Thursday 26 August 2021

छत्तीसगढ़ी कलेवा

 छत्तीसगढ़ के कलेवा



सरला शर्मा: जोरन के कलेवा 

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    बेटी के बिहाव समधी -सजन , सगा- पहुना , हितू -पिरितू , पारा- परोस  सबो झन बर कलेवा ओहू महीना भर तक तो चलबे करथे तेकर सेती तइहा दिन मं विशेष ध्यान देके बनाए बर परय , अभियो जोरन के बड़ महत्ता हे ...देखनी हो जाथे । हमर छत्तीसगढ़ मं जोरन बर लाडू , पपची के चलागत हे । 

 लाड़ू .... दू किसिम के बनथे पहिली बूंदी के लाड़ू जेला छींट के लाड़ू भी कहिथें । बेसन घोर के बूंदी छान लेथें फेर गुड़ के नहीं त शक्कर के चाशनी बनाथें थोरकुन कड़क चाशनी के लाड़ू हर जादा दिन तक चलथे त बन्धाथे भी बने ...। 

दूसर किसिम के बूंदी छोट छोट छानथें , गहूं पिसान ल घी  डारके मद्धम आंच मं भुजंथें , घी अतका रहय के लाड़ू बंधा जावय , पीसे सक्कर , इलायची पावडर डार के लाड़ू बांध लेथें ..तब तक बूंदी ल चाशनी मं डार देथे फेर पिसान के लाड़ू के ऊपर बूंदी लपटा देथे ऊपर ले ओहर बूंदी के लाड़ू असन दीखते . ... फेर लाड़ू ल फोरे ले भीतर के पूरन दीखथे एला पूरन लाड़ू कहिथें । 

बहुत सावधानी संग बनाये बर परथे एहर महीना , डेढ़ महीना तक खराब नइ होवय । 

        पपची .....

छाने हुये  गेहूं पिसान नहीं त मैदा ल बहुत अकन मोअन ( घी के ) डार के मो लेथें अतका के हाथ मं लाड़ू बंधा जावय । थोरकुन कुनकुन पानी मं कड़ा सान लेथें , फेर घी कड़का के मद्धम आंच मं चुरोथें ...छान के निकाल देहे ले भीतरी हर कच्चा रहि जाथे । बड़ बेरा लागथे पपची चुरे मं काबर के  एहर हथेरी अतका बड़े अउ ओतके मोठ भी रहिथे । सबो पपची के तियार हो जाए के बाद कम से कम दू घण्टा जुड़ाये देथे   ... गरम पपची ल पागे ले बाद मं पपची सेवर हो जाथे ।  गुड़ या शक्कर के बताशा पाग चाशनी मं पपची ल बोर बोर के परात मं अलग अलग रखत जाथें ताकि एक दूसर मं  लपटाय झन । चार , पांच घण्टा जुड़ाये देथे ..। 

मसखरी बर बड़का पपची बना के समधिन मन के नांव बेटी के कका , बड़ा मन के नांव संग लिखे के रिवाज पहिली रहिस हे । त जोरन के सात ठन बड़का पूरन लाड़ू मं गुप्त दान समझ के अपन शक्ति मुताबिक चांदी , सोना नहीं निदान कलदार रखे जावत रहिस । 

   बहू के मान बाढ़ जावत रहिस जोरन के कलेवा देख के ...। आजकल तो आनी बानी के मिठाई , खाजा घलाय जोरन मं जोरे जाथे । 

    बिहाव के दिन ले पन्द्रही पहिली ले कलेवा बने बर तेलाई माढ़  जावय , अरोस परोस के सियानिन मन कलेवा बनावयं तइहा दिन मं हलवाई बलाये के रिवाज़ नइ रहिस त छुआ निकता के बात घलाय रहिस ....कलेवा बनावत काकी , फूफू दीदी , मामी मन सुंदर बिहाव गीत गावत रहंय ...गारी घलाय गांवय त मरजाद राख के ....

