Thursday 5 August 2021

छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग ले मोर अपेक्षा*

 *छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग ले मोर अपेक्षा*


छत्तीसगढ़ राज्य के 80 %जनसंख्या के मूल भाषा छत्तीसगढ़ी आय। यानि माँ ले सीखे भाषा। आज के हिसाब मा करीब 2.5 करोड़ आबादी। 

राज्य के मध्य भाग यानि मैदानी हिस्सा संपूर्ण रूप मा छत्तीसगढ़ी भाषी हरे। ओडिशा के नुआपाड़ा जिला, महाराष्ट्र के गोदिया के सीमावर्ती हिस्सा , मध्यप्रदेश के मंडला सिवनी बालाघाट अउ सहडोल के ग्रामीण अंचल मन घलो छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रभाव क्षेत्र हरे। पूर्वी हिन्दी होय के कारण छत्तीसगढ़ी ला देश के करीब 40 %आबादी आसानी ले समझ सकथे। अइसे नइ हो सकय कि जउन भोजपुरी ला समझही वो छत्तीसगढ़ी ले अनजान रइही। *पद्मश्री फूलबासन ला जब 2008 मा बिड़ला सम्मान मिलिस तो मुंबई जइसे महानगर के मंच ओकर छत्तीसगढ़ी भाषा मा गोठ ला सुन के आँसू आ गए।* आधा रात के पूरा फिल्मी जगत अउ संभ्रांतजन के देर तक ताली के गड़गड़ाहट ए बात के गवाह हे कि झाँकना हम ला अपने अंदर हे। हमीं मन अपन संकुचित सोच ले छोटे बने फीरत हन। 


रायपुर बिलासपुर अउ दुर्ग संभाग के तहत रायपुर, महासमुंद, बलौदाबाजार-भाटापारा, गरियाबंद, धमतरी, दुर्ग, बालोद, बेमेतरा, कवर्धा, राजनांदगांव, बिलासपुर, रायगढ़, जांजगीर - चांपा, मुगेली, अउ गोडेला-पेड्रारोड-मरवाही ये 15 जिला।सरगुजा संभाग के कोरिया, सरगुजा, जशपुर, बलरामपुर अउ सुरजपर जिला के ग्रामीण अंचल हमरे जइसे छत्तीसगढ़ी बोलथे।हाँ जशपुर, सुरजपर अउ कोरिया के कुछ हिस्सा मा अन्य बोली प्रभावी हे फेर छत्तीसगढ़ी भाषा के मयारूक सबो स्थानीय लोगन हें। 

*छत्तीसगढ़ी अउ सरगुजिया के अंतर्संबंध ला ये सरगुजिया एल्बम मन के नाव ला पढ़ के आप मन खुद तय कर सकत हव-*

1.आगे रे सरगुजा के तिहार

2.हिये हिये हाय हाय धिरे धिरे माँदर बाजे

3.तोर गोदना के फूल

4.एक बोतल दारू नई पी आया, रात भर करमा नचाया सगा

5.हाय रे सरगुजा नाचे

6.सरगुजा भुइयाँ कर सरगुजा बोली 

गुरतुर हवे अड़बड़ मिसरी कर डेली

7.सरगुजा के छौंड़ी नाचे लसेर लसेर

8.चुनरी लहराबो दाई के सारा सोरो देवी धाम में

9.छैल छबीली मयारू सारी

10. ढिसिक ढिसिक बाजत हे रे डीजे नई नाचे रिझे रिझे


यानि संपूर्ण सरगुजा भू- भाग छत्तीसगढ़ी भाषा के क्षेत्र कहे जा सकथे। आम आदमी अउ ओकर संस्कृति मा सरगुजिया अउ छत्तीसगढ़ी के फरक करके देखना मुश्किल हे। 


आवौ अब बस्तर संभाग के बात करन। 

बस्तर यानि नारायणपुर, केशकाल अउ कांकेर मा छत्तीसगढ़ी के ही बोलचाल हे। कोण्डागांव अउ जगदलपुर मा छत्तीसगढ़ी समझने वाला मन के बहुत संख्या हे। हल्बी इहाँ के प्रमुख बोली आय। सुंदर बोली आय।एकर बोलने वाला मन बर छत्तीसगढ़ी बिलकुल पराया नोहय।

