Thursday 28 October 2021

खुशी - सरला शर्मा दुर्ग

 खुशी - सरला शर्मा दुर्ग

    कब , कइसे , कहां , कोन रूप मं मिलही कोनो नइ जानयं ?  इही देखव न आज गूगल मं कुछु काहीं देखत रहेवं त नज़र परिस एक ठन  विज्ञापन ऊपर फ्लिपकार्ट से बिसावव " माटी के मितान " सरला शर्मा ....फेर का ?खुशी होइस अउ बहुत होइस ...। मन हर चिटिक थिराइस त गुनेवं हे भगवान ! एहर टेटका सहरावय अपन पुछी ले बहुते कुछु नोहय , तभो मन तो आय नाचे कूदे मं मगन मात गिस ...का करवं ये मन ल कोनो  दूसर डहर लगाए बर परही गुनते रहेवं के पोस्टमेन आइस ओकर हाथ ले बुक पोस्ट ले के ओला बिदा करके ..देखेवं ..." छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर " अक्टूबर से दिसम्बर 2020  अंक आय । बड़ दिन के बाद लोकाक्षर ल देख के भारी खुशी होइस ...ठीक कहेव खुशी के एक रूप एहू हर तो आय । हाथ मं किताब आथे त पढ़े के लोभ सम्हारना मोर बर बड़ मुश्किल होथे ...। 

  ये अंक मं आदरणीय नन्दकिशोर जी के लिखे छत्तीसगढ़ी लोक गाथाएं , प्रेम की छत्तीसगढ़ी लोकगाथा ....नगेसर कइना , बीरम गीत के बहाने , भूला बिसरा कवि पंडित गंगा प्रसाद तिवारी , संत परम्परा के प्रवर्तक कबीर और मान्याताएं  असन अनमोल जानकारी वाला लेख संग्रहित हे । " चयन" मं 1 पाना के करत हे सिंगार गोरी 2 अहो ! भगवान 3 चंदन सुधि पुरवा कर डारेवं ...के समीक्षा उन करे हंवय ...। 

   सबले बढ़िया बात के सबो लेख मन सहज , बोधगम्य हिंदी भाषा मं लिखाये हें । पहिली लेख हर तो छत्तीसगढ़ी लोक गाथा के बारे में शोधात्मक लेख आय जेमा लिखित परम्परा अउ वाचिक परम्परा दुनों के लोकगाथा मन के विस्तार से जानकारी देहे गए हे ...आयातित गाथा रसालू कुवंर , दसमत कइना , चन्दा अहीरिन , लोरिक चन्दा के सुघर वर्णन हे । 

" इस तरह की लोकगाथाएं जो हमारे सामने हैं उसमें आधुनिक युग चेतना का सम्मिश्रण मिलता है । छत्तीसगढ़ी भाषा को खड़ी बोली का सहज स्पर्श छत्तीसगढ़ी गाथा की लोकरजंकता में वृद्धि करता है । इन गाथाओं की सामाजिक प्रतिष्ठा के केंद्र में गाथाओं के गायकों का छत्तीसगढ़ी की विभिन्न जातियों से आना है इसीलिए गाथाएं छत्तीसगढ़ी जाति और समाज का भी प्रतिनिधित्व करती हैं । " पृष्ट 21 

    नवा प्रयोग देखे बर मिलिस " रूपक " के रूप मं " बीरम गीत के बहाने " मं ...आय तो गुरु शिष्य संवाद गीत मन के सुग्घर व्याख्या करे हें तिवारी जी ..। बानगी देखव ....

गुरु...." बीरम गीत सामाजिक दासता के विरुद्ध प्रतिरोध का तो सुआगीत सामाजिक प्रताड़ना के विरुद्ध होते हुए विरह संगीत है । " 

  संस्कृत साहित्य के अध्येता होए के सेतिर बढ़िया प्रासंगिक उद्वरण देके बीरम गीत के उतपत्ति , साहित्य मं ओकर स्थान ल समझाए हंवय ..। वसुधैव कुटुम्बकम् जैसन बात हो गिस ज़ेहर छत्तीसग़ढ के संस्कृति के पहिचान भी ए विशेषता भी ए । पृष्ट 50

 संत परम्परा के प्रवर्तक कबीर और मान्यताएं .....ओ समय के सामाजिक , आर्थिक , सांस्कृतिक घटक मन के सांगोपांग विश्लेषण  सहित संत परम्परा के विशद विवेचना घलाय आय । योगमार्गी , वज्रयानी साधना पध्दति ,बौद्ध सिद्ध मन के शून्य पद्धति जेला निराकार के खेला कहिथन ओ सब के प्रसंगानुसार उल्लेख हर कबीर दर्शन अउ साहित्य ल समझे बर दिशा निर्देशक के काम करे हे । " संत सम्प्रदाय के सामने एक दूसरी चुनौती सांप्रदायिकता की थी दोनों के बीच सामंजस्य और सद्भाव स्थापित करना समय की मांग थी । कबीर ने दोनों सम्प्रदायों के कठमुल्लेपन पर प्रहार करते हुए सहज साधना के महत्व का आख्यान किया । " 

  पृष्ट 66 . 

       " अथ श्री कचना घुरवा कथा " नाट्यकार श्री नन्दकिशोर तिवारी ....इस नाटक की सारगर्भित समीक्षा राम नाथ साहू ने की है ...उन्होंने लिखा है ", इस प्रकार लोक तत्वों से लबरेज यह नाटक रंगमंच की दृष्टि से पूरी तरह सज्जित है जिसे कोई योग्य रंग निर्देशक , अपनी रंग दृष्टि से और भी निखार सकता है । परंपरागत चले आ रहे शिल्प विधान के साथ ही साथ नाटककार ने अपना यहां नूतन शिल्प विधान ईजाद किया है और लोक कथा के साथ ही साथ आधुनिक भाव बोध और मनुष्य की गरिमा और उद्दातत्ता को बहुत ही सहज भाव से प्रस्तुत किया है । " पृष्ट 80

   बढ़िया समीक्षा हे जेला पढ़ के मूल नाटक ल पढ़े के मन लागे लगिस ..समय सुजोग मिलही त जरूर पढ़िहंव ...काबर के पढ़े ले खुशी मिलही न ? अब जाने पाएवं के लिखे मं जतका खुशी मिलथे , अपन लिखे किताब ल कोनों मेरन देख के जतका खुशी मिलथे तेकर ले जादा खुशी विद्वान लेखक के लिखे ल पढ़ के होथे त समीक्षक के निष्पक्ष समीक्षा हर मूल किताब ल पढ़े के धुन जगा देथे । 

    आज मोर मन -अंगना मं जेतरह खुशी बगर गिस आप सबो बुधियार पढ़इया ,लिखइया मन ल भी ओतके खुशी मिलय । 

   सरला शर्मा 

   दुर्ग

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