Sunday 13 March 2022

चंद्रहास साहू जी के कहानी मन म नारी पात्र*

 *चंद्रहास साहू जी के कहानी मन म नारी पात्र*

       कहानी पढ़ई अउ सुनई भला कोन ल नइ भावय। नान्हे-नान्हे रेहेंन त डोकरी दाई अउ बबा मन भुलवारे बर नवा-नवा किस्सा-कहानी सुनावँय। स्कूल म कहानी गढ़न कविता सुने मिलय। आज के लइकामन टीवी अउ मोबाइल म चिपके रहिथें। सबो अपन पसंद के सिरियल म रमे रहिथे। बदलत समे के संग मनखे के रंग ढंग बदल जथे। इही बदलाव के चलत आज लइकामन वीडियो गेम खेलत मोबाइल अउ कम्प्यूटर म चिपके रहिथें। फेर उमर बाढ़े ले सबो के मन किस्सा कहानी म रमे लगथे। कहानी मन के चरित्र चित्रण मन म एक छाप छोड़ जाथे। जेन छाप हमर मन म फिलिम देखत बेरा हमर पसंदीदा हीरो हिरोइन के परथे।

         पाठक ल कहानी कथानक अउ पात्र के प्रभाव म सुरता रहिथे। कहानीकार के भाषा अउ भाषा के पकड़ चित्रण शैली पाठक ल चुंबक बरोबर खींचथे जरूर। फेर कहानी के घटना अउ पात्र के वर्णन ले पढ़इया प्रभावित होथे। पात्र कतकोन किसम के हो सकत हे। कभू-कभू कोनो-कोनो कहानी म पात्र उभर के नइ आवय। फेर सबो पात्र कुछु न कुछु संदेश जरूर देथे।

       चंद्रहास साहू जी के  कहानी म सामाजिक विषमता के खिलाफ सामाजिक मूल्य अउ साँस्कृतिक मूल्य के पोषण हे, त व्यवस्था ऊप्पर भड़ास घलव देखब ल मिलथे। रिश्वत अउ भ्रष्टाचार के खिलाफ उँकर स्वर मुखर हे। बिंब अउ प्रतीक के प्रधानता हे। अपन अस्तित्व बर चिंतन घलव मिलथे। चंद्रहास साहू के कहानी मन के नारी पात्र के चर्चा करे जाय त मिलथे कि उँकर नारी पात्र मन समाज म जेन नारी शोषित हें , पीड़ित हें, रीति रिवाज अउ परम्परा के जंजीर म फँदाय हें, के प्रतिनिधित्व करथें। फेर शोषण के खिलाफ आवाज घलव उठाथें। अपन पाँव म खड़े हो के पुरुष ल ठेंगा दिखाय के उदिम करथे अउ बताथे कि हम ल अपन पाँव के पनही झन समझव। पति ल परमेश्वर मानत संग चले के उदिम करथे। अत्याचार करइया पति ल छोड़े के हिम्मत घलव दिखाथे। कुल मिलाके चंद्रहास साहू जी के कहानी म नारी के कोमल हिरदे के संग रणचंडी स्वरूप के दरशन मिलथे। 

      इन्दरानी संघर्षशील, समाज म घर-परिवार के मरजाद ल बचा के रखे म सफल नारी पात्र के सुग्घर कहानी आय।

       'मेंहा अइसन पाप नइ करँव। मोर पुरखा मन का कहि? मोर ददा-दाई, सास-ससुर का कहि? मोर नोनी बाबू का कहि? 

      अइसन बिचारत इन्दरानी ह रानी पदमावती, सीता माता अउ गोबरहिन बहू के सुरता करत भीखम जइसन तन के लोभी ले अपन लाज ल बचाथे अउ चप्पल तुन तुन के अपन परिवार के गाड़ी ले खींचे बर संघर्ष करथे अउ सफल होथे। 

