Sunday 6 December 2020

मोर नजर म किसान आंदोलन

छंद परिवार की प्रस्तुति-मोर नजर म किसान आंदोलन


 शोभमोहन श्रीवास्तव: विषय - मोर नजर मा किसान आंदोलन*

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ये *आंदोलन फर्जी* हे आंदोलनकारी मन किसान नोहय दलाल आय । भारत के 70%आबादी कृषि उपर आधारित हे जेन गाँव मा बसथे । नवा कृषि कानून हर किसान के हित मा नहीं रहितिस तब पूरा देश भर मा विरोध होना रहिस, फकत पंजाब भर मा काबर होवत हे ? 

*गुनान*

 ●नवा कृषि कानून दलाल हित मा नइ हे।

जब किसान हर अपन आलू ला या आने उत्पाद ला न्यूनतम समर्थन मूल्य के ९/किलो मा बेंचथे तब ओकर कीमत हर ५०-किलो 

कइसे हो जाथे  किसान ला तो ९/भर मिलिस फेर ४०रुपया हर काकर खींसा मा जाथे, न हाथ मइल न गोड़ मइल अउ सिद्धो मा गदिया मा बइठे बइठे दलाल मन दलाली खाय मारे टकरहा हें किसान हर पसीना चुचवावत ले बूता करके चरन्नी पाथे अउ दलाल मन बिगन हर्रा फिटकिरी लगाय बारा आना फायदा लेके किसान के शोषण घलो करथें ।


 दूसर कोनो ला अपन खानदानी धंधा मा टिकन घलो नइ देवँय, साम दाम दंड भेद युक्ति लगाके अपन बनाय कुनबा भर ला परेवा कस बढ़ाथें, नवा कृषि कानून हर अइसन दलाल मनके पेट मा लात मारत हे तेकर सेती येमन चिचियावत हें ।


●किसान उत्पाद के मालिक होय के बाद घलो अपन चीज के कीमत तय नइ कर सकत रहिस हे, मंड़ी हर कीमत तय करय अउ बिसावय, किसान हर अपन उत्पाद सरै गलै झन कहिके औने पौने जतका पइसा मिलै तेमा अपन चीज ला बेंच देवै, अब वइसन नइ हो सकै, अब किसान के आगू मा एक ठन मंडी भर नहीं रहय जेन किसान ले अपन शर्त मा चीज बिसाही, अब हजारों झन खरीदार उँकर फसल ला बिसाय बर आगू पाछू लोरियाही,  किसान हर जेन सबले बढ़के दाम देही तेन ला अपन जिनिस ला बेंच सकत हे, किसान ला जब जादा कीमत मिलही तब दलाली प्रथा ग्राहक के बीच ले खतम हो जाही, अउ किसान के आय हर दुगुना अउ तिगुना हो जाही इही डर मा दलाल मन अपन अस्तित्व बचाय बर किसान आंदोलन कहि के लोगन ला भरमावत हे फेर आज सोशल मिडिया के दौर मा किसान मन सब समझत हे । जब सरकार हर 

1― बीजा बिसाय बर सब्सिडी।

2― कृषि उपकरण बिसाय बर सब्सिडी।

3― यूरिया (खाद) बिसाय बर सब्सिडी।

4― ट्रेक्टर ट्रोली बिसाय बर सब्सिडी।

5― पशुधन बिसाय बर सब्सिडी।

6― खेती के आने आने खर्चा बर सब्सिडी ।

7― किसान क्रेडिट कार्ड ले कर्जा।

8― जैविक खेती करे बर सब्सिडी।

9― खेत मा डिग्गी बनाय बर सब्सिडी।

10― फसल प्रदर्शन बर सब्सिडी।

11― खड़े फसल के बीमा। 

12― सिंचाई पाईप लाईन बर सब्सिडी।

13― स्वचालित कृषि पद्धति अपनइया किसान मन ला सब्सिडी।

14― जैव उर्वरक  बिसाय बर सब्सिडी।

15― नवा किसम के खेती करइया ला फोकट मा प्रशिक्षण।

16― कृषि विषय के पढ़इया लइका मन ला अनुदान।

17― सोलर एनर्जी सिस्टम लगाय बर सब्सिडी।

18― बागवानी करे बर सब्सिडी।

19― पंप चलाय बर डीजल खरीदी मा सब्सिडी।

20― खेतो में बिजली उपयोग बर सब्सिडी।

21― दुकाल परगे तब मुआवजा।

22― बइहा पूरा आगे तब मुआवजा।

23― टिड्डा फसल ला नुक्सान पहुँचाइस तब मुआवजा।

24― सत्ता बदलत साठ जम्मो किसम के करजा माफी।

25― किसान मन ला आत्मनिर्भर अउ सशक्त बनाय बर कतको अकन योजना ।

26― किसान मेर ले  20 रुपए किलो मा गँहू बिसा के 2 रुपए किलो मा उही किसान देये के खाद्यान योजना।

27― पक्का घर बनाय बर  3 लाख रुपए  सब्सिडी ।

28― फोकट मा घरोघर शौचालय बनवाना।

29― घर के की निकासी के लिए होद फोकट मा ।

30― साफ पानी फोकट मा ।

31― लइका बच्चा के पढ़ई लिखई ड्रैस पुस्तक कापी छात्रवृत्ति, खेल कूद फोकट मा,जातिगत आरक्षण के फायदा ।

32― साल के 6000 रुपए खाता मा किसान सम्मान फोकट मा।

33― मनरेगा मा बिगन कमाय पइसा देवइया सरकार ले किसान मन संतुष्ट हे, ये किसान आंदोलन नोहय दलाल आंदोलन आय ।


शोभामोहन श्रीवास्तव

०३/१२/२०२९

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 हीरा गुरुजी समय: किसान आंदोलन मोर नजर मा


      किसान ला भुँइया के भगवान कहे जाथे।अन्नदाता कहे जाथे।कलयुग मा प्रान के ठउर अन्न मा माने जाथे। अन्नदाता मिहनती होथे। फेर उँखर मिहनत के मुताबिक उनला ओखर दाम नइ मिलय। कभू कभू उँखर उपजाय जिनीज के भाव अतका गिर जाथे कि उँखर लगाय लागत घलो नइ मिल पावय अउ ओला फेंके बर नइते खेत मा छोड़े बर पर जाथे। 

       सिरिफ धान गहूँ बोवाइच ला किसान नइ कहे जाय, कुसियार, पोनी, साग भाजी, नरियर, सेव केरा,अंगूर, मिर्चा, पताल ,मशाला के जीरा, धनिया हरदी लसुन  अइसने जतका नाम जेला हम जानथन एला भुँइया मा उपजाथे वो सबो मन किसान बनिहार आवय। एमा नान्हे बड़े सब मिंझरे हे।