" का गारी देबो हमन समधी सजन ला , हमर नता परे हे बड़ भारी ।

   उनकर चरण कमल बलिहारी हो रैया रौरी के रार बड़े भारी ...। " 

        वाह ! गारी भी देहीं फेर बिनती ये के आप मन तो रौरी ( राजा ) अव हमन तो आपके रैया (  परजा ) अन आप संग रार ( झगरा ) कइसे करे सकबो हम तो बेटी वाला अन । 

    सरला शर्मा

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*विषय--छत्तीसगढ़ी कलेवा*

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कलेवा हा हिंदी के शब्द आय  जेला जस के तस छत्तीसगढ़ी भाखा मा तको बउरे जाथे। अइसने अउ बहुत अकन हिंदी के शब्द हें जेन ला हमन    जस के तस बोलथन। ये हा हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी के घनिष्ठ संबंध के पुख्ता सबूत आय।

       कलेवा शब्द के उत्पत्ति संस्कृत के कल्पवर्त या कल्लवट ले होए हे।हिंदी शब्दकोश म कलेवा शब्द के अर्थ  बासी मुँह नाश्ता या हल्का भोजन बताये गे हे। एखर एक अउ संस्कृत नाम हे-पाथेय।पाथेय मतलब कहूँ गाँव -गौंतरी या यात्रा मा जावत बेरा रस्ता मा खाये बर हल्का-फुल्का नाश्ता।  एक अउ अर्थ बिहाव के वो रस्म ले हे जेमा दुल्हा राजा के संग सगा-सोदर मन ला रोटी-पीठा परोसे जाथे। कहूँ-कहूँ मरनी-हरनी (दशगात्र, तेरही) मा परोसे व्यंजन ला तको कलेवा कहे जाथे। फेर प्रमुख रूप ले एखर सबंध बिहाव ले हाबय। बिहाव के समे बेटी बिदा करे के बखत  हँउला-हंडा या फेर झाँपी मा जोर-जतन के, ढाँक 

के समधी घर भेजे रोटी-पीठा ला तको कलेवा कहे जाथे। तइहा के समे कई पइत शैतान बरतिया मन जोरन कलेवा ला रद्दे मा झड़क दँय।

           हमर देश मा अलग-अलग क्षेत्र अउ प्रांत मा कई ठन अलगेच-अलग कलेवा के चलन हे, जेकर कारण हम स्थानीय प्रभाव कहि सकथन।

           हमर छत्तीसगढ़ राज्य के कलेवा के चर्चा करन त, इहाँ सब ले बड़े कलेवा बासी हर आय। बड़े बिहनिया ले नहाँ धोके किसान-किसनहिन मन, बनिहार-भूतिहार मन इही कलेवा ला टठिया भर दहेल के दिन भरहा खेत कोती चल देथें।

  हमर छत्तीसगढ़ मा नाना प्रकार के कलेवा के चलन हे जेमा मुख्य रूप ले--- करी लाड़ू,  बूँदी लाड़ू ,बरा, सोंहारी, पपची, बोबरा , चीला, देहरौरी, ठेठरी, खुरमी, अँगाकर रोटी, फरा, दूध फरा, अइरसा ,चौसेला, मुठिया, गुझिया, पेठा अउ खाजा ,गुलगुल भजिया आदि मन आयँ।

          आजकल वैश्वीकरण के प्रभाव हमर कलेवा मा तको पड़े हे त बालू साही, जलेबी, मुरकू, साबू दाना बड़ा, मिर्ची भजिया,सलौनी ,सेवई ,दोसा ---मन तको शामिल होगे हें।

        ये अधिकांश कलेवा मन स्वाद मा या तो मीठा होथे या फेर खारा ।

       कहे गे हे --"जइसन देश तइसन भेस।" ये बात हमर छत्तीसगढ़ी कलेवा मन बर घलो लागू होथे काबर के इहाँ  धान के फसल सब ले जादा होथे तेकर सेती बारा आना ले जादा कलेवा मन चाउँर पिसान ले बनथे।

