Saturday 2 October 2021

व्यंग्य-गांधी जिंदा हे -हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन छुरा

 गांधी जिंदा हे -हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन छुरा

                    सरग म ब्याकुल गांधी जी एती ओती किंजरत हे । कन्हो बूता म मन नइ लगत रहय । भारत के कन्होच मरहा खुरहा मनखे ले मुलाखात के मन लगे रहय । भारत भुँइया के हाल चाल जाने के प्यास मछरी कस तड़पावत रहय वोला । दुनिया ले विदागरी के पाछू अभू तक .... एको झिन भारत के रहवइया मनखे संग भेंट नइ होये रिहिस । दूसर देश के मनखे मन घला ओखर तिर म ओधे लइक नइ रिहीस । चित्रगुप्त ल गांधी जी के दुख पीरा नइ देखे गिस । ओहा सोंच डरीस आज मरइया अइसन भारतीय .. जे ओकर तिर बइठे के पातुर होही .... जे ओकर गोठ समझे के लइक होही .... तेला गांधी जी तिर जरूर अमराहूं । गांधी जी ल घला इतला कर दिस के ... तोर देस के मनखे के संग भेंट करे के सऊँख आज पूरा होही अऊ ओतके बेर .... तुरते मरे मनखे ला गांधी के आगू म ठेल दिस । 

                    गांधी जी हा .... ओ मनखे ला पोटारत भीतरी म लेगिस । बईठे बर पीढ़हा मढ़हाइस । हाल चाल गोठ बात पूछे लागिस । ओ मनखे हा न हूँके न भूँके .... तब गांधी जी हा ओला ध्यान से देखिस .... वो मनखे हा कोंदा भैरा अउ अंधरा रहय ..... मुड़ी धरके बइठगे गांधी जी । बाहिर निकल के चित्रगुप्त ला गोहारे लागिस के .... अइसन मनखे ल काबर पठोये होबे मोर तिर ... न गोठियाये .... न सुनय .... अऊ ते अऊ ओला दिखय तको निही । वापिस लेग जा अइसन मुड़पिरवा ल । चित्रगुप्त केहे लागिस - तोर बर बोलइया ... सुनइया अऊ देखइया मनखे कतिंहाँ ले लानव ? तोर देस म ... जे बोलथे ... जे सुनथे अऊ जे देखथे .... तेमन ... तोर तक पहुँचे के काबिल नइये । तोर देस म सरग आये के पातुर मनखे ... न गोठिया सकय .... न सुन सकय ...... न देख सकय । हालँकि तोर देस म अभू घला बहुत अइसे मनखे घला रहिथे जे गोठिया तो सकथे फेर का करबे ..... ओकर अवाज ल कन्हो सुनय निही । ओमन सुन तो सकथे फेर .... ओला केवल भाषण आश्वासन भर सुनाई परथे ... वहू हा केवल सुनाथे भर .. समझन नइ देवय । वोमन देख घला सकथे फेर देखे के पाछू केवल आँखी मुँदे रहि सकथे .. जेला देखे हे ते सच ला .... बतावन नइ देवय । गांधी जी फेर पचारिस - यदि अइसन मन म कन्हो सरग आये के काबिल होही ... त कम से कम उही ला भेज देतेव । चित्रगुप्त किथे - जे आये हे तोर तिर ... ते उइसनेच मनखे आय । वा ... त येहा तो कहींच ऊँ सूँ कहींच नइ करत हे – गांधी फेर किथे । चित्रगुप्त किथे - गांधी जी .... ध्यान ले सुन मोर गोठ  ..... | ये उहीच किसिम के मनखे आय । येहा जब गोठियाये बर धरिस त एकर मुहूँ ल थुथर दिन । देखे बर धरिस त आँखी ल कोचक दिन । सुने ल धरिस त कान ल हुदर के भैरा बना दिन । अऊ कोन करिस बतावँव ........ ? तोरे चेला चंगुरिया मन ...... । जेमन ल तेंहा अगुवा बना के आये रेहे .... तिही मन येकर बारा हाल करीन । अऊ सुन .... येहा तोर देश के उही जनता आय जेकर सुख के कल्पना अऊ कामना बर तेंहा अपन जिनगी होम करदे रेहे । तोर देश के दशा अतका बिगड़ चुके हे तेला तैं झन जानस कहिके .... बपरी जनता ल आज तक तोर संग भेंट नइ कराएँव । आज तोर व्याकुलता देख ... मोरो मन बेचेन होगिस । तेकर सेती येला लान दे हँव । तोला तोर देश के बारे म जाने के बड़ सऊँख हे न ....... ले एकर आँखी नाक अऊ कान ल वापिस करत हँव । अतका कहिके झम्मले लुकागे चित्रगुप्त । 

