Tuesday 7 July 2020

छत्तीसगढ़ी साहित्य म चौमास (विमर्श)- छंद परिवार


छत्तीसगढ़ी साहित्य म चौमास (विमर्श)- छंद परिवार

1, चोवाराम वर्मा बादल

छत्तीसगढ़ ल धान के कटोरा कहे जाथे। इहाँ के अधिकांश मनखे मन गाँव म निवास करथें अउ खेती किसानी के बूता  करथें।कतको गाँव घन जंगल झाड़ी अउ पहाड़ म घलो हावय।
 ए किसान किसनहिन मन सबले ज्यादा धान के फसल उगाथें। आप मन जानत हव कि धान के फसल बर ज्यादा पानी के जरूरत  होथे। सिंचाई के जादा साधन नइ होये के कारण जम्मों किसान 'बादर देवता' मतलब मानसून के कृपा ऊपर आसरित होथें। बने बरस दिच त हर हर गंगा हो जथे नहीं ते मूँड़ धरके रोए ल पड़ जथे।
  ए खेती किसानी के काम चौमास म होथे। चौमास मतलब वर्षा ऋतु के चार महीना - असाड़,सावन, भादो कुवाँर ।  इही चार महीना किसान मन के जीवन रेखा आय। खेती किसानी के चउदा आना काम  इही चौमास म होथे।बहुत अकन तिहार मन घलो  इही चौमास म किसान के जिनगी म खुशी   के रंग भरेथें जेकर शुरुआत हरेली ले होके सवनाही रमायेन , तीजा पोरा , गणेश पूजा,पितर पाख , नवरात्रि दशहरा, देवारी तक पहुँच जथे।
   किसान के जिनगी म रचे बसे ए चौमास के जम्मों रंग के छटा छत्तीसगढ़ी साहित्य म जगा जगा बगरे मिलथे। लोक गीत, लोक कथा, कविता ,कहानी, गीत , निबंध आदि कोनो विधा अइसे नइये जेमा चौमास के बात नइ होही। बस्तर सरगुजा के करमा गीत म तो एकर भरमार हे।
  कड़कत बिजुरी,  झमाझम बरसत पानी , नाचत मोर , दादुर के  बादर ल बलाना, बिजझा छींच के नागर जोतत किसान , अँगाकर रोटी ,चटनी अउ बासी  धर के खेत जावत किसनहिन , ददरिया म नायक-नायिका के नोंक-झोंक ,सवाल -जवाब, करमा सुवा के श्रृंगार अउ विरह गीत, जिहाँ देख ले तिहाँ चौमास के रंग देखे ल मिल जथे।
     हमर जम्मों पुरखा साहित्यकार जइसे सर्व श्री हरि ठाकुर जी,संत पवन दीवान जी , केयूर भूषण जी ,जनकवि कोदू राम दलित जी, विनय कुमार पाठक जी  ,अमर गायक ,कवि लक्ष्मण मस्तुरिया जी मन के सृजन म एकर कतको उदाहरण मिल जथे। मस्तुरिया जी ल तो एकर प्रतिनिधि साहित्य कार कहे जा सकथे। चंदैनी गोंदा के भावधारा म तो खेत ,किसान, बरसा,तीज तिहार सबो समाहित हे।
  चौमास के पूर्व तैयारी के रूप म किसान खेत के काँटा खूँटी ल बिन के खातू ल बगराथे। ए घटना ल एक अलग सन्दर्भ म  लेके हमर गाँव म दुख के काँटा बोवइया मन ल सीख देवत मस्तुरिया जी कहिथें--
काँटा खूँटी के बोवइया, बने बने के नठइया,
दया मया ले जा रे मोर गाँव के।
      अउ जब खेती खार फसल ले लहलहा जथे तब उन गाथें--
मोर खेती खार रुमझुम, मन भौंरा नाचे झूम झूम,
गिंजर के आबे ----
पूज्य रविशंकर जी के सृजन ल तो बच्चा बच्चा गुनगुनाथे--
पानी दमोर दे, नागर बइला जोर दे
    ओइसने डॉ परदेसी राम वर्मा जी , डॉ विनोद कुमार वर्मा जी आदि कथाकार मन के अउ छंद के छ परिवार के सब्बो साधक मन के सृजन म चौमास के दिग्दर्शन होथे।

चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़

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    2,  हेमकुमार साहू
 
           *चौमास*
 
           *चौमास* आषाढ़ महीना के शुक्ल पक्ष एकादशी ले शुरू होके कार्तिक महीना के शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन खत्म होथे। हमर किसानी जिनगानी के ओ चार महीना जेन खेती किसानी बर अड़बड़ महत्व रहिथे ये चार महीना मा खेत खार मा किसान अउ बनिहार मन खूब सेवा मन लगा के करथे। आषाढ़, सावन, भादो अउ कुंवार इहि चार महिमा मा बोनी, निदाई -कुड़ई ला सुग्घर करथे अउ फसल ला सुघ्घर तैयार करथे। वेद पुराण के हिसाब ले धर्म, कर्म, व्रत-उपवास, ईश्वर के ध्यान, साधना, तंत्र- मंत्र जप अउ दान धरम के पवित्र चार महीना ला चौमास (चौमासा) कहिथे।

*भगवान विष्णु के सोये के बेरा*
        वेद पुराण मा चौमास ला भगवान विष्णु के सोये (शयनकाल) के बेरा बताय हावय। ये चार महीना मा भगवान योग निद्रा मा रहिथे। वेद पुराण के अनुसार भगवान विष्णु हा वामन अवतार ले रहिस हावय। वामन अवतार मा भगवान विष्णु हा राक्षस राज बलि ले तीन पग भुइँया मांगे रहिस हावय अउ राजा बलि तीन पग भुइँया दान करे रहिस हावय। पहली पग मा भगवान वामन हा जम्मो पृथ्वी ला, आकाश ला अउ सब्बो दिशा ला ढंग लिस। दुसरइया पग मा जम्मो स्वर्ग लोग ला ले लिस। तीसरा पग बर कुछ नई बचिस त बलि हा अपन आप ला समर्पित करत भगवान ला अपन मुड़ मा पग ला रखे ला कहिथे।  भगवान बलि के दान ले खुश होके ओला पताल लोक के राजा बनाथे अउ वर मांगे ला कहिथे। राजा बलि भगवान मेर चार महीना पताल लोक मा रहे बर वर माँगथे। तब भगवान बलि के भक्ति ला देख के ओला वरदान देथे की चार मास पताल लोक मा रइही।  इहि चार मास पताल लोक मा भगवान योग निद्रा मा रहिथे। ये चौमास महीना मा वेद पुराण के अनुसार बिहाव, यज्ञ अउ शुभ काम ला नई करय।

