Tuesday 15 March 2022

देवार मन के डेरा मा दीया-बाती कोन बारही

 छत्तीसगढ़ी म पढ़व -

देवार मन के डेरा मा दीया-बाती कोन बारही


- दुर्गा प्रसाद पारकर 

 

छत्तीसगढ़ म कोनो भी जघा रूंजु धर के गीद गावत, बेंदरा नचावत, गोदना गोदत, सांप देखावत नई ते सुरा चरावत कोनो ल देख डरे ताहन उखर जात पूछे के जरूरत नए हे काबर कि उमन देवार जात के अलावा दूसर नइ हो सकय। आधा गोलई कमचील ल गड़िया के बांस के टट्टा के ऊपर कथरी, सनपना नही ते लुगरा ल तुनके छा के तम्बू (अर्ध गोलाकार) बना के रहवइया देवार मन हैहय वंशीय राजा मन के दरबारी गायक रीहिन। तेखरे सेती इमन मनोरंजन करइया के नाव ले चिन्हावत रीहिन। डॉ. रसेल के मुताबिक देवार के शाब्दिक अर्थ देवी म दीया बरइया आय। इही पाये के इन ल देवार केहे गीस। रतनपुर के राज दरबार म रतन अस चमकत देवार डेरा ह आज के समे म कंडिल धर के खोजे ले दुए चार झिन मिल पाही। अलग-अलग विद्वान मन के अलग-अलग मत हे। देवार मन ल मूल रूप ले मंडला क्षेत्र के रहवइया माने जाथे। काबर कि मंडला क्षेत्र म देवार जात के लोगन देवी म दीया बारथे। एल्विन के मुताबिक गोपाल राय के वंशज छत्तीसगढ़ के देवार मन के जनम कंवर अऊ गोड़ ले होय हे। सन् 1911 म जनगणना होइस त ओ समे छत्तीसगढ़ म देवार मन के जनसंख्या 2500 रीहिस जऊन ह सन् 1961 म बाढ़ के लगभग 4474 होगे रीहिस हे। छत्तीसगढ़ म आज के समे म अनुमानित देवार मन के संख्या ह साढ़े नौ हजार के आसपास होही। रसेल अऊ होरी लाल ह कास्ट एवं ट्राइप्स आफ सेन्ट्रल इंडिया म देवार मन ल मंगइया अऊ संगीतज्ञ मन के जात केहे हे। दुनो बात ह सच घलो लागथे। लोगन मन के अइसे मानना हे कि छत्तीसगढ़ म सांस्कृतिक संस्था देवार जात के देन हरे। जेखर सऊंहत गवाही फीता बाई, बरतनीन बाई, गणेश मरकाम, शेरू मरकाम, हीना, सीता बाई हरे। मध्यप्रदेश शासन ह देवार जात के फीता बाई ल तुलसी सम्मान दे के ओखर कला के संग छत्तीसगढ़ ल सम्मानित करीस। श्रीमती जयंती ल छत्तीसगढ़ के कोकिला के नाव ले जाने जाथे जऊन ह देवार समाज के सम्मान ल बढ़इस।


धार नगर के चम्पक भांठा, डेरा बने नौ लाख।

राजा महर के बेटी ए, दसमत एदे ओडनीन हे।

दस लाख ओड़िया, दस लाख ओड़नीन डेरा परे हे आन।

पड़ते काल के गोठ होई, सब राजा जोहारे ल जाय।


दसमत ओड़नीन के गीद गवइया देवार मन प्रमुख रूप ले दू भाग म बंटे हे। रतनपुर के तीर तखार के गांव कस्बा अऊ बिलासपुर डाहर रहवइया देवार मन ल रतनपुरिहा देवार के नाव ले जाने जाथे। रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव जिला में रहवइया देवार मन ल रयपुरिहा देवार कहिथन येखर अलावा देवार मन ल नवागढ़िया, सोनाखनिहा, सारंगढ़िहा, चार राज अऊ खैरागढ़हा देवार के नाव ले घलो जाने जाथे। धन्धा के मुताबिक घलो देवार मन के चिन्हारी करे जा सकत हे जइसे (1) बस्तर जिला म रहवइया देवार जेन मन पहिली तेंदुआ पोस के अपन जीवन यापन करय उन ल बुधरा देवार के नाव ले जाने गीस। (2) जऊन मन हाट बाजार म पीतल, गिलट आदि के जेवर बना के बेचय उन ल बेपारी देवार केहे गीस। (3) लोहा के काम करइया मन लोहार देवार कहाथे। (4) किंजर फिर के बेंदरा नचवा के अऊ सांप देखाए के बदला म जऊन भी उमन ल मिल जथे, ओला खा पहिर के अपन जीविका चलाथे उमन ल मंगइया देवार केहे जाथे।

