Sunday 13 March 2022

छत्तीसगढ़ी में व्यंग्य पढ़व - कुकुर बने के साध...

 छत्तीसगढ़ी में व्यंग्य पढ़व - कुकुर बने के साध...


- दुर्गा प्रसाद पारकर 

 

दुखबती ह परछी म तीन-चार महीना के लइका ल घुनघुना हला-हलाके भुलवारत सुखबती ल कथे-अपन जोड़ी संग कहां जाथस बहिनी? सुखबती ह कथे-मयारू ल हवा खवाए बर जावत हावंव। 

दुखबती ह कथे-जा बहिनी कुकुर के पेट ल खलखल ले उना करवा के आबे ताहन बइठबो। ओतका म सुखबती ह कथे-मोर राजा ह एके जगा बइठे बोरिया जथे। सुखबती ह कुकुर ल बाहिर भांठा ले निपटा के लानत रीहिसे वोतके बेर दुखबती ह फेर संघर गे। दुखबती ह सुखबती ल कथे-कइसे बहिनी कुकुर ह अब्बड़ महमावत हे।

सुखबती ह सेखी बघारत कथे-आज वोला महमाती साबुन म नहवाए हावों गोई। बाते बात म दुखबती कथे-तोर गोसइया ह डिपटी ले आगे वो ?

सुखबती ह कथे-मोला मोर गोसइया ले जादा मोर कुकुर के चिंता रइथे। काबर कि एकरे संग मन ल बहला लेथंव। दुखबती ह मने मन गुनथे जतका सेवा जतन सुखबती ह अपन कुकुर के करथे वोतका मंय ह मोर पति देवता के करतेंव ते वो ह चकचक ले निरमा पावडर म धोय कस नेता जइसे ओग्गर-ओग्गर दिखही। इंकर दूनो झिन के गोठ ल चांवरा म बरदखिया खटिया म बइठ के सुनत रेहेंव काबर कि ओतका बखत मंय आनी-बानी के गोठ के खातिर व्यंग्य लिखे बर माथ ल धर के गुनत रेहेंव। सुखबती ह पालथी मार के दुखबती घर बइठगे ताहन मुहुतुर करिस कुकुर पुरान के। सुखबती के प्रवचन ले प्रभावित हो के मने मन गुने-हे भगवान मोला दूसर जनम म कुकुर जनम देबे, काबर कि आज के समे म जतका बेरोजगारी, भूखमरी हे, ओकर बाद घलो जतका कुकुर ह सुख भोगथे, वोतका तो हमला सपना म घलो नसीब नइ होवय। अहा बाढ़े महंगाई म किसम-किसम के खाए ल मिलही डनलप अऊ कोर्लान के गद्दा म सुते बर मिलही, दूध के संग क्रीम बिस्कुट घलो खाए बर मिलही। हप्ता म तीन दिन मटन खाए ल मिलही। मोर मालिक जिहां जही उहां मोला फटफटी अउ कार म बइठार के ले जाही। मोला एको कनी फरक नइ परय चाहे पेट्रोल के भाव कतको बाढ़य। सर्दी-खांसी हो जाही त कुकुर के डॉक्टर करा इलाज करवाहूं। अतका सुविधा तो ए जनम म नइ भोग सकंव।

काबर इंहा तो ले दे के परिवार बर रोटी के जुगाड़ कर पाथंव। तभो ले कुकुर जनम पाए बर अपन कौंरा के ल बचा के अगरबती बिसा के भगवान के फोटो म संझा बिहनिया जलाथंव अउ बिनती करथंव कि हे भगवान मोला कुकुर जनम पाए बर ए जनम म का के साधना करे बर परही ? महूं ल सुखबती जइसे मलकइन मिल जतिस। तेकर ले जम्मो सुख सुविधा भोग लेतेंव स्वामी भक्त के प्रमाण पत्र दुहुं तभो ले सुखबती ह मोला कुकुर बना के नइ राखय। काबर मंय जानवर ले घलो गे बीते हंव। कम से कम कुकुर ह तो जतका खाथे वोतका गुन ल गाथे। जब तक पेट भरे रही तब तक भूं भूं भूं करहूं पेट उना होही ताहन तो उन ल मार पीट के लूट डारहूं काबर बेरोजगार हंव। जब तक सरकार हमला रोजगार नइ देही तब तक हमर कुकुर गति होते रही तेकरे सेती तो खाली दिमाग सैतान के घर कथे। महाविद्यालय म जब मंय पढ़त रेहेंव तब कालेज के सीढ़ी म हपट के हमर कक्षा के टुरी मन संग झपा गे रेहेंव झपावत देख के टुरी कथे-बेसरम, कुकुर कहीं के आंख नहीं दिखता है क्या ? टुरी के श्राप ह मोला लग गे हे तेकरे सेती मोर कुकुर गति हे अऊ अभी तक नौकरी के इंतजार म बेरोजगार बइठे हवंव।

ए जनम म तो आदमी ल कुत्ता के रूप म देखे जाथे। कम से कम वो जनम म कुत्ता बन जाहूं तब दुनिया वाले मन कुत्ता ल आदमी के रूप म नइ देखही। अऊ बिना भरम के कुकुर ल कुकुर कही। मोला क्षेत्रीय कुकुर झन बनाबे परभू मोला फारेन क्वालिटी के डाबर मैन जाति म जनम देबे तभे तो पानी जिहाज, हवाई जिहाज, चढ़े बर मिलही। जतना मोर मालिक के सुवागत सत्कार होही वोतके आदर सम्मान मोरो होही ए जनम म तो खाए बर खपरा नइ हे, त बजाए बर डफरा कहां ले आही?

