Sunday 25 February 2024

धुँधरा चन्द्रहास साहू मो 8120578897

 धुँधरा

                              चन्द्रहास साहू

                          मो 8120578897


एक लोटा पानी पीयिस  गड़गड़-गड़गड़ बिसालिक हा अउ गोसाइन ला तमकत झोला ला माँगिस। आगू ले जोरा-जारी कर डारे रिहिस। अउ झोला...?  झोला नही भलुक संदूक आय दू दिन के थिराये के पुरती जिनिस धराये हाबे।  गोसाइन घला कोनो कमती नइ हाबे। बिहनिया चारबज्जी उठके सागभाजी चुनचुना डारिस । चुल्हा-चुकी सपूरन करके टिफिन ला जोर डारिस। गोसइया ला खाना खवइस। गोसइया तियार होइस अउ एक बेर फेर देवता कुरिया मा खुसरगे। ससन भर देखिस बरत दीया अउ अगरबत्ती ला। दूनो हाथ जोरके कुछु फुसफुसाइस अउ जम्मो देबी देवता के पैलगी करिस। लाल ओन्हा मा बँधाये रामायण, फोटो मा दुर्गा,काली, हनुमान अउ बंदन पोताये तिरछुल वाला देवता, लिम्बू खोंचाये लाली पिवरी धजा - जम्मो ले आसीस माँगिस। 

       अब शहर के रद्दा जावत हावय। डोंगरी पहाड़ ला नाहक के मेन रोड मा आइस । फटफटी मा पेट्रोल भरवाइस। ......अब शहर अमरगे। शहर के कछेरी अउ कछेरी मा अपन वकील के केबिन कोती जावत हाबे।

"नोटरी करवाना हे का ?''

"लड़ाई झगरा के मामला हे का ?''

"जमीन जायदाद के चक्कर हे का ?'' 

आनी-बानी के सवाल पूछे लागिस वकील के असिस्टेंट मन। बिसालिक रोसियावत हाबे फेर शांत होइस।  कुकुर भूके हजार हाथी चले बाजार । बिसालिक काखरो उत्तर नइ दिस अउ आगू जावत हे। वोकर वकील के केबिन सबले आखरी मा हाबे। 

"तलाक करवाना हे का ?''

एक झन वकील के असिस्टेंट पूछिस अउ बिसालिक आसमान मा चढ़गे।

"बिहाव के चक्कर हाबे का भइयां ! लव मैरिज फव मैरिज।''

"हंव बिहाव करहुँ तुंहर बहिनी मन हाबे का बता ....?'' 

अब सिरतोन तमतमाये लागिस बिसालिक हा।

"का भइयां ! तहुं मन एकदम मछरी बाजार बरोबर चिचियावत रहिथो। दू झन लइका के बाप आवंव भइयां । मोर बर- बिहाव होगे हे। ....अउ मेहां कोन कोती ले कुंवारा दिखथो ? आनी-बानी के सवाल झन पूछे करो भई।''

बिसालिक अब शांत होवत किहिस ।

"अरे ! आनी-बानी के सवाल नइ हाबे। सरकारी उमर एक्कीस ला नाहक अउ कभु भी बिहाव कर कभु भी तलाक ले...! उम्मर के का हे....? उम्मर भलुक बाढ़ जाथे फेर दिल तो जवान रहिथे। पच्चीस वाला घला आथे अउ पचहत्तर वाला घला  आथे बिहाव करवाये बर या  तलाक लेये बर।''

असिस्टेंट किहिस अउ दूनो कोई ठठाके हाँस डारिस। कम्प्यूटर मा आँखी गड़ियाये ऑपरेटर अउ टकटकी लगाके देखत परिवार के जम्मो मनखे करिया कोट मा खुसरे वकील पान चभलावत नोटरी अउ दुख पीरा मा दंदरत क्लाइंट । 

                  बिसालिक घला क्लाइंट तो आय नामी वकील दुबे जी के। वकील केबिन ला देखिस झांक के। दुबे जी बइठे रिहिस। कोनो डोकरी संग कोई केस साल्व करत रिहिस। अब क्लाइंट मन बर लगे खुर्सी मा बइठगे। असिस्टेंट नाम पता लिखिस पर्ची मा अउ वकील दुबे जी के आगू मा मड़ा दिस।