     एक खुशी के बात हे के हमर छत्तीसगढ़ी कलेवा के सोर-संदेश देश-विदेश मा अब्बड़ होए ला धर लेहे। रायपुर के गढ़ कलेवा हा बड़ प्रसिद्ध हे।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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छत्तीसगढ़ी गोठ के गुरतुर गुरतुर मिठास के संग मा अगर गुलगुल भजिया ह मिल जाय त विदेशी *मिल्क बार सिल्क* चाकलेट अउ रंग रंग अंग्रेजी मिठाई हर मुँह दिखाय लाइक नइ रहय अउ वोखर आघू मा पानी माँग दारही।

आजकल लइकन मन पिज्जा बर्गर के आघू कछु ल नइ  सुँघय फेर एही मन मेर अँगाकर अव पताल के भुँजिया, पानपुरोय गोदली ला मढा़ देवा तो देखव लार ह नइ  चुचवाही त कहिहा मुँह मा पानी आइच जाथे फेर गलती काखर आय हमी मन तो हाई सोसायटी देखाय बर अँगाकर ल नाम तको नइ  ले काबर हमन ले स्टेटस  ह कमसल झन हो जाय एही डर म अवइया पीढी़ ह कछु छत्तीसगढ़ी कलेवा ल नइ जान पावत हे ।जरुरत हे हमन ल आघू आय हर तिहार म ठेठरी खुरमी के अलावा अइरसा घुचकुलिया , पपची अउ नाना परकार के व्यंजन ल बनाइ अउ बताई।फरा के सामने अच्छा अच्छा ब्यंजन हा फेल हे। *अइरकन*  कलेवा के पाग ल जेहा पागे ता स्वाद के मजा का पूछना। सिंधी कढी़ गुजराती कढी़ महाराष्ट्रीयन कढी़ सुनें हन फेर हमर छत्तीसगढ़ी कढी़ *कइथला* जेला कनकी ले अमटहा कढी़ बनथे वोमा कोनों टक्कर लेहे नइ सकय अतका कन हमर छत्तीसगढ़ीया मन करा कलेवा भरे हे जरुरत हे बगराय के हमर गवइहा देहाती कही दिही कइके हमन कोनो ल नइ बतान *बासी के मिठास* काबर जानत हन बासीखया मतलब छत्तीसगढ़ीया हन पर एही म अमरीका हा रिसर्च कर डारिस ओखर महत्व ल कतका बडे़ हवय तब दुनिया समझत हे बासिखाया मा करा कतका ऐसन खजाना भरे हवय।

ऐसन कतका कलेवा होही जेला हमन नाम तको नइ सुनें हन।

*एक काम दुकारज* छत्तीसगढ़ीया पुरखा मन के मेनेजमेंट अतका बढि़या रहिस दुध हा अगर फटगे त आजकल खराब होगे कहिके फेंक देथे फेर सुनें हन पहिले पुरखा मन ओला अउ नीबू अम्मट डारके फटो के गुर डारके *बिनसा* अउ चीला खावय फेर फेकत नइ  रहिन । पनीर कस रात भर सील मा दबो के फटे दूध ला छानके पनीर बना डारत रहिन मिठाई तको बनात रहिन ।



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धनेश्वरी सोनी

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रामनाथ साहू: -


        *दु वनगींहा खाजी*  

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       छत्तीसगढ़ी व्यंजन मन के सत्र चलत हावे  तब आज तीन विशेष वनगंवा ( वनांचल ) व्यंजन मन के चर्चा कर ली जउन ला सहाराती मनखे मन शायद  सुने - जानत नई होंही ।


