Thursday 30 November 2023

कहानी: पिंजरा के चिरई

 कहानी: पिंजरा के चिरई


                                  चन्द्रहास साहू

                                मो 8120578897       

"तपत कुरु रे मिठ्ठू ''

पिंजरा मा धंधाये मिट्ठू ला आरो करत किहिस मोटियारी गंगा हा। मिट्ठू फर-फर उड़ावत हाबे।

"टेऊँ-टेऊँ टे... टे तपत कुरु !''

मिठ्ठू घला मया के गोठ सुनके कभु चोंच ला पाँख मा टोंचथे तब कभु पिंजरा भर पाँख ला फरिहा के उड़ियाये के उदिम करथे। का होइस चिरई  तो आय फेर जम्मो ला सीख डारथे,रट डारथे। मन मगन हो जाथे मया के बानी सुनके वोकरो। 

कटोरी भर भात लानके मड़ाइस गंगा हा।

"ले खा ले मिट्ठू !''

फेर मिट्ठू ला तो उसमान छूटे हाबे। हिरक के नइ देखिस। एक चोंच मारिस अउ गोड़ मा उण्डाये के उदिम करत हे कटोरी ला।

"चिकनू महराज ! थोरिक दम धर जादा रिसा झन, नही ते जौन मिलत हाबे तौन घला नइ मिलही....।''

गंगा हा मिट्ठू संग गोठियावत हाबे। कभु बरजथे तब कभु दुलारथे घला मिट्ठू ला। भलुक गंगा के अंतस के गोठ ला कोनो नइ जाने-समझे फेर गंगा ही तो आय जम्मो परिवार के अंतस के गोठ ला जानथे। मिट्ठू के अंतस के गोठ ला घला जान डारिस। बड़का  मिर्चा लानिस लाल-लाल,अब्बड़ चूरपुर अउ साग ला डारिस भात मा तब खाये लागिस मिट्ठू हा। चिकनू महराज !

भलुक जम्मो ला सीख डारथे मनखे बरोबर मिट्ठू हा फेर बिसवास टोरे बर नइ सीखें हाबे। कोन जन गंगा के मया-दुलार आय कि मिट्ठू हा उड़ियाये ला बिसरा दे हे, भगवान जाने। पिंजरा के फईरका भलुक उघरा हो जाथे तभो ले उड़ियाके अगास के गहिरी ला नइ नाप सके। भलुक परछी भर ला किंजर लिही अउ सबरदिन बरोबर फेर लहुट के धन्धा जाथे पिंजरा मा  गंगा बरोबर। हाय रे मोर बोरे बरा घूम फिरके मोरे करा। सिरतोन तो आय गंगा घला पिंजरा के चिरई बन गे हावय। माइके के उतबिरिस झक्की टूरी अउ ससुरार के- जिम्मेदार बहुरिया। ये जिम्मेदार आखर.... ? कोनो आखर नोहे भलुक बेड़ी आय गोड़ के। पिंजरा आवय जब तक जीयत रही तब तक धन्धा जाही माईलोगिन हा। न कभु कोनो आस ला सपूरन कर सकस,न अगास ला अमर सकस। रंधनी कुरिया के पुरती होगे पढ़े लिखे गंगा हा। इंजीनियरिंग मेकैनिकल ब्रांच के टॉपर गंगा भलुक एक दू बेर बुता खोजिस अपन लइक फेर गोसाइया के गोठ।

"अभिन तो नवा-नवा बिहाव होये हाबे अभिन इंजॉय कर लेथन ताहन सरी उम्मर बाचे हाबे नौकरी करे बर।'' 

अइसना तो केहे रिहिन गोसाइया राहुल हा। एक बेर अउ डेरउठी ले निकले के उदिम करिस तब फेर बेड़ी लगा दिस। 

"अभिन तो लइका मन नान-नान हाबे। छोटकी नोनी हा तो दूध पीयत हाबे कइसे जीही बपरी हा। तोर आवत-जावत ले लाँघन नइ हो जाही ?''

