Sunday 25 June 2023

लतका-लादका

 लतका-लादका

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    (छत्तीसगढ़ी लेख)

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       *बईला के गरदन म दू ठन मोटा लकड़ी ल एक साथ जोड़ के बीच  भाग ल उल्टा यू आकार म बनाए रहिथें,तऊने उल्टा यू आकार भाग ल बईला के खांध म लटका दिए जाथे, एही ल " लतका" कहे जाथे |*

     *जब कोई बईला  जवान ह़ो जाथे, हृष्ट -पुष्ट हो जाथे,खेती-किसानी के काम म नांगर-गाड़ी म फांदे लाईक हो जाथे, तब ओ अदरा बईला ल खेती-किसानी के बूता म नांगर-गाड़ी म फांदे के पहिली असाढ़ लगते ही ओकर खांध म ए "लतका" ल बांध दिए जाथे अउ पखवाड़ा-महीना भर तक बईला के खांधा म "लतका" बांधे रहिथें तभे ओ बईला के गर्दन म मौजूद स्वाभाविक गुदगुदी ह कम हो जाथे अउ नांगर या गाड़ी म फंदाते ही जेती पाथे-तेती नइ भागय | गाड़ी -नांगर  ल टोरय-फोरय नही ! कोनो मनखे ऊपर झपावै नहीं | कोनो रूखवा म  झपावै नहीं |*

     *किसान भाई मन अपन अदरा अउ घरौछा बईला के खांधा ऊपर "लतका" डार के नाक ल छेद के रस्सी लगाथें अउ "मुहरक्की" म एक लम्बा रस्सी   बांध के अपन हाथ म लगाम थामे रहिथें |*

    *बईला ल सड़क म रेंगाथें अउ बाहिर ( दाहिना) हाथ डहर फंदाए बईला ल बांया साईड (डेरी हाथ डहर लाए बर "अर्र-अर्र-अर्र कहिथें*

    *भीतरी फंदाए (बांया साईड) बईला ल दाहिना साईड डहर लाए बर "तता-तता-तता" कहिथें | रोज-रोज अपन बईला ल एही शब्द बोले से बईला मन अपन मालिक के भाषा ल समझ जाथें अउ किसान जब अपन खेत म नांगर चलावत या गाड़ी म फांदे बईला ल बांया से दाहिना लाए बर भीतरिहा बईला ल "तता. .......तता.....अउ दाहिना से बांया साईड डहर लाए बर "बहिरहा बईला ल अर्र.........अर्र.......... शब्द बोलथें। किसान के एही भाषा ल जउन बईला मन समझ के किसान के इशारा म चलथें,तऊन बईला ल "दंवाए बईला" अउ सीखे-सिखाय बईला कहे जाथे*

     *जऊन बईला के खांधा म "जुआंड़ी" नइ फंदाय रहै या "लतका" घलो नइ फंदाय रहै,तऊन बईला ल "अदरा" बईला कहे जाथे*

    *किसान मन जऊन बईला ल सिरिफ बाहिरहा (दाहिना साईड) फांदे रहिथें,तऊन बईला ह बाहिर में ही फंदा के नांगर -गाड़ी खिंचथें*

    *किसान मन जऊन बईला ल सिरिफ भीतर साईड (बांया) नांगर -गाड़ी फांद के रेंगाथें,तऊन बईला ह सिरिफ भीतर साईड (बांया) फंदा के नांगर -गाड़ी खिंचथें*

    *अर्थात बईला भैंसा मन जऊन साईड हमेशा फंदाथें,तऊने साईड म फंदाय के आदत पड़ जाथे*

    *किसान मन जऊन बईला ल अदल -बदल के दूनो साईड नांगर -गाड़ी म फांदथें अउ ओ बईला ह दूनो साईड फंदा के सुग्घर रेंगथें,तऊन बईला ल " सदाबहार" कहे जाथे*


    *ठीक अईसनेच जब हम मनसे के बेटा ह पढ़-लिख के तैयार हो जाथे, कुछू बूता-काम ल जिम्मेदारी पूर्वक सहीं ढंग से करे लागथे, ओकर मेछा-दाढ़ी जाम जाथे,तब अपन बेटा ल घर-गृहस्थी संभाले बर  नवा बहुरिया के खूब खोजबीन करके  ओकर बिहाव कर देथैं, तऊनो ल एक किसम से "लतका" डारे कहे जा सकथे*

     *जब कोनो के बेटा ह सिरिफ बाहिरी ग्यान (पुस्तकी ज्ञान) करे रहिथे, तऊन ल "बाहिरिहा" कहे जा सकथे | अईसन बेटा ह सिरिफ पढ़े रहिथें,कढ़े नइ रहैं | अईसन बेटा ह अपन दाई-ददा,भाई-बहिनी,घर-परिवार, रिश्ते -नाते,गांव-बस्ती के मनखे संग कईसे व्यवहार करके गुजर-बसर करना चाही ? तेकर ग्यान नइ रहय | तेकरे सेती जब ओकर बिहाव होथे,तिहां अपन डऊकी (पत्नी) के गुलाम हो जाथे ! तब ओकर दाई-ददा, घर-परिवार ल खूब दु:ख सहे बर पड़थे !*