चित्रगुप्त के जातेच साठ .... वो मनखे गोठियाये लागिस । ओ मनखे हा गांधी जी ला पूछथे ....... तैं कोन अस जी ? इहाँ कब ले रहिथस । इहाँ चुनई मुनई नइ होय का ?

गांधी किथे ........ मय कोन अँव । कबले इहाँ हाँबव तेला पाछू बताहूँ । फेर चुनई के काये मतलब ? 

                     वो मनखे किथे .... तहूँ न बबा निच्चट अस जी । हमर देस म चुनई आथे तँहले फोकट म चऊँर कपड़ा लत्ता अऊ (लजावत कथे) मंद मउहा घला मिलथे । इहाँ नइ होवत होही किथँव बबा तभे तोर देहें म नानुक फरिया कस कपड़ा लटके हे । तोर देंहें हाड़ा हाड़ा दिखत हे । कबके खाये कस पेट चेपट गेहे । देहें के बनवट देख के लागथे मोरे कस मंद मऊहा के घला सऊँख नइ राखस । 

                    गांधीजी मुस्कुरा दिस अऊ पूछिस .... पहिली तेंहा ये बता ... जेन भुँइया ले तैं आये हाबस ... तेहा कइसे हे ? उहाँ के लोगन कइसे हे ? मोर अखंड भारत कइसना हे ? 

                    वो मनखे किथे .... जगा भुँइया का बने रही बबा । बन बांदुर कस मनखे मन के रूख जामे हे । रहवइया के हाल बेहाल हे । कते तिर अखंड भारत हे तेला नइ जानव । काबर जेती अऊ जतका दूरिहा ले नजर परथे .... भारत खंडेच खंड नजर आथे । कहुँ तिर धरम ... कहुँ तिर जात पात ... त कहुँ तिर भाखा क्षेत्र के नाव लेके .... कुटका कुटका म बाँट डरे हे देश ल बैरी मन । 

गांधी सुकुरदुम होके पूछिस ..... अऊ देश ल चलइया मन ? 

                     वो मनखे किथे ... उहीच मन तो हमर देश के अइसन दशा बर जुम्मेवार हे । जऊन ला अपन कहिथन तउने ... हमरे बखरी ला उजारथे । तहन पेट ल हमर काट के देखावटी सुलहारथें । देश ल चरागन भुँइया बना डरिन ... चोरहा मन ... हमर सरी चीज बस ल परदेश म डोहारथें । 

गांधी हड़बड़ागे अऊ प्रतिप्रश्न करिस ... एकर मतलब गांधी के सपना उहाँ ऊँघावत हे ? 

