मुफ्तखोरी के लत
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मेहनत के कमई ह पूरथे कहइया अउ कर्म ल पूजा मान के हमर देश के जेन निवासी मन जीतोड़ मिहनत करके अपन जिनगानी चलावयँ तेन मन अब मुफ्तखोरी के नशा म दिनोंदिन चूर होके चुराचूर होवत जावत हें।
जइसे कोनों अक्खड़ दरूहा ह , धन अउ तन ल फूँक के चलाक बन जथे अउ भविष्य म फोकट के खाये पिये ल मिलही सोचके कोनो दूसर ल कुछ दिन ले अपन पइसा म खवाथे-पियाथे --- जब वो मनखे ह पिये ल सीख जथे --नशेड़ी हो जथे तहाँ ले कहना चालू करथे-- ले न जी बेवस्था कर। अब वो नवाँ-नवाँ नशेड़ी बने ह बेवस्था करे ल धर लेथे अउ अपन धन ल बर्बाद करे म भिंड़ जथे। इहू ह कोनो ल सिखोथे अउ ये फोकट म जुगाड़ के चैन तइयार हो जथे। नशा के सौदागर मन तको इही काम करथें ।लोगन ल कइसनों करके नशा के लत परवाथें अउ अपन उल्लू सीधा करथें।
ओइसने आजकल जम्मों राजनैतिक दल मन जनता जनार्दन ल मुफ्तखोरी के नशा म ढकेलत हें। मुफ्तखोरी के लालच देके वोट अउ बहुमत पाके सत्ता के सिंहासन म बइठके राज्य या फेर देश के खजाना ल दूनों हाथ ले लूटे के जुगाड़ म लगे हें। अपन नाना प्रकार के करे झूठ-मूठ के वादा ल पूरा नइ कर पाइन त अब मुफ्त म बाँटे के नवाँ रसता निकाले हें। देश के धन ल बरबाद करके फोकट म बाँटे ल भला काला नइ आही ? देश भले गड्ढा म गिर जय--अर्थव्यवस्था भले चौपट हो जय--वोमन ल काबर गम होही। कोन मार उँकर घर के जाथे। कइसनो करके सत्ता चाही।
आजकल ककरो भी घोषणा पत्र- या संकल्प पत्र ल देख लव रंग-रंग के मुफ्त बाँटे के वादा ले भरे परे हे। कोनो मुफ्त म चाँउर-दार, चना-गहूँ,नून-तेल, साबुन -सोडा देबो काहत हे त कतको मन मुफ्त म बिजली-पानी, घर-दुवार, शौचालय, फोकट म रुपिया-पइसा, बेरोजगारी भत्ता, माइलोगिन मन के खाता म मुफ्त के पइसा देबो काहत हें त कतको मन पेंशन, लेपटॉप, मोबाइल, साइकिल, स्कूटर, कर्जामाफी, मुफ्त गैस सिलेंडर के लालच देवत हें। जम्मों झन के घोषणा पत्र ल मिला के देखे जाय त जनम ले लेके मौत तक मनखे ल कुछु करेच के जरूरत नइ परय। बस बइठे- बइठे उसर-फुसर के, मुसुर-मुसुर खाना हे।
सचमुच म जनता ल मुफ्तखोरी के लत परत जावत हे।ये मुफ्तखोरी के नशा ह दिन दूना-रात चौगुना फइलत जावत हे। नशा ह तो नशा होथे--चाहे कुछु चीज के नशा होवय---नुकशान तो करबे करही। मुफ्तखोरी के नशा ह लोगन ल अलाल अउ निकम्मा बनावत हे। बेरोजगारी हे ---बेरोजगारी हे चिल्लाये ले का होही ? जनता ह जानबूझ के खुदे बेरोजगार बनत हे। खेत म काम करइया मजदूर नइ मिंलयँ। कतको फेक्ट्री मन तको बंद हो जावत हें।
ये मुफ्तखोरी के सेती उत्पादन बाढ़त नइये ,उल्टा जिनिस मन के माँग ह सुरसा के मुँह कस बाढ़त हे त सोचे के बात ये मँहगाई ह बाढ़बे करही ।नाना प्रकार के समस्या पैदा होबे करही अउ सबले जादा मध्यम वर्ग ह पिसाबे करही।
ये मुफ्तखोरी के नशा के चक्रव्यूह ल समझे म हमर मन ले भारी चूक होवत हे तइसे लागथे काबर के इही मुफ्तखोरी के सेती देश अउ राज्य मन कर्जा म बूड़त जावत हें। कर्जा उपर कर्जा ले लेके फोकट म बाँटे के बूता होवत हे। खाली खजाना ल भरे बर टेक्स उपर टेक्स लगत हे। पेट्रोल-डीजल अउ कतको समान मन के भाव मनमाँड़े बाढ़त जावत हे।
कोनो कहि सकथे के सरकार ह जन कल्याणकारी होथे तेकर सेती मुफ्त म बाँटथे। फेर ये कइसन जन कल्याण जेन ह उल्टा श्राप लहुट जय, लोगन ल अलाल अउ बेकार बना दय, मँहगाई ल बढ़ावत जावय, अर्थव्यवस्था चौपट होवत जावय,देश कर्जा म बूड़त जाय, बैंक मन डूबत खाता म लदकावत जावयँ?
असली जन कल्याण ह तब होही जब जनता ल मूलभूत सुविधा सहज रूप म मिलही। स्वास्थ्य अउ शिक्षा के व्यवस्था म सुधार होही , किसान ल कम रेट म खातू-माटी, बिजहा अउ दवाई -पानी मिलही। लोगन ल ईमानदारी ले नौकरी-चाकरी मिलही।रोजगार-धंधा म बढ़ोत्तरी होही। जेन सचमुच गरीब हे वोकर जीवन स्तर ऊँचा उठही। फोकट म राशन अउ गैजेट बाँटे ले जन कल्याण नइ होवय।
कुल मिलाके ये मुफ्तखोरी के नशा बड़ घातक हे येमा तुरंत कानूनी रूप ले रोंक लगना चाही। राजनैतिक दल मन के लोकलुभावन घोषणा म रोंक लगना चाही।
चोवा राम 'बादल '
हथबंद, छत्तीसगढ़
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