Monday 13 July 2020

अबेर नइ होय हे*

*अबेर नइ होय हे*
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                           ---राधेश्याम पटेल

---"अब चाहे कुछू होय ...फेर मोला कोनो पीये देखऊल दे देहीं तव मैं उहें ले बिदार देहँव"---  रमेश के बोली थोरक उँचहा होगे रहय...
मनहरन कहिथे ---- "अरे का कहिबे भईया  आज काल के लईकन नई मानँय"
"---घर जाने घलोक होथे गा  मनहरन भाई...! जईसन चलाबे तईसन चलथे"
----बात रमेश भाई के घर ओखर बेटा के बरात जाय के चलत रहय....मनहरन के कहना रहय के बराती मा दारु पानी ल रोकना मुस्कुल काम आय ...अऊ रमेश कहत रहय के जईसन चलाबे तईसन चलथे...काबर के रमेश दारु पानी ले दुरिहा रहिथे अऊ मनहरन मेर सब चलथे...दूनो के आचरन मा बहुत कुछ अंतर ....तभो दूनो पक्का संगवारीआँय सुख दुख के...मनहरन कोनो संग भले कईसनो व्यवहार करय लकिन रमेश मेरन ओखरे कस सादा सरबदा रहय ...।
       तीन दिन के गय ले रमेश के घर ओखर बेटा के मड़वा गड़गे ...तेल मायेन..हरदाही
 के बाद बरात के तियारी होगे ..!
जईसन रमेश सादा रहय तईसन ओखर घर के सबो बराती तो नई रहँय ...फेर बरतिया बनगें  रहँय रमेश घर के ..जेमन पियईया रहँय तेन घलो मन रमेश के आदत के मुताबिक सावचेती रहँय ...  कोनो गड़बड़वाय के कोशिश नई करिन...काबर के रमेश के  आदत व्यवहार के सम्मान गाँव मा बने अऊ बिगड़े जमो मनखे करँय..!
बरात बेटी वाले के गाँव माँ हबरगे ...बेन्ड बाजा के संग बरतिया अऊ घरतिया दूनो मँगन नाचे कूदे लागिन ...!
    ओ घर मा दू ठन बरात हबरे रहय तेखर सेती गुँड़ी मा कसहा भींड़ होगे रहय...
नाचत बजावत दूनो बरात के परघऊनी होगे बने शाँती ढंग ले ... अब दूनो बरात ला गुँड़ी मेरन ले जेवनसहा घर कोती रेंगे बर कहिन...जेवनास घर डहर जात जात घलो बरतिया घरतिया खूब नाँचत रहँय...
थोरक माँ रमेश के बराती मन नाचे ला बंद कर दिन फेर दूसर बराती अऊ गाँव घर के लईकन नाँचते रहँय ...रमेश के समधी के सारा जऊन रमेश के संगे संग रेंगत रहय तेन थकत बरतिया मन ला देख के रमेश ला कहिथे----
             "का बात हे साहेब ...
तुहाँर बरतिया बड़ जल्दी  सुस्त होगें ..? "
---"का फरक परथे जी ...
बरतिया न सहीं ...घरतिया मन तो नाचत हावा...!"
--- रमेश हा हाँसत हाँसत जुवाब दिहिस...
---"अब खुसी तो खुसी होथे जी ..तुहँर संग हम अऊ हमर सँग तुम... हे तो ऐकेच न..!"
     कहत कहत घरतिया पहुना घलो हाँसे लागिस ----!
---" असल मा तुमन सीसी नई चलाय हा जी ....तेखर सेती जल्दी थकगें ...!"
---" बात तो ठीके कहत हव जी ...पर ऐ सब मोर मेर नई चलय भई ..मैं तो घरे ले चेता देहे रहेंव के उहाँ कोनो परकार के उधम कूद नई  चाही मोला ....ते जान के बरात चलिहा ...!"
---"काय करिहा ... आजकाल तो ऐला फेसन बना डारें हैं.."
पहुना घरतिया हा हाँसत हाँसत  कहिच...!"
--"अरे आगी लगय अईसन फेसन ल जी ... जेन मान  सम्मान ला ऐके घरी माँ रउँद खउँद डारथे ओईसन फेसन नई चाही हमका..."
--- रमेश पहुना घरतिया के गोठ के तुरते रटपटउहन जुवाप दे देहिस..!

