तुलसी चौंरा के दिया-चोवा राम वर्मा ' बादल'
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(लघुकथा)
कौशिल्या घर वोकर बेटी के बिहाव मा सगा-सोदर मन सकलाये रहिन। भाँवर के तइयारी होवत रहिस। परछी मा बइठे माई लोगिन मन अपन घर-दुवार, लोग-लइका अउ जिनगी के सुख-दुख ला गोठियाये मा मस्त रहिन।
कौशिल्या के डेड़सास के बेटी नैना जेन दिल्ली मा रहिथे, कई साल बाद अइसन पारिवारिक कार्यक्रम मा सँघरे रहिस तेकर संग गोठियावत कौशिल्या बोलिस---
कस वो बहिनी तोर बेटा सूरज ल तको नइ लाने रहिते।वोला नानपन म देखे रहेंव।अभी काय काम-बूता करथे वोहा ?
वो कहाँ आये सकही दीदी। दिल्लीच आये दस साल होगे हे। वो तो अमेरिका के सोलर लैंप बनइया बहुत बड़े मल्टी नेशनल कम्पनी मा सी० ई० ओ० हे जेन हा सरी दुनिया मा अँजोर बगराये के काम करथे।थोकुन गरब करत नैना हा कहिस तहाँ ले पूछिस---
तोर बेटा दीपक हा काय करथे दीदी?
हमरे संग घरे म रहिथे अउ खेती-किसानी के काम करथे बहिनी।
वो तो पढ़े-लिखे हे न? नौकरी-चाकरी नइ मिलिस का?
कृषि म एम० एस० सी० हे बहिनी। सरकारी नौकरी तको मिलगे रहिस फेर वोला छोड़के अपन खुद के बीस इक्कड़ खेत संग गाँव के अउ किसान मन ल सँघेर के वैज्ञानिक तरीका ले फल-फूल उपजाथे। हमर गाँव के संतरा, पपीता ,अनार, चीकू अउ आमा-बिही के सरी दुनिया म माँग हे।
वाहह बहुतेच बढ़िया बात हे दीदी। तोर बेटा तो तुलसी चौंरा के दिया सहीं हे। खुश होवत नैना कहिस।
चोवा राम वर्मा ' बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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