Monday 5 June 2023

शोषित समाज के प्रतिनिधि हरे कबीर

 शोषित समाज के प्रतिनिधि हरे कबीर 


कबीर हर साहित्यकार के संगे-संग समाज सुधारक घलो रहिस। कबीर के साहित्य हर मा धर्म, दर्शन, आध्यात्म हे ऊँहीं सामाजिक चिंतन के धारा हर घलो दिखथे। बल्कि ये कहे जा  सकथे कबीर के साहित्य हर सामाजिक चिंतन अउ सामाजिक सरोकार के उपज आय। तत्कालीन समाज मा फैले बुराई हर रचनाकार ल अपन बात कहे बर उत्प्रेरित करथे। जब समाज हर गलत दिशा मा जावत हे, समाज ल रूढ़ी परंपरा हर जकड़ ले हे, समाज मा आपसी कलह हे धर्म के नाम मा अंधविश्वास अउ कट्टरता हे तब एक रचनाकार के दायित्व होथे ओमा अपन बात कहे। समाज ल इशारा करय। कबीर दास जी इहाँ एक चेतना ले सराबोर रचनाकार दिखथे। जब हिंदू मन ल  मूर्ति पूजा के आडंबर मा फँसे देखथे तब कहिथे-


पाहन पूजे हरि मिले ,मैं तो पूजूं पहार 

याते चाकी भली जो पीस खाए संसार ।


  कबीर ल हम आज के  नीचे तबके मनखे के प्रतिनिधि रचनाकार घलो कहि सकत हन। काबर कबीर हर तत्कालीन समाज के ठेकेदार मन ल जम के लतियाय हे। संत परंपरा के कवि मन मा कबीर अकेल्ला अइसन कवि आय जउन हम धर्म, जात-पात ले उप्पर उठ के अपन बात कहे हें। ओहर अपन समे के समाज मा घूँस के जउन देखिस ओला बिना लाग लपेट के सोझ-सोझ कहि दिस।


एकनि दीना पाट पटंबर एकनि सेज निवारा॥

एकनि दोनों गरै कुदरी एकनि सेज पयारा॥


 कबीर अपन धर्म, दर्शन अउ आचरन ले समाज ल अंधविश्वास अउ पाखंड ले मुक्ति के रद्दा देखाय हे। वो हर निर्भय हो के आँखी ले आँखी मिला के बात कहे हें। 

मध्यकालीन समाज मा आराजकता ये ढंग ले फैल चुके रहिस जिहाँ धर्मांधता अउ पाखंड हर विषबेल हो गे रहिस। ओ समाज मा कबीर  समाजिक समरसता, विद्वेष रहित समाज के कल्पना करत आस्था अउ परेम के संचार करके समाज ल जोड़े के उदमी करत दिखथे। उन कहिथे-

 जाति न पूछो साधु की, पूछि लीजिए ज्ञान। 

मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

उहीं सामंत अउ उच्च कुल मा जनम धरे नीच मन सीधा ललकालरथे -

ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊँची न होय ।

सुवर्ण कलश सुरा भरा, साधू निंदा होय ।


धार्मिक कठमुल्लों मन ल भी कबीर हर ऊँकरे भाषा मा बिना कौनो डर भय सोझ कहे हे।


कांकर पाथर जोरि के ,मस्जिद लई चुनाय।

ता उपर मुल्ला बांग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय।।


अउ थोरिक आगू कबीर धर्म के नाम मा¨हिंसा, बलि जइसे  अमानवीय हरकत ल देखकर व्यथित होथे अउ  कहिथें  कि यह सब झूठी बंदगी, बिरिया पांच निमाज।

 सांचहि मारै झूठ पढि़, काजी करै अकाज।

 कबीर मानव जाति के मानवकृत सबो दुर्दशा ले मुक्त कराया के बीड़ा उठाय रहिस। कबीर के उप्पर बात करना सूरुज ल दीया देखाना हे। ये पाय के बस अतकी ।


-बलदाऊ राम साहू

No comments:

Post a Comment