                     वो मनखे किथे - गांधी ...... कोन गांधी ? अच्छा उही गांधी .........। ओकर सपना ऊँघावत निये सुत चुके हे । गांधी सिर्फ नाम हे बबा उहाँ । खुरसी पोगराये के साधन आय गांधी उहाँ । अजादी बर लड़इया मनखे मन .. अंग्रेज के कोड़ा के मार ल ये पायके भुलागे हे के ... करिया अंग्रेज मन के फूल के मार म .... जादा धार होगे हे । काली तक आजादी बर लड़ेन .... आज आजाद हन तेकर सेती लड़थन । रहीस गांधी के गोठ अऊ ओकर सिद्धांत के पालन के .......... । त सुन बबा .... गांधी जी कमती कपड़ा पहिरे के हिमायती रिहीस । काबर के गरीब के नसीब म ओतकेच कस अंगरखा रिहीस । आज जेकर तिर कहीं बात के कमी निये .... तिही घरके मोटियारी नोनी मन ..... ए धरम ल निभावत हे । अऊ ओकर चेला चंगुरिया मन .... झकाझक सादा कुरता पहिरके .... जगा जगा नंगरा नाच रचावथें । पंचइत ले संसद तक .... कोनो बुरा नइ देखे ..... बुरा नइ सुने ..... बुरा नइ बोले । सिर्फ बुरा करथे ........ काबर एकरे बर .... गांधी बबा ह मना नइ करे रिहिस । 

गांधी किथे .... एकर मतलब गांधी अप्रसांगिक हो चुके हे अभू ? गांधी मर तो नइ गेहे ?

                     वो मनखे किथे - निही गा .... गांधी अप्रसांगिक निये । वो जगा जेहा ... बिकास ले कोसो दूरिहा हे अऊ ओ मनखे ... जे भूख गरीबी बेकारी अऊ तंगहाली ले जइसे तइसे अपन जिनगी के गाड़ी खींचथे या वो मनखे जे सरकारी सुभित्ता के हकदार होके घलो .... ओकर ले वंचित हे उही मन .... गांधी ल जिंदा राखे हे हमर देश म । जेकर खाँध म धरम न्याय सत्य अहिंसा के सकल भार सहे के ताकत हावय .... उही मन ओकर जनमदिन ल भलुक नइ मना सकय फेर .... उही मन के मानना हे के गांधी जिंदा हे । फेर ओमन देखा नइ सकय अऊ बता नइ सकय के गांधी जिंदा हे । अऊ जे मनखे छिन छिन म ओकर अऊ ओकर बिचार के हईता करत हे तिही मन .... बछर भर म एक बेर जनमदिन अऊ पुण्यतिथि मनाके देखावत बतावत हे के .... गांधी जिंदा हे । फेर तेंहा काबर जानना चाहथस ये बात ला ? तोर कुछू लागमानी आये गा ओहा ? 

                     गांधी रो डरीस अऊ बताये लागिस .... मिहीं हरँव वो अभागा गांधी .... जेकर बिचार ल उलट के .... बइरी मन देश के ... सफ्फा नकसान करे बर तुले हे ।

                    वो मनखे मुहु फार दिस ......... का ....... । बक्का नइ फूटत रिहिस । एक घूँट पानी घुटक के किथे – भगवान कसम ..... नइ जानत रेहेंव बबा .... तैं गांधी अस कहिके .... । नइते नइ गोठियतेंव अतक अकन गोठ । ओकर गोड़ म गिरके माफी मांगे बर लागिस । गांधी जी हा .... ओ मनखे ल अपन बाहाँ म भर लिस । छाती म चिपका लिस । 

                     आसूँ पोंछत भरभराये गला ले केहे लागिस गांधी - जे मनखे सच गोठिया सकथे .... सच सुन सकथे अऊ सच देख सकथे ..... उही तो गांधी आय बेटा । मेंहा बड़ सोंचव के .... एक घाँव फेर जातेंव भारत म । फेर तोला देख के लागथे के .... मोर जाये के कुछू जरूरत निये ..... उहाँ गांधी  चिंगारी आजो जिंदा हे । कतको तोपहीं बेर्रा मन .... एक न एक दिन अइसे बड़ोरा आही के .... उही चिंगारी हा .... दावानल बन जाही अऊ देश के कायाकल्प हो जही । मोला लागथे वो दिन दूर निये .... जब गांधी पूरा भारत हो जही अऊ पूरा भारत गांधी । 

 हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन छुरा

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