     *जऊन जवान बेटा ह सिरिफ भीतरी ग्यान अर्थात खेती-किसानी,गरूवा-बछरू, घरेलू बूता-काम, दाई-ददा के सेवा मात्र सीखे रहिथें,तऊन बेटा मन अपन नवा दुल्हनिया के दु:ख-सुख, मनोभाव ल नइ समझ सकैं,तब ओकर सुवारी ह दु:ख पाथे, अईसने भीतरिहा ग्यान वाले कई झन बेटा-बहू के बीच मधुर संबंध नइ बन पावै,तभे पति-पत्नी के तलाक के नौबत आ जाथे!*

    *जऊन दाई-ददा ह अपन जवान बेटा ल "बाहिर-भीतरी" दूनो ग्यान सिखाए रहिथें अर्थात पढ़ाय के साथ कढ़ाय भी रहिथें,तऊने बेटा ह "सदाबहार सुजानिक बेटा" कहे जा सकथे | अईसने बेटा के बिहाव होथे,तब सिरिफ अपन गोसाईन के मोह-जाल म नइ रहय अउ अपन दाई-ददा,भाई-भौजाई,दीदी-भांटो,कका-काकी,बबा-बूढ़ी दाई, घर के लईकन- सियान,गांव-बस्ती के जम्मो मनसे के सुग्घर जथा-जोग शिष्टाचार, व्यवहार करते हुए अपन घर-गृहस्थी चलाथे,अपन जिनगी ल सुफल बनाथे |*

    *तव हर दाई-ददा ल अपन बेटा ल घर-गृहस्थी के "लतका" डारे के पहिली पढ़ाई के साथ कढ़ना भी चाही,दाई-ददा, भाई-बहिनी,बबा-बूढ़ी दाई,कका-काकी,जम्मो लईकन -सियान के प्रति आदर-सम्मान,प्रेम व्यवहार,अपनापन,दु:ख-सुख के साथी,त्याग-बलिदान के भावना पैदा करना चाही |*

     *बेटा-बेटी पढ़त रहिथैं,तव ओला घर-गृहस्थी के बूता-काम से अपरिचित,एकदम निठल्ला अउ "साहबजादे" अउ "पापा के परी" बना के नहीं रखना चाही!*

    *संयुक्त परिवार के टूटे से एकल परिवार म बेटा-बेटी मन पारिवारिक जिम्मेदारी से अनभिज्ञ हो जाथें! परिवार के प्रति प्रेम,अपनापन,त्याग, बलिदान से कोसों दूर हो जाथें ! तभे बेटा बर बहुरिया लाए से अउ बेटी ल ससुराल पठोय से नाना प्रकार के अड़चन,मन-मुटाव,बिखराव के भयानक समस्या उत्पन्न होवत रहिथे !*

   

    *घर-गृहस्थी, परिवार,समाज म सुख-शांति, समृद्धि,सुमता-सलाह,प्रेम,दया,त्याग, बलिदान के भावना अपन बेटी-बेटा के मन म पैदा करे बर ओकर घर-गृहस्थी रूपी "लतका" डारे के पहिली भली-भांति सिखौना भी नितांत जरूरी ह़ोथे।*

    *बेटी-बेटा ह भलीभांति सीखे रहिही,पढ़े के साथ कढ़े रहिही,तभे तो अपन पति,पत्नी के "लतका" ,फेर संतान पैदा होय के बाद अपन संतान के परिवरीश, उचित इलाज,उचित शिक्षा-दीक्षा के "लतका" फेर ऊंकरो संतान योग्य होही,तब बर-बिहाव करे के "लतका" फेर नाना प्रकार के पारिवारिक बोझ रूपी "लतका" ल झेले सकही | तभे परिवार,समाज म  खुशहाली होही*

     *सिरतोन म ये "लतका" के उपयोग,बेटी-बेटा ला समुचित सिखौना (प्रशिक्षण) नितांत जरूरी हवय |*

    *"ए लतका" शीर्षक के लेख ह आप सब सुजानिक भाई-बहिनी मन ल कईसे लगीस ? अपन विचार,सुझाव खच्चित लिखिहौ | आप मन के कीमती प्रतिक्रिया,सुझाव के अगोरा रहिही*



*सर्वाधिकार सुरक्षित*


दिनांक - 25.06.2023


आप मन के अपनेच

*गया प्रसाद साहू*

   "रतनपुरिहा"

*मुकाम व पोस्ट करगीरोड कोटा जिला बिलासपुर (छत्तीसगढ़)*


मो.9165726696



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