Saturday 20 May 2023

मंगरोहन* चन्द्रहास साहू मो. 8120578897

 [5/5, 10:18 AM] Chandrahas Sahu धमतरी: *मंगरोहन*


                                  चन्द्रहास साहू

                         मो. 8120578897


नत्ता-गोत्ता, पारा-परोस, पार-पांघर जम्मो कोई जुरियाये लागिस। अंगना के मोंगरा ममहावत हावय वइसना गमकत हाबे जम्मो के मन हा। बाजे लागिस पैजनिया गाये लागिस चुरी अउ खनके लागिस स्वर ले स्वर। गरब अउ गुमान नइ हाबे  काकरो अंतस मा। सब परिवार भर  सांझर-मिंझर बुता करत हाबे। किराया भंडार ले सुघ्घर समियाना अउ कनात लगा डारिस। छिंद पाना ले मड़वा सजाये लागिस। आमा पान परसा पान घला मान पाये बर मंडप मा सजगे।....महुँ हा मेंछा अटियावत पागा बांधे हावव।

"ये दे भाटो ! बने हनियाके खनबे अउ माई मड़वा ला गड़िया दे। ... कतको हाले-डोले लहस जावय फेर गिरे झन।''

मोटियारी राधिका गड्डा खने के साबर ला देवत अपन मीठ बोली के बाण मारत किहिस। 

खोर के माई मड़वा ला गड़ियावत हावव सारा मन संग। 

" नइ सुल्हराये सारी ! अइसे गड़ियाहू मड़वा कि तोर लइका-पिचका के जनम आवत ले जस के तस ठाड़े रही येहाँ !''

मेंहा साबर चलावत ठट्ठा करेंव । सारा टूरा हा माटी निकालत हाबे। जम्मो कोई ठठा के हाँस डारेंन अब।

"धत....भाटो !''

सारी लजागे। चेहरा मा लाली उतरगे। दूध मा चिटिक कुहकू गिरे के रंग कस उजास दिखत हाबे। गाल गुलाबी होगे। खीरा बीजा कस दाँत अउ गुलाब के पंखुड़ी बरोबर होठ,कजरारी आँखी। सौहत धरती मा कोनो अप्सरा उतरे कस दिखत हाबे राधिका हा। मोर सारा मन घला पंदोली देवत हाबे मड़वा गड़ियाये बर। माई मोहाटी के दुनो कोती हाथ भर ले आगर गड्डा खन डारेंन सारा-भाटो मिलके।

अगास ला अमरत चार ठन बाँस लानके अब अगोरा करेन सियान मन के। घर के सियान सास-ससुर ला नेग के जिनिस माँगेव। पीयर चाँउर, कौड़ी, दूबी अउ जुन्ना सिक्का रानी विक्टोरिया के बेरा के। दूबीवाला जल छिड़क के बाँस मन ला आरुग करेन। गड्डा के पांव परत जम्मो डीही-डोंगर के सुमरन करके मड़वा बने बाँस ला गड़ियाये लागेंन अब ।

"जम्मो काज हा सुघ्घर होवय बने सुमरन कर दे गा दमाद बाबू !'' 

कका ससुर आवय।

अगास कोती ला देखत एक बेरा अउ सुमिरन करेंव। कतका सुघ्घर लागत हाबे मड़वा के फुनगी मा बंधाये मोवा के तीन बेनी के धजा  गोंदली मिरचा पापड़ अउ छेना। जइसे अगास ला छू के सरग के देवता मन ला नेवता देवत हाबे।

"ये ले भाटो ! चाहा पी ले। अब्बड़ थक गे होबे।''

"चाय पीये मा थोड़े थकासी भागही सारी...!''

"पी के देख भाटो ! तोर मयारू सारी हा अपन हाथ ले बनाये हाबे अइसे नशा चढ़ही कि नइ उतरे कभू।''

इतरावत किहिस सारी हा।

"मड़वा मा ये आनी-बानी के जिनिस ला काबर बांधथे भाटो !''

"बता गा कका ससुर !''

