Thursday 30 November 2023

कहानी : *एक लोटा पानी*

 कहानी : *एक लोटा पानी*

                       पोखन लाल जायसवाल

           भादो के महीना रहिस, अगास म पड़री बादर अइसे बगरे रहय, जइसे कोनो पोनी बेचइया ह पोनी के कुढ़वा मन ल बगरा दे हे, बीच-बीच ले झाँकत घाम चाम ल जरोते राहय। कमरछठ मनगे रहिस। आठे घलव बुलक गे राहय। आठे के दिन कृष्ण भगवान के असनादे बर घलव दया नइ दिखइस, बइरी बादर ह। करिया करिया मार घपटे रहिस अउ कोन जनी कति बिलम गे। द्वापर युग म इही बादर ह कइराहा इंद्रदेव के कहे ले जमके बरसे रहिस, वहू ल कातिक के महीना म। तभे तो एक अँगरी म गोवर्धन पर्वत ल उठाँय रहिन हें किसन महराज ह। छाता बरोबर सब के रखवारी करे रहिस तब गोवर्धन पर्वत ह। फेर अभी दिन अइसे जनावत हे कि चउमासा बुलक गे हे। कोनो-कोनो मेड़ पार के फूले काँसी ह बरसा के बुढ़वा होय के चारी करत हे। सफाचट के उतरे ले मेड़ पार के काँसी घलव नँदाय ल धर ले हे। अधछइहाँ घाम म फुरफूँदी मन बिकटे उड़त हवँय।

           आज तीजा हरे। बिहनिया ले घर-अँगना अउ दुआरी ल बहार-बटोर के बहिनी-माई मन असनान-ध्यान म लगे हें। भोले बाबा ल सुमिरन करत हें। माटी के बनाय शिवलिंग के अभिषेक करत  मोर माँग के सिंदूर सदा दिन चमकत रहय, कहिके पूजा पाठ करत विनती करत हवयँ। तीजा उपास ल पति के लम्बा उमर बर रखे जाथे। कोनो-कोनो मन अपन मइके तो आय हवयँ, फेर उपास नइ राखे हें। बेरा-कुबेरा कहूँ ए उपास टूट जथे त अउ रखे नइ जावय, इही मानता ले कुछ झन मन उपास रहई के शुरुआत नइ करे हें। वइसने जेन मन ए उपास ल शुरुच नइ कर पाय रहिन हें, ओमन आसो लौन के बाढ़े ले उपास नइहें। लौन नइ बाढ़े रहितिस, त अभी नवरात्र परब चलत रहितिस। चउँक-चउँक म देवी पूजा होवत रहितिस। माँदर के थाप अउ झाँझ के संग जसगीत सुनत मन झुमरत-नाचत रहितिस। गाँव के महामाई अउ शीतला दाई के मंदिर सजे मिलतिस। आस्था के जोति ले मन म उजास बगरत रहितिस। ए जोत अंँजोर तो आगू बगराबे करही, ओकर पहिली गणपति ल भजे ल परही अउ ओकर गे ले सरगवासी पुरखा मन ल परघा के असीस ले ल परही। अपन पुरखा मन ल हम नइ सोरियाबोन त काली हमर लइकामन हमर कति ले हियाव करहीं? अब तो कतको मन कहे धर लेहे - 'जीयत म पुछारी नहीं अउ मरे म सोहारी।' त कोनो अउ पटंतर देवत कहिथे- 'जीयत भर दू लोटा पानी बर नइ पूछे, अउ मरे म गंगा।' 

         शहरिया मन के चरितर ल सुन के गँवइहा मन के छाती फाट जथे। जेन ददा पुरखा के कमई ले टींग पूछ करथे। अपन गोड़ म ठाड़ होय रहिथे। उही दाई ददा के हियाव नइ करँय। अथक होय ले उन ल आश्रम म भरोसा छोड़ आथे। बने हे, ए बीमारी अभी गाँव म नइ सँचरे हे। 