बस्तर के दंतेवाड़ा, गीदम अउ बीजापुर जिला मा गोंडी के प्रभाव हे। इहाँ के कस्बाई अउ शहरी क्षेत्र मा प्रवास करने वाला व्यवसायी अउ नौकरीपेशा मन जरूर छत्तीसगढ़ी जानथे।फेर ग्रामीण क्षेत्र अछूता हे शिक्षा अउ संपर्क के अभाव मा।

                  इतना लिखे के पिछे इही अभिप्राय हे कि छत्तीसगढ़ी इहाँ के सर्वमान्य जनसंपर्क भाषा के दर्जा रखथे अउ कामकाज के भाषा बने के संपूर्ण गुण एमा विद्यमान हे।

इहां बसे पर- प्रांतीय लोगन मन घलो छत्तीसगढ़ी ले परिचित हें।नइ बोलही जानही तो ओकर कतको काम नइ बनै।

छत्तीसगढ़ी हा प्रदेश के पूर्ण भाषा बने के अधिकार रखथे अउ इहाँ के सबो बोली ला सम्मान दे के क्षमता तको हे।नियत तो हमरे डोलथे। राजनीति बहुत टेढ़ी चीज आय। प्रशासन मा बइठे आदमी, कुटिल नेता अउ बिनपेंदी के लोटा कस ढुलमुल विद्वान मन सब कुछ छींही बीहीं कर देथें। जउन राष्ट्रभाषा हिंदी क्षमा करहू राजभाषा हिन्दी के साथ होय हे उही राजभाषा छत्तीसगढ़ी के साथ होवत दिखत हे। निर्विवाद चीज ला विवादित कर देना आम बात हरे। 90 विधायक यानि संपूर्ण सदन छत्तीसगढ़ी बर मया दिखाइन अउ आयोग के गठन करिन। छत्तीसगढ़ी के उन्नयन बर बढ़ - चढ़ के बात करिन। कसम खाइन। 28 नवंबर 2007 के छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के गठन के प्रस्ताव पारित होइस। इही दिन छत्तीसगढ़ी ला राजभाषा के दर्जा मिलिस। 11 जुलाई 2008 के राजपत्र में राजभाषा (पारित प्रस्ताव) के प्रकाशन होइस अउ 14 अगस्त 2008 ले आयोग के काम चालू होइस।

जब राजपत्र के प्रकाशन होइस ए बीच मा उँगली करने वाला मन कुछ तकनीकी कारीगरी कर के अपन काम कर डारिन। छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़ शब्द मा खेल होगे। यानि ये मन पूरा जनमानस के साथ- साथ विधानसभा मा सर्वसम्मत निर्णय के अपमान करे मा घलो नइ हिचकिचाइस।तभे तो आज नवा परिभाषा के उदय होवत हे जउन हा भविष्य बर अच्छा संकेत नोहय।

*घोषित तौर मा हिंदी के अतिरिक्त छत्तीसगढ़ी ही इहाँ के राजभाषा आय। तब छत्तीसगढ़ी लिखाय कि छत्तीसगढ़ ज्यादा फर्क नइ पड़य बशर्ते कि विद्वान मन नवा - नवा परिभाषा झन गढ़ै।* लोगन मन ला लागही कि मैं डाॅ सुधीर शर्मा के बात मा प्रतिक्रिया देवत हँव।नहीं अइसन बात नोहय। बीच- बीच मा अइसन गोठ सुनते आवत हँव। आज के विषय उपर लिखत ये बात मन मा आ गे।अब विषय मा आय के कोशिश करत हँव। 