      देखे जाय त नारी के सबले बड़े बइरी नारी होथे। नारी ल नारी च ले लड़े बर परथे, ए नारी जात बर बिडम्बना आय। सोनकुंवर के दुखियारिन रोज-रोज के ताना सुन जब हार जथे तब ओकर अंतस् ले निकलथे- 'तोर बेटा जोजवा हावय धुन मोर कोरा म दुकाल परगे हावय, दूध के दूध अउ पानी के पानी हो जाही।तोर बेटा ल भेज डॉक्टर करा, टेस्ट करवाबो दूनो कोई।'

     आस्था अउ भक्ति के संग पतिव्रता नारी के सहज गुण आय। नारी सहनशीलता संवेदना के खान आय। फेर पति के अविश्वास ले पति ल छोड़ के अकेल्ला जिनगी गुजारे के हिम्मत रखथे, नवा बेरा के नवा आहट कहिथे, मेंहा माँग म कुहकूँ भरे ल नइ छोड़वँ,चूरी बिछिया ल नइ उतारों, मंगलसूत्र ल नइ हेरँव। फेर तँय ह आज ले मोर बर मर गे हस।'

      करनफूल म बुधिया संग गोठियावत सोनारिन के कहना, 'झन सराप बुधिया! ठेकेदार के नीयत म खोट हावय तब ओखर लोग लइका के का दोष? वहू मन दूधे खाय दूधे अचोय ओ।'     

       एमा शोषण के बावजूद नारी के निर्मल मन ले दया करुणा के अशीष के धार बोहावत देखे ल मिलथे। शायद एकरे बर कहे गे हे- हाय! अबला तेरी यही कहानी, आँचल में है दूध और आँखों में पानी।

     नारी के गहना मोह जग जाहिर हे, फेर आत्मसंतुष्टि घलो बड़े चीज होथे। इही बात के गवाही बनथे तुतारी कहानी के ए संवाद - 'गहना जेवर कतको महंगी राहय फेर गोसइया के उछाह ले सस्ता होथे।'

     जकही कहानी म नारी उत्पीड़न अउ समाज के घिन रूप ल देखव।

     'मनचलहा मन तो लाश ल नइ छोड़य, फेर एखर तो जाँगर चलत हे।'

      समाज म सबले पिछड़े वर्ग माने गे देवार जाति के धरमीन के संघर्ष के गाथा हरे कुंदरा। जेमा पद के मद म बइहाय सरपंच ले धरमीन के मुँहाचाही कतकोन अनकहे भेद अउ पीरा ल खोलथे।

    'मोर इही माँस बर तोरो नीयत डोलगे रहिस। मोर भुइयाँ मोर माटी झन कह काया ह घला माटी होही। धरे पइसा के गरब झन कर, कफन के कपड़ा म खिसा नइ होवय।...कुंदरा के लइट घला नइ होबे सरपंच।'

     जकही सहीं छलड़हीन निमगा नारी विमर्श के कहानी आय। जकही म कुपोषित अउ बेसहारा नारी जेला देख के सबो घिन करँय, ओकर गोरस ले नवजात लइका जीवन पाथे।

      छलड़हीन नारी शोषण अउ उत्पीड़न के पीरा ले उबरत शोषण ले मुक्ति के रस्दा दिखावत फुलमत के कहानी आय। जेमा शोषण अउ शोषण ले मुक्ति के सुग्घर समन्वय हे।

       शोषक के शोषण ले भरे घिनौना शब्द बाण देखव- अरे टूरा बने सुन गौटनिन ह घर म नइ राहय काली। तोर बाई ल चाउँर निमारे बर पठोबे।

      दाऊ के अइसन कतकोन गोठ ल सुन फुलमत भीतरेभीतर गुंगवावत गिस अउ जोरदरहा भभकिस- मोला कभू धरे के उदिम घला झन करबे, छलड़हीन आवँव। काँटा मारथों, बीख वाला काँटा। फेर धरन नइ देवँव मोंगरी मछरी कस।'

     अइसन अउ कतको उदाहरण हे, जे नारी ल सशक्तिकरण के रस्ता म लाय अउ घर के मरजाद ल बचावत उज्जर ओनहा पहिने गिधवा मन बर रणचंडी बने के प्रेरणा देथे। नारी चरित्र ल सम्मान देवत इही तरह चंद्रहास साहू के कलम सरलग चलत राहय इही कामना करत हँव।


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी

9977252202

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