Saturday 14 August 2021

आत्म प्रशंसा के बीमारी "

 " आत्म प्रशंसा के बीमारी " 

      ओइसे तो तुलसीदास आठों काल बारहों महीना सुरता आथे फेर अभी तो तुलसी जयंती के सेतिर अउ जादा सुरता आवत हे उन लिखे हें ...

" निज कवित्त केहि लाग न नीका , सरस होय अथवा अति फीका । " 

सोला आना सही बात ...फेर अपन रचना अपन लइका असन तो होबे करथे । कतका पढ़ , गुन के , सोच विचार करके लिखइया हर लिखथे त मोह ममता तो जागबे करही ? जागना चाहिए भी ..। गाड़ा मं कतको महंगी  जिनिस लदाए रहय ..गाड़ा रवन ले गाड़ा उतरिस त पलटे के डर तो रहिबे करथे ...गाड़ा पलटय झन अउ फेर गाड़ा रवन ल धर लय एकर जिम्मेदारी तो गाड़ा चलइया के होथे न ? ठीक उही तरह मनसे कतको ज्ञानी ध्यानी , बुधियार लिखइया रहय जहां मैं ये लिखें हंव , अतका कन लिखे हंव , अतेक दिन ले लिखत आवत हंव ...मैं ..मैं अउ मैं ..तहां आत्म प्रशंसा के जनम हो जाथे । मजा तो तब बाढ़ जाथे जब आत्म प्रशंसा हर सुरसा कस मुंह बढ़त जाथे ...। 

   तुलसी दास जी सत्तर साल के उमर मंच रामचरित मानस लिखिन ..जेकर पहिली भी किताब लिख डारे रहिन तभो उंकर विनम्रता देखव लिखे हें ...

" स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा ।" 

कोनो ल नीक लगही तभो ठीक हे , नइ लगही तभो ठीक हे ...। इही भाव हर आत्म प्रशंसा के बीमारी के रामबाण दवाई आय । तभो बीमारी तो बीमारी च आय समय रहत इलाज पानी मिल जाथे त मनसे भला चंगा हो जाथे । आत्म प्रशंसा के बीमारी ले बांचना हे त दूसर के लिखे ल पढ़ना जरुरी हे । पहिली फायदा के लोगन कोन विषय मं का लिखे हें , कोन तरह से लिखें हें ए 

पता चलथे दूसर ज्ञान के अंजोर बगरथे त जुच्छा के ' मैं' उही आत्म प्रशंसा जेला आत्म मुग्धता भी कहिथन तेहर भाग जाथे । बहुते आत्म प्रशंसा हर बहुत अकन विरोधी घलाय तो बनाथे । 

  ये बीमारी हर जुन्ना हो जाथे त कैंसर असन घमंड बीमारी बन जाथे जेहर लाइलाज होथे । 

अब जल्दी से कलम बन्द कर देवत हौं नहीं त आत्म प्रशंसा के बीमारी मोई ल हो जाही ...रोग ऱाई के बंहुते सुरता करे ले अपने उपर झंपा जाथे । 

  सरला शर्मा

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