          गणपति पंडाल तिरन इही गोठ ल सुन के सुरता आगिस पउर साल के। इही मेर के गोठ आय। जब अइसन पटंतर देवइया जवनहा मन के गोठ ल सुन के मनराखन बबा के रिस तरवा म चढ़गिस। अउ गुसिया के चिचियाइस। ' रे! परलोखिया हो!! तुमन अपन ल देखव। दूसर ल दोष काबर देथव? तइहा के मनखे मन अपन दाई-ददा के तन-मन ले सेवा करँय, खटिया म परे तभो जतन करँय। कभू दाई-ददा के आगू मुँह नइ उलत रहिन उँकर। अभी के मन ... एक ले दू होइस अउ दू ले चार महीना नइ बीते पाय, दू ठन चूल्हा बना डारथे घर म। घर के अँगना खँड़ा जथे। दाई-ददा बइरी जनाथे। अइसन मन बर तो दाई-ददा बोझा होथे... बोझा..।' 

        मनराखन बबा इही मेर नइ थिराइस आगू काहते गिस - अपन करनी ल तोपे बर दस बहाना तूहीं मन ल आथे, रे ननजतिया हो! पुरखा मन के नेंग-जोंग मन ल निभा नइ सकव त झन निभाव, फेर उँकर भावना के मजाक झन तो उड़ावव। कोन काहत हे तुम मानौ। फेर एकरे बहाना जउन पुरखा ल मानत हें उँकर आस्था ल तो चोट झन करव।'

        कोन जनी? मनराखन बबा के कोन पीरा ह उसल गे रहिस ते ओ दिन? बड़ सुनाय रहिस टूरा मन ल। सब्बो झन के मुँह सिलागिस बबा के गोठ सुन के। पंडाल सजई ल छोड़ के सुटूर-सुटूर टरक दे रहिन सबझन। 

       'ले बबा! चुप रहा...सबो झन भगा गिन हें अब। कोनो नइ हे। लइका आय नइ जानय। रीत रिवाज अउ उँकर मानता ल। हमीं मन सिखाबो अउ उँकरे मन के रम के समझाय म समझहीं। बिशेसर कका ह बबा ले कहिस।

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          'कुछु होवय एक बात तो मानेच ल परही कि तीज तिहार के बहाना हम बेटी मन बर मइके के दुआरी खुला रहिथे। कभू-कभू मन मुटाव अउ कोनो किसम के अनबोलना होगे हे, गलतफहमी होगे हे, वहू ह एकरे बहाना दुरिहा जथे। मन मिल जथे।'  करू भात खावत-खावत महेश्वरी ह अइसने च तो केहे रहिस काली अउ छोटे फुफू ह हुँकारू देवत कहिस - 'बने काहत हस बेटी! हम नारी-परानी मन तो बिहा के, मइके बर पहुना हो जथन। एक लोटा पानी भर मिलत रहय, मन म अतकेच के आस रहिथे। मया के बँधना ल इही एक लोटा पानी ह जोर के राखथे।' 

          बड़की फूफू ह जुन्ना दिन ल सुरता करत कहिस, 'अब तो पहिली के जइसे दिन नइ रहिगे हे। पहिली बहिनी-माई मन तीजा माने अठुरिया अकताहा मइके आ जवत रहिन। अब तो पोरा घलव ससुरार म मान लेवत हे। तीजा उपास रहे के दिन ले मइके के अँगना म हबरथे। करू भात के दिन बेरा आछत ले मइके पहुँचे के दिन-बादर (नेत मढ़ाथें) धरथें। लइका मन के पढ़ई-लिखई बहाना जउन होगे हे। पढ़ई ले जिनगी के अँगना म अंजोर बगरथे। बस्ता ल खूँटी म टँगई ह बने बात नोहय। प्रतियोगिता बाढ़ गे हावय, अइसन म चेत तो करेच ल परही। जे पढ़थे, ते बढ़थे।'

