Thursday 14 October 2021

हरेली

   हरेली 


हमर परंपरा अउ संस्कीरिति ले जुड़े छत्तीसगढ़िया मन के बड़का तिहार हरेली सावन महिना के अँधियारी पाख अमावस के दिन बड़ धूमधाम ले मनाथे। प्रकृति ले जुड़े खेती किसानी करइया किसान मन बर तो येकर ले बड़े कोनों तिहार नइ हो सकय। सावन महीना मा प्रकृति अपन पूरा शबाब मा रहिथे। चारों मुड़ा हरियर हरियर, रुख राई, डारा पाना, खेत खार उँचास भरत।कुँआ,तरिया,नदियाँ छलकत,सबो जीव जंतु मन मगन झूमत रहिथे। किसान मन के तको खुशी के ठिकाना नइ राहय।

*महिनत सन मँय बदेव मितानी*

*तोर भरोसा मा करथव किसानी*

खेत मा धान बियासे के काम अउ रोपा लगा के थोकिन फुरसत मिलथे।हरेली तिहार के दिन किसनहा मनखे मन अपन नाँगर बख्खर,राँपा,गैंती,रपली,आरी बसूला,टँगिया,कुदारी,अउ जतका किसानी काम मा जेन लोहा के अउजार काम आथे तेला धो माँज के अँगना मा मुरम के पाट बना के जम्मो अउजार ला वोमेर रख के पूजा पाठ करथे,सबो काम तुँहर किरपा ले बने बने होगे कइके आशीष माँगथे। बइला भइसा ला धो के अपन कुल देवी देवता के पूजा के संगे संग बइला मन के तको पूजा करथे।रिकिम रिकिम के खाई खजाना के संगे संग गुड़हा चीला,गुलगुला भजिया दाई माई मन बनाथे।अउ येकर भोग कुल देवी देवता के साथ किसानी अउजार मा तको चढ़ाथे।

*नाँगर बइला राँपा अउ कुदारी*

*इही तो किसान के हवै सँगवारी*

ये दिन राउत मन हा गाय गरवा बर गेहूँ पिसान के लोंदी मा नून,बरगंडा के पान अउ जड़ी बूँटी मिला के गाय गरवा बइला भइसा ला खवाथे।येकर पाछू इही बात हे कोनों रोग राई माल मता ला झन होवय कहिके।

गाँव मा घरो घर लुहार मन हा नीम के डारा ल घर घर के मुँहाटी मा खोचथे।नीम के पत्ती ला कीटाणु नाशक मानथे ओकरे सेती रोग हा घर दुवारी मा मत फटकय कहिके खोचथे।हमर जुन्ना परंपरा हे जेन पुरखा मन ले चले आवत हे।गाँव मा कोनों प्रकार के विपदा झन आवय कहिके बइगा हा मंत्र जाप ले गाँव के चारों दिशा ला पान फूल,नरियर चढ़ा के बाँधथे।

अउ इही दिन तो बइगा मन अपन मंत्र ला जागृत करे बर मंत्र जाप अउ पाठ करथे।नवा नवा मंत्र सिखइया चेला तको बनाथे।गाँव मा अइसन उछाह, हमर सियान मन हा लइका मन बर गेंड़ी तको बनाथे।बाँस के डंडा अउ बूच डोरी मा खपच्ची हा बँधाय,पाँव रखे के खपच्ची मा मजा लेय बर माटी तेल तको डालथे।जब लइका मन गेंड़ी चढ़थे त रचरिच रचरिच बाजथे,अउ बिकट मजा इही मा लेवत रहिथे। लइका मन तो गेंड़ी दउँड़ मा अपन करतब दिखावत मजा लेत रहिथे।हरेली एक अइसे तिहार ये जेमे किसान,मजदूर,लइका, सियान,नोनी,बाबू सबो ला अगोरा रहिथे।दोपहर बइला दउँड़,भाठा मा नोनी मन के फुँगड़ी,खो-खो,कबड्डी देखइया मन के भीड़ उमड़े रहिथे।अइसन जुड़ाव कोनों तिहार मा देखे बर नइ  मिलय।आजकल शहर के लइका लोग मन बर तो किस्सा कहिनी होगे हे।हमर जुन्ना परंपरा नँदाय कस लागथे, हमन ला अपन लइका लोग मन ला ये बड़का तिहार हरेली के महत्ता ला बताय ले परही तभे हमन अपन संस्कृति अउ परंपरा के रक्षा कर पाबो।इही बड़का तिहार ले तो हमर मन के तिहार मनई के शुरुआत होथे।

*चढ़व गेड़ी,खेलव फुँगड़ी,भौंरा अउ बाँटी।*

*आगे तिहार हरेली,ममहात हे हमर माटी।*

विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

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