Monday 15 April 2024

अल्पविराम के झोल म झूमरत समाजसेवा (महेंद्र बघेल)

 अल्पविराम के झोल म झूमरत समाजसेवा

           (महेंद्र बघेल)


यहू मोर अउ वहू मोर के विस्तार वादी सोच ले जब सरी दुनिया ह हलाकान हे तब हमर लोकतंत्र म फेसबुकिया समाजसेवी मन ल समाजसेवा करे के नंगते नशा चर्राय हवय। इनकर समाज सेवा के ये नशा ह फल-फूल के दान ले शुरू होथे अउ अल्पविराम के परसादे थोरिक-थोरिक कद ल बढ़ावत बड़े -बड़े बांड के कांड तक अपन पहुंच बना लेथे। समाजसेवा के चमक म मेवा-मलई उड़ाय के चक्रव्यूह ह अतिक तगड़ा रहिथे कि तोर आश्चर्यसूचक चिन्ह के बाते छोड़ दे,पूर्ण विराम बर कोई जगा नइ रहय।जिहाॅं तक समाज सेवा के बात हे येकर कई ठन रूप हवय , समाजसेवी मन के स्टेटस ल देखत येला कई कांड (भाग) म बांटे जा सकत हे फेर वर्गीकरण करे के चक्कर म  घेरी-बेरी चक्कर खाय के संभावना जादा बने रहिथे। येकर ले अच्छा इही हे कि मगज म जतका जानकारी हे, उही ल फरी-फरी करे जाय ।चारों मूड़ा समाजसेवा के फेसबुकिया मन ल देखके कभू-कभू मन म विचार आथे कि जब समाज सेवा के नशेड़ी मन ल फल-फूल दान करे के घनघोर नशा चढ़त होही तब आमा-केरा, सेवफल, अनार -अंगूर ,संतरा -मुसम्बी जइसे फल के अंतस म अविश्वास के भाव घलव पनप जात होही का..।

            जिनकर सात पीढ़ी ह समाज सेवा के ए बी सी डी ल नइ जानिन तेन मन आजकल मोबाइल के आय ले समाज सेवा करे बर उम्हियाॅंय रहिथें।अइसन समाज सेवी मन के सरल अउ सुलभ टारगेट सरकारी अस्पताल के मरीज मन होथे।दुनिया म ये समाजसेवी मन के अजब-गजब किस्सा- कहानी हे। येमन आये-दिन समाजसेवा के चक्कर म सगा-संबंधी संग अपन चेला- चंगुरिया मन ल सकेल के सरकारी अस्पताल म धमक देथें। इहाॅं भरती होय बपरा मरीज के मनोदशा ल उही मन समझ सकथें जेन मन मरीज होय के अनुभव लाभ ल कभू-काल म पाय होहीं।सबले पहिली अस्पताल म पाॅंव मढ़ाते भार तीव्र ऊर्जादायी मूतियाना महक ले मरीज मन के स्वागत सत्कार होथे। अस्पताल के ओन्टा -कोन्टा म मनखे के मुॅंहुॅं डहर ले पूरकाय पान-मसाला के लाली-लाली रंग ले बने माडर्न आर्ट ह मरीज अउ ओकर अटेंडर के अंत:करण म जरदा-पाऊच ल खा-खाके पुर्र-पुर्र पूरके बर प्रेरणा के भाव जगाथे।