ये यक्ष प्रश्न के का जवाब दिही महतारी गंगा हा। कलेचुप कुरिया मा लहुट गे। अछरा के कोर के भिंजत ले रोइस फेर कोनो चुप नइ कराइस। जिम्मेदार बहुरिया आवय ना, अपन आँसू पोछे के जिम्मेदारी घला उठाये ला परथे। तभो ले, एक बेर अउ सामरथ करके नौकरी करे बर अपन कागज-पाती ला धरके गिस। 

"तोर असन माइलोगिन ला का जरूरत हाबे इहाँ नौकरी करे के ? तोर गोसइया राहुल हा सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज मा नामी प्रोफेसर हाबे। पइसा के का कमती तुंहर घर। जादा पइसा कमाके का करहु ? राहुल के कमई नइ पुरत हे का ?''

एक झन संस्था के मुखिया आवय। अइसन मइलाहा बिचार वाला संग बुता करके गंगा मइलाहा नइ हो जाही...? गंगा फेर लहुट गे अपन कुरिया।

           गंगा अपन दाई-ददा के एके बेटी आय-एकलौती। फुरफन्दी बरोबर किंजरे। जम्मो कोई बर मयारुक- गंगा,लाडो,भूरी,पांखी,पीहू, मिट्ठू जतका मुँहू वोतका नाव। एक झन टूरी गाँव भर नाव धरइया। बेटी तो बांस आय। झटकुन बाढ़ जाथे। अभिन-अभिन तो आठवी पास होइस, अभिन दसवीं अउ अभिन बारवी।....अउ बारवी पास होइस ताहन ददा के संसो बाढ़गे। अब कइसे पढ़ाव बेटी तोला ! बड़का कॉलेज फीस शहर के खरचा ? 

"मोला पढ़ा दे बाबू ! महुँ कुछु करना चाहत हँव बाबू ! कुछु बनना चाहत हँव। महुँ अगास मा उड़ियाहू, ददा मोला पाँख दे दे। शहर पठो दे। इंजीनियरिंग कॉलेज में भरती कर दे बाबू !''

गंगा रोये लागिस। 

"बीस हजार रुपिया लागही बेटी ! कहाँ ले अतका पइसा लानहु ? दुनिया मे सबले बड़का पाप आय बेटी-गरीब होना। ...अउ जन्मजात गरीब होना ? महापाप आवय-महापाप। काला बेंचो-भांजों ? न तोर दाई करा गहना-जेवर हाबे न ददा करा जमीन जैजात। नइ पढ़ा सकंव बेटी  ! अब अतकी मा मान जा। अब गोदी-माटी खनके जिनगी के पाठ ला पढ़।''

ददा हरा गे अब। सुन्ना अगास ला देखत किहिस। जनम आइस तब अब्बड़ सपना देखे रिहिन गंगा ला अब्बड़ पढ़ाबो-लिखाबो अइसे फेर .....?

"संसो झन कर लइका ला पढ़ाबो। मन ले झन हार। रद्दा देखाही भोलेनाथ हा।''

कुछु गुनत किहिस गंगा के दाई हा। रोवत गंगा के चेहरा मा उछाह तौरे लागिस अब। दाई आवय-पंदोली देवइया दाई। भोलेनाथ के नाव मा कोनो मंतर मारही। .... अउ सिरतोन दाई के मुँहू ले निकले गोठ संजीवनी बूटी होगे गंगा बर।

" हे भोलेनाथ ! तोर वाहन ला अब लेग जा। मोर लइका के पढ़े लिखे बर पइसा के बेवस्था कर दे। गाँव के लुबरु कोचिया ला बला अउ  लखिया-धौरा बइला मन ला बेंच दे, गाड़ा सुद्धा। गाड़ा हा सरत हाबे अउ बइला मन बुढ़ात हाबे। टेक्टर के आय ले कोनो नइ पूछे कमाये-धमाये बर अब।'' 

दाई भलुक टाय-टाय कहि दिस ददा ला फेर अंतस अब्बड़ रोवत हाबे। कमइया बेटा तो आय लखिया-धौरा बइला मन। ....फेर बेटा हो बहिनी के जिनगी बनाये बर बेचत हँव तुमन ला, मोला माफी दे देबे दाऊ !''

दाई अब्बड़ कलप-कलप के रोवत हाबे बइला मन ला पोटार के। ...अउ बइला मन ? वोकरो आँखी ले आँसू बोहावत हे। चांटत हाबे दाई के हाथ ला। करेजा फाट गे दाई के जब लुबरु कोचिया हा पइसा देके अपन घर लेगिस बइला गाड़ा मन ला तब। जावत बइला हा गोबर देके आसीस दिस गंगा के उज्जर भविस बर। तुलसी चौरा मा मान पावत हाबे कमइया बेटा के इही गोबर हा अब।

"बेटी अपन रद्दा मा आबे, अपन रद्दा मा जाबे ओ ! टूरी हा बांस आय बेटी ! अब्बड़ झटकुन आगी धर लेथे....... सावचेती रहिबे।''

"कतको आगी-बुगी लग जाये बेटी ! उहाँ विद्या हा बचाही। कलम के सामरथ हा तलवार के सामरथ ले जादा होथे बेटी। तलवार के दम मा खुर्सी नइ पावस भलुक कलम के बल मा बड़का इंजीनियर के खुर्सी ला पा लेबे। ... अउ बड़का खुर्सी वाली बन, इही तो हमरो सपना हाबे बेटी ! अब्बड़ पइसा अउ नाव कमा अउ हमर गरीबी ला टार दे।''

दाई-ददा दुनो कोई समझाये लागिस। अरपा-पैरी के धार बोहावत हे दुनो कोई के आँखी ले अब। रायपुर के इंजीनियरिंग कॉलेज मा भर्ती कर दिस। मेकैनिकल ट्रेड। अउ उहाँ  के हॉस्टल मा राहय गंगा हा।

                   गोबर चिखला मा सनाये गाँव जोरातरई के बेटी अब राजधानी मा पढ़त हाबे। पहिली बच्छर, दूसरा बच्छर ....अउ अब फाइनल ईयर। जम्मो क्लास मा फर्स्ट डिवीज़न मा पास होइस गंगा हा।


"तेहां तो टॉपर अस बहिनी ! हमन ला झन बिसराबे बड़का अधिकारी बनबे तब।'' 

आवत जावत रहिबे रे गंगा हॉस्टल मा, कॉलेज मा।''

आज आखिरी दिन रिहिस गंगा बर। जम्मो संगी-संगवारी मन सुख-दुख के गोठ गोठियावत हाबे। येहाँ भलुक कॉलेज आय फेर चारो कोती के चाल-चलागन रस्म-रिवाज संस्कार-संस्कृति के मिलाप के ठउर घला आवय। रिकम-रिकम के सुभाव वाली लइका मन संग घला पढ़ीस गंगा हा फेर अपन आदत ला नइ बिगाडिस।

"आज आखिरी रात आय बहिनी ! एक चीज के साध पूरा कर दे मोर।''

"आज तो मोर संगी के रात आवय। हॉस्टल लाइफ कोनो कमती होही तौन ला पूरा करबो। जब छोड़ के जाही तब कोनो जिनिस के कमती झन होवय।''

"आज तो गंगा ला नइ छोड़ो मेंहा। एक बेरा मोर रंग मा जरूर रंगहू वोला।''

लता नेहा मनीषा मंदाकिनी जम्मो कोई संगी-संगवारी मन केहे लागिस गंगा ला दबोचत। जम्मो कोई अब्बड़ सुघ्घर हाबे फेर मइलाहा घला अब्बड़। बीड़ी सिगरेट के घला सुट्टा मार डारे हाबे अउ चखना संग सोमरस ला घला चीख डारे हाबे मंदाकिनी अउ सुरेखा हा। पढ़त खानी अब्बड़ जोजियावय गंगा ला घला। फेर गंगा भाग जावय। .....आज नइ बांचे गंगा हा।

