Sunday 25 June 2023

बादर के नाव चिट्ठी*

 *बादर के नाव चिट्ठी*




आदरणीय बादर महराज,

                              सादर पायलागू ।

अबड़े दिन होगे महराज तुहँर कोनों खोज खबर नइहे ।तेकर पाय के ये चिट्ठी ला लिखत हावन । येदारी अबड़े दिन होगे तभो ले दरसन नइ देय हव । रिसाय हावव लागथे।पन्दरही होवत  हावय असाढ़ ला आये तभो ले तुहँर आरो नइ चलत हावय। इहाँ भुइयाँ मा तुहँर रद्दा जोहत मनखे ,चिरई चिरगुन,जीव -जंतु जम्मो गरमी मा बेहाल हो गय हावयँ।असाढ़ हा जेठ कस जनावत हावय घेरी बेरी मुँह हा सुखावत हावय दू घुँट पानी के परे ले जीव हा जुड़ाथे।भुइयाँ मा भोंभरा तीपत हावय ।घर ले बाहिर निकलबे तहाँ सुरुज देव के तने भृकुटि ला देख के करेजा मुँह मा आ जावत हे।घाम मा देह के चाम हा सुसकी मछरी कस भुँजा जावत हे।  तुहँर किसनहा बेटा हा मुड़ी मा हाथ धरे मुँह ला फारे टकटकी लगाय उपर ला देखत हावय फेर कोनो मेर तुहँर नाव निशान नइ दिखत हे।जइसे बाढ़े बेटी के बिहाव के चिन्ता दाई ददा के चेहरा मा दिखथे वइसनहेच चिंता किसनहा के चेहरा मा घलाव दिखत हे तुमन आके पानी बरसाहव तभे तो खेती पाती के तियारी ला शुरू करही ।बीजहा ,खातू ,माटी जम्मो जिनिस तुहँर बिन कुछु काम के नइहे।तुहँर पानी बरसाय ले किसनहा अन्न उपजाही तेखर ले मनखे के पेट भरहीं।तुहँर बिन तरिया नरवा सब सुक्खा परे हे येखर कारन जीव जंतु मन घलौ पियासन मरत हावयँ।पालतू जीव मन तो पानी पा घलो जाथें फेर जंगल के जीव जंतु मन अपन पियास ला कइसे बुझाही महराज ।जंगल मा तो जम्मो जल के स्रोत हा सुखागे हावय। येदारी तो तुमन साल मा कइयो पइत बिन मौसम के बरसे हव फेर आय मौसम मा आँखी मूँद लेय हव ।तुहँर गुस्सा हा जायज हे महराज अउ तुमन ला रिसाय के हक घलौ हे फेर हम मनखे मन के अतरंगी के सजा आन जीव जंतु मन ला मत देवव महराज।

हम मनखे मन मूरख ,लोभी अउ घमंडी हावन।विकास के नाम लेके जंगल के जंगल उजार डारेन । पहाड़ ला फोर डारेन।नदियाँ ला छाँद बाँध डारेन।भुइयाँ ला खोद के जम्मो रत्न ला निकाल डारेन तभो ले हमर पेट नइ भरीस। हमर स्वारथ के आगी मा सबो तहस नहस होगे।प्रकृति दाई के कोरा उजरगे।मौसम घलौ के मूड हा बिगड़े बिगड़े हावय।जघा जघा कचरा के मारे भुइयाँ पटा गे हावय।मोबाइल रेडियेशन ,कीटनाशक ले कतको जीव -जंतु, चिरई -चिरगुन, के अस्तित्व हा संकट मा परगे हावय।फेर हमर आँखी मुँदाय हावय।केदारनाथ हादसा,सुनामी,कोरोना काल हा हमर गाल मा प्रकृति के जोरदार चाटा आय फेर पीरा के रहत ले सावचेत रहिथन तहाँ उही रद्दा मा रेंगे लगथन।तिरछा रेंगे के आदत हो गईस हावय त सीधा रेंगेच नी सकन।भूकंप, सूखा, बाढ़ जइसे प्राकृतिक आपदा ले घबराथन ता सोझ चले के किरिया खाथन फेर चारेच दिन मा किरिया टूट जाथे अउ हम कुकुर के  पूँछी कस टेढ़वा के टेढ़वा रही जाथन ।ये दारी बिपरजाँय तूफान ले थर्राय हन ।मानसून के लेट लतीफी हा हमर चिंता के कारण बन गे हावे।पानी नइ गिरही ता अन्न नइ उपजही फेर खाबोन काला।पीये के पानी कइसे मिलही।भुइयाँ के छाती  मा छेदा करके जम्मो जल  ला निकाल लेहे हन।भूमि गत जल स्रोत हा सुख गय हे।मुड़ी मा खतरा  ला माढ़े देख के संसो होवत हे।हमर आँखी हा तुहँर करिया करिया मुख ला देखे बर तरसत हे अइसे तो हम मनखे मन गोरिया रंग के  प्रेमी हावन करिया रंग हमला चिटिक नी भावय फेर बादर हा करियाच बने लागथे।हमर कवि गीतकार  मन घलौ तुहँर करिया रंग ऊपर अतेक कन गीत कविता लिख डारे हे कि झन पूछव। आ जावव महराज जल्दी आवव ।हमर गल्ती बर माफी देवव ये दारी हमन बरसात मा एक ठन पेड़ जरुर लगाबो।


तुहँर अगोरा मा

रद्दा जोहत

भुइयाँ के जम्मो मनखे




चित्रा श्रीवास

बिलासपुर

छत्तीसगढ़

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