               झूठ लबारी दुख तकलीफ सब दिखथे कछेरी अउ अस्पताल मा। उहाँ मनखे जान बचाये बर जाथे अउ इहाँ ईमान बचाये बर। उहाँ मरके निकलथे अउ इहाँ मरहा बनके निकलथे मनखे हा। नियाव मिलही कहिके आस मा हर पईत आथे बिसालिक हा फेर मिल जाथे तारीख। तारीख बदलगे, मौसम बदलगे, बच्छर बदलगे, वकील कोर्ट जज बदलगे फेर नइ सुलझिस ते एक केस। बिसालिक अउ वोकर नान्हे भाई बुधारू के बीच के जमीन विवाद।

               बिसालिक गाँव मा रहिथे अपन परिवार संग अउ बुधारू हा शहर मा अपन परिवार के संग। दाई ददा के जीते जीयत बाँटा-खोंटा होगे रिहिन। नानकुन घर खड़ागे। खार के खेत दू भाग होगे। अउ बाजार चौक के जमीन ....? इही आय  विवाद के जर । दाई ददा के सेवा-जतन सूजी पानी ऊँच नीच जम्मो बुता बिसालिक करिस। शहरिया बुधारू तो सगा बरोबर आइस अउ सगा बरोबर गिस। ऊँच नीच मा कभु दू चार पइसा दे दिस ते .?....बहुत हे। 

"ड्राइवर के बुता अउ आगी लगत ले महंगाई , वेतन पुर नइ आवय भइयां।''

अइसना तो कहे बुधारू हा जब पइसा मांगे बिसालिक हा तब। दाई ददा के जतन करे हस बाजार चौक  के जमीन तोर हरे बिसालिक। गाँव के सियान मन किहिस। कोनो विरोध नइ करिस। अब अपन कमाई ले बिसालिक काम्प्लेक्स बना दिस आठ दुकान के । ....अउ बुधारू के आँखी गड़गे। 

"मोर दू झन बेटा हाबे बिसालिक भइयां ! दू दुकान ला दे दे। नौकरी चाकरी नइ लगही ते दुकान धर के रोजी रोटी कमा लिही लइका मन ।''

 अतकी तो अर्जी करे रिहिस बुधारू हा। बिसालिक तो तमकगे। 

"मोर कमई ले दुकान बनाये हंव नइ देवंव कोनो ला।''

अब घर के झगरा परिवार मा गिस। परिवार ले पंचायत अउ अब कोर्ट कछेरी। छे बच्छर होगे केस चलत। पइसा भर ला कुढ़ोथे अउ नियाव नइ मिले तारीख मिलथे....।

 "बिसालिक !''

आरो करिस  असिस्टेंट हा अउ बिसालिक वकील के कुरिया मा खुसरगे। जोहार भेट होइस। अपन जुन्ना सवाल फेर करिस।

"केस के फैसला कब होही वकील साहब !'' 

अवइया तीस तारीख बर अर्जी करहुं जज साहब ले। उही दिन फैसला हो जाही। केस जीतत हन संसो झन कर। साढ़े सात हजार फीस जमा कर दे असिस्टेंट करा ।''

वकील किहिस अउ आस मा पइसा जमा करिस बिसालिक हा। घर लहुटगे अब।


 "बड़ा बाय होगे बिसालिक !''

रामधुनी दल के मैनेजर आय। दउड़त हफरत आइस अउ किहिस।

"का होगे कका! बताबे तब जानहुं।''

"का बताओ बेटा ! फभीत्ता हो जाही, जग हँसाई हो जाही अइसे लागथे। राम के पाठ करइया गणेश हा अपन गोसाइन संग झगरा होके भागगे रे ! गुजरात जावत हे कमाये खाये बर। वोकर पाठ ला कोन करही एकरे संसो हाबे बेटा ! तेहां करबे न !'' 

