Monday 27 July 2020

सुरता तुलसी दास -सरला शर्मा *****

सुरता तुलसी दास -सरला शर्मा
  ***** 
       सावन के अंजोरी पाख साते संवत 1554 के दिन अभुक्त मूल नक्षत्र मं तुलसीदास के जनम होये रहिस आज हमन उनकर जयंती मनावत हन । उनकर जीवन से जुरे बहुत कन दंत कथा लोगन के बीच  कहे सुने जाथे । 
वो समय हमर देश मं मुगल शासन रहिस हे ते पाय के राजनैतिक , सामाजिक , धर्मिक , आर्थिक के संगे संग साहित्यिक दशा भी अनुकूल नई रहिस । संस्कृत पंडिताई भाषा बन गये रहिस आम आदमी ले  दुरिहा के मठ , मंदिर , विद्वान  मन के शास्त्रार्थ अउ पूजा पाठ तक सिमटा गये रहिस । राज काज के भाषा मुगल मन के अरबी फारसी रहिस फेर उर्दू के आरो सुनाये लग गये रहिस । आम आदमी के बीच क्षेत्रीय बोली , उपबोली , भाषा के बोलबाला रहिस ...बृज भाषा मं साहित्य रचना  शुरू होइस त  गोस्वामी जी संवत 1631 रामनवमी के दिन " रामचरित मानस "" लिखे बर शुरू करिन जेहर संवत 1633 रामसीता बिहाव के दिन खतम होइस । 
     " स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा ।" ....
काबर ..? गुनी , मानी , बुधियार , सियान सामरथ , संस्कृत के गम्भीर जानकार तुलसीदास के मन मं रामचरित मानस के भाषा के मान्यता के विषय मं कॉनो  दुविधा रहिस , अवधि क्षेत्रीय जन के बोल चाल के अधार रहिस ते पाय के कोनो किसिम के संसो , डर  रहिस ? काबर के वो समय भी भाषाई लड़ाई झगड़ा तो चलते रहिस हे , तुलसीदास असन उम्मरवाला सियान कवि ल भी अवधि के द्वारा खुद ल स्थापित करना कठिन रहिस । भाषाई द्वंद तो आज भी चलत हे  विशेषकर हमर छत्तीसगढ़ी  ल लेके । 
   उन संस्कृत के उपेक्षा नई करिन फेर अवधि लिखे के पहिली रामचरित मानस के सुरुवात बालकांड  म संस्कृत के प्रयोग करिन 
" वर्णानाम  अर्थसंघानाम रसानाम छ्न्दसामपि ......। " 
           हरेक कांड के सुरुवात  श्लोक मन से ही करिन ...बीच बीच मं भी श्लोक दिहिन ...उत्तर कांड मं कथा के समापन करिन ...
" श्रीमद्रामचरितमानसमिदं भक्त्यावगाहन्ति ये ......। " 
         वर्तमान सन्दर्भ ल देखिन त हिंदी आज भी राष्ट्र भाषा के पद मं नई बिराजे पाये हे त  दूसर डहर देश के कई ठन क्षेत्रीय बोली , भाषा , उपभाषा मन भी साहित्य रचना मं पिछुवाये नइहें । प्रश्न हे अइसनहा लेखन अउ लेखक मन साहित्य मं कब जघा बनाये सकहीँ ? सुरता करिन के 77 साल के उम्मर मं बाबा जब मंच ले मानस गान करत रहिन होहिं त कतका संघर्ष उनला करे बर परे रहिस । वो तो लाला भगवानदीन , आचार्य रामचन्द शुक्ल असन गुन गाहक मन के नज़र परिस अउ आम जनता राम कथा ल सहज , सरल भाषा मं पाके अंर्तमन से अपना लिहिस ।    मानस के कालजयी होये के पाछू जन मन के श्रद्धा विश्वास के जब्बर हाथ हे । 

रामकथा आम आदमी के गौरवशाली अतीत , समस्या मन से उबारने वाला मर्यादित आचार संहिता अउ रामराज के सपना देखाने वाला भविष्य बन गिस ..। मनसे वाल्मीकि रामायण ल भुला के रामचरित मानस ल रमायन कहे माने लगिन । आज हमन राम शलाका प्रश्नावली के द्वारा अपन भविष्य जाने के उदिम करथन एकर ले जादा लोकप्रियता आने कोनो किताब पोथी ल नई मील हे तभे तो " श्रद्धा विश्वास रुपिणौ ..." कहिथन ।
   आज गुनत हंव बाबा तुलसीदास कभू सोचे रहिन होहिं के उनकर लिखे रामचरित मानस एक दिन हिंदी साहित्य के कालजयी रचना सिद्ध होही ...?  अवधि बर उनकर प्रेम , मेहनत , संघर्ष हर हमन बर पटन्तर आय , प्रेरणा आय के हमन अपन छत्तीसगढ़ी बर ओतके सेवाभाव , गरब गुमान मन मं रख के साहित्य रचना करिन । 
    तुलसी अउ तुलसी के राम ल प्रणाम 
          सरला शर्मा 
          दुर्ग

2 comments: