। ढँलगे-ढँलगे ओकर नजर अचानक कुँदरा के कोनटा के पाट ऊपर परीस। देखथे कि काली जुअर धान मा छींचे कचरानाशक दवई मन के बाँचे झिल्ली अउ शीशी रखाहे। दवई के शीशी मन ला देख के दुलारी भउजी के दवई पिये के घटना ला सोरिया डरीस। दुलारी भउजी इसने अपन बारी के कुँदरा मा रखाय दवई ला पिए होही।
          अचानक ओकर सोच-बिचार के तार दुलारी भउजी ले परेमिन करा जुड़गे। परेमिन-ओकर गोसइन। दू बछर होगे बिहाव होए, फेर अभी तक दूनो परानी के बने तारी नइ पटय। आए दिन खब-खिब होते रहिथे। नौ महिना के नोनी ला पिया के, राँध गढ़ के, सास ला नोनी ला धरा देवय, तब खेत आवय परेमिन। एती ओकर टेम-कुटेम ला देख के रमेलाल के तरवा गरम हो जाय अउ बफलय--"गाँव भर मा तहीं भर लइकोरी नोहच, बेरा हा सोज होगे, तब आवत हच। "                       परेमिन घलो जवाब देये बर कभू कमी नइ करीस। लात अउ बात के का उधारी।
"एक दिन राँध-गढ़, धो-माँज अउ घर बूता कर के देखबे, तब  मेंछा अँइठेल भुला जबे। "
ताहन चलत हे घंटा भर दूनो के तनातनी। अउ जादा होवय त परेमिन मुँहु अइँठत घर घलो लहुट जावय। ओती रमेलाल बड़बड़ावत हाथ झर्रा के रहि जाय।
       एक दिन तो बात जादा बाढ़गे, त मइके जाय बर झोला-मोटरा बाँध के निकल गे रीहिस परेमिन, लेद बरेद मा चार सियान समझइस, त मानिस।
       "ससुर ला बीते बछर भर होगे, सास ह घरे के पुरतिन, तेकर सेती कोनो ला घेपय नहीं। हमरे करा चलय एहा, दूसर जघा एक दिन नइ टिकतिस। मोर बेटा तो मेंढ़वा ए, कठपुतरी कस नाचथे। "।सास के जाँगर भले नइ चलय, फेर मुँह हा सरलग चलय। अपन बेटा के ऐब ला कोन महतारी बताही, अउ बहू के चारी-चुगली करके सास घलो परंपरा ला निभावत अपन बेवा जिनगी मा थोकिन आनंद अनुभव करय।
           रमेलाल घलो परेमिन ला कभू नइ भइस, फेर ओकर संग लड़-झगड़ के, चाहे सजा का चाहे मजा का, जिए के आदी होगे हे,अउ अपन गिरस्थी बर  परेमिन के कतका महत्तम हे, ओला स्वीकार करय।
      आज कुँदरा मा ढँलगे-ढँलगे इही सब बात ल गुनत हे। जइसे लील्ला-झाँकी मा परदा गिरथे अउ उठथे, अउ आने -आने दृश्य आथे जाथे, वीसने दुलारी के जहर पिए के बात अउ परेमिन के कई ठन घटना साँझर-मिंझर होके आँखी मा झूले लगिन। एक पइत तो रमेलाल के सोच अइसे होगे कि दूनो के झगरा मा रोसिया के परेमिन कुँदरा मा माड़े दवई ला पी डरीस। घर भर रोआ-राही मचगे,अउ रमेलाल के आँखी के आघू अँधियार छागे।
       झकना के उठ बइठथे रमेलाल। एकदम से घबरा जथे ओहा। कई ठो देखे-सुने घटना सुरता आथे कि फलाना-फलानिन कीटनाशक दवई पी डरीन। कई झन बाँच गे अउ कई झन के जान घलो गय। अब तो ओकर हिरदे मा डर समागे कि कोनो बात मा रिसाके कहूँ परेमिन सहींच मा दवई पी डरही, त मोर का होही, मोर नानचुन नोनी के का होही। मोर तो मरे बिहान हो जाही।
     इही बात ला गुनत वो हा ठान लिस कि नहीं!ए बाँचे-खुचे दवई-दारू ला कुँदरा मा नइ रखना हे। नरवा मा बोहवा  दुँहू।अउ जब भी दवई लानहूँ, बउरे के बाद तुरंत नरवा मा बरो दुँहू ।ताकि मोर घर जहर पिए के बाते झन आवय। जब बाँसे नइ रही, त बँसरी कहाँ ले बाजही।
    झटपट रमेलाल उठिस अउ सबो बाँचे-खुचे कीटनाशक दवई के पाकिट अउ शीशी मन ला सकेल के कुँदरा ले निकलिस अउ बखरी तीर के नरवा कोती जाय बर जइसे बखरी के राचर ला उठइस, कि ओकर बबा अभरगे।
       रमेलाल के बबा अस्सी अकन बछर के सियान ,लउठी धरे-धरे संझा-बिहनिया बखरी ला झाँके बर आवय अउ घंटा दू घंटा पहा के एलेम ठेलेम करत घर लहुटय।
        "अरे रमेलाल!कालीच तो ए दवई मन ला छींचे हच, ए बाँचे- खुचे ला सकेल के कहाँ लेगत हच?"