*शिव परिवार करथे जग के रेख देख*
            धर्म शास्त्र के अनुसार जग के संचालन अउ रेख देख जगत पालन हार भगवान विष्णु हा करथे, फेर भगवान सोये बर चल देथे त सबो रेख देख जग के संचालन ला भगवान शिव अउ उँकर परिवार हा करथे। ये चौमासा मा शिव अउ उँकर परिवार ले जुड़े सब्बो व्रत तिहार ल मनाय जाथे। सावन महीना हा पूरा भगवान शिव ला समर्पित रहिथे। भक्त मन भगवान के उपवास रखथे अउ खूब पूजा अर्चना करथे। कतको भक्त मन ये महीना मा बाल दाढ़ी नई कटवावय। एकर बाद भादो मास मा भगवान गणेश के दस दिन ले जन्मोत्सव मनाय जाथे। कुंवार महीना मा शारदीय नवरात्रि मा दुर्गा दाई के बड़े धूम धाम ले पूजा भक्ति करथे।

*चौमास के वैज्ञानिक महत्व*

       चौमास के धार्मिक, सामाजिक के संग संग वैज्ञानिक महत्व तको हावय। ये चार महीना मा खान पान मा बड़ सावधानी बरते ला परथे।  बरसात के मौसम होय के कारण ये महीना मा सूरज के रौशनी हा भुइँया मा ढंग से नई पड़य पाय। हवा मा तको नमी रहिथे जेकर कारण बैक्टीरिया, कीड़ा मकोड़ा, छोटे छोटे जीव हवा मा अबड़ पनपथे। भाजी पाला मा नानम प्रकार के कीड़ा मन तको रहिथे। चौमासा मा हमर तन के पाचन शक्ति तको कमजोर रहिथे अउ कतको प्रकार के बीमारी मन तको फइले के डर बने रहिथे। चौमासा मा हल्का पुलका सुपाच्य  खाना खाय बर कहिथे। ये महीना मा मास, मछली खाय बर मनाही रहिथे।

 *छत्तीसगढ़ मा चौमास के महत्व*
              हमर छत्तीसगढ़ मा चौसास आषाढ़, सावन, भादो अउ कुंवार महीना के बड़ महत्व हावय। छत्तीसगढ़ राज कृषि प्रधान राज आय अउ इहाँ के जम्मो मनखे मन खेतिहर जिनगी से जुड़े हावय। हमर छत्तीसगढ़ के खेती किसानी के शुरुवात ये चौमासा मा ही होथे बुवाई, रोपाई, निदाई जम्मो कार्य आषाढ़ से कुंवार तक होथे अउ इहि महीना मा ज्यादा रेख देख करे ला परथे। छत्तीसगढ़ मा तिहार के शुरुवात इहि चौमास ले होथे। पहली हरेली तिहार फेर इतिवार या सोमवार (सवनाही) तिहार,नागपंचमी, राखी तिहार, भोजली तिहार, कमरछठ, आठे कन्हैया, तीजा पोरा, गणेश चतुर्थी, पितर पाख अउ मा दुर्गा स्थापना शारदीय नवरात्रि। ये जम्मो तिहार ला छत्तीसगढ़ ले लोग बाग मन बड़े धूम धाम से मनाथे। चौमासा मा कभू कभू दिन हा रात बरोबर लगथे काबर की बरखा रानी अपन रंग मा रहिथे ता ऊंखर करिया करिया बादल सुरुज देव् ला ढंग देथे अउ जग हा कुलप अँधियार हो जाथे। इहि चौमास मा नदिया, नरवा, तरिया, बाँध जम्मो लबालब भर जा रहिथे। चारो मुड़ा हरियर हरियर रुख राई देखे बर मिलथे अइसे लगथे जैसे स्वर्ग अउ धरती एक होंगे हावय। प्रकृति अपन चरम सीमा मा रहिथे अउ जन मानस ला अबड़ भाथे। किसान अउ बनिहार मन प्रकृति के बड़ मजा लेवत घाम, भूख - प्यास अउ दुख पीड़ा बुलाये खेतिहर काम ला करत रहिथे। कभू कभू ये चौमास मा बरखा रानी पानी नई गिराय अउ अकाल होय के डर रहिथे ता जम्मो परब मा किसान अउ बनिहार मन के पीड़ा ला छलकत देखे जा सकथे।

*छत्तीसगढ़ साहित्य मा चौमास
        मँय सुरता करावत हव हमर पुरखा कवि  अउ लेखक मन ला जेमन कतका सुघ्घर चौमास के बखान करे हावय................

1) *कवि कपिलनाथ कश्यप जी  के लेख "चौमासा"  मा पूरा चौमास के सुघ्घर बखान हावय। ऊँखर लेख चौमासा ला पढ़े मा मन ला विभोर कर देथे। 

2) जनकवि कोदूराम "दलित" जी के कविता ला देखव कतका सुग्घर बखान करे हावय.......