 *1.  महुआ- लपसी* 

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निमारे- धोए महुआ ल माटी के हाड़ी म एकदम धीमी आँच म रात भर चुरोय जाथे । वोमे स्वाद बढ़ाय बर कुररू,  अमली चिचोला, चार चिरौंजी घलव  मिलाए जाथे ।  ठंडा होय के बाद एला भोज्य पदार्थ के रूप में खाय जा सकत हे ।  येला खाय ले पेट के  भरपूर भरही । ये बात के गारंटी है ।


*2. बोइर-सेमी*

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 माटी के करसकरवा या छोटे हडिया म धोय- निमारे निकता बोइर मन ल अउ थोरकुन नून- मिर्चा ना के चुरोय जाथे। तीवरा भाजी के सुस्का,  सेमी के सुस्का , भांटा के खोईला सबो ल वोमा ना के धीमी आंच म बहुत देर तक ल चुरोय  जाथे अउ और जब ये सब मन चूर जाथें, तब फिर ओमन ल छौंक -बघार  के सब्जी के रूप में खाए जाथे। 


*रामनाथ साहू*


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छत्तीसगढ़ के रसगुल्ला

*देहरउरी*


का बताव देहरउरी कहे म मुँह म पानी आ जाथे। ये हर अइसन कलेवा हे जेखर भोग कुल देवता ,नवा पानी खाय के दिन जादा होथे अगहन गुरुवार दीवाली के परसाद सधौरी के खास व्यंजन आय।

विधान बनाय के ..........

चाउँर ला बढ़िया मजा के सफ्फा धो डारव फेर ओला छइहाँ मा सुखो दव।

तिहा सुखा जही ता दर्रहा पीस लव। पहली के मन ढेकी म कुटय फेर आजकल मिक्सी म इड़ली रवा कस पीसव । ओमा दही अउ घी ल मिझार के सान देवव। सान लिहा तहा दु दाना फेट देवव ताकी हल्का हो जावय । घी ल कढा़ही मा चढाके धीमी आँच म छान देवा। गुर या चीनी के चाशनी दू तार के बना के डारव ।डारे के पहिली ओला सूजा म छेद कर देवव रसा ह अंदर बरोबर भेद जाही ।फेर देखव मजा ले के खाव अउ परोसिन मन ला भी बाँटव।।


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धनेश्वरी सोनी

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छत्तीसगढ़ के चटाका 


चटाका बनाय के विधि। 

अउ समाग्री, 


सूख्खा अमली, थोकिन गुड़, अउ नमक, सूख्खा मिरचा, खड़ा धनिया, अउ कमचिल के पातर असन काड़ी। 


अमली ल सील लोढ़हा मा कुचर के बिजा ल हेर के अलग कर लव अउ अमली ल थोकिन कुचर लव चिटिक कुचरा जही त सबो चटाका के सामग्री ल मिला के एकदम अलकरहा टाइप कुचर लव जब बने कुचरा जही तेकर बाद नमक धनियां अउ गुड़ ल मिला के अउ कुचर लव, तब तक मुँह पानी ल कंटरोल मा रखव, बने कुचरे के बाद ओला हाथ मा धर के गोलिया लव, तेकर बाद कमचिल के काड़ी ल गोलियाय चटाका मा खुसेर लव तत् पश्चात कलेवा खाये के बाद चार झन के बीच मा बइठके चट चट कर के खाव।। 


ये हा कलेवा तो नोंहय फेर कोनों कलेवा ले कमती नोंहय। अउ एकात ठन सामग्री ल भूलाए होहुँ त किरपा कर के बताहू। येमा पेट तो नइ भरय फेर मन भर जथे। 


सुमित्रा कामड़िया 


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जइसे अलग अलग जघा के रहन -सहन, भाषा -बोली पहनावा, अलग अलग होथे वइसने खान -पान घलौ हा अलग अलग होथे।विशेष खान-पान हा वो जगह के पहिचान  घलौ बन जाथे।जइसे लीटी-चोखा बिहार, पूरनपोली महाराष्ट्र, ढोकला गुजरात, छोले -भटूरे,जोधरी के रोटी,सरसों के साग पंजाब, त इडली दोसा दक्षिण के पहिचान आय ।हमर छत्तीसगढ़ के खानपान हा हमर पहिचान आय।धान के कटोरा होय के कारन चाउँर हा हमर