      अपन उपजाय जिनिस के वाजिब दाम पाय पर किसान हा सरकार ले गोहार करथे कि हमर उपजाय जिनिस ला सरकार हा एक दाम तय कर के कोनों माध्यम ले बिसा के देश भर मा बगरावय। सरकार मा  मिंझरे राजनीतिक दल मन चुनाव के पहिली वोट पायबर घलो किसान मन ला लालच देय रथे। फेर जब सरकार मा आ जाथे ता हर सरकार हा अरदली हो जाथे। सरकार के बनाय सबो नियम हा बनेच रहिथे यहू कहना सही नइ रहय। 1991 मा बने किसान नीति ओ बेरा मा सही रहिस होही फेर आज दूसर दल के सरकार बने ले ओला नइ भाइस ता ओ बदल दिस। अपन बनाय नियम ला हर सरकार हा बनेच कहिथेफेर जेखर बर बनाय जाथे ओला एहा बने नइ लगय इहे ले सरकार संग किसान के आंदोलन के शुरुवात होथे।

     किसान आंदोलन आजेच होवत हे अइसे नइ हे।देश मा अंग्रेज के शासन रहिस तभो अउ आजादी के पाछू हर प्रांत मा किसान आंदोलन अलग अलग बेरा मा होइस। जब जब किसान बर नवा नीति बनथे तब तब खच्चित किसान आंदोलन होथेच।

     आज के बेरा मा जौन किसान आंदोलन के शुरुआत होय हे चाहे वो पंजाब हरियाणा डहर ले होय चाहे कोनों डहर ले फेर उँखर बात   ला सरकार ला सुनना पड़ही अउ देश भर मा बगरे ले रोके बर परही। सरकार जरुर कहत हे कि न्यूनतम समर्थन मूल्य हा चलत रही ओहा बंद नइ होवय फेर बाजार मा न्यूनतम समर्थन मूल्य ले कमती मा धान खरीदी कराइया मन उपर कोनों दंड के नियम नइ राखे हे। इही हा विरोध के कारण आय।आज जइसे सरकारी इस्कूल कालेज चलत हवे अउ पूंजीपति मनके बड़का बड़का प्राइवेट इस्कूल कालेज खोले के मान्यता घलो दे दीस। सबो लइका उही डहर चल दिस।ओखर पाछू सरकारी इस्कूल मा मास्टर राखे के जिम्मेदारी कंपनी के माध्यम ले संविदा मा कराइस। एखर ले संविदा मा लगे गुरुजी मन दू साल पाछू बेरोजगार घूमत हे। किसानी मा घलो अइसने झन होवय। सब बात के एक बात अब सरकार हा सब बूता ला ठेका मा करा के अपन हाथ ले छोड़ना चाहत हे। इही किसान आंदोलन के जड़ आवय।

    किसान आंदोलन हा  काँट्रेक्ट कृषि नाव के दूसर नियम ला हटाय बर हावय। एमा एक कंपनी अपन उत्पादन बल जतका मात्रा मा जिनिस लगथे ओला एक गांव के  किसान मन के संग लिखा पड़ही करही।फसल होगे ता ओला जतका पइसा मा लिखा पड़ही होय रही ओतका मा बिसाही। ओ किसान अपन फसल ला दूसर ठउर नइ बेच सकय फेर चाहे बजार मा जादा भाव चलत होही। अउ कोनों फसल नइ होय ता किसान ला कुछ नइ मिलय न कंपनी ले कुछ मिलही न सरकार डहर ले।जेन किसान लिखा पड़ही नइ करे हे ओमन कहूँ जगा बेच सकथे।एमा यहू हे कि जेन कंपनी लिखा पड़ही करही ओ हा सिरिफ किसान के भुँइया ला रेगहा लेही।ओमा बनिहार, मशीन, दवाई बुटई अउ किसानी के दूसर जिनिस अपन लाही।एखर ले किसान बनिहार हा ठेलहा, बेरोजगार हो जही। यहू किसान आंदोलन के एक पक्ष आवय।

       किसान आंदोलन हा भंडारन के तीसर नियम के विरोध मा होवत हे। आम जनता के जिनगी के जरुरी जिनिस के भंडारन के पहिली एक सीमा तय रहिस जेखर ले जादा भंडारन बेपारी मन अपन गोदाम मा नइ रख सकत रहिस अउ जिनिस मन बजार मा मिल सकय। अब बेपारी मन कतको कन भंडार मा भर के रख लेवय अउ विदेश भेज के जादा पइसा कमावय एकर सीमा हटा के ऊँखर बर छूट होगे हवय।किसान के बिचार हे एखर ले जमाखोरी बाड़ही अउ देश मा सबो जिनिस के कमती होही अउ दाम बाड़ही।

     सरकार के कहना वाजिब हे कि किसान अपन उपज ला मंडी छोड़ कहूँ जगा जादा भाव बेच सकत हे चाहे दूसर प्रांत मा होय। फेर ये बात हा हाँसी ठिठोली बरोबर लागथे। दू - चार एकड़ मा बोवइया किसान हा मंडी छोड़ दूसर ठउर कहाँ जाही।कश्मीर के सेव बेचाइया किसान पहिली अपन तीर के मंडी मा आठ दस कोंटल ला बेंचही कि छत्तीसगढ़ मा बेंचे बर लाही। छत्तीसगढ़ के सेव बेपारी हा किसान कर जाही कि बेपारी करा।बुधियार मन गुने सकत हव।एखर बर ओला एक झन दलाल रखे बर परही जौन कमीशन लिही।

 आखिर मा मोर नजर मा किसान आंदोलन एखर सेती होवत है कि देश के जतका सार्वजनिक सम्पति ला ठेका मा देके बड़का बड़का पूँजीपति मन नौरत्न, अस्पताल, कारखाना, इस्कूल कालेज के मालिक बन गे वइसने  किसानी मा इँखर एकाधिकार झन हो जावय। एक देश एक दाम होवय अउ एम एस पी ले कम मा लेवइया ला जेल अउ जुर्माना होवय। वीर नारायण सिंग के जमाना के माखन झन जनम ले लेवय, जौन गोदाम भरके गरीब ला दाना दाना बर तरसावय।


हीरालाल साहू "समय"

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अजय अमृतांशु: *मोर नजर मा किसान आंदोलन -*


