Thursday 5 August 2021

सुरता,तइहा के सावन-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


 

सुरता,तइहा के सावन-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

   


        "कथे न तइहा के गोठ ल बइहा लेगे" सिरतोन म उसनेच, तइहा के सावन के सुरता सिरिफ अन्तस् म समाय हे, आँखी म अब तो सहज दिखे घलो नही। अइसन म का- सावन पहली कस नइ हे? सावन तो पहलिच कस हे, हाँ फेर मनखे मन पहली कस नइ हन। अब आन ल का कहँव मिही खुद लइकुसहा रेहेंव त,सावन के अइसन कोनो बौछार नइ रिहिस होही, जेमा नइ भींगे होहूँ, फेर अब तो तरिया, नन्दिया के  जुड़ पानी घलो सहे नही, त सावन के झड़ी म भींगे के बात ल तो छोड़िच दे। सियान त सियान आजकल के लइका मन घलो घर भीतरी धँधा गेहे। जमाना बदलत जावत हे। मनखे सावन म नही, नवा जमाना के बरसा म भींगत हे। मनखे मनके दिमाक बाढ़त हे, फेर दिल .......। रंग रंग के पहिनावा अउ देख दिखावा आगे हे, फेर तन अउ मन पहली के मनखे मन कस ठाहिल नइहे। भले अभी शहर म रहना होवत हे, फेर मोर तइहा के सावन गाँव म बीते हे। उही सब सुरता आजो सावन के बौछार देख, नजरे नजर म झूलथे। आषाढ़ के पानी पाके धरा, तरिया नन्दिया, पेड़-पात अउ जमे जीव जंतु हिता जाथे, अउ जब सावन हबरथे त उन सबके खुशी दुगुना हो जथे। अइसने हाल हमरो रहय, आषाढ़ म हिताय अन्तर मन कोनो तरिया नरवा कस, सावन ल पाके  उमंग म छलके लगे, सरसर सरसर चलत पूर्वाही म पेड़ पात संग नाचे लगे। भले खीसा उना रहय फेर तन अउ मन कोटकोट ले भरे रहय। खेत-खार, बन-बाग, तरिया-नरवा,संगी-साथी अउ घर परिवार के मया दुलार ले बड़खा कोनो धन नइ रिहिस। छत्ता,मइनकप्पड़,कमरा,खुमरी बूता करइया मन बर रहय, अइसन म हम सब ठलहा लइका मनमाड़े भींगत किसम किसम के खेल खेलन। कागज पात बोहाना, धार ल माटी पथरा सकेल के रोकना, गिरना-उठना, भींगना, कपड़ा मइलाना रोज के बूता रहय। जतका खुश हम लइका मन रहन, ओतके खुश दाई ददा बबा कका मन घलो रहय।


तिहार बार के सुरता-

 लबालब भरे ताल तलैया, हरियर हरियर पेड़ पात, लहरावत धान-पान, बारी बखरी के साग भागी,चिरई-चिरगुन के चिंव चाँव, झींगुरा अउ मेचका के बोली सबे ल देख सुन मन अइसने अघा जाथे, वोमा सम्मारी, इतवारी,हरेली, सवनाही, नँगपाँचे, राखी तिहार मिंझरिस ताहन का कहना...। हर सम्मार के सांझ सुबे तरिया के पार म भोले बाबा के मंदिर के आघू संगी संगवारी मन संग प्रसाद खाय के अलगे मजा रहय।

जमे तिहार मन म उमंग भरे, लइका सियान सब मतंग रहे। गांव म ये सब तिहार आजो मनाये जाथे, फेर पहली कस नही। तिहार मनखें मन के मन म मया घोरे के काम करथे, फेर स्वार्थ अउ आपा धापी के जिनगी म सब धीर लगाके कमती होवत जावत हे। पहली बेटी माई मन आसाढ़ सावन लगत अपन ददा दाई दाई घर सकला जावत रिहिस, आज तो राखी तिहार बर घलो एक दू घण्टा बर आथे। सवनाही, सम्मारी, इतवारी, हरेली म पूरा गाँव के गाँव झूमे नाचे।  हरेली म, नरियर फेंक, खो-कबड्डी, बइला दॅउड़, गेंड़ी दॅउड़,फोदा, झूलना,नदी पहाड़, ये खेल कहूँ- कहूँ गाँव म आजो धूमधाम ले मनाये जाथे, फेर ज्यादातर नेंग मात्र होगे हे। तिहार बार बर घलो मनखे  मन टेम नइ निकाल पावत हे। *गाँव म सावन का दया मया घलो दावन म बँधा गेहे जेला,विदेशी संस्कृति के लेवाल नजर गड़ाय देखत हे।* शहर कोती तिहार बार आज देखावा के रूप म पहुँचत जावत हे, जे हरेली ल पेड़ प्रकृति के संग पूरा गांव झूम के मनात रिहिस, ते शहर म *हरेली मिलन* के रूप म एक समूह म मनावत दिखथे। पेड़ पौधा के हरियाली नइहे त हरियर ड्रेस कोड अउ सावन के लोक लुभावन झूला सजे दिखथे।फेर आज कुछ नही म, यहू घलो बढ़िया उदिम आय। हरेली के दिन नांगर अउ गाय गरुवा धोय के अलगे मजा रहय, अउ जब हाथ म गेंड़ी आय ताहन का कहना। *सावन आजो झूम के आथे, फेर मनखे मन अपन स्वार्थ, देखावा अउ पद पैसा के अहंकार म नइ झूम पाये।* बम्हरी, करंज, बर के झूला, डण्डा पचरंगा, तरिया के पार ल बिच्छल करके फिसलना, लोहा गड़उला जइसन किसिम किसिम के खेल कोनो तिहार बार ल कमती नइ लगत रिहिस, कहे के मतलब रोजे तिहार रहय। स्कूल, घर,खेत, खेलकूद, गाँव-