दाई किरिया,ददा बबा ममा मामी ...अउ अब दोस्ती के किरिया खा डारिस सुरेखा हा।

"गंगा कांच के गिलास मा ढ़राये जिनिस ला पीये ला लागही सिगरेट के सुट्टा तीरे ला लागही...नही ते दोस्ती खतम।''

"डौका घर जाबे तब पछताबे रे टूरी! सरी रिकम ला इहींचे कर ले। पिंजरा के चिरई हो जाबे।''

मंदाकिनी आवय बरपेली सिगरेट ला ठुसत किहिस गंगा ला। जम्मो कोती हा.... हा.... ही...ही... के आरो आवत हे।

गिलास के पीयर रंग ला एक घुंट पीयिस तब सिरतोन गंगा हा जम्मो कोई के वादा पूरा कर दिस ...अउ बेलबेलही टूरी मन शर्त जीत डारिस। गरब करत हे अपन संगी मन उप्पर।

              आज डिग्री झोंक के घर अमरिस तब अब्बड़ मान पाइस गंगा हा। दाई-ददा काबा भर पोटार लिस बेटी ला- इंजीनियर गंगा ला। चित्र मित्र अउ चरित्र के सोर अब्बड़ उड़ाथे। गंगा के चरित्र के सोर उड़ाये लागिस। सुघ्घर सुशील गृहकार्य में दक्ष.......! अउ पढ़े-लिखे इंजीनियर गंगा । इंजीनियरिंग कॉलेज बिलासपुर के इलेक्ट्रॉनिक्स एंड टेलीकॉम्युनिकेशन डिपार्टमेंट मा राहुल नाव के टूरा हाबे असिस्टेंट प्रोफेसर। सरपंच चोवाराम के संदेस सुनिस तब गंगा के ददा उछाह मा मुचकाये लागिस। न कोनो राग-पाग न कुंडली मिलान। दू इंजीनियरिंग के डिग्री मा गुन मिलगे-छत्तीस के छत्तीस गुन।भविस के उज्जर सपना देखे लागिस दुनो परिवार हा अब। मुचकावत डोली बइठके राहुल के डेरउठी के बहु लछमी बनगे अब गंगा हा।  सब तो मिलगे अब। मेरिट मा आय डिग्री, लाखो में एक गोसाइया, सुघ्घर घर परिवार अउ बड़का घर दुवार। चिरई बरोबर उड़ावय अपन सपना ला सपूरन होवत देख के गंगा हा। उछाह मा गमकत रहिथे। अब्बड़ ऊंचा अगास मा अब्बड़ ऊंचा उड़ान राहय गंगा के।

"गंगा अभिन सियान दाई ददा के संग रहा गाँव मा। बेरा-बखत देख के लेग जाहू बिलासपुर।''

गोसाइया के गोठ सुनिस तब जइसे भुइयां मा गिरगे धड़ाम ले गंगा हा। कभु नइ गुने रिहिस गंगा हा गाँव मा रहे ला लागही अइसे फेर एकलौता आवय राहुल हा, अब जम्मो जिम्मेदारी ला निभाये ला परही गंगा ला। ससुरार के जिम्मेदारी अब नागपाश बनगे। अरहज गे गंगा हा। अब दू लइका के महतारी बनगे फेर बेटी बनके सास ससुर के सेवा-जतन मा कोनो कमती नइ करिस।


"बेटी गंगा कहाँ हस ओ ! अकरस पानी मा जम्मो छेना-लकड़ी कपड़ा-लत्ता भींज जाही बेटी।''

सियान सास ससुर के गोठ सुनिस गंगा हा अउ सुरता के धारी ले निकलिस। लकर-धकर जम्मो ला सकेले लागिस। उत्ता-धुर्रा जम्मो ला तोपे ढांके लागिस। आषाढ़-सावन के पानी सिरतोन अब्बड़ बिटोना रहिथे। कभु सुरुज नारायेण चरचराथे तब कभु ओइरसा चुहँव पानी। 

