Saturday 23 October 2021

हमर जमाना ल याद करत* नान्हेंपन के बड़ सुरता आथे विजेन्द्र वर्मा

 *हमर जमाना ल याद करत* नान्हेंपन के बड़ सुरता आथे

विजेन्द्र वर्मा

लइकन पन के सुरता आज मन ला मतावत हे।आज के समे मा नान्हें लइका मन ला देखथन त पढ़ई लिखई अउ बस्ता के बोझ मा अइसे दबे हावै बपुरा मन खेलईच ल भुला गेहे।बस एके ठन खेल जानथे, मोबाइल जेमा रात दिन पढ़थे अउ उही मा खेलथे तको। दिन भर घर मा धँधाय देखबे ते सोगसोगावन असन फेर काय करबे इही माहौल हे सबो कोती।हमन लइकन पन के सुरता करथन त लागथे हमर मन सरीक कोनों मजा नइ उड़ाय होहीं।न तो पढ़ई के चिंता न खवई के,न बस्ता के बोझा।घर ले निकलन सुग्घर बासी पेज खा के, स्कूल के घंटी बाजय त दउँड़त सबो संगवारी मन स्कूल पहुँचन।ओ समे स्कूल के घंटी ह घड़ी के काम करय।घंटी ला सुनके ही जानन, पेशाब पानी बर छुट्टी,हाफ टाइम लेजर के छुट्टी अउ घंटी दस पन्द्रह बार बजतिस ते पूरा छुट्टी होगे कइके।पूरा छुट्टी कहूँ होइच ते खुशी के ठिकाना नइ राहय धरा रपटा बस्ता धरके घर कोती जम्मो संगवारी भागन।बस्ता ला घर मा पटक खेले बर चल दन।अपन अपन गड़ी बना के किसम किसम के खेल, गिल्ली डंडा,भौंरा बाँटी,

छु छूवउल,बिल्लस,पिठ्ठूल,

डंडा पचरंगा खेलन।इतवार के दिन तो तरिया,बाँधा बउली मा घंटो तक डूबकन।एक दूसर ल देख के नान्हें पन मा तउँरे बर सीख जान।आज के लइका मन ला तउँरे बर नइ आवय।माँ बाप हा तैराकी सिखोय बर लइका मन ल कोर्स करवाथे तब कहूँ जा के सीखथे।पहिली के समे मा सबो काम ला देखा देखी मा ही सीख जान।ओइसने गाँव गँवई मा तिहार मनावय त तिहार के मजा सबले जादा हमी मन लेवन।हरेली तिहार के समे गेड़ी के मजा,तरिया नरवा तको गेड़ी मा चढ़े चढ़े जान।संझा बिहनिया गेड़ी चढ़न,ये तिहार के अगोरा राहय काकर गेड़ी कतका ऊँच बनही,काकर जादा रेच रेच बाजही कइके। नागपंचमी के दिन सपेरा मन गाँव मा आवय नाग देवता ल पिटारा मा रखे राहय देख के बड़ डर्रावन तभो ले देखे बर तुकतुकाय राहन। स्कूल मा तो स्लेट मा नाग के चित्र बना के फूल पान धरके बिहनिया स्कूल जान नाग देव के पूजा बड़ विधि विधान ले गुरुजी मन करवावय। पन्द्रह अगस्त अउ छब्बीस जनवरी के तको बड़ अगोरा राहय बिहनिया ले प्रभात फेरी मा शामिल होके गाँव भर बेंड बाजा के साथ बजावत घूमन।भाषण बाजी कविता पाठ मा पहला 

नइते दूसरा ईनाम पाय के मजा अलगे राहय वो समे कापी,पेन,पेंसिल ईनाम स्वरुप मिलय,वो ईनाम ला आज के बड़का बड़का ईनाम से तउलबे ते आज के ईनाम बौंना लागथे,काबर अभी भी मन मा वो ईनामी जिनिस गाँठ बाँधे बइठे हे।राखी के दिन तो संगवारी मन के हद होजय काकर राखी कतका बड़े हे,के ठन गद्दी लगे हे बस इहीच मा मगन राहन।अउ जेकर जतके बड़े राखी वोतके वोहर अपन ठाँठ दिखावय। तीजा पोरा के समे मा ममा ह गाँव आही महतारी ल तीजा लेगे बर कइके मगन राहन,काबर  ममा ह खई खजेना अउ मिठई धरके आवय।अबड़ अकन पइसा तको दे दय ममा ह।हमर मन के खुशी के ठिकाना नइ राहय।पोरा तिहार मा तो नँदिया बइला ल सजा के दउँड़ावन अउ एक दूसर के नँदिया बइला ला आपस मा टकरावन।कखरो बइला के सिंग टूट जाय,ते ककरो बइला के चक्का टूट जाय तहाँ ले बिकट झगड़न।झगरा मा संगवारी संगवारी अनबोला तको हो जान फेर एकेच कनिक मा बोले बर तको धर लन।पोरा के दिन गाँव के भाठा मा खो खो,कबड्डी,बालीबाल खेलइया मन ला देख के मजा लेवन।आनी बानी के रोटी पीठा खुरमी,ठेठरी,खीर तसमई,सोहारी,बिड़िया,