गीले होगे मांटी, चिखला बनिस धुरी हर,
बपुरी बसुधा के बुताइस पियास हर।
हरियागे भुइयां सुग्धर मखेलमलसाही,
जामिस हे बन, उल्होइस कांदी-घास हर।।
जोहत रहिन गंज दिन ले जेकर बांट,
खेतिहर-मन के पूरन होगे आस हर।
सुरुज लजा के झांके बपुरा-ह-कभू-कभू,
"रस-बरसइया आइस चउमास हर"।।

3) जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया जी के एक गीत ला देखव ......
*सावन आगे आबे आबे आबे संगी मोर*

रहि-रहि के माँदर कस बाजत अगास मा
खेती-खार छ्लछलावय, रिमझिम बरसात मा
तरिया ताल लबलबावय, नरवा नदिया डबडबावय
पुरवइया नीक लागे हो…...

झुलवा बँधागे पीपर-आमा के थांग मा
आगे हरेली, मजा लागय झूमर नाच मा
जुड़ जुड़हा सिपा मारय, घुर घुरहा हिया काँपय
पुरवइया नीक लागे हो…..

4) *कुंज बिहारी चौबे* (क्रांतिकारी कवि)
रहि रहि के गरजत हे बादर जी
बड़े बिहिनिया ले करे हे झक्कर जी
रुमझुम रुमझुम बरिसत हे पानी
कइसे मँजा के मोर खेती किसानी
रेंग बइला झप झप, झिन कर आंतर
चल मोर भइया बियासी के नांगर।

5) कवि *लाला जगदलपुरी* जी

खेती ला हुसियार बनाये बर
भुइयाँ मा बरखा आथे।
जिनगी ला ओसार बनाये बर
भुइयाँ मा बरखा आथे।
सोन बनाये बर माटी ला
सपना ल सिरतोन करे बर
आँसू ला बनिहार बनाये बर
भुइयाँ मा बरखा आथे।

6) पुरखा कवि *हरि ठाकुर* जी

भरगे ताल तरैया भैया भरगे ताल तरैया।
झिमिर झिमिर जस पानी बरसे
महकै खेतखार के माटी
घुडुर घुडुर जस बादर गरजै
डोलै नदिया परबत घाटी
नांगर धरके निकलिन घर से, सबै किसान कमैया।।
   
         अब मँय नवा कवि डहर आप सब मन के ध्यान ला लेगत हौवव। खासकर के छंद परिवार के कवि मन डहर जौन सुघ्घर सुघ्घर अलग अलग छंद मा सुघ्घर रचना करे हावय........

1) चौमास (शिव छंद)-जीतेंन्द्र वर्मा "खैरझिटिया" के कविता के एक अंश ला देखव......

घन घनन घनन करे। सन सनन पवन करे।
नीर रझ रझा झरे। खेत खार सर भरे।

चंचला चमक चमक। तेज धर तमक तमक।
नाचथे असाड़ मा। बन नदी पहाड़ मा।


झींगुरा थके नही। कान सुन पके नही।
मोरनी मटक मटक। लेय मन मया झटक।

काम धाम गे हबर। जुट किसान गे जबर।
हल चले धरा उपर। आस धर मया चुपर।

ओह तो किसान के। ताल सुर जुबान के।
गूँजथे सबे डहर। मन करे लहर लहर।

नान नान छोकरा। का जवान डोकरा।
हाँस हाँस गात हे। भींग मेंछरात हे।

रेंगथे छपक छपक। पाँव ला चपक चपक।
गाँव खेत खार मा। घर गली दुवार मा।

बीज सब लरा जरा। फोड़ फाड़ के धरा।
झाँकते फुहार मा। तर धरा हे धार मा।

रंग धर हरा हरा। मुच मुचाय सज धरा।
जीव शिव हवै मगन। फेंक फाँक दुख अगन।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

2) *कुण्डलिया छंद--आशा देशमुख जी* के
*असाढ़* मा देखव.........
आगे हवय असाढ़ अब,हाँसत हवँय किसान।
नॉगर बइला ला धरे, अउ टुकनी मा धान।
 अउ टुकनी मा धान,खेत कोती जावत हें।
मन मा खुशी अपार,गीत मन भर गावत हें।
पानी बरसत देख,ताप भुइयाँ के भागे।
खेती मीत असाढ़,झमाझम नाचत आगे।

*3) वाम सवैया - बोधन राम निषादराज जी* के कविता मा देखव.......

भरे अब सावन मा धनहा अब देख किसान जुड़ावत हावै।
बियास करे सब धान ल देखव मूड़ उठा लहरावत हावै।।
इहाँ भुइँया सब डाहर सुग्घर सावन मा हरियावत हावै।
छमाछम बूँद ह नाचत गावत शोर घलो बगरावत हावै।।

*4) दुर्मिल सवैया जगदीश हीरा साहू जी* के *बरसे बदरा* के कविता ला देखव........
बरसे बदरा बिजली चमके, सुन झींगुर गीत सुनावत हे।
छइँहा खुसरे बइला गरुवा, सब जा परछी सकलावत हे।।
दबके बइठे मनखे घर मा, घबरावय जीव लुकावत हे।
नइ रेंगत हे रसता मनखे,  मन मा डर आज सतावत हे।।

*2) बरखा रानी सार छंद- हेमलाल साहू*

करिया करिया बादर देखत, हाँसत हे जिनगानी।
सबके मन मे आस जगत हे, आही बरखा रानी।1।

रुमझुम रुमझुम पानी बरसे, खड़े किसान दुवारी।
सावन भादो महिना आगय, रात लगे अँधियारी।।2।

         ये प्रकार ले छत्तीसगढ़ साहित्य मा जुन्ना मन के बाद नवा पीढ़ी के बहुत झन कवि मन चौमास के बखान करे हावय सबके रचना ला सामिल करहूँ त बहुत लम्बा लेख हो जाही ।

-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, पोस्ट नगधा
तहसील नवागढ़, जिला बेमेतरा

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3, अश्वनी कोसरे

चौमास ले जिनगी के आस
भरदेथे सबके मनमा उजास
तपन ले धरती लेथे जुड़वास
सबो जीव बर चौमासा खास

