Saturday 14 August 2021

छेवर_अउ_दुधभात ●

 ● #छेवर_अउ_दुधभात ●


समुच्चा देश के कोनों भी कोन्हा के गोठ करे जाय त सब्बो राज्य के गाँव-गँवई बासा म कई किसम के नियम,रीति-रिवाज,मान्यता देखे बर मिलथे इँहा के जिनगी,रहन-सहन म मया,भाईचारा भरे रहिथे नइतो अइसन भी  कहि सकथन  कि गाँव हर सँस्कृति के दुसरइया नाव आय |

अइसने हमर छत्तीसगढ़ जेन अपन धान संपदा के सेतिर 'धान के कटोरा' कहाथे जिंहाँ कतकोन जुन्ना रीत-रिवाज रहिस जेन खेती किसानी ले जुरे रहय तेन म एक ठिन रिवाज रहिसे 'छेवर के दिन दुधभात' |

छेवर माने किसान जब धान मिसाई करय त आख़िरी के दिन जेन दिन समुच्चा धान मिसाके घर के कोठी म हबर जावय त उही दिन साँझकुन आनन्द, खुशी से किसान सब्बो लइका मन ल छेवर के रूप म अन्नदान करय ये दिन सब लइका जेकर भी कोठार म छेवर मिसाई होवय तेन दिन सब्बो एक सँग जुरियावंय फेर किसान सब्बो झिंन लइका मन ल अपन हिसाब से कम -जियादा जइसनों भी छेवर अउ नरियर परसाद सँग गुड़  देवंय सब्बो लइका मन अब्बड़ खुशी मनावय हमर बचपना के एक परम सुख कहि सकथन एला जेन ल हमन जीए हन इकर सँगे-सँग छेवर देवइया किसान मन अपन पारा-परोस के रहइया मन ल रथिया के जेवन बर नेवता देहे रहँय तेकर खास महत्ता रहय दुधभात | किसान दार-भात परोसे के पहिली दुधभात खवावय जेन ल कहूँ तस्मई ,गुरतुर भात घलो कहिथें| छेवर अउ दुधभात के ए परम्परा घरो-घर चलय अउ एकर आनंद अइसे लागय जइसे कोनों तिहार |

फेर जब ले अंधाधुंध आधुनिकरण होइस किसानी के घलो मशीनीकरण होगे तब ले सब जुन्ना परम्परा नँदावत  चले गिस अब कहूँ गाँव म ए सब नियम,रिवाज नइ बाँचे दिखय सब्बो कोती भारी बदले-बदले गाँव के सरूप,किसानी अउ मनखे दिखथे आस-परोस के मनखे ले मनखे के मेल-मिलाप,दया-मया, सुमता सब जइसे कोनो सुघ्घर सपना होगे अब कोनों मनखे ल ककरो ले मतलब नइहे सब अपन-अपन हिसाब के खेती करत हें अउ पुरखा ले चलत आवत जम्मों परम्परा ल भुलावत हवंय अब न तो नांगर म बऊग होवय,न बियासी,न कोपर,न बइलागाड़ी,गोबरखत्ता ,न कलारी,पैरा,कोठार  न ही 'छेवर अउ दुधभात' |


    शशिभूषण स्नेही 

    बिलाईगढ़ (कैथा)

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