आज जेन किसान आंदोलन होवत हे ये कोनो नवा बात नोहय अउ न ही पहिली बार होवत हे । किसान आंदोलन के इतिहास बहुत पुराना हे।  *किसान मन ला कतेक प्रकार के सब्सिडी मिलथे येकर बड़े बड़े बात लिखे गे हवय फेर ये विचार म काबर नइ आवय कि अतका सब्सिडी मिले के बाद भी किसान फाँसी म काबर झूलत हवय ..? फांसी म झूल आत्महत्या करने वाला ज्यादातर मनखे किसान ही होथे*


फाँसी म झूलने वाला ज्यादातर किसान लघु अउ सीमांत कृषक ही होथे जेकर करा न तो कृषि लायक भूमि हे, न संसाधन हे अउ न ही कोनो प्रकार के उन्नत कृषि के उपकरण। (भारत म किसान मन के कुल जनसंख्या म 67.04 प्रतिशत सीमान्त किसान परिवार हे जेकर पास “एक हेक्टेयर” ले घलो कम कृषि योग्य भूमि हवय । येमा से भी सबले ज़्यादा प्रतिशत वो किसानों के हवय जेकर पास आधा हेक्टेयर ले भी कम कृषियोग्य भूमि हवय। ये किसान मन के कोनो पुछारी नइ हे। अउ इही किसान कइसे करके फसल उगाथे ये उही आदमी समझ सकथे जेन खेती ल जिये। जेन नाँगर के मूठ ल धरे नइ हे वो किसान के पीरा ला का समझही ...?  मै *श्री हीरालाल साहू जी* के लिखे जम्मो बात के समर्थन करत हँव। 


अब मोर कुछ सवाल सोशल मीडिया म किसान मन ल मिलने वाला सब्सिडी के बात करने वाला मन से हवय - 

 

(1) आज मल्टीनेशल कंपनी ह किसान के बीमा करथे, हजारों करोड़ के प्रीमियम किसान मन भरथे लेकिन जब क्लेम के बारी आथे त 120/-,अउ 130/- के चेक देथे ये बात सोशल मीडिया ल नइ दिखय, दिखथे त केवल किसान ल मिलने वाला सब्सिडी ।


(2) ज्यादातर आत्महत्या सीमांत कॄषक मन करथे वोकर सही वजह सोशल मीडिया ल नइ दिखय, दिखथे त केवल किसान ल मिलने वाला सब्सिडी।


(3) बड़े बड़े कारपोरेट मन के 6-7 लाख करोड़ ल रातों रात माफ कर दे जाथे ये बात सोशल मीडिया ल नइ दिखय, दिखथे त केवल किसान के कर्जमाफी । अतका रुपिया म तो देश करोड़ो किसान के कर्जा माफ हो सकत हे जेन ल केवल 4-5 कार्पोरेट के जेब म डार दिए जाथे ।


(4)  कृषि मंडी के बड़े बड़े व्यापारी मन अपन करोड़ो के टैक्स ला भीतरे भीतर सेटल कर लेथे, सोशल मीडिया ल ये कभू नइ दिखय,दिखथे त केवल किसान ल मिलने वाला सब्सिडी।


(5) किसान के प्याज जब 4 रु किलो तक म नइ बेचाय अउ उही प्याज 100 रु. किलो हो जाथे येकर दोषी सरकार हे किसान नहीं। जमाखोरी बिना सरकार के वरदहस्ती के सम्भव नइ हे। अभी तो ये हाल हे तब नवा कानून आय के बाद का हाल होही येकर कल्पना भी नइ करे जा सकय।


(6) छोटे छोटे किसान ल वोतका रुपिया सरकारी ऋण  नइ मिल पाय जतका के वोला जरूरत हवय । यदि फसल खराब होगे अउ यदि ऋण नइ पट पाइस तब दुबारा ऋण तो मिलना ही नइ हे जेकर फायदा सूदखोर मन उठाथे अउ किसान करजा म लदा के आत्महत्या कर लेथे । ये बात सोशल मीडिया ल नइ दिखय,दिखथे त केवल किसान ल मिलने वाला सब्सिडी ।


(6) सरकार *msp* के गारंटी नइ देवत हे इही मेर ले साफ हवय कि सरकार के नियत मा खोट हे।


(7) किसान नेता मन जब माँग करत हवय कि सरकार लिखित म दय कि मंडी समाप्त नइ होवय तब सरकार लिखित मा काबर नइ देवत हे मतलब साफ हवय कि सरकार के नियत मा खोट हे।


(8) दू चार एकड़ वाले किसान अपन फसल ल धर के बेचे बर जब पंजाब, हरियाणा नइ जा सकय तब अइसन कानून के प्रावधान के मतलब का? मतलब सीधा साफ हे कि बड़े बड़े कार्पोरेट मन के आके बेड़ा गर्क करही अउ किसान अपने भुइँया म मजदूर बन के रही जाही ।


(9) एक पान ठेला लगाने वाला मनखे घलो किसान के बेहतर जिन्दगी जीयत हे फेर किसान...?


मैं ये किसान आंदोलन के समर्थन करत हँव। चश्मा लगा के देखने वाला मन ल ये आंदोलन म खोट दिखत हे। किसान सदियों से पेराय हे, आज घलो पेरात हे अउ अवइया बेरा म घलो.....?


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छ. ग.)

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सरला शर्मा: मोर नजर मं किसान आंदोलन 

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     ऋषि संस्कृति अउ कृषि संस्कृति ल मनइया हमर देश मं देवर्षि ब्रम्हर्षि कहे गिस ऋषि मन ल त किसान ल अन्नदाता कहे गिस गुने लाइक बात एहर आय के इनमन के जिये , खाए के समस्या ऊपर कभू कोनो ध्यान नइ दिहिन । सनमान भर ले पेट नइ भरय । समाज मं चलवा चलती सबो दिन प्रशासन अउ धनी मानी मन के रहिस । तभे तो होरी मन ल आज आत्महत्या करे बर परत हे । हरि ठाकुर लिखे हें ....

"हमरे भुइंया ल लूटत हें , खनथें हमर खनिज ल , 

भरथें अपन तिजोरी, हरथें अनमोल बनिज ल । " 

      आजो इही चलत हे ...67.04 किसान मन तीर एकाध हेक्टेयर खेत हे त भूमिहीन किसान मन के तो गिनती भुला गयेंव । बड़े बड़े उद्योगपति मन कल कारखाना खोलत हें जेकर चौहद्दी मं इन छोटे किसान मन के खेत नंदावत जात हे जेकर मुआवजा मिलत मं अतका देरी हो जाथे के किसान उही कारखाना के मजदूर बन जाथे । 

 रहिस बात अकाल दुकाल के , रसायनिक ख़ातू के , फसल बीमा के त सरकारी आंकड़ा उपर भरोसा झन करके किसान से पूछ्व जेन हर कर्जा मं बूड़त जात हे । जतका फसल होथे तेमा कर्जा छुटय , बिजहा के बेवस्था करय के परिवार के पेट पालय , महंगाई सुरसा के मुंह कस बाढ़त जावत हे । बड़का बड़का उद्योगपति , व्यापारी मन के कर्जा माफ होथे , नहीं त उन खुद ल दिवालिया घोषित कर देथें अउ कभू तो विदेश भाग जाथें । किसान का करय , कहां जावय ? 