चौमास ये धरती के सबो परानी बर बरदान बन के आथे| चौमास के ये चार महिना आसाढ़ ,सावन,भादो ,कुवांर (आश्विन) हर बरसा ऋतु के समे-काल होथे| धरती भुइयाँ म हरियाली छाय लगथे ,रिकिम रिकिम के पेड़- पौधा, रूख -रई घास- फुस ,बन- दुबी- कचरा ले हरियाली आथे| बन ,परवत, झरना , नँदिया, नरवा, झोरका, डबरा, खँचवा भर के धार बोहाय लगथे| परकिति सिंगार करे मनभावन लगथे| सबो जीव जंतु ल भोजन पानी के सुघ्घर कौरा मिलथे| वास स्थल बने लगेलग थे| जंगल म मोर नाचे लगथे| बाँस के करील अउ पिहरी फूटे लगथे|
जंगल परबत म हरियाली के संग
नवा परिवरतन होय लगथे|
          इही वो ऋतु  हरे जेन मा धरती के सबले चतुर जीव अपन खाये पिये बर अनन्न उपजाथे|भुइँया के सेवा करत नाँगर ले करम के गीत गावत अन्न उपजाये के उदिम करथे|संगे संग अपन रीति रिवाज अउ परंपरा ल निभावत रथे| माटी तिहार ,भुइँया तिहार अउ बाउग तिहार के संग फसल -सियारी अउ बियारी के तोरा जोखा के सुरुआत होथे|धान के जरई, थरहा ,परहा संग किसानी के तिहार होथे| आने फसल घलो जरूरत अउ भुइँया हिसाब ले बोये जाथे |जउन हें कोदो ,कुटकी , राहेर , जोंधरी ,जुवांर , सोयाबीन, उरीद मूंगफली, अउ सब्जी - भाजी ,  भाटा पताल  ,केला ,पपीता आने परकार ले लगाये जाथे|
   फेर हमर छत्तीसगढ़ ल तो धान के कटोरा कहे जथे| जिहा सबले जादा धान के परंपरागत खेती संग नवा तकनिक ले होय लगे हे| साहित्य म नंगते बखान करे गे हवय खेती किसानी के, गुणगावत कई - कई विधा म कविता कहानी छंद पावस गीत करमा ददरिया , निबंध अउ नाना पर कार के खेती किसानी के हाना ,जनउला, जनकथा ,कहावत लोकगाथा हमर संसकृति परंपरा ल आघू बढावत रचे गे हवय ओ सबो ये चौमासा के महत्ता ल लेखे रचे गे हे | मन सोच के नाचे झुमय लगथे|
चौमासा कुशी के संग अनशासन घलो ले के आथे | ये चार महिना म नमी के मातरा जादा होय ले रोग रई घलो फैलथे संचरथे|
हमर परंपरा म ये चार माह शरीर ल कुछ निशा खान पान ले  दूरिहा संयम म राखे ल परथे| तामसिक निरामिष खान पान ल तियागे अउ ताजा गरम टाटक भोजन के उपर जोर दे जथे| जेकर ले तन ल निरोगी रखे जा सके , येखर उपर भी बहुत से साहित्य कार मन कलम चलाये हे| जिनगी ल रोचक ढंग ले जीये बर हास विनोद संग नाच गान जोड़े चौमास ल गुजारे जाथे|

    फसल के बोवई -लगइ संग
किसान परिवार के काम शुरु हो जथे |  हमर छत्तीसगढ़ के आत्मा  गाँव म बस थे|अउ इही समे किसानी ले जुड़े  तिज तिहार ओसरी पारी आवत जाथे|आसाढ़ म किसान नाँगर फाँदे ददरिया गावत रथे वोखर खेतहारिन बासी पानी बीजा धरे आवत रथे|
जब बोवारा झर जथे| सावन म फसल जामे अउ बियॎसी झरे के खुशी य  हरेली मानथे| अपन किसानी औजार मनके पुजा करथे | नांगर ल धोके जेंवाथे |
बइला- गाय (लक्ष्मी)ल लोंदी खवाथे| सावन म ही परहा लगावत किसान अउ कमिया मन निदाई गुड़ई संग करमा ददरिया गाथें| सावन म ही लोक संस्कृति अउ परंपरा ले जुड़े भोले बबा के पुजा सावन सोमवार  संगे म आमावस के दिन हरेली मनथे| 
भोजली बोवाथे राखी तिहार भाई बहिनी के मया के निरवाह होथे भादो म कमरछठ अउ आठे कनहइया के बाद किसान के  देख रेख खाद पानी देवत फसल म बढोतरी होय ले पोरा तिहार मनथे| पोरा म बैल के पुजा करत वोखर मितानी संग उपकार के गुण गाए जथे| बहिनी माई के सबले बड़े परब तीजा के परब आथे| बेटी बहिनी मन मइके आथें, शंकर पारबती के बरत उपास करथे| बने सुघ्घर वर के कामना अउ मनौती बर कुवांरी नोनी पिला मन घलो तीजा के उपास रथें|भादो के चौथ ले गणराज बिराज थे | गणपति के सेवा करत पीतर आ जथे| पुरखा मन ल नवा फसल  उरीद  के बराखवात हमर संस्कार के कई तिथि आत जावत रथे| मूंगफली के खनई चालू हो जथे| सोया बीन कटे लगथे | किसान के हाथ हरियर होय लगथे|
कुंवार ले नवरात शुरू हो जथे | सुवागीत गाय नाचे रात बीतत गाँव गाँव म जस गीत , नाच , लीला के संग कवि मन के काव्य पाठ होय लगथे| अच्छा फसल के कामना करत दशेरा मनावत नवा खाई के रसम होय लगथे | कई अलग अलग संस्किरिति ,धरम ले मेल जोल होवत ये उल्लास के महिना नाकथे|  भाई चारा अउ  प्रेम के संग गौरा गौरी के बिहाव करत कातिक के लगती म धान के फसल लुवाय टोराय लगथे | नवा फसल ले कोठार म धान के खरही गंजाय लगथे|
 कोठी म रास दाब ले धान धराय लगथे  | चार माह के पानी बरसात ले उबर घर दुआर लीप पोत के लक्षमी घर आए के खुशी म लोगन देवारी मनाय लगथे|
ये चौमासा ले कमाय धन बाकी के बचे महिना म सुख पुर्वक जिनगी निरवाह के काम आथे|
साहित्य म ये सबो तरह के परंपरा तीज ,तिहार ,  कवि -लेखक मन के गीत, कविता ,कहानी ,छंद नाटक  बन के समाये हवय|

