हमर जिनगी म सिनेमा के प्रभाव-सुधा शर्मा
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चलचित्र नाचा गम्मत के बाद अइस। नाचाा गम्मत म मनोरंजन के अलावा एक सीख भी राहय।कथा ,कहिनी लोककथा म समय बितावत मनखे बर मुक्का चलचित्र बहुत ही मजेदार रहिस हे। हाव भाव अउ अभिनय के साथ एक झन कहानी सुनावय अउ सफेद पर्दा म चलचित्र चलय। कई बार तो मोहल्ला म घलो गांधी जी के जीवन ऊपर सिनेमा देखे रहेन।
बोलत चलचित्र अइस त "अलीबाबा चालीस चोर" देखेन बहुत मजा अइस। हमर ऊर प्रभाव बताना हे त सबले मजेदार बात बतावत हंव। हा हा हा। लइका रहेंव त कलाकार मन खाना खाये अउ चाय पीयंय त मोर रोना शुरु हो जाये के मोला भी उही चीज होना अउ मैं र्दा डआहर भागे के कोशिश करंव। मोर मां बहुत परेशान हो जाये।
हमर समय म चूड़ी पहिरे के ज्या्दा प्रचलन रहिस हे। चलचित्र के नांव सुरता नइ आवत हे फेर दूनों हाथ म एक एक दर्जन चूड़ी पहिर के स्कूल जावंव। अंगुठी भी तरह तरह के पहिरन।
बॉबी सिनेमा के अइसे प्रभाव परिस के मैं बेलबॉटम ही पहिरत रहेंव। सबसे बढ़िया बात खादी के कपड़ा ले के स्वयं सीलत रहेंव।फुग्गा बांह के कुर्ता, लम्बा बाह के कुर्ता अउ मिनी स्कर्ट। मोर ऊपर पहनावा के प्रभाव बहुत परीस।
नृतँय के शौक रहिस हे त कत्थक सीखेंव। जल बिन मछली नृत्य बिन बिजली" के नृत्य के नकल करंव। वहीदा रहमान के फैन रहेंव त ओखर करे नृत्य, वैजंती माला, हेमामालिनी के बहुत नकल करंव।
उम्र के साथ साथ चलचित्र के कहानी के समझ विकसित होईस। जेन ल जनजीवन ले जोड़ के देखना शुरु करेंव। तब पता चलिस के ये सिर्फ सिनेमा नोहय। समाज से लेय गे विषय आये या फेर काल्पनिक कहानी आये। बलात्कार सरीख घटना, बैंक डकैती, खून, लूटमार ये सब ल फिल्म देखके सीखत हावंय अउ ओला अंजाम देवत हावंय।
अमोलपालेकर के अभिनय बहुत बढ़िया रहिस हे। नदिया के पार फिल्म, काजल, खानदान, गाइड, बागबान पसंद केचलचित्र आये। बागबान तो एक सीख दिस के लाइकामन ल मरत तक कुछ नहीं देना चाही।
हास्य म खट्टा मिठा, पड़ोसन बहुत बढ़िया रहिस हे।
शालिमार भी बहुत बढ़िया रहिस हे।
हर फिल्म ले कुछ न कुछ तो सीख मिलबे करथे।मोला
मोला चलचित्र के नांव सुरता नाइ राहर कहिनी सुरता रहिथे।मैं अधीकतर आर्ट मूवी देखथंव।
मोरा भारतीय संस्कृति ले जुड़े पहनावा ही पसंद आथे त उही कलाकार अउ चलचित्र मन बने लागथे।
सुधा वर्मा
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