गौतरी सबे चीज बर बरोबर टेम निकल जावत रिहिस, फेर आज लइका मनके खेलकूद के सँउक घलो कमती होवत हे। नवा जमाना लइका सियान सबके हाथ म मोबाइल धरा देहे, सब अपने म मगन हे। *आज सेल्फी के दौर म, हजारों फोटू ले घलो सुघ्घर सुरता अन्तस् म् समाये हे।*


सावन मा स्कूल के सुरता- 

आषाढ़ सावन महीना रझरझ रझरझ बरसत पानी म स्कूल जाये के अलगे मजा रहय, खुद भले भींग जावन फेर पट्टी बस्ता ल झोला भीतरी झिल्ली म रखन। कई बेर तो हरेली के बाद गेंड़ी म घलो स्कूल चल देंवन। बरसत पानी म घलो 15 अगस्त के तैयारी बनेच ढंग ले करन। सार्फ़ सफाई, साज सज्जा, गीत कविता अउ प्रभात फेरी म गाये गीत आजो सुरता आथे। स्कूल म कोनो कक्षा चुँहै त, खपरा  ल छाये बर घलो छानी म चढ़ जावत रेहेंन। नांगपंचमी के दिन जमे कक्षा के ब्लैकबोर्ड म नाँग साँप बनाके नरियर फूल चढ़ाना, गीत कविता पढ़ना सुनना, बड़ मन भाये। जादा पानी गिरे त कोनो दिन हमन स्कूल नइ जावन त कोनो दिन गुरुजी मन नइ आवय। एक दू झन भर गुरुजी आय त सबे कक्षा के लइका मन एक हाल म बइठ के, कहानी किस्सा अउ गीत कविता सुनन, सुनावन।



सावन मा खेत खार- 

सावन के फुहार म खेत खार, तरिया नरवा कुँवा बवली, पेड़ पात अतेक मनभावन लगे जेखर बरनन करना मुश्किल हे।  सावन म बियासी हबरे रथे, चारो कोती खेत म मनखेच मनखे, अउ ओह तो। निंदई म लगे दाई, दीदी मनके कर्मा ददरिया अउ कहानी किस्सा सुने के घलो मौका मिले हे, एक घण्टा दू घण्टा के घलो कहानी कमइयां मन मुखाग्र सुनावय। अउ कहूँ मूँगेसा, कोलिहापुरी, फूट, फोटका, फूटू मिल जाय त तो खुशी के ठिकाना नइ रहय। चिखला म चप्पल नइ लहे, अइसन म गोड़ म काँटा रोजे गड़े, संझा रोजे रो रो के हेरवान। बइला ल छेंक के लाना, चराना, बन निंदना,खेतेच म बासी पेज खाना, पार बइठे खेत खार ल नजर भर निहारना, सरग के सुख देवय। 

आसाढ़ सावन म चुँहत छानी के संसो, खेत म धान ल बढ़ाये बर गिरत पानी ल देख छू मंतर हो जावय।


सावन मा खेलकूद-

वइसे तो सावन के रिमझिम फुहार म भीगई अब्बड़ खुसी देवय तभो अपन दक्षता देखाय बर छोट छोट झिल्ली मन ल जोड़के बरसाती बनाके पहिरे रहन। गिरत पानी म धार ल रोकना, कागज पात के नाव चलाना, लोहा गड़ाना, मछरी धरना, तरिया म तउरना, झूला झूलना, नदी पहाड़ खेलना, रद्दा ल बिच्छल करना, फुरफुन्दी पकड़ना, फिलफिली उड़ाना, अउ बाढ़त उमर के संग खो, कबड्डी, डंडा पचरंगा, छू छुवउल ये सब किसम किसम के खेल अन्तस् के तिजोरी म सुरता बरोबर धराय हे। आजो रिमझिम फुहार देख बचपन हिलोर मारथे-------


