राम
दुर्ग
बुधवार 16 मार्च 2022
पिरोहिल उषा !
खुश रह , फेर खुशी के मारे मोटाना बंद कर चिटिकन पढ़े , लिखे कर ...थोरकुन आने मन के लिखे ल घलाय पढ़े कर दू , चार ठन ज्ञान के बात तो जानी डारबे ....।
मैं आज " कवितार काछे नतजानु " दुलाल समाद्दार के किताब पढ़ें ...कविता तो हमन पढ़ते रहिथन फेर कोनो पाठक या कवि या लेखक हर कविता के आघू मं माड़ी मोर के बइठय तो नहीं न ? ओहो ..नइ समझे ? अरे भाई नतजानु माने शरणागत होना , समर्पण करना जी ...।
मैं गुनत हंव कतका बड़ सच ल लिखे हें दुलाल जी ...काबर के हमन तो गद्यम् कवीनाम् निकषम् वदन्ति ल रट घोंट डारे हन । सिरतो कहवं त आजकल गद्यकार मन के गोड़ भुइंया मं माढ़बे नइ करय । गम्भीर अध्ययन , शोधपरक लेख , ज्ञान गुन , बुधियारी के ठेका उन्हीं मन ले के बइठे हें तइसे लागथे ...फेर ये किताब ल पढ़ेवं त गुने बर पर गिस । सिरतो बात तो आय के मनखे के मन मं उपजे हांसी -खुशी , सुख- दुख , हार -जीत , लोभ -लाभ , पाप -पुण्य माने जीवन के सबो भाव के काव्यमय , गेय , लय बद्ध अभिव्यक्ति तो कविता च के माध्यम से होवत आवत हे न ? संसार के पहिली महतारी हर रोवत लइका ल काहीं कुछु गुनगुना के दुलारिस , सुताइस होही न? ठीक हे के एहर वाचिक परम्परा के साहित्य कहाही । लिपि के विकास के संगे संग कविता के विकास होइस फेर मनसे तो सबो भावना ल कविता के रुप देहे लगिस ..तभो प्रश्न जागथे कविता काबर ?
कविता मनसे के मन के संवेदना ल उजागर भर नइ करय , थोरकुन शब्द मं स्वानुभूति ल सर्वानुभूति बना देथे । प्रकृति संग मनसे के जुड़ाव , मनसे मनसे के सहज प्रेम त उपदेश घलाय तो कविता के थोरकुन शब्द मन संग मन के दशा ल दिशा देथे । कविता झटकुन याद घलाय तो हो जाथे , बड़े बड़े सिख़ौना तुरते ताही याद हो जाथे त मौका परे मं कड़क गुरुजी असन सही रस्ता देखाथे ।
कतको गद्यकाल के बड़ाई करिन कविता सदा दिन पाठक के मन मोहत रहिही ...कवि मन ही तो चन्दा -सुरुज , दिन- रात , जंगल -पहाड़ के सुघराई ल लिखहीं , कभू छंदबद्ध त कभू छंदहीन फेर कहाही तो कविता च न ?
ठीके लिखे हे " आमि तो तोमादेर साधारण कवि " नहीं भाई !कवि साधारण नइ होवय न कविता कोनो तरह कमतर होवय ...भाषा के सर्वप्रथम अभिव्यक्ति आय कविता ...। तभे तो कविता बर रामचरितमानस के सबले पहिली लिखे हें तुलसीदास जी .....
" वर्णानामर्थसंघानाम् रसानां छन्दसामपि ....। "
अतके नहीं जी ....प्रणाम करत खानी लिखे हें ....
" वन्दे विशुद्धविज्ञानौ कवीश्वरकपीश्वरौ ....। "
अब समझे उषा ! चल मोर संग तहूँ हाथ जोर के भूत , भविष्य अउ वर्तमान के कवि अउ उनमन के लिखे कविता ल प्रणाम कर इही प्रणाम हर नतजानु होना आय ...।
लिखत लिखत हाथ पिरा गे , कलम के मस सिरा गे ...।
चट ले कौंवा के पेट पिरा गे झन कहि देबे न ...।
मैं बने बने हंव ..संसो झन करबे ...।
तोर
सरला दीदी
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