"तही बता गा रूपेश ! तुमन जादा पढ़े लिखे हव।... अउ तेहाँ तो डॉक्टर घला हरस जम्मो ला जानथस।''

कका ससुर मोला ढ़केल दिस।

"ये जम्मो जिनिस ला फोकटे-फोकट तो नइ डारे। तइहा के सियान मन भलुक कमती पढ़े-लिखे रिहिन फेर वोकर बनाये नेग-जोग,रीति-रिवाज,परब-तिहार के वैज्ञानिक महत्तम होये के संग दर्शन अउ फिलॉसफी घला होथे। जम्मो जाति-धरम मा मड़वा छववनी के आने-आने विधान हाबे फेर जम्मो मा दू परिवार अउ दू संस्कृति के जुड़ाव के नेग हावय। बाँस के महत्तम बतावत हावव मोर मतिनुसार। दुनिया मा सबले जादा तेजी ले बाँस हा बाढ़थे।  येमा जीवन के दर्शन हाबे। दू परिवार के संग दू मनखे के जुराव होवत हाबे तब मया अउ वंश झटकुन बाढ़े। बाँस तो जनम ले मरन तक बउरे के जिनिस आवय। तइहा के बेरा ब्लेड नइ रिहिस तब बाँस के पत्ती बनाके नेरवा कांटे।  जीयत भर बाँस के बने सुपा मा चाँउर निमार के  जेवन करथन। वनवासी मन बाँस के खोड़री मा भात रान्ध डारे। जीयत भर ले अतका बुता आथे अउ संसार ला छोड़ देथे तब...?  इही बाँस के खटरी बनाके मसानगंज लेगथे।''

मोर गोठ ला मोर मयारुक सारी राधिका हा धियान ले सुनत रिहिस।

"मोवा के दर्शन हाबे कि जेठ के गर्मी मा कतका उसना-भूंजा जावय फेर चौमासा के पानी मा फेर हरिया जाथे वइसने जीवन मा कतको दुख आ जावय बिपत पर जावय हार नइ मानना हे। दुख के पाछू सुख अउ सुख के पाछू दुख आथे ये सास्वत सत्य ला बताथे। मोवा के तीन बेनी हा सौहत ब्रम्हा विष्णु महेश तिरलोक के स्वामी आवय।''

".... सुघ्घर बताये भाटो ! ...अउ गोंदली ला काबर बांधथे ।''

सारी पूछिस।

" गोंदली ला धियान लगा  के देख नोनी खुदे कुछु काहत हाबे। गोंदली के स्वाद चुरपुर रहिथे फेर तासीर जुड़ होथे।''

सारी देखे लागिस। 

"वोकरे सेती झांझ-झोला मा गोंदली बासी खाथन।''

सारी मुचकावत किहिस। 

"देख गोंदली हा कतका पागी पहिरे हाबे। गृहस्थी मा कतको बिपत आ जावय फेर इज्जत मान-सम्मान ला साबुत राखे के संदेश देथे। गोसाइन-गोसइया के बीच कतको उच्च-नीच हो जावय घर के चीर हरण झन होवय। इही ला सीखोथे गोंदली हा। मिरचा तो चुरपुर आगी के बरन आवय अउ आगी माने शक्ति। जीवन के गाड़ी चलाबे तब बिना शक्ति के नइ चल सकय। कभू-कभू चुरपूर गोठ ला घला सहन करके मया मा रहना हाबे दुनो परानी ला। पापड़ कतका सुघ्घर दिखथे फेर धरते साठ टूट जाथे येहाँ जीवन के दर्शन आवय। काया कतका सुघ्घर रहिथे जौन एक दिन चुराचुर हो जाही।'' 

सारी धियान ले सुनिस। ...अउ छेना तो - झन कर गुमान रे भइयां..! हो जाबे राख। तहुँ हो जाबे राख, महुँ हो जाहु राख..। हलाहल पीके मीठ बोली देना वोकरे सेती भगवान शंकर घला चुपरे हे राख...अउ सारी ये मोर गोठ ला धियान मा राख।''

मेंहा गाना गाये बरोबर इतरा देंव पवन दीवान जी ला सुरता करत।

"का बइटका बइठे हावव तुमन जम्मो कोती।रूपेश ! चलो घर कोती।''

सास आवय। अब जम्मो कोई घर चल देन। मोला अउ गोसाइन ला बलाइस कुरिया मा। पीड़हा मा बइठारिस दुनो झन ला। फुलकांस के थारी मा पीयर चाँउर लान के टीका लगाइस। नरियर दूबी फुलपान ला धराइस अउ मोर खांध मा धोती डारिस अउ गोसाइन के खांध मा लुगरा देवत किहिस सास-ससुर दुनो झन।