अश्वनी कोसरे
कवर्धा कबीरधाम
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4, आशा देशमुख:

मनखे अउ प्रकृति बर ये चौमास अबड़ महत्व रखथे
अषाढ़ ,सावन ,भादो ,क्वांर ये चार महीना ही बारह महीना के नींव बनथे।
ये चारों महीना ही सुख अउ दुख के निर्धारण करथे।
काबर कि भारत देश कृषि प्रधान देश हे।
 मनखे अउ सबो जीव जंतु बर सबसे जरूरी ज्यादा आवश्यकता भोजन हरे।
असाढ़ से शुरू होथे घरती दाई के सृजन काल ।
 बादल ,धरती ,हवा पानी  ,आकाश
ये सबके काम एक साथ सहयोग से शुरू हो जाथे
सब तत्व मिलके प्रकृति ल सजा संवार के नवा रूप देथे।
जेन ल साहित्यकार कवि मन अपन कविता में श्रृंगार ,कर्मठता ,
तीज ,त्योहार ,देव आराधना
आदि कर्म पूजा होथे।
ये समय समस्त संसार के लिए एक अलग ही अहसास होथे।
तभे तो कहिथे।

हे बादर तोर धरती रद्दा जोहत हे।

रद्दा ला देखत बीतत हे चौमास

तँय कब आबे रे करिया बादर।

चल चल रे किसान बोए चले धान।

आदि सुन्दर सुन्दर गीत बने हे, इही चौमास बर।

ये भी जिक्र करना जरूरी हो जाथे

कि जैन मुनि मन ये चतुर्मास कहीं एक जगह बैठ के अपन समय ल तपस्या में बिताथें।

चौमास अउ साहित्य के गहरा नाता हे।
ये प्रकृति के संगे संग मानव मस्तिष्क के भी नव सृजन काल होथे।
सुन्दर प्रकृति के वातावरण देख के
किसम किसम के गीत मन म उपजथे।
जो समाज ला नवा रद्दा देखाय के काम करथे।


आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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5, बलराम चन्द्राकर

छत्तीसगढ़ी साहित्य मा चउमास के गजब वरनन मिलथे ।आषाढ़, सावन, भादो, कुवाँर ये चार महीना चउमासा कहाथे। छत्तीसगढ़ के धरती आदिकाल ले साहित्य मा अगुवा रहे हे फेर मौन साधक प्रकृति के सेती इहां के आभामंडल ले दुनिया ओतेक परिचित नइ होय पाय हे। आदिकवि बाल्मीकि तुरतुरिया मा बइठ के इहें रामायण रचिस। सरगुजिहा महाकवि कालिदास के मेघदूत मा बादर हा  मया पीरा के संदेशवाहक दे बन के पिरीत के बरसा करे हे।
इन दूनों कवि के साहित्य मा चउमास के विपुल वर्णन हे  इंकर साहित्य संस्कृत मा हे, फेर प्रेरित साहित्य छत्तीसगढ़ी मा बहुत मिलही।
पं सुंदर लाल शर्मा ले लक्ष्मण मस्तुरिया तक अउ वर्तमान कवि साहित्यकार मन घलो खूब लिखे हें।
आसाढ़ ले कुवाँर तक तीज तिहार के साथ इहां के संस्कृति के निराला झलक देखे मा आथे ।
रजुतिया, जुड़वास, गुरू पूर्णिमा,  हरेली, नाग पंचमी, भोजली, राखी, बहुरा चौथ, कमरछठ, आठे कन्हैया, पोरा, तीजा, गणेश चतुर्थी, पितर पाख, नवरात्रि, जंवारा, दसहरा, शरद पुन्नी - ये जम्मो चउमासा के परब आय।

साथी हो छत्तीसगढ़ी साहित्य मा चउमासा के गोठ बात के दिन हरे आज। मैं काव्य मा कुछ साहित्यकार मन के रचना के उद्धरण दे के चौमासा के महत्व ला बताय के कोशिश करहूॅ।
 कवि साहित्यकार मन के कलम चउमासा के गोठ बिना अधूरा रहिथे।
महाकवि कालिदास ह मेघ ल संदेश वाहक बनाए रिहिस अउ छत्तीसगढ़ के नारी मन सुवा ला संदेश वाहक बनाय हे ।विरही मन के चउमासा का काहत हे(चिन्हारी - ४)
तरी नरी नना ना री नहा नारी ना ना
रे सुवना कहां हवय धनी रे तुम्हार....?
लागिस असाढ़ बोलन लागिस मेचका
रे सुवना कोन मोला लेवय उबार...
सावन रिमझिम बरसय पानी
रे सुवना कोन सउत रखिस बिलमाय...
भादो कमरछट तीजा अउ पोरा
रे सुवना कइसे के देइस बिसार...
कुआंर कलपना ला कोन मोर देखय
रे सुवना पानी पियय पीतर दुआर....
रे सुवना कहां हवय धनी रे तुम्हार...?