खाजा,पपची,बरा,बोबरा,

चौसेला,अइड़सा ला देख मन भर जाय।कभू कभू तो खिसा मा आनी बानी के रोटी पीठा धरके अपन अपन संगवारी ला बाँटन अउ खान। गणेश चतुर्थी मा पंडाल सजा के गणेश जी रखन अउ गणेश जी ल रखे के पहिली घरो घर चंदा माँगे बर दल के दल लइका लइका मन जावन ग्यारह दिन ले रात मा पंडाल मा सोवन,नान्हें पन मा गणेश जी के पूजा हमर मन बर बड़का तिहार राहय।चंदा के पइसा ले रात मा वीडियो किराया कर मँगावन जेकर मजा लइका सियान सबो लेवय। गणेश जी के विसर्जन के बाद दुर्गा पूजा आवय दुर्गा पूजा गाँव मा बड़ जोर शोर से मनावय,सेवा गीत ला सुने बर सेवा करइया मन सन घूमन, अउ शीतला माई मेर रात रात भर जागन।दशहरा मा गाँव मा रामलील्ला होवय संझा कुन ले जगा पोगराय बर बोरा बिछा के आवन अउ अपन अपन जघा ल जा जा के रखवारी करन।रात मा बारा एक बजे तक लील्ला देखन,दस ग्यारह दिन ले चलय आखिरी दिन दशहरा होवय।भाठा मा रावन वध के लील्ला होवय,उही करा भाठा मा बजार तको भरावय।आनी बानी के खई खजेना,चना चरपटी के मजा उड़ावन।कातिक पुन्नी मा मुँदरहा ले उठई,अउ भोग ल खाय बर कँपकपी जाड़ मा तलाब मा नहाय के सुरता आथे।देवारी के समे तो गाँव भर के मनखे मन घर द्वार के लिपई पोतई साफ सफई मा लगे राहय त हमन नवा नवा कपड़ा सिलाय बर दाई ददा ला जोर देवन। फटाका मा लक्ष्मी फटाका,नान नान बम दनाका चुरचटिया,टिकली,चकरी,

छुरछुरी लेवाय बर रोंमियाँय राहन,जभे लेवातिस बड़ अकन फटाटा तभे मानन 

नइते दिन भर रिसाय राहन।नवा नवा कुरता पेंट पहिरे के बड़ अगोरा करन,सुरहुत्ती के दिन।फेर आवय धान लुवई अउ खेती बाड़ी के दिन, ओ समे 

बइला गाड़ी चढ़े के मजा अउ खेत मा शीला बिने के काम करत अतका धान सकेल डारन अउ उही धान ला बेच के मुर्रा लाड़ू,नड्डा,पीपरमेंट के मजा उड़ावन। धान मिंजई के दिन मा बियारा मा बड़ रौनक राहय,सबो के बियारा मा बेलन,दउरी,गाड़ा धान मिंजे मा लगे राहय तब बेलन अउ गाड़ा चढ़े के बाद रेसटीप अउ उलानबाटी खेले के मजा भूले नइ भुलावत हे।शरीर हा कतको खजवावय तभो ले घंटों भर पैरा मा खेलन।बोइर अउ तिंवरा के दिन मा झोला झोला बोइर तिंवरा,राहेर डोहारन,खेत मा तिंवरा अउ राहेर के बनाय चना चरपटी के सुवाद अभी तको जीभ ला याद हे। छेरछेरा के दिन मा घरों घर छेरछेरा माँगे ले जान ओ समे कोन अमीर कोन गरीब नइ देखय सब संगवारी झोला धरके धान सकेलन फेर बेच बाँच के पइसा पकड़ मेला मड़ई देखे बर जान।अभी भी मेला के धुर्रा फुतकी सुरता मा गुलाल असन उड़त अंतस ला रंगोवत हे।ओइसने होली तिहार मा पिचका खरीदे के जिद ला पूरा करवा डारन।होली भले जलाय बर नइ जात रेहेंन फेर स्कूल ले छुट्टी होवय त धरा पसरा जम्मो संगवारी होले के लकड़ी टोरे बर खेत खार घूमन अउ एक महीना पहिलीच ले लकड़ी के पहाड़ बना डारन। मेला मड़ई के दिन आय त ढेलवा,रहचुली झूलन,ओखरा,भेलवा लाड़ू,जलेबी भजिया के स्वादे  ह कुछ अलगे राहय।