             अस्पताल के मूत्रालय अउ शौचालय ले उत्सर्जित चमत्कारी सेंट के विशेष सुविधा वाले लाभ ह मरीज मन ल भर्ती होय ले डिस्चार्ज होय तक फोकट म मिलत रहिथे। बात-बात म झटका के आस रखइया अस्पताल के मोटावत कर्मचारी मन ल पूछे म बताथें कि जीवट किसम के मरीजे मन ह ये विशेष सुविधा के उपयोग करे बर हिम्मत जुटा पाथें। बाकी के बाते झन पूछ..।जर-बुखार,खस्सी- खोखड़ी, टट्टी-उलटी, बीपी- सुगर, घाव-गोंदर अउ गैस- अपचक जइसे सरकारी समस्या वाले मरीजे मन ल इहाॅं भरती करे जाथे। तब लगथे कि अस्पताल के सबो डाक्टर मन बस इही सरकारी समस्या ल दूर करे बर विशेष योग्यता पाय हवॅंय का..। उपराहा म येमन बाकी समस्या वाले मरीज मन ल इहाॅं ले तुरते रिफर करके अपन सबो जिम्मेदारी ले बाचे के सार्वजनिक सुख भोगथें।रिफर करे के बेर सलाह पूछे म अपन ससुरारी अस्पताल अउ डॉक्टर के नाम म अपन कका ससुर के पता ल बोनस म प्रदान करे के इनकर अद्भुत गुण के बखान कर पाना बड़ मुश्कुल हे।अइसे भी सरकारी अस्पताल के ॲंगना म ससुरारी उड़न खटोला (एंबुलेंस) ह चोबीस घंटा तैनाते रथे। डाक्टर मन के इही रेफरल समाज सेवा के ससुरारी चरित्र ह येमन ल प्राभिट डाक्टर ले हटके कुछ खास बनाथे।

           एक तो सरकारी अस्पताल म कल्हरत मरीज अउ उपर ले समाजसेवा के नाम म टूहूॅं देखई के शास्त्रीय आयोजन..।हमर देश म समाज सेवा के बड़ जुन्ना परम्परा हवय जेमा एक डहर दानवीर भामाशाह ह राशन-पानी अउ धन-दोगानी के दान दक्षिणा ले महाराणा प्रताप ल दुश्मन सन लड़े बर सहयोग करिस अउ इतिहास म अमर होगे त दूसर डहर त्रेता युग म पौराणिक पात्र राजा हरिश्चंद्र ह अपन सबो धन-दौलत अउ राज-पाट ल दान करके सत्यवादी अउ दानवीर होगे। पुरखा मन के समाज सेवा के ये ऐतिहासिक अउ पौराणिक सरूप ह घोंसरत-घोंसरत अरथात डिग्रेड होवत आजकल एकक ठन केरा,संतरा अउ सेवफल म अरहज के रहि गेहे।इही डिग्रेडवा परम्परा ल आगू बढ़ावत हमर आधुनिक फेसबुकिया समाजसेवी मन उछल-कूद करत बपुरा मरीज मन ल एकक ठन केरा देवत एंगल बदल-बदल के सपरिवार फोटू खिचवाय के योजना म लगे रहिथें। सहीं कहिबे ते येमे के नब्बे परसेंट फेसबुकिया समाजसेवी मन ल बटोरन लाल के सगे भाई समझ..।

                 सचमुच म समाज सेवा के काम ह नेक अउ परोपकार के काम आय।फेर कुछ नामी-गिरामी समाज सेवी के भीतर झाॅंके म काला-पीला के एक लंबा कारोबार ह बेपटरी दौड़त दिखथे। समाज सेवा के नाम म जेन नंगते ढोल-धमाका पीटत रहिथें उनकर हाल-चाल के मतलब हे करनी म झोल-झाल। आजकल समाज सेवा के नाम म बड़े-बड़े दुकानदारी चलत हे। बड़े समाजसेवी मनके नवीन रोजगार केन्द्र के बिना पत्ता नइ हिले। नवीन रोजगार केन्द्र मतलब राजनीतिक पार्टी..। ये रोजगार केन्द्र ले सम्पर्क साधे बर या इहाॅं भर्ती होय बर सबो मन योग्य नइ रहॅंय।येकर बर दू-चार ठन जरूरी अउ कठोर शर्त रहिथे।जइसे आका के पाॅंव-पयलगी करते रहना, ओकर आगू-पाछू म गुड़ म माछी झूमे कस चिपकत रहना, बात-बात म जय-जिंदाबाद के नारा लगाना ,विरोधी पार्टी बर मुर्दाबाद के नारा लगाना अउ समाज सेवा के इलेक्टोरल बांड दिखाना।

