Tuesday 28 July 2020

छत्तीसगढ़ी सिनेमा अउ साहित्य*

*छत्तीसगढ़ी सिनेमा अउ साहित्य*

सिनेमा अउ साहित्य के गहरा नाता आये। बने कहिनी अउ गीत ले बने फिल्म मा लोगन मन बड़ पसंद करथें। फेर छत्तीसगढ़ी भाखा के सिनेमा अउ साहित्य के तालमेल वइसे नइ हे जइसे होना चाही। हमर राज मा स्थापित कहानीकार अउ गीतकार मन हें। जेमन ला बने मौका नइ मिलत हें। येकर प्रमुख कारण हे, बहुत से निर्माता निर्देशक मन के उदासीनता। ओमन बाॅलीवुड के अंधानुकरण के सेती राज के प्रतिभाशाली लोगन मन सन नियाव नइ करत हें। ओमन आजकल जे फिल्म बनाथें ओमा छत्तीसगढ़ के संस्कृति के झलक बने ढंग ले नइ दिखावय। कुछ लोगन ही ईमानदारी ले प्रयास करें हें जइसे मनु नायक, प्रेम चंद्राकर, सतीश जैन आदि मन। फेर अतके ले काम नइ बनय। नवा निर्माता निर्देशक मन ला राज के संस्कृति ले जुड़े अउ इहाँ के प्रचलित लोककथा मन ला आधार बनाके फिल्म बनाना चाही। सुग्घर कथानक के खोज कर सार्थक फिल्म बनाये के प्रयास करना चाही। हमर राज के जाने-माने साहित्यकार मन के लिखे कहानी ला परदा मा उतारे के प्रयास करना चाही। लोकगीत लिखइया मन ला घला उचित सम्मान मिलना चाही। काबर कि लोकगीत हमर संस्कृति के पहिचान आये। ये फिल्म रही ता हमर नवा पीढ़ी घला अपन पुरखा मन के सुग्घर काम ला जान पाही।
आजकल जे छत्तीसगढ़ी फिल्म बनत हे ओमन के कहानी कमजोर रहिथे या बाॅलीवुड ले प्रेरित रहिथे, नवापन के अभाव हे। संवाद भी खास नइ राहय। गीत मन के बातेच छोड़ दव। द्विअर्थी शब्द के भरमार रहिथे, सुनन नइ भाये। ये बखत के माँग या जादा पइसा कमाय के लालसा के कारण हो सकथे। फेर ये स्वीकार्य नइ हे। बने कहानी ला लेके बनाये फिल्म के जादू हमेशा कायम रहिथे। वइसने अच्छा गीत मन ला लोगन कभू नइ भूलय। आज के हमर छत्तीसगढ के नवा रचनाकार मन बढ़िया कहानी लिखत हे, सुग्घर छंदबद्ध गीत लिखत हे। येमन ला भी फिल्म बनइया मन ला मौका देना चाही। तभे समाज ला संदेश देवत सुग्घर फिल्म बन पाही। अइसे फिल्म मन दर्शक मन के दिल दिमाग के सदा नजदीक रहिथे।

श्लेष चन्द्राकर,
महासमुंद (छत्तीसगढ़)

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