Saturday 16 October 2021

व्यंग्य-रावण कब मरही -हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

 


व्यंग्य-रावण कब मरही -हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

          राम जेला मारथे तेला तारथे घला । ताड़का मारीच बाली जइसन दुष्ट मन के संहार करिस फेर जम्मो झन ला परमधाम के सुख घला देवइस । रावण के मरे के पारी अइस तब जम्मो देवता मन रोवत डबडबावत आँखी के आँसू पोछत हाथ जोर के राम से प्रार्थना करत रिहिन । भगवान हा देवता मन कोति मुखातिब होवत किहिस .. अब तो तूमन खुश हो जावव जी .. तुँहर दुख तिरोहित होवत हे । इंद्र किथे .. ओ तो ठीक हे भगवान .. फेर अवइया कष्ट के भय पदोवत हे । भगवान पूछिस – काये कष्ट जी ? इंद्र किथे – तोर हाथ ले जेहा मरथे तेला स्वर्ग म जगा मिलथे .. रावण घला तोरे हाथ ले मरत हे .. यहू सीधा स्वर्ग जाही .. तहन मोर शासन ला पोगराये के उदिम रचाही । येकर तपोबल बहुत प्रबल हे भगवान ... मोर का चलही अऊ तब स्वर्ग म येकरे शासन हो जही ... तब हमन कहाँ जाबो ... ? ओतके बेर बिगन बलाय ... यमराज घला पहुँचगे अऊ केहे लगिस – तैं इही कहना चाहथस न इंद्र जी के येला स्वर्ग निही बल्कि नरक म भेज देवव ... । भगवान तैं जानतेच हस .. यमलोक म केवल दुष्ट पापी मन रहिथे ... ए चल दिही त येकर पाप के बोझा म यमलोक टूटके बिखर जहि । येला सम्भाले के चक्कर म बाँकी दुष्ट मन कोति ध्यान नइ दे पाबो ... तब ओमन नरक म घला मजा मारहि । अऊ ये महापापी हा उहाँ घला संगठन बना लिस तब ... पूरा नरक येकरे हो जहि । फेर ब्रम्हाजी के बेवस्था के का होही ... तोर हाथ ले मरइया हा स्वर्ग के जगा यमलोक चल दिही तब .. सरी नियम धरम बेवस्था चरमरा जहि । भगवान हा परिस्थिति भाँप गिस अऊ अपन पल्ला झाड़त बिगन कुछु केहे प्रस्थान करे म अपन भलाई समझिस अऊ आगू के मोर्चा सम्हारे बर .. ब्रम्हाजी ला बलवा लिस अऊ अपन हा माता सीता ला लेहे बर अशोक वाटिका कोति प्रस्थान कर दिस । 

          रावण मरे नइ रहय ... चंदर लग चुके हे । स्वर्ग अऊ नरक के प्रतिनिधि देवता मन के बीच म वाकयुद्ध शुरू होगे । सत्ता के डगमगाहट के आशंका म एक दूसर उपर आरोप प्रत्यारोप लगावत ... दुनों डहर संगठन बनाये बिगाड़े के खेल शुरू होगे । जेकर अंत समे आ जथे तेकर आँखी म .. हरेक देवी देवता दिखे बर लग जथे । रावण ला घला दिखे लगिस । साँस के टूटन म घला ओकर थोथना म चमक आये लगिस । रावण सोंचत रहय ... एती ब्रम्हाजी दुविधा म परगे । साँस बंद होय के पहिली स्वर्ग अऊ नरक के देवता मन के आपसी झगरा के फायदा उचाये के कुत्सित मानसिकता हा फेर जोर मारिस । ओहा देख डरिस के ओला कोनो स्वर्ग म लेगना नइ चाहत हे अऊ ब्रम्हाजी हा नियम कानून म अइसे जकड़े हे के ओला नरक तो भेजेच ला नइ सकय । रावण हा ब्रम्हाजी ला बुड़ोये बर अपन बात रखत केहे लगिस – मोला नरक भेज देबे ते मेहा भगवान तिर तोर शिकायत कर देहूँ .. तोर ब्रम्हईगिरी घुसड़ जहि । तोर नौकरी खतरा म पर जही । स्वर्ग के टिकिस ला जल्दी दे ... गाड़ी हा प्लेटफार्म म लग चुके हे मोला चइघन दे । ब्रम्हाजी हुँके भुँके नइ सकत रहय .. । रावण हा बिगन टिकिस भगवान के दिये पास के सहारा म ... गाड़ी म चइघ जहूँ कहत उचे ला धरिस .. एती डोकरा के पोटा काँपगे । का करे का नइ करे ... समझ नइ आवत रिहिस । ओकर आँखी डबडबागे । ब्रम्हाजी ला भितरे भीतर सुसकत देख , रावण ला दया नइ लागिस बल्कि ओकर जम के फायदा उचाये के सोंच डरिस । ब्रम्हाजी ला रावण किथे – तेकर ले मोला इँहींचे रहन दे बबा .. ! साधारण जीव कस महूँ ला धरती म रेहे के ठौर ठिकाना मिल जतिस ते ... स्वर्ग नरक वाला तोर दुविधा घला खतम हो जतिस अऊ येकर मन के बीच खुरसी जाये के डर म होवत होक्काबाजी घला सिरा जतिस । धरती के कतको मनखे मन बानर के रूप म भगवान के सेवा म लगे रहँय ... तेमन ला .. न देवता दिखत रहय न यम न ब्रम्हाजी .. रावण के साँस उखनही तहन लेसबो सोंच ओमन कलेचुप खड़े रहय । 