लकड़ी छेना ला रंधनी कुरिया मा भीतराइस अउ चूल्हा बारे लागिस फु.....फु.....।

पानी मा मउसार लकड़ी छेना अब्बड़ पदनी-पाद पदोथे। आँखी ले आँसू आ जाथे चूल्हा के सपचावत ले। 

"जा बेटी ! लइका मन ला देख। मेंहा देखत हँव ये आगी ला। ये अगिन महराज हा कइसे नइ बरही देखथो। भलुक गाँव मा हाबे गंगा हा तभो ले सास बरोबर चूल्हा के मरम ला कहाँ जानही ? सास के बारे चूल्हा भरभर-भरभर बरे लागिस अब। .......उरीद दार अउ तुलसी मंजरी चाउर अब डबकत हाबे। पारा भर जान डारिस चाउर के ममहासी ला। उरीद दार घला डबकत हाबे बुडूक-बुडूक डुबक-डुबक। ...अउ खेखसी के साग ?  इही चौमासा मा निकलथे बोड़ा खेखसी केरा गभोती हा। जम्मो जिनिस घर के बखरी मा मिल जाथे। ठाकुर देव मा चार ठन पहिली फर ला टोर के चढ़ाए रिहिस सियान हा अउ बाचल-खोंचल खेखसी ला साग रांधत हाबे। अब बन गे जेवन। घर के डीही डोंगर बर नानकुन परसा पान मा जेवन परोसिस अउ फुलकांच के लोटा मा पानी दिस सास ससुर ला जेवन करे बर।  

"ये दे बाबूजी माँ पानी, चलो जेवन करहुँ।''

सियान-सियानहिन मन जेवन करिस। लइका मन ला खवाइस तब गंगा हा आचमन करके धरती मइयां मा माथ नवाके जेवन करे लागिस। अब्बड़ सुघ्घर साग-गुरतुर। गंगा जेवन करत हे । छेना लकड़ी सपच के बुतागे हाबे। फेर एक ठन गोठ रोज बरोबर अटके लागिस। महुँ हा छेना बरोबर सपच के बुतागेंव का....? अब जम्मो मोर सपना टूटत हाबे। दाई-बाबू जी के घला सपना रिहिन - लइका हा समाज बर कुछु करे अइसे। गाँव के लइका मन ला पढ़ाये, कुछु सिरजन के बुता करे अइसे। फेर का करत हँव मेंहा ? दाई-ददा अब्बड़ पढ़ाइस लिखाइस अउ मेंहा चूल्हा चुकी के पुरती होगेंव। गंगा अब फेर छटपटावत हाबे, गुनत हाबे। दू चार बेरा तो केहे रिहिन गंगा हा गोसाइया ला कुछु नौकरी करहुँ अइसे फेर .....? पिंजरा के चिरई बन गे। जिम्मेदारी के पिंजरा मा धन्धागे। 

                         गोसइया राहुल आज चाउर लेगे बर गाँव आये हाबे। सांझ कन आइस, टीवी मोबाइल मा देश दुनिया के हाल-चाल जानिस। दाई-ददा ला "बने तो हो का ?'' पाँव परत पूछिस अउ बस ....। दाई-ददा करा अब्बड़ समस्या हाबे फेर बेटा करा सुने बर बेरा नइ हाबे। ...बहुरिया सुन लेथे फेर जम्मो हा बहुरिया के बांटा तो नो हे ? दाई-ददा गोठियाये के उदिम करथे फेर बेटा तो अधिकारी आय। आने स्टाफ संग फोन मा डिस्कशन करत हे स्टाफ वाली मेडम के पहिनइ-ओढ़हई के सम्बंध मा। अब आही तब आही ...बेटा नइ ओधिस तीर मा। सोवा परगे तब गोठ उरकिस।  गंगा के टोंटा मा फेर उही गोठ अटकगे हाबे। छटपटावत हे, अकबकावत हे। फेर मन ला शांत करिस अउ पूछिस।

" गाँव तीर के आई टी आई मा पढ़ाये बर जाहू का जी !''

