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*मंझोलन मनखे/नान्हे कहिनी*
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झख्खर करे हे । अइसन दिन म बादर मन के मन लागथे तब बने गिरथें , नहीं बस झड़ी लगाय रहिथें । फेर आज तो बिहना ले बने गिरत हें ये बादर मन ।
परसु अपन रांपा ल खांद म धर के खेतवाही किंजरे जात रहिस, वोहर अभी गांव बाहिर निकले नई पाय रहिस । तभे पानी हर झोर झोर के गिरे लागिस । अब तो वोहर खेत जवई ल छोड़ के दाऊ के परसार म छइंहाय लग गय । गांव के दाऊ परसार म बइठ के अइसन झख्खर के आनन्द लेवत मगन रहिस ।
"अरे आ परसु !खेतवाही जात हस ?" वो कहिस।
" जोहार मालिक ! हाँ, खेतवाही जात हंव ।" परसु जवाब दिस ।दु -चार पद गांव -ग्राम के गोठ होइस कि पानी गिरई हर मद्धिम हो गय । "ले तँय बइठ ! यह दे पानी के जोर हर कम हो गय ।" परसु कहिस अउ अपन रांपा ल खांद म उठात वो आगू बढ़ गय ।
वो गांव बाहिर निकलईया च रहिस कि एक पईत फेर बादर मन शुरू हो गईंन । ये पईत परसु कुदत- धाँवत गांव के छेवर म बसे रथलाल के कुंदरा म पहुँच गय । रथलाल हर भूती बनी करने वाला मनखे ! खेत -खार के चिंता ल बाहिर रहिस । वो मंजा के नहा धो के जेवन करत रहिस ।
"ये आ आ परसु बाबू !ठीकेच बेरा म आय हस ।आ तीपत भात खाबो ।" वो परसु ल भात खाय बर नेवतत कहिस ।
" नहीं बाबू !मंय हर अभी खेतवाही जावत हंव । एक भाँवर सबो खेत कोती नई किंजर हंव,तब मेड़ -पार मन के का होही ?" वो कहिस अउ बरसतेच पानी म निकल गय ।फेर अब वो गुनत रहिस । दाऊ बड़े मनखे ये, तब वोहर नई निकले ये अइसन पानी बरसात म ।ठीक अइसन ये सुखवासी रथलाल घलव झख्खर मनात हे अउ अभी तीपत भात खात हे । अउ येती एक वो हावे जउन हर ये मन कस घर म सुछिंधा बइठे नई सकय ये बरसात म अउ खेतवाही किंजरत हे।
ठीकेच गोठ ये ...! छोटे के बनगे बड़े के बनगे अउ हमर साही मंझोलन मनखे मन के नठा गय - परसु रांपा ल बोहे -बोहे जाड़ म कुड़कूड़ात गुनत रहिस ।
*रामनाथ साहू*
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