छत्तीसगढ़ राज्य बने ले छत्तीसगढ़ी समाज के मन मा उम्मीद जागिस कि अब प्रदेश बने के बाद राजकाज के काम बर इहाँ के भाखा बोली के घलो विकास होही। ये बीस साल मा निश्चित ही विकास होय हे।भाषा आयोग के गठन होइस। छत्तीसगढ़ी ला राजभाषा के दर्जा मिलिस। शासन के कुछ कामकाज मा झलक घलो दिखिस। कामकाज अउ शासन प्रशासन के भाषा बनाय बर त्रिभाषा फार्मूला कस हिंदी - अंग्रेज़ी - छत्तीसगढ़ी शब्द कोश के प्रयास होइस। आयोग के वार्षिक प्रांतीय सम्मेलन के साथ साथ जिला मन मा घलो संयोजक नियुक्त कर के स्थानीय साहित्यकार अउ पढ़इया लिखइया मन ले संपर्क मजबूत किये गिस। समय- समय मा आयोजन, बैठका, कवि सम्मेलन अउ चर्चा- परिचर्चा घलो करे गिस ।पुस्तक के प्रकाशन बर साहित्यकार मन ला आर्थिक सहयोग मिलिस।वक्ता, कवि, साहित्यकार अउ नवोदित हस्ताक्षर मन ला घलो मंच प्रदान किये गिस। एकर सराहना होना चाही। संचार माध्यम मा छत्तीसगढ़ी के उपयोग बाढ़िस। रेल्वे मा उद्घोषणा, टीवी आकाशवाणी ले बुलेटिन, शुरु होइस। अधिकांश बड़े अखबार मन साप्ताहिक पेज बना एक दिन छत्तीसगढ़ी बर सुरक्षित करिन।ये सब बात बर कहीं न कहीं जन भावना के खियाल करे गिस या जन दबाव काम करिस। अउ एकर माध्यम आयोग घलो बनिस। जउन काम इमानदारी ले चाहे गे हे कि होवय तो जरूर होइस। अउ जउन काम मा शीर्षस्थ मन घुँचपेल करिन वो मन अटक- लटक गे। 

*छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के प्रांतीय सम्मेलन लगातार जारी रहिस। भिलाई, रायपुर, बिलासपुर, कोरबा, बेमेतरा, अउ राजिम के सम्मेलन मा शिरकत करे हँव। जम्मो साहित्यकार, विद्वान अउ आंचलिक साहित्य प्रेमी मन के सकलाय अउ विचार मंथन के जबर सुघर मंच बन गे रहिस। बहुत अकन मंचीय कमी अउ आलोच्य प्रसंग के बावजूद ये आयोजन के महत्ता अब समझ मा आवत हे जब सरलग तीन साल नाँगा होगे। हर छत्तीसगढ़ी साहित्यकार अउ आंचलिक बोली साहित्य के लिखइया पढ़इया ए दिन के अगोरा मा रहै।* मेल मिलाप अउ विचार मंथन के सुग्घर मंच बनगे रिहिस।सरगुजा ले लेके दंतेवाड़ा अउ कवर्धा ले रायगढ़ तक तमाम क्षेत्र के कवि साहित्यकार इहाँ सकलावैं अउ दो दिन के आयोजन मा अपन उपस्थिति ले छत्तीसगढ़ी बर अपन समर्पण ला पुख्ता करैं। आम आदमी के दुख- दर्द ला अपन- अपन कलम मा जगह देवइया मन इहाँ सकला के मंच के नीचे घलो अपन विचार ला आदान-प्रदान करैं। येकर एकदम रूक जाना पीड़ादायक हे। एक तो वर्तमान परिस्थिति अउ उपर ले राजनीतिक निर्णय मा देरी। गिने चुने व्यक्ति के उपस्थिति मा आयोजन घरघुँदिया ले ज्यादा कुछु नोहय।सिर्फ खानापूर्ति होही। आयोग मौन दिखत हे। जनता अउ साहित्य के दुनिया ले संपर्क टूट चुके हे। अभी- अभी आयोग के सचिव के नियुक्त होय हे फेर मुखिया के खुर्सी खाली हे। जइसे बिना मुख्यमंत्री के शासन के कल्पना नइ होवय अउ राज्यपाल के सत्ता हा आपात व्यवस्था होथे वइसने आयोग के अध्यक्ष बिन आयोग अधूरा ही कहे जाही। ओकर बिन मुल्यांकन नइ हो सकै। प्रशासनिक पद के बदौलत सबो काम नइ किये जा सकै। अध्यक्ष ही निर्णायक होथे। 


 दुर्भाग्य हरे कि मुख्यमंत्री चाह के भी छत्तीसगढ़ी मा शपथ नइ ले पाइस। वैधानिक प्रोटोकोल के आड़ ले के अधिकारी मन के द्वारा मना कर दिये गिस। एकर बर छत्तीसगढ़ी ला कम से कम 8 वीं अनुसूची मा दर्ज होना जरूरी बताये गिस।अइसे सुनब मा आइस।छत्तीसगढ़ी ला 8वी अनुसूची मा स्थापित करना एक बड़े बुता शासन बर आय जेकर प्रयास निरंतर होना चाही।


