Thursday 30 November 2023

भाषा ला जिन्दा रखे बर जिन्दा मनखे के जरूरत पड़थे - अरुणकुमार निगम

 भाषा ला जिन्दा रखे बर जिन्दा मनखे के जरूरत पड़थे

 - अरुणकुमार निगम


"छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के औचित्य"


आत्म समीक्षा अउ आत्म चिंतन बर कोनो *दिवस* मनाए जाथे। जनम दिवस, लइका मन बर खुशी अउ मनोरंजन के दिवस हो सकथे फेर बड़े मन बर आत्म चिंतन अउ आत्म समीक्षा के दिवस होथे। *अतिक उमर पहागे - मँय का कर पाएँव ? कोन जाने अउ कतका दिन बाँचे हे, मोला का-का काम निपटा लेना चाही?*  एक उमर के बाद हरेक के मन मा ये दू सवाल जरूर आत होही ? अभी तक के उपलब्धि नहीं के बराबर दिखथे फेर जउन काम बाकी हें, वोकर सूची बहुत बड़े दिखथे। अइसनो विचार आथे कि अतिक काम करे बर बाकी के जिनगी कम पड़ जाही।


छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस मा घलो अइसने आत्म समीक्षा अउ आत्म चिंतन होना चाही। मनखे त मनखे, सरकार तको ला ए विषय मा सोचना चाही। अपन राज्य बने 23 बछर होगे, राज भाषा बने 15 बछर होगे। अभी तक के उपलब्धि नहीं के बराबर हे फेर असल मा जउन काम बाकी हे वोला पूरा करे बर जिनगी झन कम पड़ जाए। महतारी भाषा मा वोट माँगे जा सकथे, शालेय पाठ्यक्रम मा शामिल करे डहर ध्यान नइ जाय। सरकारी कामकाज मा प्रयोग करे डहर ध्यान नइ जाय। फेर चुनाव आही, फेर लाउडस्पीकर मा मोर संग चलव गाना बजाए जाही, फेर जइसन चलत हे, वइसने चलत रही। 28 नवम्बर के आयोजन होही। छत्तीसगढ़ी भाषा के दशा अउ दिशा ऊपर उही उही मन भाषण देहीं, जउन मन के भाषण ला हर साल सुनत हन। लंच पैकेट के वितरण होही। कविसम्मेलन होही अउ *सफलतापूर्वक समापन* हो जाही। 29 नवम्बर के अखबार मा रिपोर्ट छप जाही अउ पेपर कटिंग ला राजभाषा के फाइल मा चस्पा कर दे जाही। का इही ला औचित्य कहे जाय ?


किताब अउ ग्रंथ छपे ले औपचारिकता पूरा हो सकथे, उद्देश्य पूरा नइ हो सके। भाषा ला जिन्दा रखे बर जिन्दा मनखे के जरूरत पड़थे। कागज के खेत मा आँकड़ा के खेती करे ले पेट नइ भर सके। खेत मे नाँगर चलही, बीजा डारे जाही, पानी के व्यवस्था करे जाही, खातू अउ दवाई डारे जाही तब फसल काटे बर मिलही अउ पेट हर भराही। ये एक लम्बा प्रक्रिया आय। सरलग निगरानी चाही। भाषा के बीजा बर मनखे मन खातिर सबसे उपजाऊ खेत प्राथमिक शाला आय अउ सरकार बर सरकारी ऑफिस आय। कुछु सार्थक काम करे बर महतारी भाषा ला प्रायमरी स्कूल के पाठ्यक्रम मा शामिल करना पड़ही। सरकारी लिखा पढ़ी महतारी भाषा मा अनिवार्य करना पड़ही। परिपत्र निकाले से कुछु नइ होने वाला हे। एक किसान असन ये दुनों खेत के निगरानी करना पड़ही। परिणाम कागज मा नइ, परिवेश मा दिखाना चाही। ये काम चालू हो जाही तब मानकीकरण अपनेआप होना शुरू हो जाही। साहित्यकार अउ लोक कलाकार मन अपन काम पूरा निष्ठा अउ मनोयोग से करत हें। अब छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस मा सरकार ला छत्तीसगढ़ी भाषा बर आत्म समीक्षा अउ आत्म चिंतन करना चाही। दिवस मनाए के औचित्य तभे पूरा होही। 


छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के शुभकामना।


अरुण कुमार निगम

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