          ब्रम्हाजी हा रावण ला पूछिस – तोर का इच्छा हे रावण ? रावण किथे – मोर का इच्छा रइहि भगवान । मोला जे राखना चाहथे ... तेकर तिर मोला भेज । अऊ कोनो नइ लेगना चाहही त मोला सबर दिन बर इँहे रहन दे .. फेर ओकर बर मोर कुछ शर्त माने बर परही .. । हाँ कहिबे त ठीक ... नहि ते मोर गाड़ी छुटे के समे होवत हे .. मेहा जावत हँव । ब्रम्हाजी हा बिगन सोंचे समझे वरदान दे बर  माहिर रिहिस । ओहा जइसे हव कहत मुड़ी हलइस .. रावण केहे लगिस – भविष्य म .. मोला कन्हो इहाँ के साधारण जनता हा चिन्हे झन सकय .. मोला उही चिन्हय जेहा मोर भाई बंधु होय या मोर महतारी होय । दूसर शर्त ... मेंहा कुछु भी करँव ... पकड़ाँवव झन .. कन्हो मोला जेल मेल म डारे के कोशिस झन करय या मारे के कोशिस झन करय । गलती से .. धोखा से या जान बूझके मोर संग अइसन मिसबिहेब करइया ला .. मेंहा जब चाहँव तब .. मोर भाई बना के अपन आप ला बचाए पर सफल रहँव । तीसर बात ... भविष्य म मोला कोई देवता मार झन सकय .. मोला मारे के अधिकार मोरे भाई या बहिनी ला मिलय । आखिरी बात यदि मोला देवता मन मारही ... तब बिगन कुछ बात पूछे अऊ बिगन विलम्बित करे सीधा स्वर्ग के कपाट हा मोर बर खुल जाय । ब्रम्हाजी हा रावण के शर्त सुनत थकथकागे रिहिस । आनन फानन म बिगन सोंचे बिचारे हव किहिस अऊ अपन धाम चल दिस । रावण मरगे । खुशी के मारे .. देवता मन फूल के बरसात कर दिन । 

          चौरासी लाख योनि म भटके के बाद ... रावण के मनखे रूप म जनम धरे के समे लकठियाये लगिस । कलयुग घला संगे संग पहुँचगे । ब्रम्हाजी ला अब फिकर हमागे । ओहा सोंच डरिस के अब रावण ला स्वर्ग म लान के बइठार देथँव । इंद्र ला पता चलिस । ओहा ब्रम्हाजी तिर जाके किहिस – तैं फिकर झन कर ब्रम्हाजी ... हमन धरती म रावण के रेहे के बेवस्था बनाके आवत हन । इंद्र हा मईलोगिन के मन ला टटोले लगिस । फेर कोनो मई लोगिन के कोख म ताकत नइ रहय के अतेक बड़ रावण ला अकेल्ला अपन कोख म धारण कर सकय । इंद्र हा धरती म पहुँचके माता मन ला रावण के जन्म ला जरूरी बतावत सभा करके पूछे लगिस के कोन अपन कोख ले ओला बियाहू .. ? रावण ला कोन बियाना चाहहि ... हरेक मई लोगिन हा मना कर दिस । सब झन राम बियाबो कहय । इंद्र हा लालच घला दिस के जेहा रावण ला बियाही ... तेला अबड़ अकन धन दोगानी नाव पद सब मुफ्त म मिलही । कोनो दई मई तभो तैयार नइ होइस । 