         नवीन रोजगार केंद्र के इही आका-बाका टाइप के चलता पुरजा मनखे मन समाज सेवा के झंडा ल चार समाज म लहरावत रहिथें।कोरोना टाइम में अइसने फेसबुकिया समाजसेवी मन के अंतस म समाजसेवा के बुखार ह सिर चढ़के बोलिस। कतको मन जनता-जनार्दन के सेवा म सब कुछ निछावर कर दिन अउ कतको मन किलो भर चॅंउर अउ पाव भर दार ल दान देके बड़े जन समाजसेवी होगे। अउ मेन स्ट्रीम मीडिया के भगत चैनल म थोथना देखावत अपन आप ल शूरवीर घोषित  कर डरिन।कोरोना के पहिलाॅंत बड़ोरा म घर म घुसरे मनखे के हालत नंगते खराब रहिस। सड़क म चलत मनखे उपर पुलिसिया लउठी के हमला ह मनखे के पुरजा-पुरजा ल ढिल्ला करदे रहिस‌।एक तो पुलिस के आशीर्वाद वाले टेड़गा कनिहा ऊपर ले पव्वा छाप समाजसेवी मन संग धुआंधार फोटू खिंचवाय के धर्मसंकट। इहाॅं पव्वा के मतलब सरकारी आइटम ले बिल्कुल नइहे, जेन मन एक पाव चॅंउर -दार ल देवत एंगल बदल-बदल के फोटू खिंचवाइन अउ फोटू ल मीडिया म वायरल करिन अइसन दानवीर के आल-औलाद से हे। येमन रोज-रोज पेपर म छपे बर पव्वा दान के परसादे समाजसेवा -समाजसेवा खेलिन।एक ठन कहावत हे कि सियान ल देख-देखके लइका मन सीखथे। फेर वो कोन सियान होही जेकर ले येमन फोटू खिंचवाय के ज्ञान प्राप्त करत होही।ये बात ह आज ले मोला कुछु समझे म नइ अइस ,कहूॅं आप मन ल समझ म अइस होही ते आपके समझ ल मोर डहर समझे बर खच्चित पठो देहू। भलुक आप मन के समझदारी ले थोर बहुत मोरो मगज म समझ के दूबी जाम सके।  

रही बात समाजसेवा के त इहाॅं तो दनादन समाजसेवा के उलेंडापूरा चलत हे। समाजसेवी मन गरीब-गुरबा ल चउर-दार, केरा-संतरा ल दान देके दुनिया भर म वायरल होवत हें। फेर का फलाना केयर ल कहिबे त का ढेकाना केयर ल कहिबे येमे अरबपति समाजसेवी मन कतको के दान दक्षिणा करिन फेर आज ले जनता ल भोंगरी पैसा के पता नइ लगन दिन।

               आजकल इलेक्टोरल बांड के बड़ शोर उड़त हे।एक डहर देश के कतको धनी आदमी मन बिन सुवारथ के समाजसेवा करिन अउ आजो करत हें। अउ दूसर तरफ उद्योग जगत के कतको धुरंधर मन बांड के नाम म बड़े-बड़े कांड करत हें तभो ले उनकर नाक ह ऊंचे हवय।  एक तरह ले यहू इलेक्टोरल बांड ह उद्योगपति मनके हिडन समाजसेवा आय। हिडन समाजसेवी मन डहर ले करोड़ों रुपया के इलेक्टोरल बांड ल लुका-छिपी खरीदना मने जनता के साथ धोखाधड़ी जइसे करमकांड करना।

          डिजिटल युग म जब जनता ल पारदर्शिता के आसा हे तब हिडन (छुपे) समाजसेवा के ये कहानी ह दानवीर भामाशाह के ऐतिहासिक प्रतिष्ठा ल छर्री-दर्री करत दिखथे।ये तो भला होय उच्च न्यायालय के जेन एसबीआई के टोंटा म अटके बांड के करमकांड ल उगलवा दिस।नइते यहू बांड के कांड ह धोवा चॅंउर कस पांच किलो राशन के ॲंधना म ओइरा जाय रहितिस।कुल मिलाके इलेक्टोरल बांड ह जनता के टैक्स  म कई ठन पेंशन झोंकत इहाॅं-उहाॅं भाषण फेंकइया मन डहर ले पून्नी के चंदा ल अमौसी के चंदा बताय के क्लासिकल ॲंधरौटी खेल बनके रहिगे।


महेंद्र बघेल डोंगरगांव

No comments:

Post a Comment