Friday 11 December 2020

छत्तीसगढ़ी जन-जन के भाषा कइसे बनही*:एक विचार

 *छत्तीसगढ़ी जन-जन के भाषा कइसे बनही*:एक विचार

      छत्तीसगढ़ ल राज बने 20 बछर होगे हवय। हर राज के अपन भाखा-बोली होथे। जेकर ले राज म आपसी बातचीत, गोठबात अउ आचार-विचार चलथे। छत्तीसगढ़ बने के पहिली अउ अब देखन त छत्तीसगढ़ी के बोलइया राज म बाढ़त जनसंख्या के हिसाब ले बाढ़े के बदला घटते जात हे, जउन चिंता के विषय आय। आज नवा पीढ़ी मेर दाई-ददा मन छत्तीसगढ़ी म गोठियाय बर कनवावत हवँय। कस्बानुमा गाँव अउ शहर म अब नइ चाहँय कि हमर लइका छत्तीसगढ़ी सीखय अउ पढ़य। अपने आप म हीन भावना ल पनपा डरे हें। नवा पीढ़ी मेर छत्तीसगढ़ी के उपेक्षा करथें। छत्तीसगढ़ी के प्रति हीन भावना पैदा करे के उदीम घलो करथें। कारण कुछु हो। इही सियान बुधियार मन बात-बात म लइका ल संस्कार अउ परम्परा नइ जानव के दोष घलो मढ़त रहिथें। उँखर ले अपन मान-सम्मान चाहथें। भुला जथें कि अपन ले जोर के राखे म भाषा के बड़ महत्तम हे। भाषा हर संस्कार अउ परम्परा ल आगू बढ़ाथे। संस्कार अउ परम्परा बताए-सिखाए नइ जाय। देख के अपनाए जाथे। संस्कार अउ परम्परा आचार-व्यवहार के बात आय। जेन ल लइका दाई-ददा ले पाथे। कहे घलो गे हे- जइसन-जइसन घर-दुआर, तइसन-तइसन फइरिका, अउ जइसन-जइसन दाई-ददा, तइसन-तइसन लइका। धियान रखे लगही कि धर-बाँध के संस्कार नइ दिए जा सकय। हम संस्कारित रहिबो त हमर लइका संस्कारित रही। हमर परम्परा ल आगू बढ़ाय म लइका मन के सहयोग का रही, हमरे ऊपर निर्भर करही।

       एक समय रहिन जब गाँव-गाँव म लील्ला मंडली, रामायण पार्टी, भजन-मंडली अउ साँस्कृतिक पार्टी के चलन ले छत्तीसगढ़ी संस्कृति अउ भाषा सजोर होवत रहिस। लोकसंगीत अउ लोकपरम्परा विकास के आड़ म नँदावत गिस। राज बने के बाद पइसा कमाए के चक्कर म बने फूहड़ गीत-संगीत के एल्बम मन ले लोगन के छत्तीसगढ़ी ले मोह भंग होइस। आज छत्तीसगढ़ी ल फेर जन-जन के भाषा बनाए के जरूरत आ पड़े हे। *बखरी के तुमा नार बरोबर मन झूमे रे...., कोन सुर बाजँव मयँ तो घुनही बँसुरिया....,मोर संग चलव रे मोर संग चलव न....* ए गीत आज घलो मनखे के जुबान म हे। फेर विकास के रस्ता म कहूँ भटके ले कहे बर पड़त हवय *पता ले जा रे पता ले जा गाड़ी वाला.....।* हम ल अपन गँवई-गाँव अउ चिन्हारी ल सँजो के राखे के बखत आय हे।

       कारखाना मन के खुले ले जइसे संबंधित गाँव म

पर्यावरण संरक्षण के उपाय करे जाथे, वइसने छत्तीसगढ़ी संस्कृति अउ परम्परा के संरक्षण बर कारखाना प्रबंधन डहर ले संस्कृति विभाग बर कार्ययोजना साल के साल बने। कारखाना स्थापित करे के पहिली भूमि अधिग्रहण के शर्त म ए बात के निर्देश खच्चित रहना चाही। जेकर ले छत्तीसगढ़ी भाषा अउ संस्कृति बर समर्पित मनखे ल रोजगार घला मिल सकय।