          इंद्र ला घला अपन स्वर्ग के सत्ता प्यारा रिहिस । ओहा रावण ला स्वर्ग झन पहुँच सकय तेकर बर चालाकी करिस । एक दिन मई लोगिन मन के सभा समागम जइसे सिरइस तइसने म एक झन मईलोगिन ला कलेचुप तिर म बलइस अऊ किहिस – एमन ला जावन देथँव , तोला एक ठिन राज के बात बतावत हँव । राज के बात सुन मईलोगिन हा बिलमगे । इंद्र केहे लगिस – दुनिया म बहुत खराब समे आवत हे । कलयुग के आगमन हो चुके हे । राम बियाना सम्भव ही नइहे । ओकर बर युग युग तक तपस्या करे बर लागथे । बहुत सँयम नियम के पालन करे बर लागथे । राम हा एक तो आवय निहि अऊ आही त बुढ़हारी म । अऊ आही तभो ओहा अपन महतारी बाप ला कोई सुख नइ देवय । जंगल जंगल किंजरहि अऊ दूसर ला सुख दिहि । जिनगी भर संघर्ष करही । जबकि रावण हा सुखे सुख म रहि । दुनिया भर के सुख सुविधा हा ओकर दास रहि । ओकर बर दूसर मन संघर्ष करही । जनम धरते साठ सिंघासन पा जही । अतेक वैभववान के माता नइ बनना चाहबे का .. ? तोला अपन पुत्र के कारण मान सनमान मिलय ... अइसन इच्छा नइये का ? तोला योग्य देख अलग से बुलाके पूछे हँव । सभा म तोर से योग्य कोई नइ दिखिस । फेर तैं नहि कहिबे त ... दूसर योग्य मईलोगिन ला खोज के इही बात ला कहूँ । सभा म कहि देतेंव ते कतको झन .. बिगन योग्यता वाली मन घला .. मेहा बनहूँ रावण के महतारी कहत आ जतिन ... मोला मुश्किल हो जतिस । मईलोगिन ला अपन से योग्य आज तक कोन दिखे हे ... तेकर सेती ओकरो मन म आगे अऊ कुछ जाने के अऊ प्रशंसा सुने के इच्छा तीव्र होगे । मईलोगिन हा इंद्र के पाँव परत किथे – ओ तो ठीक हे इंद्र देवता । फेर दुनियाँ म हरेक मनखे हा मोला रावण के महतारी अस कहिके गारी बखाना करही तब ... मोर का होही .. ? नही ... मोर से नइ होय । इंद्र किथे – तोर बेटा रावण आय तेला .. तोला गारी बखाना कर सकइया मन … जान ही नइ सकय । ओला तो भगवान ब्रम्हा हा मरे के बेर बरदान दे हाबे के ओला कोनो चिन्हय निही । अच्छा ... मानलो कोनो जानगे त अतेक ताकतवार रावण के कोनो कुछ बिगाड़ नइ सकय । अऊ उही पुत्र रावण के सेती .. तोला कोई कुछ नइ कहि सकय । जब तक पद पावर सत्ता म रइहि तभे तक ओहा रावण रहि ... बाकी समे जनता संग खड़े .. छद्म राम बन जहि । अब बता कोन जानही भलुक .. ।  