रवि शंकर शुक्ल जी के ये अमर गीत मा चउमासा के बात देखौ-
झिमिर झिमिर बरसे पानी।
देखो रे संगी देखो रे साथी।
चुचुवावत हे ओरवाती।।
मोती झरे खपरा छानी।
*ये गीत के एक अंतरा के बानगी देखौ*
किचिर काचर चिखला मातिस ।
धरती के भाग जागिस।।
नदिया नरवा डबडबा गे।
भुइयाँ के लुगरा हरियागे।।
मगन होगे सबो परानी।
झिमिर झिमिर बरसे पानी।

 कवयित्री डॉ निरूपमा शर्मा जी आय असाड़ ल देख संसो करथे -
'घर के छानी ह अबले छवाये नइये ।
आँसो बेटी के भांवर देवाये नइये।
मोर पिलवा के पेट ह अघाय नइये।
कइसे मानंव रे आगे असाढ़।
मन के दुख होगे दुगुन अउ गाढ़।
लक्ष्मण मस्तुरिया जी के बारहमासी गीत
"चिटिक अंजोरी निरमल छइहाँ
गली गली बगराबो रे
 पुन्नी के चंदा मोर गांव मा " मा चउमासा के बात कहत सुग्घर संदेश दे हें ।

अपन काव्य' संग्रह रउनिया जड़काला के'मा कवि चोवाराम वर्मा बादल सावन के गीत मा का कहे हे सुनौ -
धरती दाई करै अपन
सोला सिंगार,
नदिया नरवा खुलखुल हांसय,
बईहा मा बईंहा डार।
बादर रिमझिम बरसै,
जोगनी जुगजुग चमकै।
मेचका गावैं बने सुरताल म,
अबड़ दुख ल भोगे हन दुकाल म।

कवि सुशील भोले काव्य संग्रह जिनगी के रंग मा गांव मा आय के नेवता देवत सुग्घर गीत लिखे हे-
नदिया के जवानी दिखथे,
 इहें के कछार म,
बांधा ला बिजराथे वो तो,
इहेंच असाढ़ म, डोंगरी के छाती चिरथे
अपन के दांव म
आ जा रे आजा गांव मा
सरग अस सुग्घर गांव मा।

'ममहावत गीत' मा गीतकार के के पाटिल के ये गीत घलो असाढ़ के अगवानी करत मधुर स्वर लहरी पैदा करथे-
खोंचका डबरा डबडबाही,
डबरी तरिया लबलबाही,
सुनता के गीत गाही, मंजा आही ऐसो के असाढ़ मा।

सावन उत्सव परब भोजली छत्तीसगढ़ मा आदिकाल ले मनावत आवत हे ।पारंपरिक भोजली गीत ला आप सबो जानत हव -
देवी गंगा, देवी गंगा,
लहर तुरंगा हो लहर तुरंगा... ।
हमर भोजली दाई के भींजे आठो अंगा... ।

हरेली तिहार बड़ सुग्घर तिहार हरे फेर बइगा गुनिया मन डरावना बना डरथे।एक बानगी बलराम चंद्राकर के एक रचना मा -
अंधियारी रात हे अमावस हे।
झिमिर झिमिर बरसत हे पावस हे।।
जुगुर जुगुर जोगनी बरै झाड़ मा।
झूपत हावै पेड़ हा पहाड़ मा।।
हीरु बिच्छु खोजन लगै अहार।
आगे ग संगी हरेली तिहार।
हरियर दिखै हमरो खेतखार।
आगे.... ।
कुवाँर नवरात्रि ह शक्ति अउ साधना के परब आय। लोक साहित्य मा माता सेवा अउ जसगीत के सैकड़ों रचना पारंपरिक रूप मा मिलही अउ अभी के रचनाकार मन के घलो जसगीत प्रसिद्ध होय हें। एक जस गीत -
तुम खेलव दुलरवा रन बन रन बन हो
का तोर लेवय रइंय बरमदेव, का तोर ले गोरइया
का लेवय तोर बन के रक्सा, रन बन रन बन हो...
नरियर लेवय रइंया बरमदेव, बोकरा ले गोरइया
कुकरा लेवय बन के रक्सा, रन बन रन बन हो...

चउमासा किसान के कर्मयुद्ध के दिन आय। ये चार महीना असाढ़ ले लेके कुवाँर सरद पूर्णिमा तक बीजारोपण ले फसल के पोटरियाय तक किसान के अथक परिश्रम के कोनों सानी नइ हे। फेर आथे फसल ला लुवे के दिन। अन्न के भंडार भरे के दिन। तभे तो कवि प्यारे लाल गुप्त छत्तीसगढ़ के बेटा-बेटी मन ला आसीस देवत सुग्घर लिखे हे-
रास रचाही चंदा रानी
करपा उपर रात गा
संग चंदैनी सखी सहेली
रस बरसाही रात गा।
सोनहा घुंघरू पायजेब के
छटक बगरही खेत मा
सीला बिनही लइका लइकी
होत बिहनिया खेत मा।

छोटे बड़े सबो कलमकार मन चउमासा के अउ तीज तिहार के उपर कलम चलाय हे ।मैं कुछ ही साहित्यकार /कवि मन के रचना के अंश पेश करके अपन बात रखे के कोशिश करे हंव।
🙏🙏

बलराम चंद्राकर
भिलाई
७५८७०४१२५३
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6, पोखनलाल जायसवाल

