Thursday 24 March 2022

विश्व कविता दिवस म छत्तीसगढ़ी कविता के एक विमर्श*

 *विश्व कविता दिवस म  छत्तीसगढ़ी कविता के एक विमर्श*


कविता काला कहिथे? पूछे जाय त अभी के बेरा म पूछइया ऊपर सबो हाँसे लगही। कविता का आय कोन नइ जानय? ननपन म महतारी के गोरस पीयत जउन लोरी सुनेन, चिरई चिरगुन के चींव चींव संग जेन उद्गार निकरथे, बाढ़त उमर के संग कोयली के तान ल मिलावत मन जउन गुनगुनाथे, उही तो कविता आय। मन म उमड़त भाव शब्द के मोती ले बने माला आय कविता। जेकर लय अउ तुक मन ल भा जथे। मन मंजूर झूमे लगथे।

       समय के संग कविता अपन भीतर कतको जिनिस ल समोखे हे। प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रा नंदन पंत जी के ए कथन आज विश्व कविता दिवस म प्रासंगिक हो जथे। 

वियोगी होगा पहला कवि आह से उपजा होगा गान।

निकलकर आँखों से चुपचाप बही होगी कविता अनजान।।

      अइसे हमर छत्तीसगढ़िया पुरखा कवि कोदूराम दलित जी मन कविता के बारे म कहे रहिन कि "जइसे मुसुवा निकलथे बिल ले, वइसे कविता निकलथे दिल ले।'' 

    ए सिरतोन घला आय। जब कोनो विषय ऊपर विचार बनथे त दिल के गहराई ले निकलथे। उही उद्गार ह सब के मन म अपन छाप छोड़थे। आज जब हर हाथ  मोबाइल धरे फिरत हे, त रोज नवा-नवा कवि देखे-सुने बर मिलत हे। व्हाट्सएप छाप कवि मन के बाढ़ आ गय हें। इहें कविता के चस्का लगे ले मँजे कवि साहित्यकार साहित्य ल मिल सकत हे। साहित्य बर सोशल मीडिया वरदान घलो साबित होवत हे। इही बहाना मनखे रोज दू-चार ठन कविता-कहानी पढ़ लेथे।

       आज कविता के आयाम बाढ़गे हवय। लोगन प्रकृति के सुघरई अउ शृंगार ले आगर नवा नवा विषय म कविता लिखे लग गेहे। नवा-नवा कविता लिखइया मन ल चाही कि अपन पुरखा अउ अग्रज स्थापित साहित्यकार मन ल पढ़ँय अउ चित्रण अउ तुकबंदी ले ऊपर लिखे बर मेहनत करँय। सोशल मीडिया म चलत तँय खुश त मँय खुश के चलन ले बाँचे बर परही। सावचेत रेहे ल परही। 

         कविता लेखन कहन चाहे साहित्य लेखन ए एक साधना आय। साधना के ए आगी ले तप के निकले साहित्य साधक ल ही साहित्य जगत म पहिचान मिल पाही। साहित्य अपन समय के समाज के इतिहास ल गढ़थे। अइसन म कविता म अभी के बेरा के गोठ बात दिखना चाही। काबर कि कविता साहित्य के एक ठन विधा आय। आज कविता म ग्लोबल वार्मिंग, प्रकृति के अंधाधुंध दोहन अउ शोषण, राजनीति के विद्रुपता, विश्व शांति, जन कल्याण, भौगोलिक विस्तार बर युद्ध के विरोध, वैज्ञानिक सोच अउ सामाजिक चेतना के स्वर दिखना चाही। कविता स्वतंत्रता संग्राम के समय जनता ल संगठित करे अउ राष्ट्रीय भावना ले जोड़े के भूमिका निभाय हे। ए सब ल मालूम हवय।साहित्य सचेतक के भूमिका निभाथे अउ सरलग इही दिशा म चलना चाही।

