Thursday 17 December 2020

मँय काबर लिखथँव ?-नीलम जायसवाल

 *मँय काबर लिखथँव ?-नीलम जायसवाल

        ये सवाल के जवाब सब कोई के अपन अपन अउ अलग अलग हो सकथे। तभो ले मोला लगथे,एक कारण हर जम्मो लेखक, कवि मन बर समान होही। अउ ओ हरे - ईश्वरीय कृपा, या प्रकृत प्रदत्त गुण। काबर कि समाज मं बहुत मन पढ़े-लिखे रथें, मगर सब झन नइ लिखँय, या रचना करे के उदिम नइ करँय।

    एखर अलावा लिखइया या साहित्यकार मन के अपन स्वार्थ या परमार्थ के भावना घलव लिखे के कारण होथे। 

    मैं पहिली लिखेंव अक्षर सीखे बर,माँ हर इमला बोल के लिखावय लेखन के त्रुटि दूर करे बर,स्कूल म लिखेंव, कापी पूरा करे बर, परीक्षा म लिखत रहेंव पास होय बर। तब नइ जानत रहेंव,कि एक दिन लेखन करें मं सुख मिलही,आत्म शांति के अनुभूति होही। बचपन म बड़े भाई ल चिढ़ाय बर हँसी हँसी मं एक कविता लिखेंव संभवतः वो मोर पहिली कविता रहिस।उम्र रहिस दस साल। ओखर बाद दू-चार कविता, अपन विचार अउ भावना ल प्रभावी ढ़ंग ले बताय बर लिखेंव। डायरी लेखन, पिताजी ल देख के शुरू करेंव,तब खास खास बात मन के दिन तारीख याद रखे बर बने लागय। घर म पढ़ें के माहौल रहिस त पढ़ँव।फेर लिखे बर ज्यादा धियान नइ देत रहेंव।ओ समय मोबाइल नइ रहिस, त रिश्तेदार मन जइसे कि कका, ममा, बबा अउ नानी मन ला चिट्ठी लिखत रहेंव,ओखर मन के हाल जानें बर अउ आशीर्वाद पाए बर। फेर बिहाव होगे, मइके ससुरार दुनो भिलाई च मं होय के बावजूद छै छै महीना मइके जाय बर तरस जाँव, तब शुरू होइस अपन मन के गोठ ला फिर से डायरी म लिखे के उदिम। अपन दुःख ल कम करे बर। एकाद घाँव दू चार लाइन कविता भी हो जाय। लिखे के उद्देश्य खाली अपन दिल के बोझ हल्का करना रहीसे। वहू ल छुप छुपा के लिखँव,अउ कोनो ल नि देखाँव।समय बीतत गे जिनगी म बदलाव आवत गे। बच्चा मन थोड़ा बड़े होगे, तब कविता लिखे के लहर चलिस। हिंदी के संगे संग छत्तीसगढ़ी म भी अलवा जलवा कविता लिखे लग गेंव।लिखे के उद्देश्य सिर्फ अपने भावना ल कागज म उतार के ओला सहेजना रहिस, छपना छपाना कभी नहीं।कभी कभी स्थानीय मंच म काव्य पाठ के मौका मिलिस,जिहाँ दर्शक-श्रोता गण के ताली मन उत्साह बढ़ाना की नाम कमाए के लालच चलो बाढ़िस।धन के लालसा तब भी नइ रहिस।

     एंड्रॉयड मोबाइल हाथ म आइस त साहित्यिक ग्रुप मन से जुड़ना होगे।कई ठन कविता साझा संकलन म छपिस घलव। पत्र-पत्रिका म घलव कभी कभार मोर दूं चार कविता छपिस।मगर मोर एको ठन पुस्तक नइ छपे हे। न छपाय के कोनो जल्दी हे। हाँ साहित्यकार मन संग जान पहिचान बाढ़िस जेन खुशी देथे। फेर छंद परिवार के सदस्यता मिलिस छंद के बिधिवत ज्ञान सीखे के साध पुरिस।संगे संग छत्तीसगढ़ी कविता रचे के बढ़िया मौका मिलिस। ये मोर साहित्यिक जीवन के स्वर्णिम काल रहिस। जब मैं नियमित रूप से रोजिना कविता गढ़ौं, छत्तीसगढ़ी के संगे संग हिंदी के घलौ रचना हो जावय। ये समय मँय छत्तीसगढ़ी साहित्य के भंडार भरे म योगदान देय के उद्देश्य ले लिखत रहेंव। अउ संग म अपन ज्ञान ल परिष्कृत करे के कारण घलव हवै।

    वर्तमान म पति के तबियत अचानक खराब होए के कारण, साहित्य समाज ले थोकिन दूरी बन गे हवय।ओखर तबियत,घर करोबार सबके जिम्मेदारी मोर उपर आगे हे। अब त समय च  बहुत मुस्किल मं मिलथे। अब कभी कभार अगर थोड़ा बहुत लिख लेथँव।तो ये उद्देश्य रहिथे कि मोरपर सरस्वती दाई के किरपा बने रहय,मोर संगवारी मन साहित्यकार मन मोला भुला झन जाँवँय।

  अइसना करके, मोर बर समय समय म लिखे के अलग अलग उद्देश्य रहिस।  तब ले लेखन से मोला जेन संतुष्टि की सुख मिलथे।वो अउ कोनों काम ले नइ मिलय।मोर पर ईश्वर के कृपा सदा बने रहय मँय ज़िन्दगी भर लिखत रहँव।कलम कभू झन छूटय।इही कामना हवै।

नीलम जायसवाल, भिलाई।

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