  किसान के उपजाए अनाज , फल , साग भाजी , आलू प्याज सब सस्ती से सस्ती भाव मं बिसा के उन भंडारण कर लेथें , दू चार रुपिया किलो के भाव मं बेंचे प्याज ल उही किसान 50 / 60 रुपिया मं बिसाथे काबर के सरकार किसान मन भर भंडारण के कोनो बेवस्था तो करे च नइये । 

इही ल जमाखोरी कहिथें जेकर डहर सरकार ल ध्यान देना चाही । 

  आज किसान आंदोलन सुरु जरूर होए हे फेर सरकार msp के गारंटी तो देवत नइये । अतके भर नहीं देश के सबो किसान के प्रतिनिधि मंडल बना के सीधा सीधा गोठ बात काबर नइ करत हे । अतेक बड़ देश के अलग अलग राज्य के किसान मन के समस्या ल सुने च ले तो सबो किसान के समस्या के हल निकलही । कोचिया , दलाल मन के बात छोडव उन मन कभू नांगर जोते हें , पनिहा दुकाल , बिन पनिहा दुकाल मं जेकर खेत उजर जाथे ओ किसान के हाहाकार कोकरो कान मं सुनाथे का ? 

    पूंजीपति मन औने पौने दाम किसान मन के खेत ल बिसा के फार्म हाउस बनवावत हें काबर के टैक्स मं छूट मिलही , दू नम्बरी कमाई के पैसा ल एकनम्बरी करत बनही । नगर , महानगर के आस पास फार्म हाउस मन के बढ़ोतरी इही तरह होवत जात हे । स्टालिन लिखे हें " The death  of one man is tragedy , the death of millions is a statistic. " 

 एक मनसे के मरे हर त्रासदी आय त हजारों लाखों के मरे हर आंकड़ा बन जाथे । 

 इही होवत हे पूरा देश मं किसान आत्महत्या आज सरकारी आंकड़ा बन गे हे एकर विरोध मं आंदोलन तो होना ही चाही । एकर पहिली नील के खेती के विरोध मं सफ़ल आंदोलन होए रहिस , सरदार वल्लभ भाई पटेल के अगुआई मं बारडोली आंदोलन , भूमिहीन किसान मन बर विनोबा भावे के भूदान आंदोलन होए रहिस सुरता करव न ? मोला विश्वास हे राजनैतिक दल , जातीय , धर्मीय , वर्गीय भेद ल भुला के देश भर के किसान जरियाहीं त सरकार ल उंकर मांग ल माने च बर परही । आज स्थिति ये हे के ....

" गेहूं , गन्ना ग़मज़दा , उदास खड़ी कपास 

  सियासत मशरूफ है , खेती का उपहास । " 

      आज राजनीति मं घनघोर अंधियार छाए कस दिखत हे अइसन समय मं देश मं जौन नवा चेतना किसान आंदोलन के रूप मं दिखिस हे ओहर बतावत हे के पूंजीवादी , प्रशानिक तंत्र के संकट के भीतर से ही नवा बदलाव आही । किसान आंदोलन कतका सफ़ल होही या कब सफलता मिलही तेला तो मैं नइ कहि सकंव फेर संभावना तो दिखिस । किसान मन के सफलता हर सरकार के कॉरपोरेटीकरण के रस्ता ल तो रोकबे च करही , देश मं असंतोष , विरोध के आंधी आ जाही । जेहर देश , राज , समाज सबो बर कल्याणकारी होही । 

लोकतंत्र के रक्षा होही पूंजीवादी प्रथा ले बांचे के सुयोग मिलही । सबले बड़े डर के देश मं फेर महाजनी सभ्यता , निरंकुश राजतंत्र  नवा रूप धर के झन आ जावय  तेकर संसो खतम होही ।

 बिनती करत हंव बिधाता से किसान आंदोलन सफ़ल होवय , लाल बहादुर शास्त्री के नारा " जय जवान ,जय किसान "फेर देश मं गूंजय । 

जय हो माटी के मितान के ...। 

सरला शर्मा

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 अश्वनी कोसरे  _मोर नजर मं किसान आंदोलन_ 

भारत एक कृषि प्रधान देश के नाव ले दुनियां म जाने जाथे|हमर देश मं

किसान ल तो भुइँया के भगवान कहे जथे | काबर कि वोहर अतेक मेहनत करके  घाम पियास , का गरमी ,ठंडा,बरसात ल भोगत फसल उगाथे| तब कहीं जा के सब ल पेटबर अन्न के दाना मिल पाथे|

 *पर आज वोमन ल कहूँ आत्महत्या करे बर मजबूर होय ल परत हे, त कहूँ सासन सरकार के तिरस्कार ल झेले परत हे* | तियाग के सबले बड़े मूरत आज किसान हे, उनला आज भी सम्मान नइ मिलत हे| फसल मेहनत मँजूरी के दाम नइ मिलत हे|

  *इतिहास गवाही हे के सबले जादा शोषन मिहनत कराइया* *भुइँया के बेटा के ही होय हे| कबतक वोखर सबुर के परीक्षा ले जाही|* *आदी जमाना ले चलेआवत हे  राजा , व्यापारी ,माल अड़तिया , सेठ -साहूकार सबके सब वोला ठगे अउ  हड़पे हें|* 


 *प्रकृति ह घलो कठिन ले कठिन चुनौती दे हावय | कभू कम बरखा ,त कभू ठाड़ सूखा, त कभू भारी बारिश ले वो कर फसल बरबाद होय हे* | *आंधी तूफान चक्रावात हावा गर्रा, कीट व्याधी, जिनावर मन के  हमला ले उबरे के बाद ही वोला ठोमहा खाँची बांचे अन्न के दाना ले गुजर करेला परे हवय , फिर भी कोनो ल सिकायत नइ करे हे* 

 **अउ अपन मन ल संतोष करत अवइया बछर म बने कूत के सपना देखत खुशी खुशी जिनगी बिताय बर मिहनत के उदिम करते आवत हे* | **रकत पसीना अऊँटा के दुगुना उत्साह ले खड़ा होय हे|* 

