" मन भइगे हरहा ..मोर बस नइये ....। "
आज 25 दिसम्बर आय ...बड़े दिन कहिथन , लइकाई ले ईसाई भाई बहिनी मन के उमंग , उछाह ल देखत आवत हंव । फेर एसों ओ मज़ा नई आइस ।
स्वतंत्रता संग्राम के एक झन पुरोधा , भारतीय शिक्षा के मार्गदर्शक पंडित मदन मोहन मालवीय अउ काल के कपाल मं अपन निष्पक्ष राजनीति अउ साहित्य के टीका लगइया अटल बिहारी बाजपेयी के जनमदिन आय ।
तुलसी जयंती अउ गीता जयंती घलाय तो आजे च आय ..फेर मोर मन तो हड़ताल कर देहे हे । हरके बरजे ल मानते नइये । अभी रेडियो मं अटल जी के प्रसिद्ध कविता " गीत नया गाता हूं .." सुनेंव ...सब ठीक हे तभो मोर मन तो हरहा हो गए हे । घेरी बेरी ..किसान आंदोलन के खबर जाने , सुने बर बगटूट भागत हे ।
किसान आंदोलन के सफलता हर ही हमर देश मं लोकतंत्र ल मजबूत करही । कृषि प्रधान देश के आर्थिक , सांस्कृतिक , सामाजिक व्यवस्था ल बनाए राखही । हमर देश के बाढ़त जनसंख्या के पेट भरे के साधन धरा रपटी मं अपनाए उद्योग प्रधानता हर नइ करे सकय । किसानी हर अगर पूंजीवादी धनी मानी मन के हांथ मं चल दिही त किसान काय करही ?
सिरतो सिरतो मोर मन हर हरहा हो गए हे ।
सरला शर्मा
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