राहुल तो अकचकागे। गंगा अभिन तक नइ माने हाबे। एड़ी के रिस तरवा मा चढ़गे।

"तोला कतका बरजे हावंव तभो ले ...? मोर कमई नइ पुरत हे का ? दाई ददा ला फेंक देंव का मोर ? दाई ददा के जतन-पानी के डर मा भागे बर गुनत हावस। मेंहा अपन नौकरी मा बिलमे रहिथो तब कोन करही मोर दाई-ददा के सेवा। दाई-ददा के सेवा कर घर दुवार के जतन अउ लइका पिचका उपर सुघ्घर संस्कार दे। अतकी के आस राखथे जम्मो गोसइया हा। महुँ हा अतकी के पंदोली दिही कहिके तोर संग बिहाव करे हँव।.....फेर तोला तो मौका चाही हरहिंछा किंजरे बर ?''

राहुल तमकत हाबे। जच्छार होगे। फेर गंगा घला कमती हे का ?

"अतका पढ़ लिख के अप्पड़ बरोबर झन गोठिया जी। तोर दाई-ददा ला अपन सगे मानथो। फेर तेहां बिरान मानथस मोर दाई-ददा ला। कभु गुने हस मोरो कोनो साध होही कहिके  ? कभु गुने हावस मोरो दाई-ददा के सपना का हाबे मोर बर तेन ला ? बेटी पढ़ लिख के समाज के विकास मा पंदोली देबे अइसे कहाय ददा हा। तेहां पुरुष आवस न- पुरूष सत्ता के पक्षधर। नारी पढ़ लिख डारही तौन ला खिल्ली उड़ाथो। कॉलेज मा घला पढ़ाथस नर नारी एक बरोबर फेर घर मा का हो जाथे ? तुमन ला तो डर लागे रहिथे माईलोगिन भाग तो नइ जाही घर छोड़के ? आनी-बानी के भरम रहिथे तेकरे सेती पिंजरा मा धान्ध देथो।'' 

गंगा अब अगियाये लागिस। 

अब तो सियान मन घला पंदोली देये लागिस। 

"बेटा ! मेंहा धन्य हँव गंगा बरोबर बहुरिया पा के। अब्बड़ गुणवती हाबे बेटा येहां। तेहां तो मरही-खुरही दाई-ददा ला खाये हस कि नही तेला नइ पूछ सकस अउ बहुरिया हा हमर जम्मो नखरा ला उठाथे रे ! खटथे रात अउ दिन। तोर भरोसा मा रहितेन ते मर जाये रहितेन आज तक। बहुरिया के सेवा ले चंगा हावन। बिहाव के बेर तो आदर्श टूरा बनत रेहेस। गंगा तोर जौन साध हाबे तौन ला पूरा करहु कहिके किरिया खाये रेहेस। अतका दिन ले तोर बर खप गे बपरी हा। अब अपन साध ला पूरा करन दे। आई टी आई मा पइसा कमाये बर नइ जावत हे गंगा हा भलुक विद्या दान करे ला जावत हाबे। गरब कर अइसन गोसाइन बर।''

राहुल के दाई-ददा आवय। आज मयारू गंगा बर नित के गोठ गोठियावत हाबे दुनो कोई। बिसवास कर बेटा गंगा ऊपर सुघ्घर अउ संस्कारवति हाबे।''

राहुल ठुड़गा रुख बरोबर ठाड़े हाबे। मुँहू ले बक्का नइ फूटत हाबे-बोक-बाय होगे।

सास-ससुर के मया पाके गमके लागिस गंगा हा। बिहनिया तियार होइस। सास-ससुर के पाँव-पैलगी करिस अउ पिंजरा के मिट्ठू ला पिंजरा ले उड़ाइस। 

मुँहु मा स्कॉर्फ बाँधिस, हेलमेट पहिरिस, चश्मा चढ़ाके पर्स ला खांध मा अरोइस अउ स्कूटी स्टार्ट करके आई टी आई के रद्दा मा चल दिस गंगा हा अब। सास-ससुर अब हाथ हलाके आसीस देवत हाबे।

"दुधे खा, दुधे अचो बेटी !''