      बबा के सवाल के का जवाब देवय रमेलाल ।कइसे बतावय असल बात।
        "कोनो किसान माँगे हे का दवई मन ला?"
        रमेलाल फेर चुप। फेर बबा कहाँ चुप राहय। तिखार-तिखार के पूछेल लगगे। तब रमेलाल लटपट मा जवाब दीस--"ए दवई-दारू ला फेंके बर जावत हँव। कुँदरा मा दवई-दारू रखना बने नोहय बबा। कब जाने, कोन मनखे के मति बिगड़ जाय अउ दुलारी भउजी कस पी-पुआ लेवय। त भारी अलहन हो जही। "
         "कोन पी डरही जी?" डोकरा थोकिन सोचिस, तब कहिथे--"अच्छा, परेमिन बहू बर कहत हच का?"
      रमेलाल मूंड़ी हलाके स्वीकार करथे। तब बबा मुच ले करिस अउ कहिथे--"अरे बेटा!जिए के सौ बहाना अउ मरे के सौ तरीका। कोनो घर के मेयार मा, पंखा मा, रस्सी, पंछा, लुगरा ओरमा के लटक जथे, कोनो माटी तेल डार के जर जथे, कोनो जहर-महुरा पी लेथे। का का जिनिस ला तैं घर-दुआर, बारी-बखरी ले हटाबे अउ फेंकबे, कि कोनो मरे के उदिम झन करय। "
      बाबू रे!मरे के का का जिनिस हे, वोला झन हटा, मरे के बिचार ल हटा, अपन खुद के मन ले, अउ अपन जाँवर जोड़ी के मन ले। "
      रमेलाल मूंड़ी गड़ियाय हवय,अउ बबा के बात पूरे नइये।
"तोला परेमिन बर अतेक डर परे हे, फेर मैं कहिथँव, परेमिन काबर मरही। तैं ओला मारबे तब मरही। ताली एक हाथ ले नइ बाजय।
       बहू ला तैं झगरहिन, मूलहिन कहिथच, मोर बिचार मा तैं बड़े मूलहा हरच,जनम ले नहीं, करम ले।ठीक हे, झगरा परेमिन शुरू करथे, फेर ओला आगी मा घी डारे कस भभकाथच तहीं हा। कभू मनमुटाव अउ रार के भभकत आगी मा पानी डारे हच? सिरिफ दूसर के गलती ला झन देख, अपनो अंतस मा झाँक के देख अउ बिचार कि तोर कतका जवाबदारी हे। "
      रमेलाल कलेचुप मूँड़ी गड़ियाय सुनत हे। तब बबा ओकर खाँध मा हाथ रख के कहिथे---"देख रमेलाल!मया, पिरीत अउ सुम्मत के डोरी ले अपन गिरस्थी ला अइसे बाँध ले कि कोनो मनमुटाव अउ रीस ओला छोरे झन सकय। अभी तैं दुनियादारी मा नेवरिया हच बाबू, तोला बहुत कुछ झेले बर, सहे बर अउ सीखे बर परही।
       अउ ए दवा-दारू माहँगा-माहँगा के हरय, ए मन बाद मा अउ काम आही, एमन ला कार फेंकथच?
       तोला फेंकनाच्च  हे ,त अपन अवगुन अपन बुराई ला अपन अंतस ले फेंक। "
        अतका सुन के रमेलाल के आँखी मा जइसे चमक आ जथे। वो हा अपन मूंड़ उठाथे अउ एक भरपूर नजर बबा ऊपर डारथे। अउ सोचथे-कतका सोलाआना बात काहत हे बबा हा। ओला अइसे लागथे जइसे मूंड़ ऊपर ले भारी बोजहा उतर गे अउ जी हल्का होगे। ओकर घबराहट छू-मंतर होगे। तब बबा करा मुस्कावत कहिथे--"बने कहे बबा!"
        अतका कहिके रमेलाल सबो दवई के शीशी-पाकिट मन ला कुँदरा के पाट मा वापिस रख देथे।
 
          -दीपक निषाद-बनसाँकरा (सिमगा)

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