मोला लोकल कुकुर बनाबे त मोर नाव भुलवा, कलूवा, झबूवा होही राष्ट्रीय स्तर के कुकुर जाति म जनम देबे तक तो मोर नाव मोती हो जाही। मोला विदेशी किसम के कुकुर जाति म जनम देबे तब तो मोर नाव ह टामी, पुषी, जुली, राबर्ट, जैकी, किट्टी, स्वीटी, किन्टू अउ हीना हो जाही। वोइसे मोर मालिक ह तू कही ताहने मंय मोला काहत हे कहि के पंूछी ल हलाहूं। काबर कि पूंछी हलई के अभी ले मुड़ी हला-हला के अभ्यास करत हवंव। हे भगवान मोला ऊंचा घराना के कुकुर परिवार म कइसे जनम मिलही ? अऊ मोला का करे ल लागही। हत्या, बेइमानी, नेतागिरी अउ घोटाला म मंय ह कइसन किसम के पुन करहूं तेकर ले अवइया जनम मोला कुकुर जनम मिलही, गुनत-गुनत बरदखिया खटिया म सुत गेंव। नींद परिस ताहने आनी बानी के सपना देखत रेहेंव। सुत के उठेंव तब देखेंव सुखबती ह अपन घर चल दे रीहिसे। 

बछरू ह घलो ढिला के गाय के दूध ल पी डरे रीहिसे। दुखबती ह कटोरी ल धर के दूध मांगे ल सुखबती के घर गीस अउ कीहिस दे तो एक कटोरी दूध बहिनी। मोर लइका भूख के मारे तड़फत हे। काली गाय दुहाही ताहन गिलास भर दूध वापिस कर देहूं। वोतका म सुखबती ह कथे-इहां मोर कुकुर बर दूध नइहे अउ तोर लइका के खातिर दूध कहां ले देवंव। धन हे भगवान दुखबती के लइका ह बिना इलाज पानी के अपन परान ल तियाग देथे। तेला अखबार वाले मन लिखथें, फलाना जिला म एक ठोक लइका ह भूख अऊ बीमारी के लड़ई म शहीद होगे। कोनो मनखे ल ए बात नइ सुझय कि दुखबती के लइका ह कुकुर जनम धरे रइतिस ते आज अपन परान ल नइ तियागतिस। बल्कि खीर खातिस।

काय पाप करे रीहिसे ते मानुस तन पाए रीहिसे। वहू ह दुखबती के घर दुख पा के तीन-चार महीना म ये जग ले बिदा ले लिस। अब मानुष तन ले के जियई म मजा नइ हे। काबर कि गरीबी के बदला म गरीब ल ही हटवात जावत हे अउ पूंजीपति मन मोटावत जावत हे। ए समाज म एक-दूसर के दुख ल कोनो नइ देखय। एकर ले तो बढ़िया हे कि कुकुर तन पा के काकरो रक्षा कर सकथन, कतको घर के चोरी-हारी ल बचा सकथन, कतको चोर-चंडाल ल सुंघिया-सुंघिया के पकड़ के राष्ट्र विकास म अपन भागीदारी निभा सकथन।

अइसनो जनम का काम के जिहां रोटी बर तरसे ल लागथे। तभो ले मानुष तन पाए बर कतको आत्मा ह भटकत हे अउ निस दिन लाखों लइका मन ह रोवत गावत हे। रोवत-रोवत जीही अऊ रोवते रोवत मरही। हमर सरकार ह बड़ सोच बिचार के निर्णय ले हे कि मानुष तन म मजा नइ हे, जादा लइका पिचका मन ल नरक म आय बर रोको नही ते जी के जंजाल हो जही। खाए बर रोटी, पहिरे बर कपड़ा, रेहे बर मकान नइ रही ते आदमी ल आदमी खाही। अउ एक-दूसर ले लड़ई झगरा करके मरही। एकरे सेती परिवार नियोजन के अभियान चला के सुभ काम करे हवय। यदि मनखे जनम ले डरे हवव तब ये कोसिस करव कि मानव जीवन के स्तर ल बनाए रख के राष्ट्रीय एकता, मैत्री सद्भाव अऊ अखंडता ल बनाए रख के देस के विकास के मुख्य धारा म जुड़ जवव....।

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