Tuesday 19 October 2021

आज के विषय- हमर जमाना मा.....

 आज के विषय- हमर जमाना मा.....


*दाई ददा ले जादा परोसी ला डरावन*


           अइसे तो अपन जमाना के  गोठ सबो मन करथे।बुढ़वा होय पाछू नाती नतरा, जवनहा अउ नवा नवा मुखिया बने मनखे मन करा करथँय। अपन पाहरो के गोठ करेबर नानपन के गोठ ला जवनहा मन अपन संगी जहुँरिया संग करथे , ओखर ले बड़का उमर के मन अपन लइका पाहरो के खेलइ कुदई, पढ़ई लिखई, आमा बीही चोरई, जवनहा पाहरो के कमई धमई, कोनों टूरी संग मया, तीज तिहार मा अखरा घुमई, बर बिहाव मा बजनिया बरतिया अउ कोनों नाचा-पेखन, लीला मंडली मा पाठ करई के संगे संग गाँव के सियानी करे बखत अपन काम बुता पइसा कउड़ी के हिसाब किताब के गोठ ला बताथँय। घर परिवार मा सगा सोदर के मनई, बेटी बहू के मर्यादा मा रहई अउ बड़े छोटे के लिहाज करई।अइसने कतको किसम के सुरता ला गोठियावत "हमर पाहरो मा अइसन....." कहत कभू कभू हाँसी के गोठ, कभू गरब के गोठ ता कभू कभू दुख के गोठ करत आँखी मा आँसू घलो लान लेथय।

            अइसने एक ठन महू हा सुरता करत हँव। हमर लइका पन मा परोसी मन के घलो अबड़ मानता रहिस। अपन जात, गोतियार,सगा के संगे संग दूसर जात के परोसी जेमा बबा, डोकरीदई, ददा, दाई, कका, फूफू के संगवारी अउ मितान (महापरसाद, गंगाजल, दावना, जँवारा..) मन ला घलाव ओतकेच नत्ता मानन जतका सग मनला मानन। एमन ला ओतकेच डरावन जतका सग बबा, कका मन ला डरावन। मया दुलार तो अपन जगा रहय फेर पढ़ई लिखई के कमती करई अउ कोनों किसम के अनीत, गलती करत देखे झन कहिके कतको बुता ला उँखर आगू मा नइ करन। काबर कि अनीत करत देख लेवय ता जतका सजा देय के हक दाई ददा ला रहय ओतका अधिकार वहू मन ला रहय। नानपन, मा बीड़ी पियत, कखरो बारी बखरी के मुरई, बरबट्टी, पपई,आमा चोरवत, पढ़े बर जाय मा नांगा करत अउ लुकावत देख लेवय ता दाई ददा मन पाछू चटकनाय उही मन पहिली पंजेल देवय पाछू घर मा आके बतावय त एक उरेर के फेर दनादन परय। चेलिक उमर मा अउ जादा हिसाबत मा रहना परय। 

       हमर जमाना मा गुरुजी के आगू मा बइठना तो दूरिहा खड़ा होय बर जी धकधका जावय। फटफटी के हारन ला सुनके गरवा मन पहिली पल्ला भागय ओइसने कोनों हा गुरुजी आवत हे कहितीस के.. छू लम्बा। गुरुजी घलाव पढ़ई के गलती अउ कमती के संग अनीत करत देखतीस ता कतको मार लेवय, दाई ददा राम नइ भजे।उपराहा मा अउ कहि देतीस बने सुधारे( मारे) करव गुरुजी।

          आज लइका मन हा अपन दाई ददा ला डर्राय न गुरुजी ला डर्राय। बाचे मन अंकल आंटी बनगे जौन ला कोनों अधिकार नइ दे हावय। कोनों परोसी ओखर अनीत बताथे ता हाँस के तिरिया देथे। आज लइका के कुछू माँगे के पहिली नवा नवा जिनीस सकेलत हावय। हमर जमाना मा चिरहा हाप पैंट ला तुनवा के चार महिना पहिरा देवय। अब हर चार महिना  मा नवा अँगरखा बिसा देथय। बड़े भाई के नान्हे होवत अँगरखा ला नान्हे भाई ला पहिरना अउ बड़े बहिनी के नान्हे होवत अँगरखा ला नान्हे बहिनी ला पहिराना सियान मन के मजबूरी रहय। हमर पाहरो मा लइका मन अपन कोनों जिनिस ला लेय देय बर नइ जावन, जेन जिनिस चाही ओला बता देवन ता दाई, ददा, बबा नइते जेन लेन देन के सियानी करत उही हा बिसा के लानय।हमन कभू दुकान नइ चढ़न। पहिरे के अँगरखा होवय कि खाय के खजानी।आज के लइका मन दुकान मा चढ़त हे पाछू मुड़ी मा...।

     हमर नानपन जमाना मा मनोरंजन के जिनिस तो रहय नइ, ता संगवारी मन संग तरिया डबरी, इस्कूल मैदान, खइरखा डाड़ मा सकला के खेलना होवय। जौन आज कबाड़ से जुगाड़ के पढ़ई चलत हवय ओला हमन नानपन मा बिन गुरुजी के सिखाय अपन खेले के जिनिस बना के खेलन। साईकिल के टायर के ढुलढुली, चिरहा मोजा मा चेंदरा कपड़ा भरके गेंद खेलना, टूटहा चूरी के खेल, अमली बीजा के तिरी पासा.... दउड़ना भागना, कूदना, गिरना-उठना, कभू कभू झगरा लड़ई, हो जावय। पाछू दूसर दिन फेर जुरमिल के खेलना कूदना। लीला, नाटक मा पाठ करे अउ नाचे कूदे बर घलाव मिले जेखर ले सुर साज, लय ताल के ज्ञान घलाव हो जावय।बड़े बाढ़त कतको झन पेटी, तबला, ढोलक मंजीरा, बेँजो बजइया बन जावय। पाछू मडंई , जँवारा मा सेवा गावँय अउ बजावँय। डंडा नाच, पंथी, फागुन के नंगारा संग फागगीत गाना सबो मा परोसी मन लइका मन ला बइठार के संघेरय अउ सिखावय,ता ओमन गुरु रुप हो जवय। इही मा परोसी के मया दुलार, गारी बखाना घलो मिलय। आज के लइका मन ये सब ले दुरिहावत जावय हे।    


हीरालाल गुरुजी समय

छुरा, गरियाबंद

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