      सबो  झन बने हाँसत गोठियात जेवनास कोती जावत रहँय..
ओतके बेरा रमेश हा मनहरन  ला देख के कथे...
---" गूँडी मेरन ले सबो इही कोती आवत तो हें ना गा  मनहरन भाई ...? तैं एक घाँव अऊ बने देख बगोड़ के ले आ सब ला..."
---"मोर खियाल से सबो आवत हें भईया ...साईद ओ बरात के दू चार लईकन मन ठेला मेरन खड़े रहिन ...तभो मैं एक पईत आऊ देख लेथँव"
--- कहत कहत मनहरन हा गुँड़ी कोती लहुटत रहय ओतके बेरा दूसर बरतिया मा के दू झन झगर परिन...
असल मा होय ऐ रहय के नाचे के धून एक झन के हुद्दा एक झन ला परगे ...तव ओखर मोबाईल हाँथ ले छुट के फेंकागे ....अब नाचत कुदत भींड़ मा तुरंत कईसे बिरेक लगय ...खुँदा कचरा के मोबाईल राजा बिनत ले मस्त छरियागे हरहिंछा ...तहाँ भइगे ...  देखते देखत मार पिटाई चालू होगे ...
रमेश हा कथे---
" देखव साहेब ..मैं अतके ल डराथँव...ऐकेच कनी मा होगें ना..!"
कहत दूनो झन भींड कोती
अमाईन तव पता चलिस के झगरा होवईया दूनो झन दूसरईया बराती आँय ...रमेश के जी मा जी आईस..!
दारू मा माँते झगरिहा मन बड़ मुस्कुल मा धिराईन ...!
सब उमंग उछाह ऐकेच घरी मा छू मंतर होगे...सब झन जेवनास मेरन पहुँचगें ...
व्यवस्था के मुताबिक नेंग जोंग घलो होगे अऊ बेरा ला देखत मड़वा डहर घलो पूजा पाठ चालू होगे ...भोजन के तियारी होगे रहय खाय बर पंगत लगगे...पतरी मा जेवन पोरसा गे रहय ...दू बरात के सेती सब मिंझरे बईठे रहँय..
ठऊँका ओतके बेरा गली कोती फेर चिल्ल बोल्ल गारी गुप्तार सुनाय लागिस ...कोनो कुछू समझ पातिन तेखर ले पहिलिच मारा पीटा ...दउँड़ा मातगे ...पंगत लगे रहय तेने कोती एक झन ला दुउँड़ात आइन ...काहाँ के पतरी काहाँ के भात..काहाँ के रोटी काहाँ के साग...सब देखा देखा होगे !  पंगत के तीरे मा एक डहर सब गाड़ी मोटर खड़े रहय तेने डहर कतको झन ला रझारझ परगे ...कोनो के मुड़ फुटगे कोनो के हाँथ टुटगे ..,.. झगरा थिराय ले पता चलिस के उही दूनो लड़का मनके चक्कर मा फेर कई झन उलझ गें रहँय तेखर सेती सब तहस नहस होगे ...
भागा भागा के चक्कर मा पंगत के तीर एक डहर ईंटा के कच्चा देवाल रहय तेन हा पंगत पार ढंकलागे तेमा कतको झन के खूब लागे रहय ...ईंटा छिंटक के मनहरन के गोड़  मा परे रहय ...!
मड़वा मा बिहाव तो जरुर  होईस ....फेर सब बुझाय बुझाय असन ...बिदा  के होत ले बने बेरा चढ़गे रहय ...दूनो बराती के बरतिया रात के बिन खाये कोनो घर लहूट गें तव कोनो अस्पताल पहुँच गें...!
बिदा के बेरा रमेश के समधी रमेश मेरन क्षमा माँगत कहिथे---
   ---" भूल चूक ला क्षमा करिहव समधी महराज ...ओ बरात के नाँव ले तू हू मन  परसान हो गया..."
---" आप ला क्षमा माँगे के जरुरत नई ये समधी ...ऐमा आपके का दोस...क्षमा तो आपके ओ समधी ला माँगना चाही ...जेन अपन बरतिया ला दारु मा बोर के लाईस...
सरम तो उनला आना चाही जेन अपन मस्ती मा दूसर ला भुगताईस ....ऐ पीये पियाय के फेसन हमला मारत हे...
अगर हम चाही तव ऐ फेसन ला रिति संस्कार बने के पहिली मार सकत हन  ...
     अभी घलो ....
        *अबेर नई होय हे*...!"
                                ***

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