Saturday 20 May 2023

भाव पल्लवन-- कबीरा कुआँ एक है,पानी भरैं अनेक।

 भाव पल्लवन--



कबीरा कुआँ एक है,पानी भरैं अनेक।

भांड़े में ही भेद है,पानी सबमें एक।।

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संत कबीरदास जी ह ब्रह्म ज्ञान के मरम ल पटंतर देवत समझावत कहे हें के--कुँआ एके ठन हे वोमा ले कई झन पानी भरथें।बर्तन बस ह अलग-अलग नाम अउ रूप-रंग के हो सकथे। कोनो मरकी म भरथे त कोनो बाल्टी म,हँउला म ,गंजी म भरथे। जम्मों म भराये पानी ह एकेच कुँआ के उहीच्च पानी होथे।

   बिल्कुल ओइसनहे परम ब्रह्म ह एके हे ।जतका जीव-जंतु,चर-अचर सृष्टि हे उही परम सत्ता ले सिरजे आयँ। सब म उही समाये हे।इही बात ल "एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति " मतलब ब्रह्म के अलावा दूसरा कुछ नइये --कहे गे हे।

 मनखे ह अलग-अलग जाति,धरम,रंग-रूप,खान-पान,वेषभूषा,बोली-भाखा के हो सकथे फेर सबके जीवात्मा एके हे।मनखे-मनखे एक समान हें।मूल रूप ले कोनो छोटे-बड़े नइयें।सबके श्वांसा म उही एके ब्रह्म समाये हे भले वो ईश्वर ल अलग-अलग नाम ले पुकारे जाथे।

    जीव अउ ब्रह्म म कोनो भेद नइये।ब्रह्म के अँजोर सब म हे। "ईश्वर अंश जीव अविनाशी" कहे गे हे।

 ये विचार ह "वसुधैव कुटुम्बकं" के मूलमंत्र आय। ये ज्ञान ला आत्मसात करके जाति-धरम के भेदभाव अउ झगरा ले बाँचे जा सकथे। 


चोवाराम वर्मा 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

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