Thursday 3 March 2022

व्यंग्य- ररुहा सपनाये दार भात …….

व्यंग्य- ररुहा सपनाये ……. 

                    सरग म ब्रम्हाजी के पाँच बछर के कार्यकाल पूरा होगे । नावा ब्रम्हा चुने बर मंथन चलत रहय । सत्ताधारी इंद्र अपन पार्टी अऊ सहयोगी मन के बीच घोषणा कर दिस के , ये पइत दलित ला ब्रम्हा बनाना हे । जबले ब्रम्हा चुनई के घोषणा होये रहय तबले हमर गाँव के मनखेमन मरे बर मरत रहय । जल्दी मरबो सोंचके , खेती किसानी के समे , काम बूता .. खाये पिये ला घला त्याग दिन अऊ दसना म परे परे यमदूत के अगोरा करे लागिन । कतको झिन बिन पारी के अइसन घुट घुट मरे के बजाय , एके घाँव म मर जाये के तरीका अखतियारे लागिन । कुछ मन मरे बर , घेरी बेरी सरकारी अस्पताल के चक्कर लगाये लागिन । एक झिन महराज के पूछ परख बढ़गे । उही टिकिस दिही कस , ओकर घर मनखे के रेम लगे रहय । परोसी ला पूछ पारेंव – काबर रोज महराज घर के चक्कर लगाथव ? वो किथे – तैं नइ जानस जी , महराज बताये हे के , ये दारी सरग म दलित मनखे ला ब्रम्हा बनाये जाही । उही दिन ले , ब्रम्हा बने के टिकिस पाये बर , महराज करा अनुस्ठान करवावत हँव । जे दिन अनुस्ठान पूरा हो जही ते दिन खत्ता म टिकिस मुहीच ला मिलही । मे केहेंव – अरे भइया , चुनई सरग म हे , तैं धरती म रहिथस , तोला कइसे टिकिस मिलही । परोसी किथे – सरग जाये बर छिन भर नइ लागे , जतका बेर पाबो ततका बेर उठ अऊ रेंग , जे दिन टिकिस के गारंटी होही .... सरग बर निकल जहूँ । मे पूछेंव - तुहींच ला टिकिस मिलही तेकर का गारंटी ? का तिहींच भर दलित आवस , हमर गाँव म अऊ कतको दलित हे । वो किथे – भलुक अऊ कतको दलित हमर गाँव म हे , फेर ब्रम्ह सत्ता सबके भाग म निये । महराज के बिचार म मोर नाव वाला दलित मनखे ला टिकिस मिलही , तेकर सेती घेरी बेरी , महराज के आशीर्वाद पाये बर .. ओकर .. एक चक्कर मार लेथन । अइसे भी मोला जे सपना आये हे , तेकर मतलब महराज बतइस के , मोरे चाँस जादा हे .....। 

                    महराज ला पूछेंव । महराज किथे – तैं मोर माली हालत ला जानत रेहे । खाये बर दाना अऊ पहिरे बर कपड़ा नइ रिहीस .... घर के छानी के खपरा , जगा जगा ले टूटे फूटे रहय । का करँव , कइसे करँव , कतिंहा मुड़ी ढाँकंव । रोज के आवश्यकता ला कइसेच पूरा करँव ? को जनी काये बात के सजा देबर , भगवान हमन ला , बामहन घर जनम दिस होही । न मोर नाव के राशन कार्ड म चऊँर मिलय , न चुनई म कपड़ा लत्ता , न घर बनाये बर सरकारी सहायता । परिवार चलाये बर , कुछ न कुछ काम बूता करेच बर लागही । मेहनत के बूता कर नइ सकँव , सत्यनरायण के कथा पूजा म कतेक चढ़होत्तरी ..... ? तेकर सेती , अपन पुस्तैनी धंधा ला सुरू करे हँव । में सहींच म किंदर के देखेंव ..... महराज घर के खपरा खदर छानी ला टोर के , पक्का सीमेंट छड़ के छत बनाये बर , केऊ झिन मनखे लगे रहंय । बोरा बोरा चऊंर , महराज के घर म अमरावत देखेंव , ओकर घर म नावा कम्प्यूटर अऊ ओकर हाथ म बड़े जिनीस कंपनी के बड़े जिनीस मोबाइल । मे केहेंव – पुस्तैनी धँधा तो ठीक हे महराज फेर , गरीब मनखे मनला काबर ठगथस ? महराज किथे – भगवान कसम , मे कन्हो ला नइ ठगँव । में पूछेंव - तैं का केहेस येमन ला ? महराज किथे – अतके केहेंव के , ये दारी सरग म , दलित मनखे , ब्रम्हा चुने जाही । पता निही का समझिन , उही दिन ले सेवा करे लागिन । में झिड़केंव – गरीब के जिनगी काबर बिगाड़त हस महराज ? काबर ओमन ला अतेक बड़े सपना देखावथस ? काबर ओकर मनके भाग रचथस ? महराज के जी रोवासी होगे – जे अपन भाग नइ रच सकय ते दूसर के का रचही । जे अपन भविष्य ला नइ पढ़ सकय ते , दूसर के भविष्य के का गणना करही । महराज के आँखी ले टप टप बोहावत आँसू , मोला अऊ कुछु पूछे के आज्ञा नइ दिस । 