"मेंहा...? नइ आय कका ! जामवंत रीछ के पाठ करथो खाल ला ओढ़के उही बने लागथे। ''

बिसालिक अब्बड़ मना करिस फेर मैनेजर मना डारिस। 

          आगू गाँव भर मिलके कलामंच मा रामलीला करे अउ रावण मारे फेर अब तो गाँव भर दुराचारी रावण होगे हे तब कोन मारही रावण......? रामलीला नंदा गे। अब रामधुनी प्रतियोगिता होथे उही मा झाँकी निकाल के रामकथा देखाथे मैनेजर हा। जब तक मैनेजर जियत हे तब कलाकार के हियाव होवत हाबे। मैनेजर सिरा जाही...जम्मो नंदा जाही अइसे लागथे। संसो करे लागेंव मेंहा। जम्मो कलाकार मन ला जुरिया के लेगिस आमदी गॉंव अउ तियारी करे लागिस अपन कार्यक्रम के।

               गवइया सुर लमाइस। नचइया  मटकाइस मंच मा बाजा पेटी केसियो ढ़ोलक मोहरी बाजिस। अब मंगलाचरण आरती होये के पाछू कथा शुरू होइस राम बनवास के कथा। बिसालिक पियर धोती पहिरे हे। मुड़ी मा जटा, बाहाँ मा रुद्राक्ष के बाजूबंद, नरी मा रुद्राक्ष के माला, गोड़ मा खड़ाऊ, कनिहा मा लाल के पटका। माथ मा रघुकुल के तिलक अउ सांवर बरन दमकत चेहरा। दरपन मा देख के अघा जाथे। धनुष बाण के सवांगा मा सौहत राम उतरगे अइसे लागत हे।

          राजा दशरथ कोप भवन मा जाके अपन गोसाइन केकयी ला मनाथे। .......अउ नइ माने तब पूछथे का वचन आय रानी माँग ले।

"मागु मागु पै कहहु पिय कबहुँ न देहु न लेहु।

माँग -माँग तो कथस महाराज फेर देस नही।'' 

कैकयी हाँसी उड़ावत किहिस। 

"दुहुँ सिरतोन !''

"रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई ।''

"तब सुन महाराज ! मोर पहिली वचन

सुनहु प्रानप्रिय भावत जी का। देहुं एक बर भरतहि टीका॥

दुसर वचन

तापस बेष बिसेषि उदासी। चौदह बरिस रामु बनबासी॥

राम ला चौदह बच्छर के वनवास अउ मोर भरत ला राजगद्दी।

अइसने किहिस कैकेयी हा। दशरथ तो पछाड़ खा के गिरगे। अब्बड़ मार्मिक कथा संवाद मैनेजर गा के , रो के रिकम-रिकम के अभिनय करके बतावत हे।

 जम्मो  देखइया के आँसू चुचवाये लागिस। कतको झन कैकयी के बेवहार बर रोसियाये घला लागिस। 

राम के बरन धरे बिसालिक सबले आगू कैकेयी के पाॅंव परके आसीस माँगथे। फूल कस सीता घला रिहिस। लक्ष्मण घलो संग धरिस अउ गोसाइन उर्मिला ले बिदा माँगिस। उर्मिला मुचकावत बिदा दिस। अउ गंगा पार करके चल दिस जंगल के काॅंटा खूंटी रद्दा मा। भरत तमतमाये लागिस। राजपाठ ला नइ झोंको कहिके, अउ राम के खड़ाऊ ला धर के लहुटगे। भाई भरत तपस्वी होगे अउ शत्रुघन राज चलावत हे। 

              सिरतोन कतका मार्मिक कथा हाबे। समर्पण अउ त्याग के कथा आय रामायण। जम्मो ला देखाइस बिसालिक मन। बिसालिक गुनत हे जम्मो कोई अपन सवांगा ला हेर डारिस अब फेर बिसालिक नइ हेरिस।

कार्यक्रम सुघ्घर होइस बिसालिक घला बने पाठ करिस। अब गाँव वाला मन ले बिदा लेवत हाबे। 

"चाहा पीके जाहूं। छेरकीन डोकरी घर हाबे जेवनास हा।''

गाँव के सियान किहिस अउ चाहा पियाये बर लेग गे।

जम्मो कोई ला चाहा पियाइस डोकरी हा। राम लक्ष्मण भरत शत्रुघन के पाठ करइया मन चाहा पीयिस फेर मंथरा अउ कैकेयी ला नइ परोसे।

"दाई यहुँ बाबू ला दे दे ओ !''

