Friday 27 August 2021

रेल के दुख

 रेल के दुख 


               रेल के अगोरा करत करत स्टेशन म बइठे बइठे मुड़ी पिराये बर धर लिस । उबासी अऊ उदासी दुनों चारों मुड़ा लपेट डरिस । आँखी झम झम मुँदाये लगिस .. जे तिर बइठे रेहेंव तिही तिर .. ढलँग देंव .. देखते देखत पटले नींद परगे । 

               रेल हा सड़क म रेंगत हे कहिके चारों डहर कोहराम मातगे रहय । में नइ पतियायेंव .. । में केहेंव .. मेहा रेलवे कर्मचारी अँव .. में जानत हँव रेल सड़क म नइ रेंग सके .. ये सबो कोरा अफवाह के सिवाय अऊ कुछु नोहय .. । जम्मो झिन मोर तिर जुरियागे अऊ मोला केहे लगिन .. गऊकिन .. हमन सिरतोन कहत हन .. हम रेल ला सड़क म रेंगत सवांगे देखे हन । मेहा खिसियावत केहेंव – मेहा जब तक अपन आँखी म नइ देखहूँ तब तक नइ मान सकँव .. । रहा भलुक मोला आकब करन दव । सब झन मोर आगू ले घुच दिन .. रेल हा सहींच म सड़क म रेंग के हमरे तिर आके खड़े रहय । मेहा होशियारी मारत केहेंव .. मोला रेल हा देख पारिस होही अऊ चिन्ह घला डरिस होही .. तिही पायके हमर तिर नइ ओधिस .. ।  

               मोर तिर जुरियाये मनखे मन किथे – तोला रेल हा चिन्हथे अऊ जानथे त एकर मतलब तोर ओकर बनेच जान पहिचान हे .. एक कनि पूछथे का भइया .. हमन पटरी तिर अगोरत हन अऊ ओहा सड़क म काबर विचरन करत हे ... ? गऊकिन गो बहुत मुश्किल से अपन प्राण बचाये हन । मेहा अपन कालर ला ऊंच करत रेल के थोकिन आगू म पहुँच गेंव अऊ रेल ला दबकारत पूछेंव ... कस रे  रेल ! ... तोर बर सरकार हा अतेक लम्भा लम्भा पटरी बनाये हाबे .. ओला छोंड़ .. तोला सड़क म रेंगे के का साध लागिस होही ? बिचारा रेल हा बने ढंग ले नरिया नइ सकत रहय .. काँखत काँखत केहे लगिस – तुँहरे सेवा करत करत मेंहा सड़क म आ चुके हँव भइया .. । में फेर पूछेंव – हमर सेवा तोला करना हे त पटरी म नइ रहितेस .. । सड़क म आके काबर देश ला सड़क म काबर लानत हस ? रेल किथे – मेहा अपन से पटरी छोंड़ सड़क म नइ आये हँव जी .. मोला सड़क म लाने के जुम्मेवारी तुँहरे मन के आय । में सोंचेंव ... जान न पहिचान उपर से फोकट इल्जाम कहि दुहूँ तब ... जम्मो झन जान डरही के .. रेल अऊ मोर कोई परिचय नइहे .. । तभो ले बात ला घुमावत फेर केहेंव – तोला सड़क म झन आये बर परे कहिके देश के कर्णधार मन तोर रेंगे बर पटरी बनाये हाबे .. तैं उही म रेंगते .. काबर सड़क म आके मनखे ला पदोवत हस .. देख अतेक मनखे चपका के मरत मरत बाँचिन हे । रेल केहे लगिस – सड़क म रेंगे के सऊँख महूँ ला नइहे .. फेर पटरी म जगा रइहि तब तो .. ? मोला रेल उपर घुस्सा लागिस .. में केहेंव .. पटरी म तोर अलावा कोनेच रेंगथे तेमा .. तोर बर जगा नइ पुरत हे ? रेल हा बड़ दायसी से जवाब दिस – तैं पेपर मेपर नइ पढ़स का भइया .. ? बने देख .. कभू ये छपथे – फलाना बुता के पाछू .. कश्मीर के पर्यटन उद्योग पटरी म लहुँट चुके हे .. कभू ये आथे .. भारत म अतेक महामारी के बावजूद ... अर्थव्यवस्था पटरी म आ चुके हे .. कभू पढ़हे ला मिलथे के .. छ्त्तीसगढ‌ म .. बिगन केंद्रीय सहायता के विकास पटरी म दँऊड़े बर धर लेहे .. महारास्ट्र म कानून बेवस्था वापिस पटरी म अमर चुके हे .. । अऊ का का बतावँव भइया ... जे पाथे ते .. लहुँटके पटरी म पहुँच जथे .. । अब अतेक कंजेशन म मोर बर जगा कहाँ ... ? में केहेंव – तोर पटरी अलग हे अऊ ओकर मन के पटरी अलग हे .. तोला ओकर से का .. ? तभो ले अतेक देरी करके आथस अऊ फोकट बहाना घला मार देथस .. । रेल किथे – पटरी म अतेक झन रइहि तब मोर गति तो धीरे होबेच करही .. डर लागथे के कन्हो ... खुँदा चपका रौंदा झन जाये ... ताकि कन्हो झन कहि सकय के ... कन्हो व्यवस्था हा मोर सेती चौपट होवत हे । अब बता अतेक झन ला पटरी म सुरक्षित राखत .. तुँहर कस जनता ला .. लानत लानत मोर हालत सड़क म उतरे लइक तो होबेच करही .. । उदुपले सायरन के जोरदार अवाज सुन नींद खुलिस .. । रेल ला मोर कोती आवत सोंच पोटा काँपगे .. झकनाके उचेंव । 

                प्लेटफार्म म भजिया बेचइया के अवाज सुन ... समझ आगे के मोर लोकल अवइया हे । लकर धकर झोला धरके तैयार होवत सोंचे लगेंव ... वाजिम म अतेक झन ला पटरी म लाने बर .... रेल के भरोसा करबो .. तब रेल हा सड़क म आबेच करही । बपरा रेल के दुख बड़ भारी रिहीस ... को जनी पटरी म आये बर ओहा केवल दूसर मनला जगा देवत रइहि के ... उहू ला पटरी म लहुँटे के मौका मिलही ... ? 


हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

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