"बेटी-दामाद हो तुमन बड़का दीदी-भाटो आवव वोकरे सेती ढ़ेरहा-ढ़ेरहीन बनहु अउ बर-बिहाव के काज ला सपुरन करहु। बेटी ! ढ़ेरहीन बनके सिंदूर दान करबे अउ  तेहाँ रूपेश बेटा ! ढ़ेरहा बनके गृहस्थ जीवन के रद्दा के सारथी बनबे।जइसे महाभारत मा कृष्ण भगवान अर्जुन के सारथी रिहिन वइसने इखर सारथी बनो।''

"हँव दाई-ददा !''

हमन दुनो कोई मुचकावत हुकारु देयेंन अउ सियान मन के टुपटुप पांव परेंन। सारी मोला अपन कुरिया मा बलाइस।

"भाटो ! सिरतोन कोनो अलहन झन होवय  धियान राखे रहिबे। वो मनचलहा मनीष ले भय हाबे मोला।''

सारी अकेल्ला मा किहिस। 

"तोर मन मा कोनो गोठ नइ हाबे न ।''

"नही ।'' 

सारी राधिका हुकारु दिस।

"मेंहा तोला अब्बड़ मया करथो फेर आने संग बिहाव करबे ते.....? देख लुहु कइसे बिहाव होही तेला। मोला पन्दरा दिन आगू मेसेज करे रिहिन अइसने मनीष हा। मोला फुटे आँखी नइ सुहावय लपरहा हा अउ वोहा इतरावत हव कहिके कुछु भी काहत रहिथे।''

"छोड़ न अइसन सुरबइहा मन ला । कुछु नइ करे, वोकर बर पूरन अउ बाचन। लेट्स एन्जॉय सारी। मेंहा हव न।''

सारी के संसो ला टारत केहेंव।

                 गड़वा बाजा वाला मन  आइस घर कोती। मोर सास हा मोहाटी मा पानी रिको के स्वागत करिस पान-सुपारी के पाछू अब मंगरोहन लकड़ी बर गेयेंन। घर के माईलोगिन मन तियार होके नवा लुगरा पहिरके गोड़ मा आलता माहुर लगा के रेंगत हाबे ... अब्बड़ सुघ्घर लागत हे। सब कोई उछाह मा बुड़े हाबे। बबा जात मन घला कमती नइ हे। डूमर रुख के पूजा-पाठ करके जांघ मोठ के डारा ला कांट के पर्रा मा बोहो के ले आनेन। मुड़ा परघावत घर अमरगेंन।  घर मा अब जम्मो नत्ता के सगा-पहुना मन आ गे रिहिन अउ कतको झन आवत घला हाबे।

           अब बसूला मा छोल-चाच के डूमर लकड़ी ले बइठे बर पिल्ली बनायेव । तेल चघाये के बेरा मा बइठही सारी हा वोमा।  मंगरोहन  घला बनावत हँव।

"ये का बनावत हस भाटो ?''

".....फेर आ गेस सारी ! एकेक ठन के पोस्टमार्टम करके पुछबे फेर ।''

"काबर नइ पूछहु ? मोर बिहाव होवत हाबे तब जम्मो नेग-जोग,विधि-विधान ला जानना हे मोला। तभे तो जानहु हमर पोठ छत्तीसगढ़ी संस्कृति कतका सुघ्घर हाबे।''

"हव भई .....जम्मो कोई ला जानना चाहिये। फेर अब कुछु भी पूछबे तब पाहंदा वाली दीदी ला पुछबे। वोहा जानथे।''

"पाहंदा वाली दीदी ? बड़े दाई के बेटी आय....?  डॉ सत्यभामा दीदी...?''