      जेठ-बइसाख के लाहो तपत तात-तात घाम तरी-ऊपर दूनो जरोथे।अतलंग गरमी ले कुम्हलाय रुख-राई अउ मनखे समेत जम्मो परानी के जिनगी म चौमासा के पहिली महीना असाढ़ उमंग अउ उछाह ले के आथे।चौमासा याने बरसात के चार महीना : असाढ़, सावन,भादो अउ कुंवार।असाढ़ के पानी धरती दाई के पियास बुझावत जम्मो जीव जनावर के मन ल हरसाथे।धरती दाई हरियर लुगरा पहिने बड़ सुग्घर लागथे।चारों मुड़ा हरियर रुख राई मन ल लुभाथे।धरती पूत के मन म नवा आसा के दिया बारथे।बछर भर के खुशी खेत म बो आथे।तब किसान मानसून के आरो पा के गुनगुनाथे
    *रझ रझा के गिर जा रे पानी* *.....परवा छानी।*
       इही ढंग ले चौमास म छत्तीसगढ़ी के कतको गीत कविता कहिनी  नवा-जुन्ना जम्मो साहित्यकार मन लिखे अउ सरलग लिखत हवै।
    खेत-खार म धान के बीजा बोवत नागर-बइला संग गोठियावत जिनगी के मजा लेथे अउ गीत ददरिया गाथे।थके हारे संझाती गुड़ी चउँक म खेती बाड़ी के गोठ करत किस्सा कहिनी ले अपन मनोरंजन करथे।अउ सुख दुख बाँटे लागथे।नरवा नदिया ल घलो नवा जिनगी मिलथे।तरिया डबरी सावन के आवत लबालब भर जथे।खेत खार म बरसत पानी,लहुकत बिजरी,गरजत बादर म कमिया काम करे ले नइ पछवाय।जानथे चार महिना के तकलीफ ले बछर भर के खुशी इही रस्ता ले आही।अउ यहू जानथे बिजरी पानी ल देख घबराय ले जिनगी के खुशी म पानी फिर जही।सावन चौमासा के जवानी आय।जम के करिया-करिया बादर छाथे,रही रही ससन भर बरसथे।सबो कोति पानी च पानी दिखे लगथे।लकड़ी छेना सिपचे नइ धरे,झीप म भिथिया गिरे के डर रहिथे।अइसन म मया पिरिया अउ सिरतोन गोठ ल साहित्यकार मन लिखिन,एक ठन गीत सुरता आत हावै जउन रेडियो म घलो सुने मिलथे
    *तोर आगी गुँगवाथे सगा झड़ी म सावन के।*
     *मोर मन अकुलाथे सगा झड़ी म सावन के।*
     *असो के झीपा म तुँहर भिथिया भकरागे।*
      *असो के झीपा म हमर भिथिया भकरागे।* 
      *कोन जनी कब जोरन जहे।*
       *कहाँ तैं ओधियाबे सगा झड़ी म सावन के।*
   नरवा नदिया संग हमर जिनगी म मंगल उछाह के पूरा आथे।उछाह कहे सुरता आइस तीज तिहार मन के।चौमास म माता पहुँचनी, हरेली, राखी,खमरछठ,आठे,तीजा-पोरा,पीतर,नवरात,दशराहा जइसन तीज तिहार मन बेरा-बेरा म अइसे आथे जइसे चौमास म खेती-खार के बुता म थके बनिहार, भुतियार अउ किसान ल एकरे बहाना सुरताय बर मिलै।बिलकुल सरकारी नौकरिहा मन ल मिलइया अइतवार जइसे। जम्मो तीज तिहार जउन बरसात के महीना म आथे,उनखर वैज्ञानिक आधार भी हावै।उन ला खोज के आज के संदर्भ म लिखे के जरूरत हे,जेखर ले हमर साहित्य पोठ तो होबे करही,संगेसंग छत्तीसगढ़िया मन के अंधविश्वासी होय के जउन सोच के ठप्पा दूसर मन लगाय हे ,उँखर भरम घला तोड़े जा सकथे।जइसे सगा पहुना के आय ले,या फिर खेत खार ले आय के बाद पीए के पहिली हाथ गोड़ धोय बर जउन पानी दे जाथे,ओला पुरखा मन जउन सोच के नेम बनाइन होही।ओखर आज के महत्तम बताय ल परही। स्वच्छता के संगेसंग एखर स्वास्थ के फायदा हे।
      किसानी मतलब धान के कटोरा छत्तीसगढ़ के विषय म चौमास (बरसात के चार महीना)के दिन के पूरा मिहनत के दिन आय।चौमास के गिरत पानी ल अँगना म नाचत देखत साहित्यकार मन के मन घलुक तरा तरा के रचना करथे।सबो तीज तिहार के बरनन उनखर लेखन म देखे मिलथे।परम्परा अउ संस्कृति ल सहेजे के बुता साहित्यकार मन के ऊपर जादा हावै, उन ल अपन लेखन ले जम्मो तीज तिहार के अउ परम्परा रीत रिवाज ल आज के प्रासंगिक अउ वैज्ञानिक पक्ष के संग लिखै।इही इँखर बड़का बुता आय।धरम आय अइसे मानथँव।आज छंद  परिवार के स्थापना होय ले छत्तीसगढ़ी साहित्य म गति आय हे।जेखर ले छत्तीसगढ़ के सबो हिस्सा म लेखन सरलग होत हे।इन मन ल जुन्ना अउ स्थापित साहित्यकार मन के बरोबर मार्गदर्शन मिल जाय त पुरखा मन के छत्तीसगढ़ी साहित्य ल ले के  देखे सपना पूरा होही।सही मार्गदर्शन करे ले जिहाँ उन ल मान मिलही,उहें उँखर उठाय बीड़ा ल हरु करइया मिलही। नवा सिरजन बर समर्पित अउ साहित कोठी ल भरइया मन के स्वागत भी होना चाही।