"जा मोर मयारू मिठ्ठू ! अब उड़ान तोर अउ जम्मो अगास तोर।''

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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

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1,समीक्षा-पोखनलाल जायसवाल:

 आज शिक्षा के अँजोर चारों मुड़ा जगर-मगर करत हे। शिक्षा के प्रचार-प्रसार होय ले समाज ल कतको कुरीति अउ आडंबर ले मुक्ति मिले हे। शिक्षा के चलत लोगन के सोच बदले हे। वैज्ञानिक दृष्टिकोण आय हे। नइ बदले हे त नारी के दशा। नारी शिक्षा पाके ससन भर उड़ना तो चाहथे, फेर उँकर हाल पिंजरा के चिरई जस हे। उड़ान भरना तो चाहथे, फेर भर नइ सकय। खासकर ए दशा सुशिक्षित परिवार म जादा देखे सुने मिलथे। पढ़े-लिखे अउ कमाऊ पुरुष नारी ल घर के भीतर कैद करके रखना चाहथे। तरह-तरह के जिम्मेदारी म फाँस उँकर क्षमता के शोषण करथे। उँकर सपना ले ओला कोनो मतलब नइ रहय। कहूँ कमई के (पइसा के) बात आथे त दंभ भरथे, कि का कमी हे तोला? ...का चीज के पुरती नइ होवत हे तउन ल बता? पढ़े लिखे पुरुष जब पढ़े लिखे नारी ल सम्मान नइ देवय, त ओकर नकसान पूरा समाज ल भोगे बर परथे। आज के तथाकथित सभ्य अउ सुशिक्षित समाज म नारी शोषक के समर्थक कतको राहुल हें। जउन नारी ल चिरई सहीं पिंजरा म धाँध के रखना चाहथें।

        गंगा गरीब मजदूर के मान बढ़ोइया सुशिक्षित अउ संस्कारित बेटी आय। जउन बेरा के संग जिम्मेदारी ल पूरा करथे। अपन अउ अपन दाई-ददा के सपना पूरा करे बर नारी जात ल लेके राहुल के दोहरा चरित्र ल उघारत झंझेटथे। ओकर बोलती बंद करथे। आज के जादातर शिक्षित अउ सम्पन्न(आर्थिक रूप ले) घर-परिवार म नारी के प्रति करनी अउ कथनी म इही फरक जादा मिलथे। सिरतोन म इहें नारी के जिनगी पिंजरा के चिरई ले कमती नइ जनावय। 

           नारी विमर्श के ए कहानी म युवा वर्ग के जीवनशैली अउ हॉस्टल लाईफ के जीवंत चित्रण कहानी के सुघरई तो बढ़ाबे करथे, कहानी बर काल्पनिकता ले हकीकत के जमीन तियार करथे। एक कहानीकार कोनो घटना ल कल्पना के उड़ान भर अइसन गढ़थे कि पाठक कहानी म अपन आसपास के घटना ल ही पाथे। 

       चंद्रहास साहू के कहानी के भाषा शैली उत्तम हे, कहानी के प्रवाह पाठक ल मिल्की मारन नइ दय। 

        कथानक के मुताबिक कहानी के शीर्षक सार्थक हे। सच म नारी के जिनगी पिंजरा के चिरई ले आने जनाबे नइ करय। 'जिम्मेदार बहुरिया' म जुड़े 'जिम्मेदार' शब्द ल लेके कहानीकार के कहना ....कोनो आखर नोहे भलुक बेड़ी आय गोड़ के। पिंजरा आवय जब तक जीयत रही तब तक धँधा जाही माइलोगिन हा...। सोला आना सिरतोन जनाथे। पिंजरा के चिरई बर।

      नारी विमर्श के सुघर कहानी अपन उद्देश्य म सफल हे, अइसन सुघर कहानी बर चंद्रहास साहू को बधाई💐🌹


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह (पलारी)

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2,समीक्षा--ओम प्रकाश अंकुर:


 सुघ्घर संदेश समाय हे चंद्रहास साहू जी के कहानी " पिंजरा के चिरई" म. चंद्रहास साहू के सबो कहानी ह दमदार रहिथे अउ अपन कहानी के माध्यम ले एक सुघ्घर संदेश देथे. अइसने यहू कहानी म देखे ल मिलथे. 