           फूफू के गोठ लम्बा रेस सहीं नॉनस्टॉप चलते रहिस।

           'मोटर गाड़ी घलव अब अपने हाथ के बात होगे हवय। घरोघर फटफटी जउन होगे हवय। बरसा पानी ले नरवा-ढोंरगी के पूरा आय के तो गोठेच नइ रहिगे हे। रपटा-पुलिया मन पक्की हो होगे हें। चउमासा म घलव पहिली घरी कस अब झड़ी नइ होवय। सुरुज नरायन के दर्शन बिगन बासी खवइया मन ल लाँघन रेहे के जरूरत नइ रहिगे हे।' बड़की फूफू कोनजनी अउ कतेक ल अमरतिस ते। रोटी-पीठा बनाय बर पिसान अउ जरूरी सबो जिनिस के गोठ करत महेश्वरी ह फूफू ल अपन गोठ ल घिरियाय बर कहिस। फूफू ह महेश्वरी के चाल ल समझ गिस, तभे तो कहिस- 'महेश्वरी ल मोर गोठ कभू भाबेच नइ करय।'

        महेश्वरी ह फूफू ल मनावत कहिस, 'अइसन बात नोहय दीदी, तहीं बता न? काली पूजा पाठ करे मंदिर जाबोन कि नहीं? अभी संसो नइ करबो त फेर तेलई कतका बेर बइठबो? ...मन नइच माढ़े होही त गोठियाइच ले। फेर मन ल झन मार ...मोर माता।'

         'नहीं बेटी ! में तो ठठ्ठा करत रेहेंव। तें सहीं काहत हस। ...अउ सुन न बेटी! काली अतके जुआर तोर मोबाइल म 'श्री शिवाय नमस्तुभ्यं' वाले महराज के कथा चलाय बर भुलाबे झन। शिव-पारबती के कथा सुनवाबे हँई?' अतका ल सुन सबो कोई हाँस डरिन। 

          दीदी! महराज तो तीजा तिहार म फुलेरा बाँधे बर कहिथे, बाँधबोन का ओ ...अतका ल सुन के छोटकी फूफू ल खलखला के हाँस डरिस।...

         तीजा के अगोरा तो सबो ल रहिबे करथे। लइका मन ल घलव ममा घर जाय के बड़ अगोरा रहिथे। आजकाल तो गरमी छुट्टी ह होमवर्क के भेंट चढ़ि च जथे। प्राइवेट स्कूल के तो हाल अउ झन पूछव। अइसन म घर म धँधाय लइका मन बाहिर जाय के सोचथें। फेर अब तो ओमन ल तिमाही परीक्षा के राहू गिरहा मन ह जम के घेर ले रहिथें। उँकर मनसा म पानी फेर देथे। महेश्वरी सात बछर के नोनी ल घर म छोड़ के आय रहिस। फूफू के मोबाइल कहे म नोनी कोति महतारी के मया उफनाय लगिस। सुरता के डोर लाम गिस। नोनी ले तुरते गोठियाइस तब कहूँ महतारी के उफनात मया शांत होइस।

          कुछु रहय मइके के सुरता ल तीजा के जोरन म अकताहा जोरत रहिथें। बेटी-माई मन घलव भाई-भौजी के घर एक लोटा पानी के थेभा बने रहय, सोचथें। इही आस म अपन मन ल मढ़ा लेथें। एकरे ले मया के बँधना जुरे रहय, इही आसरा करथें। इही आस ल तीजा तिहार ह बछर भर म पूरा करथे। 

           कोरोना बइरी ह अँगना ल उजाड़ कर दे रहिस। महेश्वरी के दाई-ददा अउ कोइली कस कुहकत नान्हे भतीजिन ल अपन गाल म भख ले रहिस हे। भाई कमलेश के अँगना सुन्ना होगे रहिस। बिपत के ओ घरी म भाई कमलेश ह यमराज के दुआरी ले, ले दे के घर लहुटे रहिस। बीस-बाईस दिन ले बिस्तर म परे रेहे रहिस। सबो के मन उतर गे रहिस हे। कोनो ल भरोसा नइ रहिस कि भाई ह हाथ आही। कमलेश के दाना-पानी बाँचे रहिस, तभे तो घर आ पाइस।.... बड़ दिन ले घर के हाँसी ल गरहन धर ले रहिस हे। कोरोना के लगे सूतक उतरे नइ रहिस। 