 *फेर अतिक का होगे हे वोकरे भाग म सबो परकार के दुख खपला गे हे| कभू तो सुतंत सुख के छइँहा  मा उँकर चोला  बइठ के थिरा लेतिस* |** 

 अउ हद तो अब होगे जब उँकर जमीन -जगा  ,खेती -खार, भुइँया -ठौर ,बारी -बखरीकोठार बियारा ल ,कारखाना उद्योग धंधा  नगरीकरण अउ शहरीकरण के नाम लेके नंगावत जावत हें|

वाहरे सासन कराइया मनखे हो तुहँर चेत कति गे हवय कतिक अन्याय अतियाचार ल तुहँर झेलँय बपरा किसान मन|सबो किसिम के खेती किसानी ले नकसान होय हे| बागवानी कृषि ल बढ़ावा देके 60-70,70-80 के दशक ले प्रयास होइस एकीकृत कृषि बेवस्था के संग उन्नत किसानी ल अपनाये के जोर दे गइस,फल सब्जी,  मसाला के उत्पादन ले कुछ फायदा तो होइस फेर एकर जबर दुष्परिणाम घलो होइस| कइ किसम के रोग राई ले बाँचे फसल के बाजार भाव नइ  मिलय|कोचिया दलाल मन हावी हवँय ,सबो कोती ले वइसे भी किसान के मरे बिहान हे| त बिन बरसात फड़फड़उल हे| वो कर फसल सियारी हर अइसने जरत भूंजावत हे, वोकर तन ल घलो भूंज डारेव|

 **तव का करय वो गरीब बेबस मन  उँकर आस के बांधा सुखागे, भरोसा के नँदिया नरवा समूंद अउँट गे ,हिम्मत खतम होगे अउ टूट गय बिस्वास* ! *उँखर जग अँधियार होगे | तब आंदोलन के मारग ल धरीन हे|*  वोमा भी कइ ठन राजनीतिक दल मन अपन तराजू तखरी धरे उँकर पबरित भावना ल बोली लगावत हें| राजसाही, सामंतसाही समे मा नाना परकार के करअदायगी  ,वसुली अउ,उगाही ले जीव कांप गय हे|कतका निनासे गइस किसान |तेकर पीछू अंगरेजी अउ गोरी सरकार के पहरो ले किसान  लूटावत  हे|

आने ताने फसल लेके दबाव डार के बंदूक के नोक मा खेती करवाय गइस |तब ले शारिरीक मानसिक  प्रताड़ना ,चाही तकनीकी समस्या ले जूझत आवत हे| वो *काखर खांध म मुड़ मड़ा के रोवय |कतिक वो कर आत्मा ल दाग डारेव* | फेर अबो जुलुम  कराइया मन के मनसुभा नइ माड़िच |तूहँर आँखी डगडगा गे उँकर धरती खेती छीने बर नवा नवा पइँतरा खेलत हव| तब प्रतिक्रिया काबर नइ होही ?

जुग जुग ले तो तुहँर पाप ल ढो़वत रहीं का?  किसान जब उग्र होथे त अपन अनाज ले भरे गाड़ी बइला  ले फांद के सड़क म छोड़ जाथे| टेकटर , मोटल गाड़ी ले रोड जाम करदेथे|किसान संगठन अपन मांग बर आगे आथे| खाली आसवासन मिलथे जेकर ले पेट नइ भरे| अब भुर्री तापे के जमाना गय गैस हीटर के जमाना हे| टेक्टर , थ्रेशर, हार्वेस्टर के जुग हे| 

विज्ञान अउ तकनीकी जिनिस आगे हे त किसान ल भी हाइटेक सुविधा चाही| परमपरागत खेती किसानी ले निजात पावत आजादी के एक दशक बाद शुरु होय हरित क्रांती ले किसान के चेहरा गहूँ अउ धान के बाली संग हरियावत रहिस, फेर उँखर कमई ल आँखी लगगे|बड़े बड़े पूंजीपति मनसे मन नकली किसान बइठे असली मन के हिस्सा ल चट करत हें|कोन एखर हिसाब करइया हें , तभो प्रेम चंद के किसान अउ अब के किसान म जादा फरक नइ हे|

देश के सुतंतरता के लड़ाई किसान मन भी लड़ीन कतकोन शहीद होगे| नाम अता पता नइहे | आज भी अपन देश के भीतर उन ल अपने मनके बीच म लड़े बर परत हे लोकतंतर बर बड़ सरम के बात हे| अजादी के बाद नारा दे रहीन *जय जवान जय किसान|* आज काकर जयजयकार होवत हे| वो एक जमाना रहिस के किसान के हित बर जन आंदोलन होय गाँधी ,पटेल मन किसान बर सत्याग्रह करँय|कतकोन मनसे  किसान के हक अधिकार बर बलिदान हो जावँय नील आंदोलन , खेड़ा सत्याग्रह बारदोली सत्याग्र्ह, मोपला किसान विद्रोह अउ देश म कइ  ठन घटना,उदाहरण हे| देश म किसान नेता चौधरी चरण सिंह

 होइन|जेन किसान मन बर लड़ीन | छत्तीसगढ़ घलो एखर ले अछूता नइ रहे हे इहाँ घलो संत ,अउ क्रांतीकारी मनमकमान थाम्हे रहीन| अपन धरती के अस्मिता बर  ,किसान के हक बर बाबा गुरु घासी दास जी जइसे संत , बीर नारायन जइसे माटी सपूत,राजागुरु बालकदास जी ,गहीरा गुरु ,राजमोहनी देवी सुबरन कुवंर , गुंडाधूर,पंडित सुंदर लालशर्मा, ठाकुर प्यारे लाल सिंह, माधव राव सप्रे,बैरिस्टर छेदी लाल सोनी जइसे जननेता   मन किसान के पीरा ल समझे रहीन| के  कंडेल नहर सत्याग्रह, जंगल रुद्री नवागाँव सत्याग्रह ,भूमकाल,पोंडी महबोना, छुइखदान, राजनांदगाँव दुरूग मा किसान आंदोलन होय हे| अउ नइ जाने कतको आने आने नाव ले किसान मजदूर मन आंदोलन करे रहीन| अब के मनसे सुवारथ म बूड़े ,सहजोग करे ल छोड़ के किसान परिवार मन के तो सथरा नंगावत हें!  *राष्ट्रीय करण के नाम म उँकर लहू ल जोख बनके सोंख डरीन* |सासन सरकार मन ल अपन अहंकार ल छोड़ के आम किसान बर सोचना ही परही | नवा योजना बनाये ल परही|किसान मनखे  ल खेत मं ही काम करन दव उनला सड़क म उतरे बर संघर्ष करे बर मजबूर झन होवन दव| आज तो न जाने कतका वैज्ञानिक तकनीक आगे हे ,उबारँय उनला करजा ले|अउ सही नियत ले योजना के क्रियानवयन  करँय सिहासन म बइठे सिस्टम ईमानदारी ले काम करँय|

