व्यंग्य-चोवा राम वर्मा 'बादल'
प्रेम
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प्रेम ल निर्मल होथे कहिथें। प्रेम ल भगवान के स्वरूप तको बताये जाथे फेर ये हा सब तइहा जुग के किताबी बात कस लागथे काबर के अब तो प्रेम ह कुम्हारी के दारू फैक्ट्री ले निकले बजबजावत, बस्सावत नाली के पानी कस होगे हे। प्रेम ह भगवान कहाँ? सँउहे राक्षस के रूप धर ले हे। अगर अइसना नइ होतिस त औलाद ह माता -पिता के, महतारी-बाप ह औलाद के हत्या नइ करतिन। सात जन्म के साथ निभाये के किरिया खाये पतिदेव ह पत्नी ल, पत्नी ह पति ल मारके फाँसी म नइ टांगतिस। फोटो बस ल व्हाट्सएप अउ फेसबुक म देख के-- जेन ह वोकरे आय धन नहीं तेकरो पता नइ राहय-- दू-चार लटका- झटका वाले मतौना गोठ, शायरी ल पढ़-सुनके चाइना मॉडल झालर कस मोहब्बत बिसइया मन जहर -महुरा ल नइ घुटकतिन।
प्रेम ह अंधा होथे। ये बात एक-दू पइत नहीं हजारों पइत साबित होये हे। बड़े-बड़े ऋषि-मुनि, तपसी- ध्यानी, धनी-मानी मन अँधरा होके गड्ढा म गिरे- गिरे हें। कभू-कभू ये अंधा प्रेम ह भीतर के आँखी ल उघार तको देथे। अइसने एक झन माटी के काया बर प्रेम म अँधरा होये ल पत्नी के फटकार मिलिस त वोकर भीतर के आँखी खुलगे अउ वो संत बनगे। वोला बहुत कुछ अनुभव होये ल धरलिस। वोहा दुनिया ल लिखके बताइस के- " स्वारथ लाग करहिं सब प्रीति, सुर नर मुनि सबके यहि रीति।"
आजकल देखौटी प्रेम के जमाना हे।अइसन प्रेम सबले जादा ब्वॉयफ्रेंड- गर्लफ्रेंड अउ नेता मन के गरीब-मजदूर मन बर प्रेम म देखे ल मिलथे। येला बनौटी प्रेम तको कहि सकथन -- मतलब "मुँह में राम बगल में छुरी "।षड़यंत्री कालनेमि के प्रेम तको अइसने रहिस हे। उही कालनेमि ह ये कलजुग म नाना रूप धरके रक्तबीज सही बाढ़गे हे।
प्रेम गली ह अब अइसे साँकुर नइ रहिगे हे जेमा एके झन समा सकय--एके झन आ जा सकय। वो तो अब छै लेन हाईवे कस अइसे चँउक-चाकर होगे हे जेमा पचासों झन सँघरा समा जथें। कई बखत तो पतेच नइ चलय के ये गली म कोन अइस--कोन गेइस। प्रेम-पात्र ह तो डिस्पोजल होगे हे-- उपयोग कर तहाँ फेंक दे ---खुशियार कस चुहक के ,छोइहा कस कुढ़ो दे।
प्रेम शास्त्री मन प्रेम के कई लक्षण बताये हें। तन ले प्रेम, मन ले प्रेम, धन ले प्रेम अउ कुर्सी ले प्रेम। येमा सबले खतरनाक कुर्सी के प्रेम ह लागथे। कुर्सी प्रेम ह का नइ करा दय--? का नइ बना दय--? ये ह अहंकारी बना देथे, बड़बोला बना देथे---जेन ह कभू जनेउ नइ पहिनेये वोला जनेउ पहिना देथे। जिंखर मुँह ले
अँग्रेजी झरथे ते मन ले वेद-शास्त्र के संस्कृत श्लोक उगलवा देथे।
हाँ, एक प्रेम अउ हो सकथे-- मनखे ले मनखे के प्रेम फेर अब मनखे कहाँ बाँचे हें? ये कुर्सी प्रेमी मन सबके मुँड़ी म अइसे मोहनी थोपके जादू करे हें के मनखे मन वोट लहुटगे हें।ये कुर्सी प्रेमी मन तो अब उत्ता-धुर्रा वोट म जात-धरम के ठप्पा तको लगावत हें। ये फलाना जात के वोट, वो ढेकाना जात के वोट --।
परन दिन तरिया पार म बइठें कुछ अलग-अलग जात के वोट मन गोठियावत काहत राहैं-- देखत हौ भाई हो -- ये कुर्सी प्रेमी मन जेन जात के वोट ल पानी पी- पी के गारी देवत राहैं तिंखरे अब थूँक- पालिश करत हें। उँखरें सब पूछ- परख करत हें। अइसना म अब हमर का होही?
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
बहुत सुन्दर गुरुदेव जी
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