*आदर के आँसू*-चोवाराम वर्मा बादल
( लघुकथा)
रमेश के शादी असो डेड़ महिना पहिली पढ़े लिखे सुशील कन्या अनामिका ले कोरोना संकट के सेती सुग्घर सादगी पूर्वक होइस हे। भले गिने चुने सगा सोदर आये रहिन हे फेर आनंद,उछाह म कोनो कमी नइ रहिस हे।
अनामिका के पिताजी ह अपन बेटी ल घर गृहस्थी के समान संग दमाद ल मोटर साइकिल तको हँसी खुशी देये हे।
रमेश ह वो नवा मोटर साइकिल ल दूये चार दिन चलाइस तहाँ ले चुपचाप खड़ा कर देहे। पहिली के घर मा जेन होंडा के मोटर साइकिल हे तेने ल रात दिन जोंजत हे। वोकर बाबू दयाराम अकचकाये हे कि लइका ह नवा गाड़ी ल काबर नइ चलावत हे। आज पूछबे करिस--
कस बेटा तैं तोर नवा फटफटी ल काबर नइ चलावस जी? जेमा मैं एती वोती जातेंव तेने ल जोंजत रहिथस ।
वो गाड़ी ठीक नइये बाबू जी। रमेश कहिस।
आँय ! काय कहिथस जी। नवा गाड़ी ठीक नइये। का खराबी हे वोमा ?दयाराम पूछिस।
सबसे पहिली खराबी तो ये हे कि वोमा आटो स्टार्ट नइये। दूसर म वो ह उँचाई म मोर बर छोटे हे।दस -बीस किलोमीटर चलाबे ततके म गोड़ पिराये ल धर लेथे। ससुर जी दिस त बने सोच बिचार के दे रहितिस। हमन माँगे थोरे हन। रमेश ह मुँह बिचकावत कहिस।
अरे बेटा वोइसे नइ काहय ग ।जेन हे तेन ,सब ठीक हे। दान के बछिया के दाँत नइ देखे जाय जी। दयाराम समझावत कहिस।
ठीक हे बाबू वोला तैं चलाये कर। मैं तो अपन पुराना आटो स्टार्ट वाला गाड़ी ल चलाहूँ। रमेश कहिस।
नवा गाड़ी म किक मारत मोर गोड़ लचक जही बेटा।
त वोला बेंच दे।रमेश झट ले कहिस।
नहीं बेटा बेचना ठीक नइ होही। बदल के नवा ला देहूँ त चलाबे न?दयाराम पूछिस।
रमेश कहिस-वाह तैं काबर बदलबे।वो काम तो ससुर जी ला करना चाही।
हव बेटा ससुर ह बदल देही काहत दयाराम ह सबो ल खड़े- खड़े सुनत नवेलिन बहू अनामिका कोती देखिस त वो ह घबराये हिरणी कस दिखिस अउ आँखी ह डबडबाये दिखिस।
बात आये गये होगे।थोकुन पाछू दयाराम ह नवा गाड़ी ल धरके निकलिस अउ साँझ के आने आटो स्टार्ट वाले गाड़ी ल अँगना म खड़ा करके चाबी ल रमेश ल देवत कहिस- अब तैं इही गाड़ी ल चलाबे बेटा।पुराना गाड़ी ल मैं चलाहूँ।
वाहहहह जोरदार गाड़ी हे।ससुर जी बदल दिस का बाबूजी ?रमेश ह हाँसत पूछिस।
हव बेटा। फेर एला बेटा के नहीं ,बहू के ससुर ह बदल के लाये हे। बात तो एके हे न-- ससुरे ह बदले हे-- कुलकत दयाराम कहिस अउ तीर म खड़े नवेलिन बहू कोती देखिस। वो शांत दिखिस।वोकर आँखी ससुर बर आदर म डबडबाये राहय।
चोवा राम 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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