          इंद्र के छल काम कर गिस । मईलोगिन हा ओकर बात म आगे । ओ तैयार होगे । मईलोगिन पूछिस – एकर बर मोला का करे बर परही ? इंद्र हा बतइस – आज ले पूजा छोंड़ देवव .. तुँहर समे बाँचही । ससुराल म अपन से बड़े के इज्जत करे ला छोंड़ दव .. तुँहर मान मइके म बाढ़ही । सब ला पदोवव । व्यभिचार म बुड़ जावव । मास मछरी बिगन भात झन खावव । मंद मउहा म नहावत रहव । लबारी मारव .. बईमानी करव ... भ्रस्टाचार म सना जावव । इँकर ले आसान बुता कोई नइये ... तेकर सेती तूमन ला अपन जान के बतावत हँव । मईलोगिन हा हव कहत खुशी खुशी अपन घर पहुँचके इही सब बुता ला अजमाना शुरू कर दिस । इंद्र हा जानत रहय के एक झन मईलोगिन के कोख म ओ ताकत नइये के वोहा अतेक बड़ रावण ला धारण कर सकय .. । ओहा अइसने युक्ति कतको झन मईलोगिन तिर अजमइस । सुख सुभित्ता के नाव म कोन पिछु घुचही । मईलोगिन के संख्या बाढ़गे । स्वर्ग म ब्रम्हाजी ला उपाय बतावत इंद्र हा किहीस के .. रावण बर बहुत अकन मईलोगिन के कोख तैयार हे .. ओला एक झन धारण नइ कर सकय .. ओकर जीव के कुटका कुटका करके अलग अलग कोख म आरोपित कर देवव । बिचारा ब्रम्हाजी घला जनम के सिधवा ... इंद्र के चालबाजी ला न पहिली समझे रिहिस न अभी समझिस .. हव कहत रावण के जीव ला केऊ ठिन नान नान कुटका म विभाजित करके ... एती ओती बगरा दिस । जतका योग्य महतारी मिलत गिस ... सबके कोख म रावण पहुँचगे । जगा जगा रावण के पुनर्जन्म होगे । जे घर म बिगन मेहनत करे ... अपने अपन धन दोगानी हा अड्डा बना लिस ... जिंहा व्यभिचार ला खाये बर भात .. सुते पर दसना अऊ रेहे बर कुरिया मिलिस तिंहा रावण के जीव के कुटका हा मंडराये लगिस । महतारी के पेट म रावण के खुसरतेच साठ ओ घर म धन दोगानी के पुरा बोहाये बर धर लिस ... बपरा कुबेर तो पहिली भी रावण से हारे रिहिस ... यहू दारी ओकर आये के पहिली ओकर घर ला साधन सुख सुविधा धन धान्य ले पाट दिस । परोसिन मन अपने अपन परेशान होय लगिन । भेद खुलत गिस । धीरे धीरे परोस म घला उही वातावरण बनगे ... रावण के जीव के एक कुटका ओकरो पेट म हमाके ओकरो घर ला भर दिस । कुछ दशक म घरों घर रावण आगे । धरती म आतंक बाढ़गे । धरती थर्राये लगिस ।  

          अब दुनिया म कोनो महतारी ला रावण बियाये म लाज शरम अऊ झिझक नइ रहि गिस । बल्कि गरब के अनुभौ करे लगिस । येती धरती महतारी के मुड़ के बोझा के वजन बाढ़त जावत रिहिस । भगवान रांम ला सुरता करिस । भगवान किथे – एक झन दू झन होतिस ते मारतेंव नोनी । अतेक अकन ला काइसे मार सकहूँ या .. । फेर येमन मोर हाथ ले मरही तहन सरग चल दिही ... तहन सरग म झंझट खड़ा हो जही । रावण के जीव हा जब एके म रिहीस तब .. आज के रावण मन ले फेर भी ठीके रिहीस । कम से कम सरी बुराई हा एके जगा सकलाये रिहिस ... अब कुटका कुटका म बँटाके अलग अलग जगा के दुर्गति करत हे । धरती माता किथे – हव प्रभु .. । ओ समे के रावण हा केवल अपन जीव ला तारे बर तोर संग बैर करके माता सीता ला चोरा के लेगे रिहीस ... अब के रावण मन केवल दूसर ला मारे बर ... अऊ सुख पाये बर माता ला रोज चोरावत हे । तब के रावण हा माता के संग कोई दुराचार नइ करे रिहीस .. अब के रावण मन केवल दुराचार म लिप्त हाबे । तब रावण हा दूसर के सम्पत्ति ला हड़पके अपन देश म ले आने अऊ अपन देश ला समृद्ध करत रिहिस .. अब के रावण मन अपन देश के धन दोगानी म दूसर देश के कोठा भरत हे । ओ समे रावण हा अपन देश के भुँइया ला कभू नइ बेंचिस .. अभी के रावण मन रोज अपन देश ला नीलाम करे म तुले हे । तब रावण हा काकरो हक नंगाये बर उदिम नइ करय .. अब रावन हा केवल दूसर के हक नंगाये बर दिन भर व्यस्त अऊ मस्त रहिथे । ओ समे रावण कभू लबारी नइ मारिस ... अब कोनो बात बिगन लबारी मारे नइ करय । तब के रावण हा तो भगवान शिव के पूजा म अपन मुड़ी चघा देवत रिहिस ... अब दूसर के बलि चघा के को जनी काकर पूजा करत हे ... धरती माता सुसके लगिस । 