           चार महीना पहिली घर म नवा सगा के आय ले खुशहाली ह लहुटे हावय। इही तो जिनगी आय। दुख के पाछू सुख अउ सुख के पाछू दुख लगे रहिथे। बेरा एके ठउर म नइ ठहरय। उवत बेरा धीरे-धीरे बुड़ती म जाथे, त रतिहा पोहाय ले फेर उत्ती डहर ले झाँके लगथे। बिहनिया सुरुज नरायन अपन अँजोर ले घर के मुहाटी खटखटाथे। अउ नवा संदेशा देथे, नवा शुरुआत के। दुख के दिन ल बिसार हँसाय के उदिम करथे। दुख के घड़ी आथे त चल घलव देथे। घड़ी के काँटा कब रुके हे, भितिया म टँगाय घड़ी के जेन काँटा बारा बजावत ठाड़ तपथे, उहीच काँटा तो छै बज्जी अपन थोथना उतार देथे। बस मनखे ल मन म आस अउ धीर राखे के चाही। अइसने कमलेश के जिनगी म छाय उदासी के अँधियार घलव छटगे रहिस हे। अँगना म फूल ममहात रहिस। ओकर जिनगी अब उछाह ले भरगे हावय।

          चतुर्थी के दिन हरे। कमलेश तीजहारिन फूफू अउ बहिनी मन ल तीजहा लुगरा देवत हावय। लुगरा झोंकत फूफू मन के आँखी छलछलाय लागिस।  बड़की फूफू के मुँह अपन भाई-भौजी के सुरता करत रोनहुत होगे। सुरता कइसे नइ आतिस, जइसने लुगरा भाई भौजी बिसावय तइसने च लुगरा भतीजा घलव बिसाय हे। कोनो भेद नइ करे हे कमलेश ह बहिनी अउ फूफू म। लुगरा ल झोंकत बड़की फूफू कहिस,  ''कमलेश बेटा! हम ल अइसने तीजा म सोरिया ले करबे बेटा। भलुक लुगरा झन बिसाबे। मन म अतके आस हावय कि जीयत भर ए घर म एक लोटा पानी मिलत राहय। मया के पाग म जुरे नता कभू छरियाय झन।"

           अतका सुन के कमलेश कहिथे- "दीदी! ददा के रहिते आवत रेहे, त ददा के गे ले नता गोता ल मैं नइ सरेखहूँ त कोन सरेखही? बाप एके झन रहिन अउ महूँ तो अकेला हवँव। पुरखा मन के चलागन ल आगू बढ़ाय बर। भाई रहितिस त ओकर हिजगा करतेंव। बाप अउ भाई के आँखी मूँदे ले तोर मइके डेरउठी तो इही भतीजा के डेरउठी आय। तीजा ले जुरे तुँहर आस ल कभू नइ टोरँव दीदी मैं ह। काहीं ल सकँव, ते झन सकँव... एक लोटा पानी ल जरूर सकहूँ।"

          भादो के महीना म पानी बरसत नइ हे त का होइस, फूफू-भतीजा के मया छलके लगिस। दूनो के आँखी ले अरपा-पैरी बोहाय लगिस। महेश्वरी फरहार बर लोटा के पानी मढ़ावत दू मन आगर फूफू मन ल कहत हावय- मोरो घर एक लोटा पानी तुँहर अगोरा करत हावय दीदी हो। भाई ऊपर जम्मो मया ल झन ढकेलव, थोर बहुत मोरो बर बचाहू।....अब जम्मो झन खिलखिला के हाँसत हावय।



*पोखन लाल जायसवाल*

पठारीडीह (पलारी)

जिला: बलौदाबाजार भाटापारा छग

मो. 6261822466

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