 साहित्यकार मन ला आर्थिक संरक्षण जरूरी हे।  ये सरलग जारी रहै। वर्तमान मा बढ़ना चाही सहयोग राशि। छत्तीसगढ़ी के मानकीकरण बर लगातार विचार मंथन अउ बैठका होना चाही। छत्तीसगढ़ी भाषा, व्याकरण, लेखन गद्य, पद्य अउ साहित्य मा काम करइया आदमी मन ला आर्थिक सुरक्षा संबल अउ सम्मान निहायत जरूरी हे। आयोग बीच- बीच मा छत्तीसगढ़ी भाषा के मानकीकरण अउ उत्थान बर लिये गए अपन निर्णय ले लेखक मन ला अवगत करावत रहैं। निर्णय ला सर्वमान्य तय कर के सुझाव देवै ।पथ प्रदर्शन करै। छत्तीसगढ़ी ला मानक रूप मा लिखे बर प्रोत्साहन देवै। अखबार मन मा छत्तीसगढ़ी कालम मा एकरूपता बर सम्पादक मन ला सुझाव अउ निर्देश देवैं। छत्तीसगढ़ी शब्द भंडार ला मजबूत करे बर अउ अशुद्धि ले मुक्त करे बर कदम उठावय।जगह जगह छोटे- छोटे आयोजन के माध्यम ले साहित्यकार मन ला मंच प्रदान करै। आयोग के काम ला जन - जन तक पहुंचावै बर नवा नवा उदिम होते रहना चाही। तब आम आदमी के जुबान अउ लेखन घलो सुघरही।छत्तीसगढ़ी के मानक लेखन अउ बोलचाल बर प्रशिक्षण कक्षा चलावैं। जुन्ना पुरोधा अउ साहित्यकार मन के लेख - साहित्य ला संरक्षित करे के कदम उठावैं। राजभाषा आयोग के एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी ये हरे कि अपन काम ले आम अउ खास मन ला विश्वास पैदा करै कि छत्तीसगढ़ी भाषा दुनिया के कोनों भाषा ले कम नइ हे। एक समय रिहिस जब अंग्रेज मन तक फ्रांसीसी अउ लेटिन मा शिक्षा ला ज्यादा महत्व देवँय। बेरा - बेरा के बात आय। आज अंग्रेजी दुनिया के सब ले शक्तिशाली अउ संपन्न भाषा बन गेहे। छत्तीसगढ़ी बर आत्मविश्वास जगाना आयोग के उद्देश्य मा उपर रहना चाही। 


भाषा बर भाव के अभाव नइ हे। प्रभाव अउ सुभाव के अभाव हे। छत्तीसगढ़ी मा संपूर्ण संप्रेषणीय भाषा बने के क्षमता मौजूद हे 

शब्द बिगाड़ के लिखइया मन ले तको सतर्क रहे के जरूरत हे। भाषा के विकास बर ये मन खतरा आय। देवनागरी के सबो लिपि ला अपना के दुनिया के तमाम भाषा ले संवाद किये जा सकथे। ये अच्छा बात हरे कि छत्तीसगढ़ी मा 52 अक्षर ला मान्य किये गे हे फेर अभो ए बात मा बहस होवत रहिथे। अपन मर्जी चलाने वाला अउ दुर्योधन ला जुजोधन लिख के छत्तीसगढ़ी के उद्धार करइया मन ले अब बाँच के रहे के चाही। आयोग के अब तक के कार्यकाल मा लिए गे निर्णय अउ काम ला आधार बना के आगू बड़ही तभे छत्तीसगढ़ी के महल अउ कलश कंगूरा दिखहीं। जेन आही तेन अपन मर्जी के नेंव खानत रइही तो अनगढ़ ही रही जाही। छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग ले बड़ उम्मीद हे मोला। आयोग के काम करे के उत्साह अउ प्रोत्साहन ले ही हमर जइसे लिखइया पढ़इया मन के लगन बने रइही। नइ तो अपन डफली अपन राग तो सब के चलतेच हे।

असंतोष के कोनों बात नइ हे। उतार - चढ़ाव चलत रहिथे।विश्वास हे अवइया दिन मा छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के काम ला आगू बाढ़त देखबो।



(ये मोर निजी विचार आय, जेन मोर मगज मा पहिली ले मौजूद हे आज बखत पर गे तो कागज मा उतार दे हँव। मोर कोनों बात मा आप सब ला असहमति के पूरा अधिकार हे।) 


लेख:

बलराम चंद्राकर भिलाई

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