                     वापिस घर निंगत , परोसी ला फेर देख पारेंव । में केहेंव - काबर काकरो बात म आथव जी तूमन ? महराज , वइसन थोरहे केहे हे ? वो किथे – महराज बिचार के केहे हे । ओकर पोथी पतरा लबारी हो सकत हे , फेर अखबार अऊ मोबाइल थोरहे लबारी मारही ? मे केहेंव - महराज तूमन ला बरगला के स्वारथ पुरती करत हे ? वो फेर किथे – महराज केहे हे के , दलित ला टिकिस मिलही , माने मिलहीच ? में फेर पूछेंव – महराज के अनुसार , ब्रम्हा चुनई म तोला टिकिस मिलही फेर , हमर गाँव के एक झिन मई लोगिन ला घला , अपनेच पिछोत के परसार म , अनुस्ठान काबर करवावत हे महराज हा ...... । परोसी किथे – तहूँ कहींच नइ जानस जी , सत्तापक्ष के मन एक झिन ला ठड़ा कराही , त विपक्ष के मन दूसर ला .....। महराज केहे हे , एक कोती बाबू जात त , दूसर कोती , मई लोगिन ला टिकिस मिलही । को जनी काकर भाग म , ब्रम्हा बने के जोग .....। मे फेर पूछेंव – कनहो मई लोगिन ला ब्रम्हा बनत देखे हव जी तूमन .... . महराज तूमन ला लूटे बर ......  मोर बात पूरा नइ हो पइस , परोसी सुरू होगे – आज तक जे ब्रम्हा बनथे तेमन मई लोगिन कस तो रहिथे , इंद्र जे कहि दिस तिही ला , घर के मई लोगिन कस हाँ में हाँ मिला देथे ..... एको बेर तो मना करतीस । अइसन म सहींच के मई लोगिन , यदि ब्रम्हा के खुरसी म बइठ जही त , कनहो ला काये फरक परही । 

                   परोसी किथे - तैं मोला बहुत पूछ डरे , अब तैं बता , हमर गाँव छोंड़ , हमर देश म , दलित मनखे अऊ कतिंहाँ हे ? ओकर एके सवाल म , चक्कर आये बर धर लिस । मुड़ी म पानी थोपिस त जवाब देंवत केहेंव – केवल हमरेच गाँव म दलित मनखे रहितिस त ओ मन ला , जित्ते जियत हमरेच देश म , कतको राज्य के मुखिया बने के चाँस नइ मिलतिस जी...... । 