"हव रे ! अब्बड़ तिखारथस ।''

"पांच हाथ दुरिहा ले पांव परत हँव भाटो वोकर। नइ पूछहु तेहाँ चलही फेर...? डॉक्टर हाबे,  कालेज मा बड़का प्रोफेसर । वोला देखते साठ थरथर काँपथो मेंहा। कोन जन का पूछ दिही...? ...मेंहा निच्चट गदही।''

"वो तो हस सारी !  सोला आना सिरतोन कहेस। दिखे मा श्यामसुंदर अउ पा.... ।  छत्तीसगढ़ी के एक ठन हाना ला ढ़ील दे रेहेंव सारी कोती। हा......हा.....हा....। अब दुनो कोई हाँस डारेंन कठल-कठल के।

"का होगे रूपेश ? का होगे राधिका ? सारी भाटो दुनो अब्बड़ खिलखिलावत हव भई...।''

जौन ला सुरता करेन तौन आगू मा दमदम ले ठाड़े होगे। हमन ला तो जइसे सांप सूंघ गे। ...अब दुनो कोई सत्यभामा दीदी के पांव परेंन ।

"मंगरोहन का हरे दीदी ! काबर बनाथे येला ? बताना। आपेमन बतावव।''

मेंहा सामरथ करके गिलौली करेंव।

डॉ सत्यभामा दीदी बताये लागिस अब।  मंगरोहन ला ऐखर सेती मड़वा मा बइठारथे कि बर-बिहाव के मंगल काज मा कोनो अलहन अउ बिपत-बाधा झन होवय। मंगरोहन माने बिपत-बाधा टरइया। सुनो, मेंहा बतावत हावव।''

दीदी हा अपन चश्मा ला सोज करत किहिस अउ बताइस।

"महाभारत काल के गोठ आवय। गांधारी हा अपन ननपन मा डूमर रुख के तीर मा  संगी-संगवारी मन संग छू-छुवउल खेलत रिहिन आँखी मा पट्टी बांधके । डूमर रुख मा चिरई के जोड़ा राहय गोसाइन-गोसइया बरोबर। गांधारी अपन संगी-संगवारी मन ला खोजे अउ लुकाये के उदिम करत भोरहा मा गोसइया चिरई के घेंच ला धर के मुरकेट डारिस अउ गोसइया चिरई मरगे। बड़ा बिपत होगे।  गोसाइन चिरई अब्बड़ कलप-कलप के रोये लागिस अउ तड़प-तड़प के मरगे बिरह मा। जम्मो ला देख के डूमर रुख अगियाबेताल होगे, गोड़ के रिस तरुवा मा चढ़गे। दुनो चिरई ला अपन कोरा मा खेलाय-खवाय हाबे, जी तो जरबे करही। जा पापनिन गांधारी तोरो बिहाव होवय फेर तोर गोसइया मर जाये। तब जानबे बिरह के पीरा ला अउ रूप के गरब हाबे तौनो हा टुटही। अइसना डूमर रुख श्राप दे दिन।''

डॉ दीदी बताये लागिस। 

"....तब दीदी वोकर तो बिहाव कइसे होइस अंधरा धृतराष्ट्र संग ? दुर्योधन संग सौ झन लइका घला बियाईस । कइसे ?''

सारी राधिका पूछिस।

डॉ सत्यभामा  दीदी फेर आगू बताइस।

"जब गांधारी बड़े होइस तब बिहाव होइस फेर गोसइया मर जावय। बड़का-बड़का पंडित-पुरोहित ले विचार-मंथन होइस तब डूमर के श्राप के जानबा होइस। जौन श्राप देये हाबे तेखर संग बिहाव कर देथन ताहन न गांधारी राड़ी होवय न डूमर गोसइया मरे। सब विद्वान मन सुंता बंधाये लागिस अउ डूमर संग बिहाव कर दिन गांधारी के। गांधारी तो मनुख जनम आय। रुख अउ मनुख के मिलाप ले वंश के बढ़वार कइसे होही ? वोकरे सेती बिहाव ले मुक्त होगे डूमर हा फेर जम्मो अलहन बिपत-बाधा ला टारे के वचन दिस डूमर हा। वोकरे सेती बेटी-बेटा के पहिली बिहाव डूमर संग होथे मड़वा मा। पहिली हरदी तेल मड़वा मा चढ़थे नही ?''

"हव दीदी !''

जम्मो कोई हुकारु देयेन।

सत्यभामा दीदी पानी पीये बर अतरिस।

"दीदी ! गांधारी श्राप ले मुक्त होगे तभो ले वोकर  जिनगी मा तो अब्बड़ बिपत आइस काबर ?''