मुख्य  भोजन आय ।अउ चाउँर ले बने जिनिस हा हमर कलेवा मा शामिल हवे।

               छत्तीसगढ़ मा अलग अलग तिहार मा अलग अलग कलेवा बनाये के चलन हावे।बछर के पहिली तिहार हरेली मा गुरहा चीला बनाये जाथे।तीजा पोरा मा ठेठरी, खुरमी,सलोनी त होली मा कुशली,खाजा अउ देहरौरी बनथे।उपास म फलहार बर तिखुर, सिंघाड़ा, सूजी चाहे बेसन के कतरा बनाय जाथे।गोवर्धन पूजा के दिन सोहारी बरा बना के गरुवा बइला ल खवाय आजकल पूरी बनाय के चलन हावे।पितर पाख म बरा, बोबरा,गुलगुल भजिया चौसेला बना के पितर मन ला हूम धूप देहे जाथे।

         लइका होय ले छेवारी बर सोंठ पीपर मा जड़ी बूटी मिला छेवारी लड्डू, तिल अउ अरसी के लड्डू त छट्ठी के दिन सगा पहुना ल बाँटे बर कसार के लड्डू (चाउँर पिसान ल बढ़िया घी मा भूँज के गुड़ के चाशनी म बाँधे जाथे)बनाथें।नोनी के बिहाव  मा जोरन बर करी,बूँदी लाड़ू,पपची ,बालूसही ,खाजा  जोरे जाथे।विहाव म कुअँर कलेवा के रसम घलौ होथे जेमा दमाद के संग सुआसा ल तरह तरह के कलेवा परोसें जाथे।

   ये तरह ले हमन देखथन कि छत्तीसगढ़ मा एक ले बढ़ के एक कलेवा बनाये जाथे जेहा इहाँ के पहिचान आय।



चित्रा श्रीवास

बिलासपुर

छत्तीसगढ़

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 छत्तीसगढ़ी कलेवा- *रसवन्ती* 


रसवन्ती बनाये के विधि बहुत सरल आय। येला होरी तिहार म  विशेष कर हमर कोती बनाथन। मूंग दार के मंगोड़ी ले रसवन्ती बनाये जाथे। येहर मीठा कलेवा आय। मूंग के दार ला रात कुन फूलो देवा अउ बिहनिया पानी ला निथार के ओला दरदरा पिस लेवा। आघु जमाना सिल-सिलौटी में पिसय फेर अब तो मिक्सी मा पिस लेथन। दरदरा पिसे पिठी म थोरिक खाये के सोडा डार के फेंट लेवा- अतका कि पानी में  डारव  तव उपला जावय, फेर तेल गरम करके सिठ्ठा भजिया- मंगोड़ा बना लेवा।  जतका कस भजिया हावय वही हिसाब के कराही मा पानी अउ शक्कर डार के चासनी बना लेवा। चासनी एकदम पतला रहय एक तार ले भी कम स्वाद बर लायची भुरका पिस के डार देवा। पानी अतका रहय की मूंग भजिया बनाय हव तेहर चासनी के पानी म फूल जाय अउ थोरुक झोर हर तको बाँचे रहय। ये तरा  ले छत्तीसगढ़ के विशेष कलेवा- रसवन्ती बनथे। येखर सुवाद हर बंगाली मन के रसोगुल्ला- सादा वाला ले कमती नई रहय। एक ठन खाहु तव खाते रहँव जईसे लगथे।



     वसन्ती वर्मा बिलासपुर 

     नेहरूनगर (छत्तीसगढ़) 

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