पोखन लाल जायसवाल
पलारी बलौदाबाजार

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7,ज्ञानू

          ब्रत, भक्ति अउ शुभ कारज बर ४ महीना ल चौमास कहिथे। सावन, भादों, कुवांर अउ कातिक चौमास के ४चार महीना। चौमास के शुरु आषाढ़ के शुक्ल एकादशी उही ल देवशयनी एकादशी (रथयात्रा के रूप म मनाए जाथे) घलो कहिथे  अउ समापन  कातिक शुक्ल एकादशी   (देवउठौनी  एकादशी) घलो कहिथे के दिन होथे।
                    चौमास म दिन रात एके बरोबर लगथे ।बादर घपटे रथे, तेखर सेती दिन म घलो अँधियारी सही होथे।पानी बादर के दिन धरती दाई के कोरा म कई प्रकार के जीव जंतु मन दिखे बर मिलथे, कतको कीड़ा -मकोड़ा आ जथे।धरती दाई चारोमूड़ा हरियाली दिखे बर लगथे।आषाढ़ महीना के जइसे अवई होथे किसान मन के बुता बाढ़ जथे।खेतीबारी चतवार करई, पलानी देवई, छानी परवा अउ झिपार बाँधना।बीज भात, नाँगर बख्खर के चेत करई ,खातू कचरा अतका बुता बाढ़ जथे के खाये-पिये बर चेत नइ रहय।जइसे बरसा चालू होथे नदी नरवा , ताल तलैया लबालब भर जथे ।कभू अतका पूरा आ जथे के जम्मो फसल घलो सड़- गल जथे।कोनो कोती बरसा नइ होय ले घलो फसल सूखा जथे अउ दुकाल पर जथे।
         हमर छतीसगढ़ के पहिली तिहार हरेली म किसान मन अपन  किसानी म उपयोग अवइया जम्मो उपकरण के धो पोछ के सुग्घर पूजा पाठ करथे अउ सुमत बर अर्जी बिनती करथे।बड़े बिहनिया ले दइहान म सब गाँव भर के मनखे जुरिया जथे अउ अपन अपन गाय- बइला, बछरू मन ल लोंदी खवाथे।पहाटिया ह दवई पियाथे के कोनो प्रकार ले रोग राई झन लगय।बईगा घलो हुम धुप देवत जम्मो देवी देवता ल मनाथे अउ गाँव के खुशहाली बर बिनती करथे।
             धर्मशास्त्र के अनुसार भगवान विष्णु के हाथ म सृष्टि के संचालन होथे, फेर ओखर शयन काल म चले जाय के बाद सृष्टि के संचालन भगवान शिव अउ ओखर परिवार के हाथ म आ जथे।एखरे सेती चौमास म भगवान शिव अउ ओखर परिवार वाले के पूजा पाठ सब करथे।सावन भर भगवान शिव, भादों म भगवान गनेश अउ कुवांर म देवी दुर्गा के अराधना शारदा दैवीय नवरात के रूप मनाए जथे।चौमास म भगवान विष्णु के शयन काल होय के सेती विवाह संस्कार, जातकर्म संस्कार अउ गृह प्रवेश जइसे शुभ कारज मना रहिथे।संयम, नियम धर्मपालन करे के शुभअवसर आय -चौमास।
          चौमास के धार्मिक महत्त्व के संग वैज्ञानिक महत्व घलो हे।ये चारों महीना खान पान म बहुत सावधानी बरतें बर परथे।काबर कि ये चारों महीना बरसा के  होय के सेती हवा म नमी आ जथे।बैक्टीरिया ,कीड़ा, जीव जंतु पनप जथे।सागभाजी म घलो बैक्टीरिया पनप जथे।एखरे सेती पूरा चौमास म ब्रत, पूजा अर्चना करें जाथे।कम खाना या फलाहारी लेना।रोगराई ले बचे के उदिम आय समझ लौ।संतुलित अउ सुपाच्य भोजन ही करना चाही।तभे रोगराई ले बचे जा सकत हे।

कुछ अपन रचना सुरता आवत हे-

दोहा
नाँगर बइला खाँध मा, हवय तुतारी हाथ।
बाखा मा चरिहा दबे, बइला जावय साथ।।

खाके बासी ला बबा, मेढ़पार सुरताय।
हरियर खेती देखके, तन मन हा हरषाय।।

हरिगीतिका
करबो जतन मिलके सबो, नइ काटबो हम पेड़ ला।
सुग्घर लगे हर खेत हा ,हरियर बनाबो मेड़ ला।
मिलथे जिहाँ छइहाँ बने, हे पेड़ के भरमार जी।
बड़ भाग हम सहरात हन, फल फूल बड़ रसदार जी।

चौपई
होगे बिहना काबर सोय ।
सुग्घर जिनगी फोकट खोय।।
कतको हाँसय कतको रोय।
बिरथा जिनगी हा झन होय।।

चौपाई
छोड़व संगी गरब गुमानी।तब होही सुग्घर जिनगानी।।
जतन करव रुखराई के।अउ सेवा धरती दाई के।।

फेकत हावय खातू कचरा।पाटत हावय डबरा डिपरा।।
काँटा खूंटी बीनत हावय।छानी परवा ला अउ छावय।।

ताटँक
टुहु देखाके करिया बादर ,जाने कहाँ भगागे रे।
नान्हें नान्हें धान मरत हे, कइसे के अब जागे रे।।

लावणी
आगे महिना आषाढ़ हवय, छाये हे करिया बादर ।
जावत हावय खेतखार अब, धर किसान बइला नाँगर।।

आय हरेली तिहार पहिली, चारो मूड़ा हरियाली।
नदिया नरवा हवै लबालब, खेतखार हे हरियाली।।

सरसी
रिमझिम रिमझिम सावन महिना, परब हरेली आय।
राखे भोले बाबा के ब्रत, नरियर पान चढ़ाय।।
भादों महिना तीजा पोरा, बहिनी मन के ताय।
आय बिराजे गणपति देवा, मोदक लड्डू भाय।।
दुरगा दाई तोर दुवारी, भक्तन करें पुकार।
जोत जवाँरा गाँव गाँव मा, महिना आय कुवाँर।।
रिगबिग रिगबिग जलथे दीया, घर घर रोज दुवार।
कातिक महिना देवारी मा, राउत दोहा पार।।

ज्ञानुदास मानिकपुरी
छंद साधक
चंदेनी-कवर्धा
(छत्तीसगढ़)
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6 comments:

  1. शानदार संकलन चौमास ऊपर जम्मो रचनाकार मन ला सादर बधाई

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  2. बड़ सुघ्घर संकलन अद्भुत ज्ञान अमरित बरोबर बरसत हे जम्मो सिरजन करईया आदरणीय गुरुदेव जी मन ल अंतस ले बधाई पठोवत हंव।

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  3. गज़ब सुग्घर संग्रह

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  4. सुग्घर पहल, बने बने लेख ले छत्तीसगढ़ी के कोठी भरावत जात हे, सबो ल बधाई

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  5. चौमासा विषय आधारित सुग्घर आलेख संकलन।जम्मो सृजनकार मन ल बहुत बहुत बधाई

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  6. बहुत सुग्घर आलेख संग्रह

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