मेंहा मन मा उठत सवाल ला पुछेंव।

"देख, रुपेश ! जौन जइसन करम करथे तइसन भोगथे दमाद बाबू दुलरू। गांधारी अपन रूप के गरब करिस तेखर सेती अंधरा गोसाइया मिलिस। जौन कभू वोकर रूप-सौंदर्य ला नइ देख सकिस फेर गांधारी तो अपन गोसइया बरोबर बनगे आँखी रही के अंधरी। गांधारी के जीवन ले नवा जोड़ी ला अब्बड़ सीखे ला मिलथे।''

"हाव दीदी सिरतोन काहत हस।''

दीदी के गोठ सिराइस अउ सारी राधिका हुकारु दिस।

          अब जम्मो कोई तियार होके देवतला गिस जम्मो कोई अउ राउत घर धुर्रा उड़ावत ले नाचीस।  तेल हरदी चढ़िस। मैन नाचा नाचीस। सारी राधिका ला पर्रा मा बइठार के झूला-झूला के नाचेंन। हरदी दान करके हरदी अउ रंग खेलेंन जम्मो कोई। ..अउ मुँहफुल्ला फूफा ला घला मनायेन।

               आज बरात अवइया हाबे। रातभर बने नींद नइ परे रिहिन सास-ससुर के तभो ले बिहनियां झटकुन उठगे जम्मो कोई। तियारी करिस। राधिका घला मेंहदी रचाके अपन राजा के अगोरा करत हाबे। कलेवा वाला मन ले अउ हियाव कर डारिस सास हा। ससुर जम्मो कोई घराती-बराती पहुना मन के स्वागत बर बुता सौप डारिस। बेटी भेंट के जम्मो जिनिस हियाव करत फुलकास के थारी-लोटा,पंचरतन ला अलगा डारिस, दूल्हा-दुल्हिन के पांव पखारे बर परही। आज राजा-रानी बने हाबे। जम्मो पहुना मन ला कपड़ा-लत्ता बांटे बर प्लान कर डारिस। 

"साढू भइयां ! हमन निकल गे हावन मिनी बस अउ बोलेरो  मा आवत हावन। अभिन बारा बजे निकलत हन  तब तीन बजे तक हबर जाबो।''

राधिका के होवइया गोसइया राहुल, दूल्हा जी अउ मोर साढू भाई के फोन रिहिस।

"ले साढू भाई झटकुन पहुँचो। जम्मो जोरा-जारी तियारी होगे हाबे। तुंहर स्वागत हाबे।''

मेंहा केहेंव अउ मशीन बरोबर सब अपन-अपन बुता मा भिड़गेन।

          घेरी-बेरी घड़ी देखत हावव मेंहा। दू बजे ले सवा दू, पौने तीन, तीन अउ सवा तीन। फोन लगायेंव। टू.. टू करिस अउ नॉट रिचेबल बताइस।.... अउ उदिम करेंव फेर नइ फोन लगिस। अब तो संसो होगे। तीन ले चार अउ चार ले पांच होगे। कोनो दउहा नइ हाबे दूल्हा अउ बरतिया मन के। 

"का होगे भगवान  ?''

जम्मो सगा-सोदर, गाँव भर ला संसो होगे अब। सास-ससुर मन के तो मुँहू सुखागे। राधिका तो अब बही होगे जब सुनिस। 

"नेशनल हाइवे मा दूल्हा राहुल के एक्सीडेंट होगे।''

कोन जन कोन कोती ले खबर आइस अउ जम्मो छिही-बिही बगरगे। जम्मो कोती रोवा-राई परगे। कतको झन ला फोन करिस फेर काकरो फोन नइ लगे अब। 

"का करही अब अइसन बिपत मा ?''