       आज विश्व कविता दिवस के बहाना कुछ पुरखा कवि मन ल सुरता करत अभियो के दू चार कवि ल सँघेरे के उदिम ए लेख म करत हँव। हमर छत्तीसगढ़ी कविता संसार अतेक विस्तार पा गेहे कि सबो कवि ल सरेख पाना बड़ मुश्किल हे। कविता याने पद्य म गीत, ग़ज़ल अउ छंद ल समोखत कवि मन के दू-चार लाइन ल उदाहरण सहीं परोसत हँव।

    छत्तीसगढ़ महतारी के वंदना करे नरेन्द्र देव वर्मा जी मन लिखे हें, जउन आज हमर राजगीत के मान पावत हे।

      अरपा पैरी के धार, महानदी हे अपार।

      इंदरावती ह पखारय तोर पइयाँ

      महूँ पाँवें पखारँव तोर भुइयाँ

      जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मइयाँ।


       बाबू प्यारेलाल गुप्त मन गँवई गाँव के सुघरई के चित्रण करत लिखिन-

        हमर कतका सुघ्घर गाँव

        जइसे लछमी जी के पाँव

        घर उज्जर लीपे-पोते

        जेला देख हवेली रोथे।

        खेती के घटत रकबा अउ किसान के माली हालत होवत देख हरि ठाकुर जी के अंतस् रो परथे अउ लिखिन-

         सबे खेत ल बना दिन खदान

         किसान अब का करही

         काहाँ बोही काहाँ लूही धान

         किसान अब का करही

         उछरत हे चिमनी ह धुंगिया अपार।

         चुचवावत हे पूँजीपति के लार।

          एती टी बी म निकरत हे परान।

            पं. सुंदरलाल शर्मा जी मन के दान-लीला के ए चौपाई देखव-

           सब्बो के जगात मड़वाहौं।

           अभ्भी एकक खोल देखाहौं।।

            रेंगब हर हाथी लुर आथै।

            पातर कन्हिया बाघ हराथै।।


धरती दाई के सेवा म समर्पित मनखे के अंतस् के भाव ल सरेखत शर्मा जी के लिखे कविता के अंश घलो पढ़व

      तराजू मा नइ तौलेन, हमन अपन साँस ला।

      हाँसत-हाँसत हेरेन, पीरा के साँस ला।

अड़चन ला मानेन हम,निच्चट चंदन चोवा

धरती महतारी के भाग मुचमुचावत हे।

       छत्तीसगढ़ धान के कटोरा आय, आज भले धान लुवई हार्वेस्टर ले होय धर लेहे फेर मौसम अउ खेती खार के परिस्थिति के मुताबिक आजो हँसिया ले धान लुवई होथे। इही ल जनकवि कोदूराम दलित जी मन लिखिन ओकर एक अंश हे-

         चल सँगवारी चल सँगवारिन, धान लुए ला जाई।

         मातिस धान लुवाई अड़बड़, मातिस धान लुवाई।

          पाटी पारे माँग सँवारे, हँसिया खोंच कमर मा।

           जाय मोटियारी जम्मो, तारा दे के घर मा।

           छन्नर छन्नर पैरी बाजय, खन्नर खन्नर चूरी।

           हाँसत कुलकत मटकत रेंगय, बेलबेलहिन टूरी।।

          शोषण ल अपन कविता के विषय बनाके मजदूर मन के पीरा ल नारायण लाल परमार जी मन लिखें हें