          एती ब्रम्हाजी ला भगवान हा तलब करिस । ब्रम्हा जी बतइस – का करबे भगवान ...  मेंहा नइ जानत रेहेंव के मोर वरदान के सेती अतेक बड़ दुर्घटना घट जहि कहिके ... । मोला इंद्र हा भरमा दिस । मोर वरदान के सेती ... येमन ला तैं मार नइ सकस । कोनो साधारण मनखे हा .. ये रावण ला चिन्ह नइ सकत हे .. तेकर सेती अइसने मन देश म अगुवा बन चुके हे । येला मारही त ओकरेच बंधु बांधव मन ... फेर ओमन तो अतेक एकमई रहिथे के ओकर मनके बीच वैमनस्य पैदा करना बहुत कठिन हे । मेहा यहू करके देख डरेंव .. एमन एक दूसर ले लड़िन जरूर ... फेर मरिन निही बल्कि जेमन ओकर भाई बंधु नोहे तिही मन .. इँकर लड़ई म मरिन अऊ दुख भोगिन । एक दूसर ला मारे बर खुल्ला छूट दे देंव तब येमन .. कभू आतंकवादी .. कभू चरमपंथी .. कभू जेहादी .. त कभू नक्सलवादी बनके .. कहूँ कहूँ तिर उभर गिन ।

          भगवान हा ब्रम्हाजी ला किथे – ओ समे विभीषण हा बताये रिहीस के .. रावण के प्राण हा ओकर नाभि म लुकाये रहिथे । सीधा ओकर पेट म वार नइ करवातेस जी । ब्रम्हा जी किथे – दूसर के पेट म लात मरइया मन को जनि कति तिर अपन प्राण ला लुकाके राखथे .. पता नइ चलय । विभीषण ला येमन अपनेच दरबार म पालके राखथे । ओ का बताही ... ? इँकर पार पा सकना मोरो बस म नइहे । भगवान हाँसिस .. । ब्रम्हाजी किथे – तोला हाँसी सूझे हे ... मोर का हालत होही तेला मिही जानहूँ । एक बेर एक झिन रावण के प्राण हरे बर यमदूत मन गिन .. देंहें पोट पोट करत रिहीस .. साँस के गति मंद हो चुके रिहीस ... तबले ओकर दुष्कर्म के मोह छुटे नइ रहय । ओहा अपन प्राण ला धन दोगानी रूपया पइसा के बंडल ले तरी म खुसेर के राखे रिहीस । जइसे ही ओकर धन दोगानी रूपया पइसा के उपर छापा परिस ... ओकर प्राण बाहिर निकल अइस ... जावत समे उही हा अपन अगला कुटका के भेद बतइस । दूसर रावण के प्राण ... बम बारूद ले भरे बंदूक के नली म खुसरे रिहिस ... बंदूक ला जइसे नंगइन ... उहू जीव पकड़ागे । जावत जावत यहू हा अपन संगवारी के पता बतइस । ओकर संगवारी के बड़े जिनीस पेट .. हाथ म न पइसा के बंडल ... न बंदूक .. । इँकर प्राण हा खुर्सी म लुकाये रहय ... । यमदूत मन अइसन मन के प्राण ला हरे के हरेक उपाय म असफल हो गिन । इही रावण मन .. बाकी दुनों ला फेर जिया डरिन भगवान .. अब बता .. मय का करँव ? मोला घाव ठीक करे बर आथे भगवान ... येमन नासूर आय .. ओला ठीक करे के कोई उपाय मोर तिर नइये । तोला अब आयेच ला परही अऊ येमन ला धरती ले मेटाये ला परही । 