अब जरुरत हे , किसान ला संबल देके सही कीमत म वोकर अनाज ला खरीदे के | *सही समय म खाद बीज फसल बीमा अउ मंडी बाजार मुहइया कराये के| वोकर फसल बर आवाजाही ल मजबूत करेके|किसान के हित बर विधेयक लाये के* | *बांध- नहर ,कुंआँ ,नलकूप (ट्यूबवेल )ले सिंचाई बेवस्था ल दुरुस्त करे के| फसल चकरीकरण ल प्रोत्साहन देके|*फसल खरीदे बेंचे के अउ विपणन परणाली ल पारदर्शी होय ल परही|

तब मुखिया के पागा के मान रही|

नइते सबके अपन गंगा राम हे|अइसन सोंच ले भारत के गरिमा मान मरियादॎ बाढ़ सकत हे |

तब *जय जवान जय किसान जय विज्ञान अउ जय संविधान* हर सार्थक होही |


अश्वनी कोसरे कवर्धा 

कबीरधाम

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वीरेंद्र साहू9: *मोर नजर मा किसान आंदोलन*


हमर भारत कृषि प्रधान देश हरय। अर्थव्यवस्था के सुधार बर किसान के अर्थव्यवस्था के सुधार होना जरूरी हे। आजादी के समय तीन महत्वपूर्ण समस्या रीहिस पहिली गरीबी, अब गरीब कोन त सोझे बात हे कि किसान अउ मजदूर। दूसरा समस्या रीहिस छुआछुत अउ पिछड़ी जाति, आरक्षण के व्यवस्था होइस तभो अपेक्षा अनुरूप सुधार नइ होइस, आजादी के 70-75 साल बाद घलो जेंव के तेंव कहे जा सकत हे। तीसर समस्या हे किसानी, अब किसानी के समस्या कहे ले मतलब दलहन, तिलहन, सब्जी, फल अउ अनाज के उत्पादन मा आत्मनिर्भर नइ होना, किसानी बूता ला लाभ के बूता नइ बना पाना अउ व्यवसाय के रूप मा किसानी ला लोकप्रिय नइ बना पाना। हमर किसानी आजो मानसून के जुआ बने हावय, हानि के अधिकता किसान ल आत्महत्या बर मजबूर कर देथे। ये सबो समस्या के दुर्भाग्यवश राजनीतिकरण होगे हे। सत्ता ला कब्जियाय बर इन मन ला बउरना शुरू होगे हे अउ राजनीति करइया मन चाहथें घला कि ए समस्या मन बने राहँय।


लोकतंत्र ला जनता के जनता बर जनता डहर ले शासन कहिथें। फेर ए शासन मा गरीब, अपेक्षित, परे डरे मनखे मन के कोनों हिस्सेदारी नइ राहय। अउ रहिथे घलो तो पूंजीपति मन के पूंजी अउ गरीब मन के मजबूरी लोकतंत्र ला कुरूप कर देथे। लोक लुभावन वादा जेला प्रलोभन घलो कहिथें निर्णय ला बदल देथे। किसानी, गरीबी अउ अशिक्षा एके घर के कहानी हे। इनखर निदान जरूरी हे चाहे कहीं करना पड़े।


हर मनखे अउ जीव मन के एक सामान्य प्रवृत्ति होथे के दर्द ला एक सीमा तक ही सह पाथें। दर्द ज्यादा होथे तौ चिल्लाथें, छटपटाथें अउ वो दर्द ला दूरिहाय बर नाना उदीम करथें। आज किसान आंदोलन घलो संभावित खतरा ल आकब करके करे जाने वाले कराहना हरय। कुछेक बरस पहिली सरकार हा सरकारी मूल्य मा धान खरीदी के शुरुआत करीस अउ एक सम्मान जनक मूल्य किसान ला मिलना शुरू होइस, यहूँ व्यवस्था मा संशोधन होवत गिस अउ पेचीदा बनत गिस। रेगहा बोवइया किसान, मजदूरी ले अर्जित फसल अउ पौनी पसारी मन बर कोनों नियम नइ हे। दूसरइया उत्पादन के अनुपात मा कम खरीदी ए समस्या बरकरार हे। तभो सरकारी मूल्य मा खरीदी एक जमे जुमाय व्यवस्था हे। अब नवा कानून मा किसान बर बाजार तो खुलत हे, फेर न्यूनतम समर्थन मूल्य के कोनो गारंटी नइ हे। एम एस पी के गारंटी नइ हे मतलब व्यापारी मन के मनमानी चलही अउ किसान के स्थिति बदतर ले बदतर हो जाही। एक बार कानून लागू होय के बाद जनता असहाय हो जाथे तब समय रहते एमा संशोधन बर अर्जी करना जरूरी हे। ए आंदोलन के समर्थन हे। किसान आंदोलन के उद्देश्य हे न्यूनतम समर्थन मूल्य सरकार तय कर दय अउ येखर अवहेलना करइया बर कठोर कानून बना दय ताकि हर किसान ला ओखर उत्पाद के ओखर खून-पसीना के वाजिब मूल्य मिल सकय। दूसरइया बात किसान के साथ अन्याय होय के स्थिति मा अपील बर कोर्ट मा व्यवस्था रहय। किसानी बूता ले बाँचे अनुपयोगी चीज ला नष्ट करना या आग लगाना ला दण्डनीय अपराध के श्रेणी ले हटाय जाना चाही या कानून मा छोटे किसान के आर्थिक स्थिति के अनुरूप संशोधन होना चाही। ऋषि अउ कृषि के देश हे भारत। राजनीति ले ऊपर उठ के देश के अर्थव्यवस्था ला उठाना परही, किसान बर जायज निर्णय लेना परही। कृषि के उन्नति ले किसान के उन्नति होही अउ किसान के उन्नति ले देश के उन्नति होही। अवइया कृषि कानून के संबंध मा संसद मा बिना कोनों ज्यादा चर्चा के बहुमत के आधार मा मोहर लग गे हे तौ प्रभावित वर्ग ला स्पष्टीकरण देना सरकार के जवाबदारी हे, ए कानून के नफा नुकसान ला फोरियाके बताना जरूरी हे। भ्रामक स्थिति के निराकरण जरूरी हे।