           चीखे हन हम सुवाद

           नवा नवा डगर के

           देखे हन नौटंकी

           अमृत अउ जहर के

           पी डारेन जहर ला संगी

           हम नीलकंठ

           हमर पछीना अमृत सहीं चुहचुहात हे।

            शोषण ल परिभाषा देवत सुशील भोले जी लिखथें

बछरू ह एक दिन

गाय जगा पूछिस

दाई शोषण काला कहिथे

त गाय कहिस

तँय ह खुँटा म बँधाये

जुच्छा पैरा ल पगुरावत रहिथस

अउ हमर मालिक ह 

मोर थन के दूध ल दुह के

अपन बेटा ल पियाथे

इही ल तो

शोषण कहिथे।

       संत कवि पव दीवान के सुरुज कविता के आनंद लव

टघल-टघल के सुरुज, झरत हे धरती ऊपर।

डबकत गिरे पसीना, माथा छिपिर छापर।

नदिया पातर-पातर होगे,तरिया रोज अँटावत हे।

खँड़ म रुखवा खड़े उमर के, टँगिया ताल कटावत हे।

        खेती खार अउ धरती ल तीरथ बतावत मेहत्तरराम साहू जी के लाइन मन देखन

घर बइठे वृंदावन गोकुल, घर बइठे हे काँसी।

ए माटी ल तिरथ जानौ, नइ मानो त माटी।

राम रहीम हे पोथी-पतरा, आवय खेती-खार ह।

तुलसी के दोहा चौपाई, बाहरा अउ मेंड़ पार ह।

नाँगर जोतत राम लखन ह होगे हे बनवासी।

       लक्ष्मण मस्तुरिया जी के सबले लोकप्रिय गीत जउन लोगन के मुख म बिराजे हे ओकर बिना ए लेख अधूरा जनातिस

मोर संग चलव रे

ओ गिरे थके हपटे मन

अउ परे डरे मनखे मन

मोर संग चलव

अमरइया कस जुड़ छाँव म

मोर संग बइठ जुड़ा लव

पानी पी लव मँय सागर अँव

दुख पीरा बिसरा लव

नवा जोत बर नवा गाँव बर

रस्ता नवा गढ़व रे....

        रामनाथ साहू जउन साहित्य के सबो विधा म सरलग कलम चलावत हें उन मन नदिया मन ल मान देवत लिखे हें-

आ अरपा आना बहिनी

आ इंदरावती आना मौसी

देवी चित्रोत्पला मोर महतारी

आ पैरी आना बेटी...

अब तो

मोर हाथ हाड़ी हो गय हे

कनिहा म कूची ओरम गय हे

तुँहर मान गोन करे बर

समरथ हो गय हों मँय।

       शोभामोहन श्रीवास्तव जिनगी के दर्शन बतावत लिखें हें

तैं तो पूरा कस पानी उतर जाबे रे।

ए माटी के घरघुंदिया उझर जाबे रे।

जीव रहत ले मोहलो-मोहलो, काया के का मोल।

छूट जही तोर राग रे भौंरा, बिरथा झन तैं डोल।

आही बेरा के गरेरा, तैं बगर जाबे रे...

         रामेश्वर शर्मा जिनगी के मजा ले के संदेश देवत कहिथें

जिनगी जीना हे त

जड़ कस जमे रह

डारा कस थामे रह 

पाना कस झुमरत रह

हँसी के फूल कस फूलत रह

चारों कोती महमहावत रह 

ज्ञान के फल देवत रह।

        छत्तीसगढ़ कविता म ग़ज़ल घलव लिखे जात हे, छत्तीसगढ़ पद्य साहित्य म एकर चर्चा घलो चलबे करही। जउन मन लिखे हें अउ लिखत हें उन ल जरूर सरेखे के जरूरत हे। अपन हिस्सा के ल समोखत हँव।

    छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल के सूत्रपात करइया रामेश्वर वैष्णव जी के ग़ज़ल के एक बानगी हे-

असली बात बताँव गिंया।

घाम म होथे छाँव गिंया।

     छत्तीसगढ़ी गीत अउ ग़ज़ल ल नवा पहचान देवइया मुकुंद कौशल के चार डाँड़ आप मन खातिर समर्पित हे

मन ले मन ला बरही कोने डोर असन।

कोन मया कर सकही तोला मोर असन।

बात सिरावै उँहचे कर दे बात खतम

बात लमाझन कौशल तैंहर लोर असन।

      लक्ष्मण मस्तुरिया मन नवा बछर म आसा के नवा किरण जगावत लिखथें

आसा नवा बिसवास जगाही ए नवा साल।

सुख शांति सुमत संपद बगराही ए नवा साल।

हक माँगे म कोनो ल लाठी गोली झन मिले,

मेहनत कस ही मोल रे देवाही ए नवा साल।

     माणिक विश्वकर्मा नवरंग के शृंगार म पगे ग़ज़ल 

तोर मया के चिन्हारी

फूले हावय फुलवारी

गेंदा कस तैं सुघ्घर हस

होबे दुनिया बर कारी।

       ज्ञानू मानिकपुरी जी के ग़ज़ल के एक बानगी पेश हे

धन दौलत अउ माल खजाना छोड़ एक दिन जाना।

कंचन काया माटी होही काबर जी इतराना।

बैर कपट ला दुश्मन जानौ गीत मया के गा ना।

मुट्ठी बाँधे आय जगत मा हाथ पसारे जाना।

      पूरन लाल जायसवाल छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल म नवा पीढ़ी के अगवानी करत हे, कहे जा सकत हे