बचपना हिलोर मारे रे,रिमझिम बरसात मा।

घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा......।


कागज के डोंगा बना धार मा,बोहावन।

घानी मूँदी खेलन,अड़बड़ मजा पावन।

पाछू पाछू भागन,देख फाँफा फुरफुंदी।

रहिरहि के भींगन, झटकारन बड़ चुंदी।

दया मया रहय,हमर बोली बात मा.......।

घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा...।


घर ले निकलन,ददा दाई ले बचके।

धार  ल  रोकन, माटी पथरा रचके।

तरिया  के पार में,बइठे गोटी फेंकन।

गोरसी के आगी में,हाथ गोड़ सेंकन।

मन रमे राहय,माटी गोटी पात मा........।

घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा..।


बरसा के बेरा,करे झक्कर झड़ी।

खेलेल  बुलाये,संगी साथी गड़ी।

रीता नइ राहन,हमन एको घड़ी।

खोइला मिठाये,भाये काँदा बड़ी।

सबे खुशी राहय,गाँव गली देहात मा....।

घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा..।


झूलन बंभरी मा,खेत खार जावन।

नदी पहाड़ खेलन,लोहा गड़ावन।

बिच्छल रद्दा मा, मनमाड़े उंडन।

माटी ह  गाँवे के,लागे जी कुंदन।

बिन माँगे मया मिले,वो दरी खैरात मा...।

घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा...।


              पहली घलो जइसे ही पानी बादर के दिन हबरे आषाढ़ सावन आय त साग भाजी के पैदावार घट जावत रिहिस, अउ दाम बढ़ जावत रिहिस। प्रकृति सबे चीज के व्यवस्था बरोबर ढंग ले करे हे। आसाढ़ सावन म साग भाजी के रूप म धरती ले रंग रंग के लमेरा जेमा जरी, खोटनी, काँदा भाजी, गुमी भाजी,चरोटा भाजी, करील  अउ फुटू मिलय।मछरी खवइया ल मछरी घलो सहज मिल जावय। पहली झक्कर झड़ी बर घर म सेमी, भाँटा, कॉन्दा अउ भाजी के खोइला रहय, जेखर कारण साग भाजी बर जादा बाजार के मुंह घलो नइ ताके बर लगे। फेर आज मनखे के मुँह चिक्कन चिक्कन खाके टकरहा होगे हे, भाजी-खोइला ल जाने घलो नही, फुटू, फोटका बर जाँगर नइहे। सब के सब बाजार भरोसा हन, पैदावार कम अउ खवइया जादा, त तो मंहगाई बढ़बे करही।

                     सावन आथे त लइका सियान सबके मन म उमंग भर जाथे, जुन्ना सुरता आँखी म झूले लगथे---


सावन आथे त मन मा,उमंग भर जाथे।

हरियर हरियर सबो तीर,रंग भर जाथे।


बादर  ले  झरथे,रिमझिम  पानी।

जिया जुड़ाथे,खिलथे जिनगानी।

मेंवा मिठाई,अंगाकर अउ चीला।

करथे झड़ी त,खाथे  माई  पिला।

खुलकूद लइका मन,मतंग घर जाथे।

सावन आथे त मन मा-------------।


भर जाथे तरिया,नँदिया डबरा डोली।

मन ला लुभाथे,झिंगरा मेचका बोली।

खेती किसानी,अड़बड़ माते रहिथे।

पुरवाही घलो ,मतंग  होके   बहिथे।

हँसी खुसी के जिया मा,तरंग भर जाथे।

सावन आथे त मन मा,---------------।


होथे  हरेली  ले,मुहतुर तिहार।

सावन पुन्नी आथे,राखी धर प्यार।

आजादी के दिन, तिरंगा लहरथे।

भोले बाबा सबके,पीरा  ल हरथे।

भक्ति म भोला के सरी,अंग भर जाथे।

सावन आथे त मन मा--------------।


चिरई चिरगुन चरथे,भींग भींग चारा।

चलथे  पुरवाही, हलथे  पाना  डारा।

छत्ता  खुमरी  मोरा,माड़े रइथे दुवारी।

सावन महीना के हे,महिमा बड़ भारी।

बस  छाथे मया हर,हर जंग हर जाथे।

सावन आथे त मन मा--------------।


अब तो सावन, सावन जइसे नइ लगे ,, बल्कि तइहा के सावन के सुरता गजब मनभावन लगथे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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