*विषय*-- *तइहा के सावन के सुरता*
हमर महान भारत देश ला नाना प्रकार के पर्व तिहार जयंती और पुण्यतिथि मनइया आध्यात्मिक- धार्मिक प्रवृत्ति के पावन देश के रूप में जाने जाथे। इहाँ जतका प्रकार के पूजा- पद्धति अउ धार्मिक अनुष्ठान होवत होही,वोतका दुनिया मा अउ कहूँ नइ होवय।
वैदिक भारतीय संस्कृति जेला कई झन सनातन संस्कृति तको कहिथें के रीति रिवाज -परंपरा म बारें महीना म अलग-अलग ग देवी-देवता के पूजा संग महिमा के बखान करे गेहे। जइसे चइत-कुँवार म दुर्गा देवी के पूजा-अराधना,कातिक म श्री विष्णु जी अउ माता लक्ष्मी के पूजा ,सावन महीना म आदिदेव, भूत भावन, आशुतोष, गंगाधर भगवान ,भोलेनाथ शिव शंकर -महादेव के पूजा करे जाथे। सावन महीना ल बड़ पावन अउ फलदायी माने गे हे। ओइसने हप्ता के सातों दिन कोनो न कोनो देवी देवता के दिन माने जाथे अउ वोकर ले आशीर्वाद पाए बर वो दिन खास व्रत- पूजा, अनुष्ठान आदि करे जाथे। जइसे सोमवार ल महादेव जी के, मंगलवार महावीर बजरंगबली के, बुधवार विघ्नहर्ता श्री गणेश जी के, गुरुवार श्री विष्णु जी और माता लक्ष्मी के, शुक्रवार माता संतोषी अउ दुर्गा देवी के ,शनिवार श्री शनिदेव अउ रविवार भुवन भास्कर भगवान सूर्य देव के दिन माने जाथे। ये सातों दिन के संबंध ग्रह मन ले जोरके उँखर शांति खातिर पूजा-अर्चना करे जाथे ।
ये बारों महिना म ,सावन महिना अइसे आय जेला पूरा महीना भर , वोकर जम्मों सोमवार के दिन गिरिजापति महादेव के पूजा-पाठ करे जाथे ।कतकों श्रद्धालु भक्त मन सबो सावन सोमवार के उपास तकों रहिथें। हमू ल अपन सोमवार के दिन उपास रहे के सुरता हे।
जादा बछर पहली के बाद नोहय। ये कोरोना बिमारी आये के पहिली सावन सोमवारी ल कतकों लोगन विशेष रूप ले मनावत रहिन हें।
सावन सोमवार के दिन बड़े बिहनिया पाँच -छै बजे ले शिव मंदिर में शिव भजन माइक में बाजे ल धरलय तहाँ पता चल जय के आज सावन सोमवारी हे। उपास रहइया मन नहाँ-नुहाँ के बेल पत्ता, दूध- दही, गंगाजल अउ नरियर धरके शिव मंदिर म पूजा पाठ करयँ। अइसे तो सब अपन-अपन समे के अनुसार मंदिर म पूजा करयँ फेर कुंवारी कन्या बेटी मन के शिव पूजा म विशेष उत्साह रहय।लईका मन प्रसाद के लालच म मंदिर कोती सकलाये राहयँ। सावन सोमवार के दू-चार दिन पहिले ले हर-हर महादेव, बम बम भोले के जयघोष करत काँवरिया मन दल के दल कोनो पवित्र नदी ले जल लाए बर सजे-धजे काँवर म कलशा बाँध के पैदल जावत नहीं ते जल भरके आवत दिख जँय। येमा नवयुवक मन के संख्या जादा राहय। संगी जहुँरिया मन संग कहूँ आये जाये के आनंद अलगेच होथे।
सावन सोमवार के संझाकुन मंदिर मन मा खास चहल-पहल राहय। कई ठो शिव मंदिर के दरवाजा ल माटी-पथरा म थोकुन उँच रुँधके गाँव भर के श्रद्धालु मन शिवलिंग ल जल अर्पित करके पूरा बुड़ो दँय। कतको गाँव म सावन भर रोज सवनाही रमायेन तको होवय। बर-पीपर ,नहीं ते आमा के रुख म झुलना बाँधके नोनी मन झूलत-झूलावत तकों दिखयँ।
लइकापन ,विद्यार्थी जीवन म हम ला तो सावन सोमवारी के अगोरा राहय काबर के वो दिन आधा जुवर छुट्टी हो जय।
फेर सब तइहा के बात होगे। आज तो पश्चिमी अपसंस्कृति के हवा लगे ले जम्मों तिहार मनाये म गिरावट आगे हे। उही हाल सावन सोमवारी के तको होगे हे। कोरोन संकट काल ल छोंड़ दन त अभो मंदिर मन म पहिली ले जादा भीड़ अउ तामझाम दिखथे। फेर ये सब दर्शन कम प्रदर्शन जादा जइसे लागथे। काँवर यात्रा फटफटी अउ मोटर-बस म निकले ल धर लेहे। भजन-कीर्तन के जगा म डीजे अउ पाप संगीत चलत हे, भक्त-अभक्त मन नाँचत हे धन उधम मँचावत हें--समझ नइ आवय।
गुड़ी चौंरा म बइठे सियान मन के कथा -कहानी अउ सवनाही रमायेन ल टी० वी० सिरियल अउ आनी-बानी के फिलिम ह सिरवा दिस। अइसे लागथे के हमन घरखुसरा होवत जावत हन। अइसे भी-- अब न तो गुड़ी ये न तो चौंरा ।
नवा जमाना के नवा रंग-ढंग हे। कतको उटपुटांग चाल चलन हे। सोंचथँव त एक ठन हाना के सुरता आ जथे--
तइहा के बात ल बइहा लेगे, सुन गा राजा भील।
लोहा ल घुना खादिस, लइका ल लेगे चील।।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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