Saturday 20 May 2023

कवि बादल: एक चुप, सौ सुख -----------------------

 [5/9, 2:59 PM] कवि बादल: एक चुप, सौ सुख

-----------------------

वाद- विवाद के मौका म चुप रहइ ल सुग्घर गुण माने जाथे काबर के नइ चुप रहिके अगर दूनों पक्ष ह चिल्लाते रइहीं त बाते-बात म झगरा ह बाढ़के गहिरा जाथे।

   गुस्सा म मुँह ले का निकल जही तेकर ठिकाना नइ रहै।बात के तीर ह एक पइत ठिलागे तेन ह फेर लहुट के वापस नइ आवय। कड़ुवा बोली के जहर म बूड़े तीर ह दूसर ल घायल तो करबे करथे,बोलइया  के आत्मा ल तको पाछू पश्चाताप के आगी म भूँजत रहिथे। आन घाव ह तो दवई-पानी करे म झटकुन मिटा सकथे फेर बात के घाव के भरना बड़ मुश्किल होथे तेकर सेती चुप सहीं सुख नइये।चुप रहे म शांति अउ सुखे-सुख मिलथे।

   अइसे भी गुस्सा करना अबड़ नुकसान पहुँचाथे। अबड़ गुस्सैल आदमी ल कोनो नइ भावय, समाजिक मान-सम्मान नइ मिलय।संग म दू झन बइठइया तको नइ मिलय। अइसन आदमी के घर म कलह छाये रहिथे। अब्बड़ क्रोध करे ले खून के दौरा बाढ़ जथे,मस्तिष्क के नस फटे अउ लकवा मारे के डर रहिथे चेहरा-मोहरा बिगड़ जथे। क्रोध के गरमी म खून तको अँउटे ल धर लेथे।

        मौन रहना ह तको चुप रहना कहिलाथे। मौन ह शक्ति आय।वाणी के संग विचार म भले कुछ घड़ी बर होवय कहूँ मौन आगे,थिरबाँव आगे त का कहना?  मौन के अभ्यास ले वाणी म धार आथे, बुद्धि तेज होथे। चौबीस घंटा एती-वोती सोचते रहे ले, जादा बड़बड़-बइया करे ले, मनमाड़े गोठ करे ले शक्ति ह बेफजूल खर्चा होथे, शरीर म थकावट आथे। जादा गोठकाहर ह  अपने बात के फांदा म फँस जथे। वोहा जाने-अनजाने अपने भेद ल उगल डरथे अउ अपमान सहिथे। अइसन गोठकाहर के बात ल कोनो जादा चेत करके नइ सुनयँ काबर के जानत हें के ये तो ओसाते रइही।


चोवाराम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

[5/10, 3:33 PM] कवि बादल: भाव पल्लवन--


झन खेल जुआँ,झन झाँक कुआँ

-------------------------------

जुआँ नइ खेलना चाही चाहे वो ह पासा ,काट पत्ती,रमी,सट्टा,लाटरी ,घुड़दौड़ आदि कोनो रूप म होवय काबर के एकर ले जिंदगी बरबाद हो जथे।

 जुआँ ह एक प्रकार ले भयानक नशा आय। नशा चाहे कोनो होवय वो नुकसान तो करबेच करही। जुआँ ह अइसन लालच के बुराई आय जेन ह आदत परिच तहाँ ले छोड़े म छूटे ल नइ धरय । ये हा धीरे-धीरे जिनगी के आनंद ल चुहक के सेटराहा कर देथे।

  जुआँ खेले के अतका जादा नुकसान हे के गिने नइ जा सकय।रुपिया पइसा, धन-दौलत अइसे बरबाद होथे के राजा ल रंक बनत देरी नइ लागय। जुआरी के बाई,लोग-लइका रिबी-रिबी बर तरस जाथें। घर-परिवार म दुख के बासा हो जथे।जुआरी ल उदासी अउ क्रोध ह हरदम घेरे रइथे।जिनगी के किमती समे अइसे नष्ट होथे के झन पूछ? समाज म इज्जत घट जथे।

  कर्जा म बूड़े हारे जुआरी के हालत बइहाय कुकर या फेर मनमाड़े घायल शेर कस हो जथे ।वो कुछ भी कर देही। जुआरी के पाप करम शराब खोरी,व्यभिचार,चोरी, डकैती आदि म डूब के मरे के पूरा संभावना रहिथे।

  ओइसनहे कोनो गहिरा कुआँ ल निहरके नइ झाँकना चाही काबर के थोरको बेलेंस बिगड़ीच ,चिटको असावधानी होइस तहाँ ले मुड़भसरा गिरके पानी म बूड़के मरना हो जथे। कुआँ कहूँ सुक्खा हे त तो  मूँड़-कान फूटहीच, हाड़ा-गोड़ा टूटहीच अउ प्रान निकलहीच।


चोवाराम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

No comments:

Post a Comment