कहानी के मुख्य पात्र गंगा एक गरीब घर के बेटी आय. गंगा के ददा ह कहिथे कि अब मंय ह तोला इंजिनियरिंग कालेज नइ पढ़ा सकंव बेटी. गरीब होना सबले बड़का पाप हे.ये जगह के मार्मिक चित्रण भाई चंद्रहास साहू ह करे हावय. आगू बढ़े के सपना देखे बर गंगा ह अपन ददा -दाई कर कइसे कलपथे. तहां ले दाई ह गंगा ल आगू बढ़ाय बर हामी भरथे. फेर  गंगा ल इंजिनियरिंग पढ़ाय बर बइला अउ गाड़ी ल बेचे के दृश्य ह पाठक मन ल झकझोर के रख देथे. आंख ले आंसू टपका देथे. 


गंगा के कालेज म 

अब्बड़ मिहनत,उंकर सहेली मन के बेवहार के वर्णन के सजीव चित्रण करे गे हावय . फेर कालेज पढ़ के गांव म आना अउ अपन बेवहार ले सब झन ल प्रभावित करे के बात ल उकेरे गे हावय.

   फेर कहानी म टर्निंग पाइंट आथे बिहाव के बाद. वोकर गोसइया राहुल खुद इंजिनियरिंग कॉलेज म प्राध्यापक हावय. बिहाव के समय राहुल ह वादा करे रिहिस कि गंगा के योग्यता के मान राखे जाही. वोला नौकरी करे के इजाजत देबो कहिके. पर ये का राहुल ह तो गंगा के सबो सपना के छर्री -दर्री कर दिस अउ गंगा ह पिंजरा के चिरई बन के रहिगे जेहा मन से न पिंजरा ले निकल सकय न उड़ सकय. धंधाय रहिगे पिंजरा म. आजो गंगा असन न जाने कतको गंगा ले वोकर गोसइया अउ ससुर- सास मन बिहाव होत ले आगू बढ़ाय के हामी भरे रहिथे तहां ले धीरे ले पिंजरा के चिरई कस धांध के राख देथे अउ गंगा मन के सबो सपना ह टूट जाथे.!

पर चंद्रहास साहू के गंगा ह अपन अधिकार बर जोम दे देथे. सास ससुर के अब्बड़ सेवा घलो करथे तेकर सेति वोला सास ससुर मन वोला बेटी बरोबर मानथे. गंगा के बने बेवहार ह वोला आगू बढ़े म मदद करथे. वोकर सास ससुर मन अपन लड़का राहुल ल वोकर बेवहार बर फटकारथे अउ अपन बहू गंगा ल नौकरी करे बर भेजथे. राहुल के आंखी ल खोलथे कि बेटा अपन वादा ल झन भुला.

  ये मामला म चंद्रहास साहू जी के गंगा ह अब्बड़ भाग्यशाली हावय. नि ते गोसईया , सास -ससुर के कतको सेवा करय लेय गंगा मन. पर वोला आगू बढ़ाय बर उंकर मन के कान म जुआं नइ  रेंगे. अउ बिहाव के बेरा के अपन वादा ल नेता मन कस भुला जाथे!


  एक धारदार अउ सीखपरक कहानी हे " पिंजरा के चिरई" ह. पात्र के हिसाब ले सुघ्घर भाषा के प्रयोग करे गे हावय. कहानी के शैली सरल,सहज अउ प्रवाहमयी हे. बोलचाल के अंग्रेजी शब्द मन के प्रयोग करे गे हावय. घर,कालेज अउ आफिस के सजीव चित्रण देखे ल मिलथे. एक बढ़िया कहानी बर कहानीकार भाई चंद्रहास साहू ल गाड़ा - गाड़ा बधाई अउ शुभ कामना हे. 

ओमप्रकाश साहू अंकुर

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