धान लुवाए के बाद गांव वाले मन के मनोरंजन करे खातिर रूंजु (सरांगी) अऊ खांध म झोली (लुंहगी नही ते लुगरा के) धर के निकल जथे। देवार मन प्रमुख रूप से गोपाल राय बिझिंया, दसमत ओड़नीन, गोपी चन्दा, नगेसर कइना के अलावा सिंगारिक गीद घलो गाथे। रयपुरिहा देवार मन लोक गाथा ल सरांगी बजा के गाथे त रतनपुरिहा देवार मन इही गाथा ल ढुंगरू बजा के गाथे। सरांगी बनाए बर हाथ डेढ़ हाथ पातर बांस ल काट के एक डाहर नरियर खोटली के आधा भाग ल लगाए जाथे। हवा निकाले बर खोटली के खाल्हे ल छेदा करे बर परथे। खोटली ल गोइहा खड़री ले छा देथे। तार ल कसे बर बांस के दूसर डाहर खिला (लकड़ी के चाबी) लगाये के जरूरत परथे। एक छोर ले दुसर छोर तक बांस म पांच लर के तांबा के तार ल बांध के बांस के छीलपा ले घोड़ी जघा म तान देथे। बजाए बर नरम लकड़ी के नही ते बांस ल चीर के धनुष कस नवा के घोड़ा पूछी के बाल ल बांध के कस दे। कसे के बाद बाल म सरेस अऊ गोंद लगा के कड़ा कर ले ताहन रूंजु तैयार हो जथे, देवार मन के जीनगी ल संवारे बर। 

देवार मन बड़े-बड़े चूंदी ल बढ़ाए रहिथे। जादू टोना ले बांचे खातिर करिया रेसम म ताबीज बांध के पहिरे रहिथे। देवारिन मन पीतल के गहना गुरिया पहिरथे। देवारिन मन गोदना गोदे के व्यवसाय करथे। गोदना के मशीनीकरण होय ले देवारिन मन के धंधा म माछी झूमे ल धर ले हे। देवार मन के व्यवसाय बेंदरा नचइ ह हसी ठठ्ठा होगे हे काबर के अब मनोरंजन के कतको साधन जइसे रेडियो, टी.वी. आगे हे। तीहि पाए के देवार मन टूटे फूटे टीना, शीशी बोतल खरीदे बेचे बर धर ले हे अऊ देवारिन मन झिल्ली बीन के लइका लोग के पेट म ले दे के चारा डारत हे। छत्तीसगढ़ के लोक नाट्य नाचा ह बिना देवार गम्मत के अधूरा राहय फेर नाचा म घलो कजुवा मन के नाव बुताए ल धर ले हे। छत्तीसगढ़ म लोककला मंच ह देवार करमा के बिना अधूरा हे जइसे -


चल जोही जाबोन या बाजार।

चल केरा बारी म अगोर लेबे न।

नख जोखी ले लेबे सोरियाना।


ओइसे तो देवार मन के कला ल जीवित राखे खातिर सबो सांस्कृतिक संस्था ईमानदार हे। फेर शुरू म देवार मन के कला अउ जीवन शैली ल उजराए के श्रेय लोककला मंच के महानायक चंदैनी गोंदा के प्रवर्तक दाऊ रामचन्द्र देशमुख ल हे। देवार समाज के मान-सम्मान और स्वाभिमान का बढ़ाए खातिर दाऊ रामचन्द्र देखमुख ह 'देवार डेराÓ के मंचन 9 दिसम्बर सन् 1976 के दिन बघेरा, दुर्ग म करे रिहिसे, जेहा अद्भुत रिहिसे। एमा देवार समाज के कलाकार माया, पदमा, बसंती, माला, बकैली, कला, बरतनीन, किस्मत, आशा, सहभू, मेहरबान, मोहन, धुरू आदि मन भूमिका निभाए रिहिन हे। तभे तो देवार समाज के दुलौरिन बेटी अंजली भटनागर ह हेमचंद विश्वविद्यालय ले ''छत्तीसगढ़ी भाषा की वाचिक परम्परा के संदर्भ में देवार जातिÓÓ ऊपर पी.एच.डी. करत हे। अब अइसे लगथे अंजली भटनागर कस लइका मन ह शिक्षा के दीया बाती बारके देवार समाज म अंजोर बगराही।



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