विरेन्द्र कुमार साहू "प्रवीर"

छंदसाधक सत्र - 9, "छंद के छ"

ग्राम - बोड़राबाँधा (राजिम)

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*किसान आन्दोलन मोर नजर म*

         जब कभू कोनो कानून बनथे या ओकर प्रस्ताव आथे, तब विरोध होना स्वाभाविक हो जथे। कानून लाय के बुता सरकार करथे अउ विरोध प्रदर्शन विपक्ष करथे, काबर कि विपक्ष के मूल बुता आज विरोध करना ही रही गे हवय। विपक्ष के मायने ल आज राजनीतिक पार्टी मन आत्मसात कर ले हवँय। विपक्ष म बइठे के जनादेश मिले हे, मतलब सरकार के हर फैसला अउ कानून के विरोध करे के जन्मसिद्ध अधिकार। चाहे सरकार म कोनो पार्टी राहय। सरकार के हर बुता म अड़ंगा डाले बिना जनता के बीच अपन छाप कइसे पड़ही। एक सशक्त विपक्ष के रहे ले सरकार घलो दबाव म रहिथे। सशक्त विपक्ष रहे म सरकार घलो कोनो फैसला ले या कानून बनाय के पहिली दस घउँ सोचथे। सरकार मनमानी झन कर सकय एकर बर घला जरूरी हवय कि सरकार बहुतेच जादा बहुमत ले झन बने। थोर बहुत सरकार ल डर भाव रहना चाही। आज इही बात दिखत हे, विपक्ष कमजोरहा हे।

        जब विपक्ष अउ सत्ता पक्ष डाहर ले जनता के आशा धूमिल होथे, तब कोनो-न-कोनो चिंगारी नवा रस्ता दिखाथे। एक रस्ता बंद होथे त दूसर रस्ता खुलथे घला। ए रस्ता संग्राम अउ आन्दोलन के होथे। अइसने किसान आन्दोलन हरे। किसान आन्दोलन सरकार के कृषि कानून के विरोध म चलत अठुरिया होगे। कोनो सुलह-समझौता के रस्ता के आरो नइ मिलत हे। 

       ए आन्दोलन म का निमगा किसानेच मन ह हावय कि किसान मन ल चुलगिया के कोनो अपन रोटी सेंकत हे, ए अपन जगह हवय। जउन ढंग ले बात आवत हें, किसान मन कोति ले चर्चा बर जे बिंदु सौंपे गे हवँय ओ बिंदु मन एला निमगा किसान आन्दोलन कहे के लाइक नइ राखे हे। हो सकत हे किसान आन्दोलन बीतत समय के संग दिशा भटक गे होही। फेर किसान आन्दोलन के जेन शुरुआत होय हवय ओकर दूरगामी प्रभाव तो होबे करही। ए आन्दोलन ले ए बात तो पक्का होगे हे कि किसान मन अपन हित-अहित समझे लगिन हे। अपन अधिकार बर एक जुट होय लगे हे। अब राजनेता मन ल सचेत रहे के जरूरत हे कि अब किसान जाग गे हे। उन ल सब्सिडी के नाँव वाला झुनझुना धरा के बहलाय के दिन बीत गे हे। करजा माफी, बिजली बिल म छूट अउ आने-आने घोषणा समाचार म रहिथे आने अउ हकीकत म आने। एकर सच्चाई अब किसान मन समझ चुकिन। अवइया समय म आन्दोलन अइसे घलो हो सकत हे, जब किसान मन राजनेता मन ल समर्थन बर अपन मंच म आवन नइ दिही। काबर कि किसान सिरिफ किसान रही। राजनीति ले दूर। काबर कि ए आन्दोलन एक राज ले निकल के पूरा देश के किसान-आन्दोलन बन जही।

      कतको आन्दोलन चले हे,  आगू चलही घलो। जग म हक के लड़ई शासन के विरुद्ध होथे तब आन्दोलन बन जथे। नवा कृषि कानून म किसान के हक मरे के अंदेशा हावय। सरकार के नीयत म खोट लागत हे। नवा कृषि कानून के मुताबिक तीन ठन प्रमुख बात आवत हें, किसान अपन फसल ल खुला मंडी म बेंच सकत हे। न्यूनतम समर्थन मूल्य म खरीदी बंद नइ होय। फेर किसान ल अपन सबो प्रकार के उत्पाद के न्यूनतम समर्थन मूल्य कब मिल पाय हे? खुला बाजार म का भाव मिलही? ए तय नि हे। बाजार म न्यूनतम समर्थन मूल्य के आज घलो गारंटी नइ दिखत हे या सरकार ए बात के विश्वास किसान मन नइ दिला पावत हे। *कतका विडम्बना ए कंपनी वाले मन कारखाना म बने अपन उत्पाद के मूल्य खुदे तय करथे अउ किसान ल अपन फसल औने-पौने दाम म बेचे बर मजबूर होना पड़थे।*

       दूसर नियम पूँजीपति अउ बड़े घराना मन ल कृषि कोति आकर्षित करे के कानूनी योजना हवय। एमा डर हवय कि पूँजीपति हमेशा अपन लाभ के उदीम करही। अइसन करे ले थोर बहुत भूमि वाला किसान मन पूँजीपति के कब शिकार हो जही, एकर ठिकाना नइ रही। तब किसान के स्थिति *दूधो गय अउ दुहनो गय*, सरीख हो जही। 

      तीसर भंडारण नियम। ए नियम पूँजीपति अउ व्यापारी मन ल जादा ले जादा लाभ पहुँचाय के दिखथे। व्यापारी जब चाहे जतका चाहे भंडार करके राखही अउ जउन दाम म बेचना चाही चउन म बेंचही। अइसन म कालाबाजारी अउ मुनाफाखोरी बाढ़े के पूरा पूरा चांस हवय। कतको कृषि उत्पाद ल आवश्यक सेवा वस्तु के सूची ले अलग करे ले घलो स्थिति बिगड़ सकत हे।

        एकर सीधा असर किसान ल फायदा होही कि घाटा? अभी एकर सही अनुमान लगाना मुश्किल हे। हाँ अतका तो जरूर हे, ए कानून व्यापारी अउ पूँजीपति मन बर फायदेमंद हवय। अइसन म किसान आन्दोलन किसान के हित म हवय। 


*पोखन लाल जायसवाल*

पलारी बलौदाबाजार

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चोवाराम वर्मा  बादल: *अविश्वास ले उपजे किसान आंदोलन*