                     बीते चुनई के सुरता आगे ओला । मुहुँ के पानी थोकिन उतरे लगिस । मेहा ओला समझावत केहेंव - देश के कतको जगा म दलित मन रहिथे बइहा ...... । परोसी किथे – रहत होही ...... फेर हमर कस कतिंहाँ हे तिहीं बता ... ? सरलग केहे लागीस - हमर नाव के रासन कार्ड बनथे जरूर , फेर पारी पारी ले चऊँर ला ... सरपंच अऊ मुखिया लेग जथे । हमर लइका के स्कालरशिप म , गुरूजी के बेटा पढ़थे अऊ साहेब बन जथे । हमर नाव के भुइंया म , गऊँटिया खेती करथे । पेट्रोल पम्प हमर नाव ले खुलथे फेर , मालिक हमर बिधायक होथे । हमर बर आवास के आये पइसा म , इंजीनियर के घर शहर म खड़ा हो जथे । हमर बर कागज म केऊ बेर सुक्खा कुवाँ खनाथे , हमर सरकारी पम्प , दाऊ के खेत म सिचई करथे । हमर लइका जे स्कूल म पढ़थे तिंहाँ , गुरूजी नइ रहय , रहिथे तेमन , सरकार ला जानकारी देबर व्यस्त या हड़ताल म .....। अस्पताल म गाय गरू कस हमर इलाज होथे ..। मंदिर अऊ मस्जिद हमर प्रार्थना के जगा नोहे , हमर लहू म इरखा द्वेष भरे के जगा आय । धान हमन उपजाथन , बोनस कोचिया पाथे । तैं सुन नइ सकस ....., बलात्कार करके बड़े मनखे निकल जथे , जेल म हमर लइका सरथे । डाका पुलिस डरवाथे , चोरी म हमन फंसथन । हमर पढ़हे लिखे होशियार लइका मजदूरी करे बर मजबूर हे , बड़का मनके गदहा पिला मन , बड़े जिनीस अफसर बन जथे ...... । अब बता , हमर गाँव के मनखे , दलित आवय के निही अऊ महराज मुताबिक सरग के प्रथम नागरिक बने के अधिकार हे के निही ...... ? 

                    ओकर बात म बहुत दम रिहिस , फेर ओकर भ्रम ला टोरना रिहिस । में केहेंव – ये तोर दलित होये के प्रमाण नोहे बाबू ।  ये लक्षण तो जनता के आय । दलित बने बर बहुत योग्यता चाही ......? वो सुकुरदुम होके किथे - का .. ? ओकरो बर पढ़हे लिखे लागथे का जी .... गऊकिन हम बाप पुरखा नइ जानत रेहे हन ? मे केहेंव – ओतके ले काम नइ चलय , जेकर तिर , बंगला , मोटर गाड़ी अऊ हाली मोहाली हालत डोलत रहिथे अऊ जे कतको पइसा के असामी होथे , ते मनखे सरग म दलित कहलाथे । दलित बने बर भारी तपस्या करे बर लागथे । कतको पीढ़ी ला कुर्बानी देबर लागथे । समझिस निही , फोर के बतायेंव – दलित नाव पाके ... पद पदवी अऊ पइसा झोंके बर उदिम करे बर लागथे .. सबले पहिली .. लबारी मारे म उस्तादी हासिल होना चाही । जब पाये तब , जात धरम देश बदले के काबिलियत होना चाही । बइमानी करके मीठ मीठ बानी म , एक दूसर ला रिझाये के गुन होना चाही । अतके म बात नइ बनय । सत्ता के डोंगा पार लगाये बर , जेकर थोथना म पतवार बने के क्षमता होथे , उही हा दलित होय के सुख पाथे । अऊ तैंहा बिगन पढ़े लिखे .. बिगन पइसा धरे अपन आप ला दलित कहिथस ... तोला शरम नइ लागे । सत्ता निसेनी के पकति आव तूमन .. जेकर उपर गोड़ मढ़ा के चघइया हा दलित होय के इनाम झोकथे । तूमन अपन आप ला दलवइया आव ... दलित नोहो .. । अपन जब तक दलावत रहू , सरग म घला , धरती कस आखिरी नागरिक रहू , जब दलइया के दल म शामिल हो जहू तब , सरग के प्रथम नागरिक बने के सपना देखे के काबिल हो जहू । ओ किथे - अतका करत ले हमर कतको पीढ़ी गुजर जही , जनता ले दलित बने बर अतका ढमढम करे बर लागही कहिके , हम नइ जानत रेहे हाबन । अइसन म हमन ला ब्रम्हा बने बर सोंचना भी नइ चाही । में बाहिर म ठड़ा होके अऊ कुछू केहे सुने बर अगोरतेच हँव .. ओहा लकर धकर घर म निंगिस । फेंटा मारिस , चोंगा धरिस , खुमरी ओढ़ , खेत डहर , सुआरी संग , बासी अथान धरके , अपन नानुक पेट के नानुक सपना ला पूरा करे बर ददरिया गावत मसक दिस । मे पूछेंव – कहाँ ? परोसी किथे – ररुहा ला दार भात ले जादा सपनाये के बारे म नइ सोंचना चाही ......।      

    हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

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