Wednesday 20 October 2021

हमर जमाना मा* मनोज कुमार वर्मा

 *हमर जमाना मा*

मनोज कुमार वर्मा

     *हमर जमाना मा* अइसन जब गोठ होथे त निश्चित ही बदलाव होय हे अइसे जान पर्दे अउ ये बदलाव पीढ़ी के संग संग रिती-नीती, संस्कृति, संस्कार, रहन-सहन, वेवहार, खान-पान, मनोरंजन के साधन, खेल-कूद आदि सबों जिनिस मा होय परिवर्तन ला बताथे कि ओ बेरा मा ये सब जिनिस कइसे रहिस हे अउ अभी कइसे हावय। हमर जमाना कहिबो त हम तो जादा दिन के लइका नोहन हम अभी तो उपज के खड़ा होय हन फेर हमर सौभाग्य हे कि हम दूनो जुग चिठ्ठी पतरी ले मोबाइल के संदेश, बांटी, भॅंवरा, डंडा-पचरंगा, भोटकुल, तिग्गा, साॅंप-सिढ़ी, खो-खो, कबड्डी, गिल्ली-डंडा आदि आदि ले मोबाइल गेम, आनलाइन गेम तरिया के छू-छूवउल ले घर के नल मा नहवई, छुट्टी ल नाना-नानी, दीदी-फुफा घर बितात ले घर के टीबी, मोबाइल मा बितावत  बाढ़े हन। कहन त हमर पिढ़ी के लइका मन आखरी हरन जेन जिनगी वास्तविक जुग के पुरातन खेल ल बिदा करत नवा जुग काल्पनिक खेल के अगवाई करे हन।

     हमर जमाना कहिथन त सुरता आथे हमन जब नान-नान लइका रहेन त पूरा गॉंव भर एक परिवार बरोबर रहय सब लइका सबके लइका रहय अउ सबो दाई ददा सबके दाई ददा कोनो भी लइका काखरो घर दिन भर रहिजय खा-पी लय अउ कोनो भी दाई ददा अपन अउ दूसर के लइका मा भेद नइ समझय जतका लइका अपन घर के ल नइ डरावय ओकर ले जादा दूसर ल डरावय अउ मया घलो पावय। तब परिवार बड़े बाबू-दाई, कका-काकी सबो भाई बहिनी संग रहे के सेती बड़े-बड़े रहय दादी-दादा के किस्सा-कहानी संस्कार भरय अउ चौक-चौराहा मा बइठ के बड़े बुजुर्ग मन के गोठ-बात ल सुन के छोटे-बड़े के संस्कार मिलय अब तो सब मनखे अपन मा मगन होगे घर बड़का होगे मन छोटे, घर सजगे मन मा काई रचगे, धन कम गरब-गुमान जादा हमागे ऐमा नवा पिढ़ी के कोनो दोष नइ हे दोष हमर मा हे सुवारथी हमन होगे हन जेन सॉप के बिला कस घर मा खुसरे हन पद के गरब मा। लइका ऊपर बंधन लगाके रखे हन बाहर नइ जाना हे, दाई-ददा, भाई--बहिनी ले दुरिहा पता नइ हमन कइसन समाज के रद्दा गढ़त हन नवा लइका ल काय दत हन, चकाचौंध खोजत आॅंखी ल अॅंधरिया डरत हन सुख के दिन अकेल्ला बित जाथे फेर दुख के दिन सगा संबंधित, घर परिवार, रिसतादार बिना नइ बितय।


मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार

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