हिरदे ले बैर भाव सबे हम बिसार लन।

आवव मया पिरित ले ये जिनगी सँवार लन।

सुख के नवा सुरुज हा अगोरा करत हवय

बेरा कभी जे दुख के हे हँस के गुजार लन।

        पद्य रचना म छंद रचना ल श्रेष्ठ माने जाथे। जेमा मात्रा अउ वर्ण के गणना के मुताबिक सबो छंद के अलग-अलग विधान तय हे। पाछू के दशक तक छत्तीसगढ़ी छंद रचना नहीं के बरोबर होय हे या प्रकाश म नइ आ पाय हे। अभी के बेरा म छत्तीसगढ़ी छंद रचना म क्रांति आय हे। ए क्रांति के शुरुआत छंदविद् अरुण कुमार निगम जी मन ऑनलाइन कक्षा के माध्यम ले २०१६ म करिन हें। छंद रचना करइया मन के गिनती सैकड़ा ले जादा हे। 

       प्रकृति के संग छेड़खानी ले प्राकृतिक आपदा आय के सुरता करावत अरुण कुमार निगम समाज ल चेतवना देवत लिखथें

चेताइस केदारनाथ, भुइयाँ के झन छोड़ साथ।

नइ तो हो जाबे अनाथ, कुछ तो नइ हे तोर हाथ।

हरियर कर दे खेत खार, जंगल के कर दे सिंगार।

रोवय झन नदिया पहार, पीढ़ी-पीढ़ी ला उबार।

        अमीर खुसरो के पहेली जइसन जनउला लिख के छत्तीसगढ़ी साहित्य म विविधता लाय के उदिम घलव देखे बर मिलथे। उदाहरण स्वरूप जीतेंद्र वर्मा खैरझिटिया के चौपई छंद पढ़े जा सकत हे-

जड़काला मा जे मनभाय, गरमी घरी अबड़ रोवाय।

बरसा भर जे फिरे लुकाय, जल्दी बता चीज का आय। (घाम)


आघू मा बइठे रोवाय, नइ खाये जी तभो खवाय।

कान धरे अउ अबड़ घुमाय, काम होय अउ छोड़ भगाय।। (जाँता)

       सच के रस्ता म चलत धीर बाँधे के गोठ करत दिलीप कुमार वर्मा लिखथें-

लबरा मनके बात, आज जम्मो पतियाथें। 

जेमन कहिथें साँच, तेन मन लाठी खाथें। 

तेखर ले झन बोल, कलेचुप रह सँगवारी। 

रखले थोरिक आश, साँच के आही बारी। 


कहिथें लोगन साँच, लबारी ले नइ हारय। 

भले होय परसान, आखरी मा दे मारय। 

मन मा धीरज राख, एक दिन अइसे आही। 

झूठ लबारी छोड़, सबो झन सच बतियाही।  

        रमेश कुमार चौहान मन म आशा के मंत्र फूँकत लिखथें

ठान ले मन मा अपन तैं, जीतबे हर हाल मा।

जोश भर के नाम लिख दे, काल के तैं गाल मा।

नून बासी मा घुरे कस, दुख खुशी ला फेंट दे।

एक दीया बार के तैं,अंधियारी मेंट दे।

         अइसे तो छत्तीसगढ़ी कविता के विस्तार अतेक हे कि कोनो ल लेके कोनो ल छोड़े ल परत हे। अउ कभू ए कोती विचार लमही त वहू मन ल सँघेरे के उदिम रइही।


संदर्भ: सोशल मीडिया/व्हाट्सएप ले साभार।


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी बलौदाबाजार

9977252202

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