मैनेजर के गोठ सुनके दाई खिसियाये लागिस।

"इही मन तो बिगाड़ करिस मोर फूल बरोबर सीता ला, राम ला बनवास पठोइस। नइ देंव चाहा।''

डोकरी बखाने लागिस। राम बने बिसालिक किहिस चाहा बर तब वोमन चाहा पीयिस। 

"तेहां काहत हस बेटा राम ! तब देवत हंव नही ते सुक्खा टड़ेड़तेंव।''

डोकरी किहिस।

"सबके घर मा तोर बरोबर मर्यादा पुरुषोत्तम राम अवतरे बाबू तभे ये दुनिया मा सत्य अउ धर्म के स्थापना होही। सब बर छाहत रह मोर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम।''

डोकरी अब भाव विभोर होगे।

अब जम्मो के आसीस लेके लहुट गे अपन गाँव बिसालिक अउ संगवारी मन।

       अधरतिया घर अमरिस बिसालिक हा। गोड़ हाथ धो के सुतिस फेर नींद नइ आय। गुने लागिस रामायण ला। नत्ता ला कइसे निभाये जाये ..? त्याग समर्पण इही तो सार बात आय रामायण के। ददा के बात मान के राम जंगल गिस - पुत्र धर्म के मान राखिस। गोसइया के संग देये बर फूल कस सीता चल दिस। उर्मिला मुचकावत लक्ष्मण ला बिदा दिस। भरत राजपाठ तियाग के तपस्वी होगे।...... अउ छोटे भाई शत्रुघन राज करत हे। जम्मो अनित करइया,चौदह बच्छर के बनवास भेजइया माता कैकयी ला प्रथम दर्जा देथे राम हा। कोनो बैर नही कोनो मन मइलाहा नही.....! जम्मो कोई ला मान देवत हे। अतका होये के पाछू घला भरत बर मया......? सिरतोन राम तेहां मर्यादा पुरुषोत्तम राम आवस।


बिसालिक गुनत हे।..........अउ मेंहा .....?अपन छोटे भाई संग का करत हंव.......? 

               मुँहू चपियागे। लोटा भर पानी पी डारिस। अब महाभारत के सुरता आये लागिस। पांडव मन आखिरी मा पाँच गाँव तो माँगिस वहुं ला नइ दिस चंडाल दुर्योधन हा अउ अपन कुल के नाश कर डारिस।

मोर छोटे भाई हा घला दू दुकान ला मांगत हाबे अउ मेंहा कोर्ट कछेरी रेंगावत हंव......?  का होइस दाई ददा के कमती सेवा जतन करिस ते .....? सिरतोन महंगाई मा वोकर घर नइ चलत होही ....? कभु एक काठा चाउर तो नइ पठोये हंव मेंहा एक्के मे रेहेंन तब। ड्राइवर के कतका कमई ...?  दुर्योधन बरोबर मोर बेवहार ....?

नत्ता-गोत्ता मा बीख घोर डारेंव....। भलुक राम नइ बन सकंव ते का होइस...भरत बन के दू दुकान के तियाग कर देंव.....?

बिसालिक अब्बड़ छटपटावत हे अब। 

अब नवा संकल्प लिस मेंहा लहुटाहूं आठ में से चार दुकान ला । बिहनिया जाहूं छोटे भाई घर ....। सुख-दुख जम्मो बेरा मा नत्ता निभाहूं.....। बिसालिक अब अगोरा करे लागिस बिहनिया के । करिया रात छटिस अउ सुरुज के उजास बगरे लागिस। हलु-हलु धुंधरा भागे लागिस। ...बिसालिक के मन के जम्मो मइलाहा घला  धोवा गे रिहिस। अब मन के धुँधरा सफा होगे रिहिस। 

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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

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