गाँव मा कखरो घर बर बिहाव होतिस त बबा सन बरात जाय बर तुकतुकाय राहन।छींट बूंदी लाड़ू नइते करी सेव लाड़ू परोसय बरतिया मन ला ‌खाय मा भले दाँत पिरा जय फेर ओकरो अलगे मजा राहय। गरमी के दिन मा ममा गाँव मा छुट्टी मनाय के अलगे मजा राहय। ममा गाँव मा अइसन मान देवय सब मनखे भाँचा आय हे कइके बड़ मया करय। मँझनिया आम के बगइचा मा आमा चुरावन, गंगा इमली टोर ससन भर खावन।ममा गाँव मा गरमी के छुट्टी कभू नइ भुलावय।

*लइकन पन के बड़ सुरता आथे,*

*भौंरा-बाँटी,कंचा आज तको मन ला मताथे।*

*माटी के चुल्हा मा अँगाकर रोटी सेकावय,*

*जरय तभो महर महर ममहावय।*

ओ समे न तो अखबार रिहिस न तो घरों घर टेलीविजन बिजली कभू राहय ते कभू गोल होजय।चिमनी, कंडिल के अँजोर तको निक लागय।काबर हमर सियान मन अपन काम अउ बात बानी ले नान्हें लइका मन के अंतस मा अँजोर फइलात राहय।किस्सा कहिनी सुनत नींद पर जय,रात अँधियारी कब पहा जय पता नइ चलय।नान्हें पन के सुरता आथे त रोवासी आ जथे,कैची फाक सइकिल चलाय बर मुड़ गोड़ फूट जय फेर सीखे के अइसन ललक भुलाय नइ जात हे।स्कूल के छुट्टी होतिस त गनढ़ुली ढुलई,मँझनिया तीरी पासा भोटकुल खेलई,बर पीपर के छाँव मा अंधी चपाट,गाँव के शीतला माई के परसाद खाय बर,इमली पेड़ मा भूत हे कइके डराय के शैतानी कोन भूला सकही।आँवला नवमी मा पेड़ तरी खाना बना के पिकनिक मनई,अँगना बारी के भाजी पाला,रात रात भर जाग के वीडियो,नाचा गम्मत देखई, रिमझिम बारिश के पानी मा भिँजई,राउत नाच मा बेशरम लकड़ी धरके 

नचई,चिरइ चिरगुन ला पकड़ के रँगई,खुल्ला अगास मा उड़ान भरई,मोटर गाड़ी देखे बर मोटर के पाछू पाछू भगई,अउ आखिर मा गुरुजी मन के स्कूल मा हमर कान ला जोर के अइँठई अइसे लागत हे कालीचे के बात हरे।अपन देहातीपन हा आज तको शहर मा आय के बाद भुलाय नइ जात हे।गाँव के माटी के सौंधी खुशबू,हमर संस्कृति परंपरा,तीज तिहार,मया करइया जम्मो मयारुक सियान, डोंगरी, पहार,नँदिया,नरवा,कुआँ,

बउली,हरियर खेती खार,धान के सोनहा बाली ह आँखी-आँखी मा झूलत हे।बोइर,जाम,सीताफल,चार के पेड़ हा टोरे बर बुलावत हे।तरिया पार मा बने पचरी कूद के नहाय बर रद्दा निहारत हे। नान्हें पन के सुरता हा दौना पान कस आजो महर महर ममहावत अंतस मा समाय हवै।हाँसी खुशी ले सबो मनखे मन गाँव मा सुख दुख बाँटय अउ नान्हें लइका मन के इतरई मा तको मया ला लुटावय।आज  लइकन पन के सुरता कर अउ उही लइकन उमर मा जाय बर अंतस ह हिलोर मारत हे।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

No comments:

Post a Comment