Saturday 28 August 2021

आत्म प्रशंसा के बीमारी

 आत्म प्रशंसा के बीमारी

          आत्म प्रशंसा के बीमारी कहत हव त  कहे सुने बर अउ कुछु नइ बाचत हावे ,काबर की  बीमारी शब्द  ह अपन आप म बतावत हे कि संबंधित ह बीमार हे, अउ बीमार तो हमेशा से दया के पात्र माने गे हे । छूत के बीमारी बरोबर आत्म प्रशंसा के बीमारी सबो डहर अइसे फइले हे कि का बड़े- का नान्हे , बाचना थोरकन मुश्‍किल होवत जात हे ,जेन बाचे हे तेकर धन भाग कि आज के युग म भी आत्म प्रशंसा के कोन्हो रुप के शिकार नइ होय हे ।

       आत्म प्रशंसा कहत हव त प्रशंसा के दो ठन रुप बनत हे अपन प्रशंसा अउ आन के प्रशंसा । आज अपन प्रशंसा जतका सहज हे ,आन के प्रशंसा वतका ही दूभर बात होत हे , अउ भूले-भटके कोन्हों ह आन के प्रशंसा करत भी हे त मुँहू देख के जादा होवत हे ,अइसन छद्म  प्रशंसा म वास्‍तविक प्रतिभा ह घिरलत रथे । येकर नुकसान मनखे ल तो होबे करथे ,वोकर ले जादा देश ल होथे । 

            वइसे आत्म प्रशंसा के बीमारी ल आत्म प्रशंसा के नकारात्मक रुप मान लेव, जेकर दरशन -परशन अपन से लेके आन तक , इती- उती  चारों- कुती हर जगह म होत रहिथे ।आत्म प्रशंसा के नकारात्मक रुप के बड़ बखान आय हे , त चलव अब येकर अइसन  रुप ल घलो देखन जेला थोरकन  सकारात्मक कहि सकत हव।

               परिचय आत्म  प्रशंसा के सुघ्घर रुप आय  , जेन ल  सरल आत्म प्रशंसा कहि सकत हव । कोन्हों भी जब हमर बारे म जानना चाहत हे , जइसे कोन अस ? कहाँ रहिथस ? काय करथस ? त ऐकर उत्तर म जेन बताहूं तेन ह  परिचयात्मक आत्म प्रशंसा  आय । बातचीत से लेके बर बिहाव तक ,अउ नौकरी- चाकरी से लेके मौज -मस्ती तक म, आत्म प्रशंसा ह अप्रत्यक्ष रुप म समाय हवे ।   परिचयात्मक आत्म प्रशंसा जतका सुघ्घर, वतका ही ओकर महत्ता बाढ़त हे ,तेकर सेती आज के युग म तो हर कोई परिचयात्मक आत्म  प्रशंसा करत हे । येहा अभिधा  म होवत हे पर  , कभू -कभू लक्षणा या व्यंजना म भी बदल जाथे । प्राय: नाम गाम वाले मनखे के अभिधात्मक परिचय ल भी लक्षणा या व्यंजना समझे बर हमन ल जल्दी रथे, अउ वोकर धीर गंभीर व्यक्तित्व ल  भी अहंकार  ले जोड़ देथन,  काबर कि धारणा त दूनों पक्ष के काम करत हे न । अइसन में यहू ह आत्म प्रशंसा के बीमारी बने ल लग जथे ।

               इही म आत्म - प्रशंसा के एक ठन रुप अउ देखे बर मिलथे ,जब अपन प्रशंसा खुद न करके अपन आश्रित या अधीनस्थ से चाहथन अउ वो करथे भी कभू देखाय बर ,कभू  कुछु पाय बर ,या कभू अउ कुछु  बर ।

               विज्ञापन भी आत्म - प्रशंसा के सकारात्मक रुप आय ,अपन -आप के कहूं कि अपन जिनीस के, जब ओकर अतिशयोक्ति पूर्ण प्रदर्शन अइसे करे जाथे कि सबे  खुशी - खुशी हलाल होय बर तैयार रहिथे ।  आज अरबों -खरबों में येकर बाजार हवे ,  हर व्यवसायी जानत हे , जेन दिखत हे तेन बिकत हे ,मसाला से लेके मशीन तक , अउ गोठ-बात से लेके पुरुस्कार तक म आत्म  प्रशंसा ल ही आज के गला काट प्रतियोगिता म  जगह मिलत हे । अइलावत संवेदना म वोकर साड़ी मोर ले सफेद कईसे , इही ल गुनत रहिथे , अउ अपन पिछवाये के एक कारण आत्म  प्रशंसा के कमी ल भी पावत हे ।

           व्यवहारिक आत्म  प्रशंसा के भी सकारात्मक रुप अपन चारों कोती  देखे बर मिलथे ,  कहिथे गोठअइया के सरहा बोइर ह बेचा जथे अउ नइ गोठअइया के अमरुद ह घलो माडे़ रहि जथे । ठकुर सुहाती गोठ करैय्या अउ सुनैया के कमी हमर देश  म एको कनिक नइ हे ,एक तो लोगन के मरत ले संख्या, ऊपर ले ठेलहा , रसास्वादन लेत रहिथन ,सबै जानत रहिथे कि बगल म छुरी हवे पर उपर छइया बने लगथे  ।

    आत्मकथा अउ अन्य ह भी  साहित्यिक आत्म - प्रशंसा के  सकारात्मक रुप तो आय ,जेमे हमन, अपन से संबंधित अइसन विचार के चयन करथन जे हमर व्यक्तित्व ल अउ उभारत हवे ,शेष  गोठ बात  ल येमा जगह नइ मिले या नइ देना चाहन ।

            आत्म प्रशंसा के आक्रामक रूप भी होथे जइसे युद्ध आदि जेन अपन मन मरजी चलाय बर साम ,दाम ,दंड अऊ भेद संग होवत  हे , येला आत्म प्रशंसा के भयंकर रूप मान लेव ।

           आखिर म अतना ही कहना चाहत हव कि अहम् ब्रह्मास्मि ल छोड़ के , त्वम असि म पहुँचे बर ,मैं ल छोड़े ल पड़ही  , तभे आत्म प्रशंसा ह सुघ्घर- सुघ्घर रूप ल पाही ,संत कबीर  भी तो इही कहत हे -

जब मैं था ,तब हरि नहीं ,अब हरि है, मैं नहीं ।

प्रेम गली अति सांकरी ,जामे दो न समाही ।।

       ✍️श्रीमती गीता साहू

        19.08.2021

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