       छत्तीसगढ़ के दू करोड़ आगर मनखे के महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी आय। छत्तीसगढ़ी ल राजभाषा के दर्जा मिले १३ बछर होगे फेर एकर हाल अभी घलो चिंता करे के लाइक हे। छत्तीसगढ़ी ल स्कूली पाठ्यक्रम म स्थान अइसे दे हवय कि अपन पादा बोचका सकँय। छत्तीसगढ़ी ल प्राथमिक कक्षा म माध्यम बना के पढ़ाए ले नींव मजबूत होही। बालमन माटी के लोंदा होथे, ओला जइसे बनाबे वइसे रूप पाथे। बाल साहित्य के कमी नइ हे, अउ सबे विषय के निश्चित पाठ्यक्रम छत्तीसगढ़ी म मिले ले लइका के सर्वांगीण विकास सही ढंग ले होही। काबर कि महतारी भाखा म शिक्षण के सलाह मनोवैज्ञानिक मन भी देथे। शासन गणित विज्ञान सामाजिक विज्ञान के पाठ्यक्रम के अनुवाद करा के अइसन कारज ल पूरा कर सकथे। उन मन छत्तीसगढ़ी गीत-संगीत के सहारा ले जब चुनाव जीतथें। त ए बुता काबर नी करँय। ए बात के उन ल एहसास कराए के जरूरत हे। ए बुता ल छत्तीसगढ़ी साहित्य, कला अउ संस्कृति ले जुरे बुधियार मन ल अपन हाथ म लेबर परही।

      आज छत्तीसगढ़ी ल उबारे अउ जन-जन के भाषा बनाए म सबले जादा भूमिका साहित्यकार, कलाकार अउ संस्कृति प्रेमी मन ल निभाए ल परही। सुरता करन छत्तीसगढ़ राज बने म इँखर कतका योगदान रहिन। आज इहाँ के संस्कृति अउ परम्परा ल बचाय के भूमिका मोला निभाना परही, इही मानके चलन।

         आज नवरात्र अउ आने-आने कार्यक्रम मन म दूसर राज के लोक-संगीत अउ नृत्य(गरबा, भाँगड़ा, डाँडिया...) ल अपनावत देखे जा सकत हे। बने बात आय कि भारतीय संस्कृति के दर्शन छत्तीसगढ़ म घलो देखे मिलत हे, फेर छत्तीसगढ़ के लोकसंस्कृति अउ परम्परा मन के जउन उपेक्षा दिखथे, वो गुने के लइक हे। *परोसी दरी साँप नइ मरय* सुरता राखन।

           समाचार पेपर अउ रेडियो-टीवी ले जन-जन के जुराव हे। आने राज मन म जइसन उहाँ के संस्कृति अउ भाखा-बोली के संवर्धन अउ संरक्षण देखे म मिलथे, वइसने इहों ए माध्यम मन ल ए बुता के जिम्मेदारी सौंपे के बुता सरकार ल ईमानदारी ले करना चाही। संगेसंग ए माध्यम मन भी अपन तरफ ले कोशिश करे के चाही। अइसे कोनो-कोनो समाचार पत्र मन अपन तरफ ले ए कोशिश करतेच हवँय। देशबंधु, हरिभूमि, पत्रिका, अमृत-संदेश प्रमुख हवँय।  साहित्यिक पत्रिका मन भी ए दिशा म सरलग योगदान देतेच हवय। बस जरूरत हे ए मन भी शासन कोति ले बरोबर प्रोत्साहन मिलय।        

         आज के समय सोशल मीडिया के हवय। सोशल मीडिया म कोनो भी खबर जंगल म लगे आगी सरीख तुरते फइल जथे। अइसन म छत्तीसगढ़ी ल जन-जन के भाषा बनाए बर एकर उपयोग जतका जादा हो सकय, करे के जरूरत हे। भाषा के विकास बर दूसर भाषा के शब्द ल समोए/अपनाए के घलो जरूरत हे। तभे भंडार बढ़ही। सोशल मीडिया के उपयोग सावचेत होके करन। ए बात के धियान राखन कि बिन मुड़ी-कान के कोनो भी बात झन परोसे जावय। कउआँ लेगे कान कहे म कउआँ के पीछू भागना नइ हे।


*पोखन लाल जायसवाल*

पलारी बलौदाबाजार

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