देवता धामी जम्मो ला सुमर डारिन।

"अब तोरेच आसरा हाबे तिरलोकीनाथ गरीब के लाज ला राख ले।''

ससुर किहिस अउ रोये लागिस। घर के माई मुड़ी रोइस तब तो सरी दुनिया रो डारिस।

'मेंहा राधिका ला कइसे समझावव ? कइसे दिलासा देवव। मोर बुध पतरागे। महुँ हा जम्मो डीही-डोंगर, मंगरोहन ला सुमिरन कर डारेंव। अउ ......अब जौन होइस ते जम्मो कोई ला संजीवनी दे दिस।

"भलुक बिलम होगेंन साढू भइयां फेर दुल्हन हम लेकर जायेंगे।''

राहुल रिहिस। मरे-हरे के जम्मो गोठ अफवाह रिहिन। कोनो एक्सीडेंट होगे रिहिन अउ रोड जाम मा फँसगे रेहेंन। वोकरे सेती आने रद्दा मा जाये ला परिस। आज तो जिमीकांदा के छिलाई अउ पाछू के खजरी कस बिपत परगे। एक ले उबरेन अउ औघट जगा मा गाड़ी बिगड़गे अउ बनावत ले ये दे आधा रात होगे। ....अउ अफवाह बगराइस तौन कोन आय कुछु जानबा नइ होइस।


                धुर्रा उड़ावत ले  नागिन डांस करके बरतिया परघायेन। अब जम्मो नेग-जोग ले विधि-विधान ले होइस बिहाव हा। राम-सीता बरोबर जोड़ी हाबे राहुल अउ राधिका के। अपन घर मा जाके दुधे खावत हाबे दुधे अचोवत हाबे। सब उछाह-मंगल ले जीवन जीयत हाबे। 


"भइयां रूपेश मोर अर्जी ला सुन ले भइयां ! ससुराल गाँव के मनीष के गोठ सुनके मोर सुरता के धार टूटिस। मोर अस्पताल मा ये अतराब के मन ईलाज करवाये बर आथे न।सिरतोन बीस बच्छर आगू के जम्मो गोठ ला सुरता कर डारेंव।

"मोर बेटी ला बचा ले डॉक्टर भइयां।''

"का होगे मनीष भइयां ?''

शादी के मंडप मा दुल्हिन बनके बइठे रिहिन बेटी हा  अउ दूल्हा राजा एक्सीडेंट होगे,  ड्राइवर संग जम्मो कोई नशापान करके गाड़ी मा बइठे रिहिन। अलहन होगे अउ दूल्हा संग पांच झन बरतिया मन घला मरगे। उछाह के बेरा मा मोर लइका ला सदमा लग गे।  दूसर बर गड्डा खन के इतराये रेहेंव तौन  मोर घर मा सिरतोन होगे डॉक्टर भइयां।

....... अउ वो दिन के अफवाह के जानबा बीस बाइस बच्छर मा होइस। मनीष आवय। 

जम्मो ला जांच-परख के  ईलाज करेंव। रायपुर के मेकाहारा के मनोरोग विभाग मा कंसल्ट करके सूजी दवई देयेंव। पांच दिन मा खबर देये बर केहेंव। हाथ जोर के धन्यवाद काहत अब   दुनो झन मोर अस्पताल ले निकलगे। निकलत ले देखेंव। 

"जाने-अनजाने मा काकरो दिल झन दुखे तिरलोकीनाथ। काकरो हाय झन लगे। बचा के राखबे मालिक !''

केबिन मा लगे शंकर जी के फोटो मा माथ नवावत फुसफुसायेंव।

 अस्पताल के खिड़की ला झाकेंव। पड़ोसी मन बाजा-गाजा के संग मंगरोहन ला धरके मुड़ा परघाये ला जावत रिहिस गली मा। गड़वा बाजा के धुन मा सब झुमरत रिहिन।

माथ नवावत सबके बिपत टारे बर आसीस माँगेंव मंगरोहन ले मेंहा अउ आने पेशेंट ला देखे लागेंव।


चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

[5/8, 11:37 AM] पोखनलाल जायसवाल: छत्तीसगढ़ के लोक परम्परा इहाॅं के लोकजीवन बर एक बरदान आय। जतका भी परम्परा अउ रिवाज इहाॅं के लोकजीवन म रचे-बसे हे, वो सब ले आनंद के अमरित धार निकलथे, अउ जम्मो नता-गोत्ता ल सींचथें। जेकर ले नता-गोत्ता मन अउ जिनगी पाथें। सदासोहागी बरोबर हरियर रहिथे। इही परम्परा मन म ठठ्ठा-दिल्लगी घलव समाय हे। इहाॅं के कतकोन नता-गोत्ता म हाॅंसी-दिल्लगी थके-माॅंदे जिनगी म नवा उछाह अउ उमंग के संचार करथे। जिनगी म नीरसता नइ आवन दय। जिनगी के उबासी ल हर लेथे। हॅंसी मजाक के संग बर-बिहाव अउ सुख के कोनो कारज म नेंग बुता मनखे ल बोझा नइ जनावय। अजीरन नइ लगे। गोठे गोठ म कतको भारी बुता कब सरकथे, गम नइ मिलय। जम्मो थकान बिसर जथे। बबा-नाती, सारी-भाटो, देवर-भउजी... सब म मुॅंहाचाही गोठ एक अलगे आनंद के महौल बनाथे। बर-बिहाव म भड़ौनी गीत इही कड़ी म आनंद ल दुगुना करथे। काम बुता के टेंशन कति उड़न छू रहिथे, कोनो नइ जानय।  

        बद्रीविशाल परमानंद के लिखे मया गीत सुने ल मिलथे.. .का तैं मोला मोहिनी डार दिये गोंदा फूल...ए गीत अइसे तो मया के गीत आय।

         गीतकार के मुताबिक ए गीत उन मन अपन नतनिन के पैदा होय ले लिखिन। मूल ले जादा ब्याज बर संसो रहिथे या कहन लगाव रहिथे। इही लगाव अउ मोह ल लिखथें - का तैं मोला मोहिनी डार दिये गोंदा फूल... आगू मन के एक पीरा ल घलो लिखथें, जेन म नतनिन के जनम के बेरा म अपन (बबा के) चला-चली के बेरा होय ल सुग्घर प्रतीक म पिरोय हें।

       तोर होगे आती अउ मोर होगे जाती....

         ए गीत म जिनगी के जउन दर्शन हे, वो अनूठा हे, अनुपम हे। हमर लोकजीवन म रचे-बसे परम्परा अउ रीति रिवाज म घलव जिनगी के कतको मरम समाय हे। जउन म वैज्ञानिकता हे। बस जरुरत हे कि नवा पीढ़ी उन ल कोनो किसम के अंधविश्वास अउ आडंबर के पूर्वाग्रह के चश्मा ले झन देखय। ओमा के वैज्ञानिकता ल खोजे के कोशिश करय। त पुरखा मन के दूरदर्शिता घललव दिखही। ए परम्परा मन म लोक हित हे। लोक कल्याण हे। कहे के मतलब हे कि लोक परम्परा लोक कल्याणकारी होथे। एमा लोक हित छुपे होथे, बस जरुरत हे ओला समझे के। 

         बिहाव म कतको उपयोग ले जुरे जिनिस जइसे बाॅंस, गोंदली, डूमर डार, ... मन के वैज्ञानिक तथ्य ल उजागर करत चंद्रहास साहू अपन कहानी मंगरोहन ल बढ़िया ढंग ले गढ़े हे। कहानी म इंकर ले जुरे पौराणिक कथा अउ महत्व ल बढ़िया चित्रित करे गे हे।

            कहानी के मूल स्वर तो 'जैसी करनी वैसी भरनी' हे। मनखे दूसर बर गड्ढा खोदथे त उही गड्ढा म खुद समा जथे। मनीष एकतरफा मया करत राधिका के बिहाव म बाधा डारे सहीं घटना दुर्घटना के अफवाह उड़ा दे रहिस। अउ समे के फेर म आगू जा के खुद वइसन पीरा म फॅंस गे। कहानी म बर बिहाव के जउन वर्णन हे, जीवंत हे। बिहतरा घर म जउन गोठबात होथे वो सब कहानी म हे। संवाद अउ भाषा सरल अउ सहज हे। बेटी के इच्छा जाने अउ मान दे के उदिम बढ़िया हे। तभे तो भाटो रूपेश, राधिका ले पूछथे- "तोर मन म कोनो गोठ नइ हाबे न?"  अभिन के बेरा म अइसन जरुरी हे। काबर कि बर-बिहाव कोनो घरघुंदिया नोहय।

          मंगरोहन के महत्तम अउ सार्थकता ल पूरा करत कहानी मंगरोहन बर कहानीकार चंद्रहास साहू जी ल बधाई 💐🌹


पोखन लाल जायसवाल पलारी (पठारीडीह)

जिला बलौदाबाजार भाटापारा छग

No comments:

Post a Comment