          भगवान किथे – तैं न ब्रम्हा जी । बड़ विचित्तर प्राणी अस । उल्टा सीधा वरदान देके निकल लेथस अऊ ठीक करे बर मोला बलाथस ... जानो मानो मोर अऊ दूसर काम धंधा नइये तइसे । अब तिहीं बता ... अतेक रावण ला कइसे मार सकहूँ .. । कति मोर बर माता कौशल्या बनही .. ? ब्रम्हा जी किथे – ओतो ठीक हे प्रभु ... महूँ अपन तनि ले कसर नइ छोड़े हँव जी .. कोनो न कोनो उदिम रचतेच हँव । जतका अकन रावण के प्राण सकला जथे तेला .. रावण मरे के दिन ... हरेक बछर .. रावण के पुतला बनवाके .. ओला उही म आरोपित कर ... ओकरे बंधु बांधव के हाथ से लेसवा देथँव .. । ओ जीव हा राख बन जथे फेर .. जे रावण के प्राण कुर्सी म लुकाहे ... तेकर का उपाय ? भगवान किथे – ओकर बर मय खुदे जाहूँ ... फेर में देंहें धरके नइ जाँव ... में विचार म पैदा होहूँ .. । राम अब धरती म जनम नइ धरय बल्कि इँहे राम बनही .. । ब्रम्हाजी हा भगवान के गूढ़ रहस्यमयी बात ला समझिस निही । प्रश्नवाचक मुहुँ बनाके देखे लगिस । तब भगवान किथे – रा माने राष्ट्र अऊ म माने मंगल करइया । जे अपन राष्ट्र के मंगल सोंचही उही सबो मन .. राम .. हो जही । ब्रम्हाजी प्रश्न करिस – फेर राम ला धरती म कोन खड़े करही भगवान ... ? भगवान किथे – मोला त्रेतायुग कस कैकेयी खड़ा करही । ब्रम्हाजी किथे – तब तो धरती म तोर आगमन असम्भव हे भगवान । इहाँ जगा जगा मंथरा किंजरत हे .. । एन बखत म कैकेयी ला भरमा देथे । फेर अतेक अकन कैकेयी लानबे कहाँ ले ... जे अतेक कस राम खड़ा कर सकय ,.. ? भगवान किथे – कैकेयी बाहिर ले लाने बर नइ परय ... इहाँ रहवइया आम जनता हा कैकेयी आय .. । ओला अभी घला मंथरा मन भरमावत रहिथे अऊ राम ला जंगल जंगल भटके बर मजबूर करत रहिथे । फेर कैकेयी के दूध म ओ ताकत हे के ओहा राम ला जंगल म घला खड़ा कर डरथे अऊ रावण के विनाश हो जथे । आज रावण पग पग म खड़े हे ... रावण ला कन्हो चिन्ह नइ सकत हे । में विचार बनके जनता के बीच जाहूँ अऊ रावण ला मारे के उपाय बताहूँ । ब्रम्हाजी पूछिस – उपाय ... ? का उपाय भगवान .. ? तैं डाइरेक्ट नइ मार सकस का उनला तेमा ... ? भगवान किथे – तोर बरदान के लाज राखे बर रावण ला मार सकना सम्भव नइये । जे रावण के प्राण कुर्सी म लुकाहे ... जेकर प्राण कुर्सी म बसथे ... बस ओकर कुर्सी ला नंगा लेना हे ... ओहा अपने अपन ..... के मौत मर जही । निही ते हरेक बछर तैं पुतला बनवा के लेसवात रहिबे ... रावण हाँसत रइहि .. बछर दर बछर ऊँचाई अऊ संख्या ... दुनों बाढ़त रइहि अऊ सबो ला चिढ़ावत कहत रहि ... मिलबो अवइया बछर । 


हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

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