कृषि कार्य म सबले उन्नत हमर पंजाब अउ हरियाणा के अन्नदाता किसान मन सड़क म उतर के  केंद्र सरकार ल अड़ियल,किसान विरोधी काहत वोकर तीन ठन नवाँ बनाये कानून के विरोध करत हें। वोमन9 दिन होगे दिल्ली ल घेरे बइठे हें। देश के अन्य राज्य के किसान मन ए आंदोलन के समर्थन म खड़े हें।अब तो बहुत झन मन केंद्र सरकार के विरोध म अपन सरकारी पाये पुरस्कार ल लहुटाये के घोषणा करत हें। कोनो कोनो मन ए कानून मन के संसद म फेर बहस के माँग करत हें। कहे के मतलब साफ हे कि राजनैतिक रंग चढ़ाये के तको कोशिश होवत हे फेर धन्य हे ये किसान आंदोलन के अगुवा मन ल जेन मन सावधान होके आंदोलन ल राजनीति के अखाड़ा बने ले बँचाये हें।

   *विवाद के जड़*---ये आंदोलन के जड़ म केंद्र सरकार के बनाये तीन ठन नवा कानून हें। ये कानून ल जानना जरूरी हें जेन हें---

1 कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य विधेयक 2020---एखर अनुसार किसान ह अपन उपज ल सरकारी सहकारी समिति/मंडी के अलावा अपन अनुसार  कहूँ भी बेंच सकथे।

राज्य सरकार ह एमा टेक्स नइ लगा सकही।

2 कृषक कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार विधेयक 2020---कृषक ह स्वयं अपन उपज के कीमत तय करही अउ ककरो से भी करार करके वोला बेंच सकही। कोनो बंधन नइ राहय।

3 आवश्यक वस्तु विधेयक (1955  ) संशोधित विधेयक-- एखर अनुसार व्यापारी मन बर अनाज, दाल ,तिलहन,खाद्य तेल ,प्याज अउ आलू जइसे वस्तु मन के भंडारण के लिमीट (सीमा) ल खतम कर दे गेहे ।एखर मतलब हे ए समान मन ल व्यापारी मन अपन गोदाम म जतका चाही ततका भरके रख सकथें

*विधेयक के समर्मन म सरकार के तर्क*--ये नवा विधेयक मन ल केंद्र सरकार ह किसान मन बर वरदान हे काहत हे।वोकर कहना हे कि ए कानून कृषि क्षेत्र म अवइया समे  मा अबड़े सुधार करही अउ किसान मन के आय ल दूगुना कर देही। किसान अपन फसल के रेट तय करके कहूँ भी जिहाँ वोला सबले जादा दाम मिलही उहाँ बेंच सकथे। किसान ल कोनो टेक्स देये ल नइ परही। किसान अउ व्यापारी के बीच कोनो दलाल नइ रइही त उपज के पूरा दाम मिलही। एक देश अउ एक बजार के विचार फलीभूत होही। किसान अपन बेंचे उपज के  पइसा ल तीन दिन म पा जही। कोनो व्यापारी गड़बड़ी करही त किसान कानूनी कार्यवाही कर सकही।

  सरकार के कहना हे कि सरकारी सोसाइटी /मंडी बंद नइ होवय। किसान उहाँ न्यूनतम समर्थन मूल्य म अपन फसल बेंच सकही।

   कुल मिलाके सरकार ह एला अबड़ेच किसान हितैषी कानून बतावत हे।


*किसान मन के तर्क*--- किसान मन ये तीनों कानून ल रद्द करे के माँग करत हें।उँकर कहना हे कि ये काला कानून मन हमर जिंदगी ल बरबाद कर देंहीं। ये कानून मन बड़े बड़े व्यापारी अउ कारपरेट घराना मन ल लाभ पहुँचाये बर बनाये गेहे काबर कि ओमन कम रेट म हमर उपज ल खरीद के कानून के आड़ म जतका चाही ततका भंडार करके हमीं ल बाद म औने पौने दाम म बेंच के शोषण करहीं। येमन  पइसा देये बर झुलाहीं अउ पइसा के जोर  म किसान ल कानूनी उलझन म फँसाके मरे बर मजबूर कर देहीं।

     गरीब किसान ह अपन उपज ल नजदीक के सोसाइटी/मंडी म जाके कइसनो करके बेंच डरय अब येमन बंद हो जही त का वो सैकड़ो-हजारों किलोमीटर जाके अपन उपज ल कइसे बेंच पाही? जतका फायदा नहीं वोकर ले जादा भाड़ा खर्चा आही। कुल मिलाके व्यापारी अउ दलाल के हाथ म पड़के पिसाते रइहीं।


*किसान मन के माँग*---

किसान मन के मुख्य माँग हे कि ये कानून म संशोधन करके न्यूनतम समर्थन मूल्य म खरीदे के प्रावधान करे जाय संगे संग कोनो व्यापारी किसान ल धोखा दय त वो पइसा ल देये के सरकार ह गारंटी लेवव।

न्यूनतम समर्थन मूल्य म खरीदे के नियम वर्तमान जइसे लागू राहय।

        *निष्कर्ष*--- कुल मिलाके देखे जाय त अन्नदाता ,भुइँया के भगवान किसान मन के जम्मों माँग जायज हे। अगर सरकार के नियत साफ हे त वोह न्यूनतम समर्थन मूल्य म खरीदे के प्रावधान काबर नइ करे हे? किसान के बेचें उपज के पइसा के गारंटी काबर नइ लेये हे।

 जेन समान मन हम सब के दैनिक उपयोग के हे जइसे आलू ,प्याज,अनाज, दाल, तेल आदि मन ल लिमिट बंधन ले मुक्त काबर करे हे?ये तो सचमुच म बड़े-बड़े व्यापारी मन ल ही फायदा पहुँचाये के जुगत मढ़ाये गेहे ।ए व्यापारी मन दू-चार रुपिया म किसान ले खरीद के सौ-दू सौ म उही किसान ल बेंच के शोषण करहीं।

  रहिच बात अपन उपज के मूल्य तय करे के ये बने विचार हे फेर सोंचे के बात येहे कि- का देश के असंगठित छोटे छोटे बनिहार किसम के किसान अइसे कर सकथे?

                   ये आंदोलन जल्दी ले जल्दी समाप्त होना चाही काबर कि दिल्ली के आम जनता ल अबड़ तकलीफ होवत हे ।सब रसता मन बंद होवत हे जेकर जिम्मेदार केंद्र सरकार हाबय। वोला किसान मन उपर अविश्वास ल त्याग के ,किसान मन के जम्मों माँग जेन हकीकत म जायज हे मान के किसान आंदोलन ल समाप्त करवाये के सुग्घर पहल करना चाही।



चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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