Monday 6 November 2023

संस्मरण* *कातिक नहाई*

 *संस्मरण*



*कातिक नहाई*

         


  एक बछर मा बारा महिना होथे बारो महिना के अपन अपन महत्तम हावे तभो ले   कातिक महीना के बड़ धार्मिक अउ अध्यात्मिक महत्तम हावे। 


   *मासानं कार्तिकः श्रेष्ठो देवानां मधुसूदन।

तीर्थ नारायणांख्यां हि त्रितयं दुर्लभं कलौ।।*


स्कंद पुराण के उपर के श्लोक मा कातिक महिना ला सबो महिना  ले बढ़िया बताये हावे। माने गय हे कि ये महिना पानी मा भगवान विष्णु के वास रहिथे तेकर सेती होत बिहनिया सुरुज देव के उये ले पहिली नहा धो के पूजा पाठ करे  जाथे अउ दान पुन्न करे जाथे।कातिक पुन्नी के दिन कइयों जघा मेला घलौ भराथे।

              जब मै छोटे रहेंव ता  अपन ममादाई नाना बबा संग गाँव मा रहत रहेंव। कातिक मा महिना भर हमन पारा भर के नोनी पिला मन कातिक नहाय जावन। कातिक नहाय जवइ के तियारी एक दिन पहिली के संझा कन ले शुरू कर देवन। संझा कन  फूल खोझे बर ये पारा ले वो पारा जावन।फूल ला नइ टोरन काबर कि वो हा दूसरइया दिन मुरझा जातिस तेखर बर  बड़े बड़े डोहणु ला टोरन जेहा दूसरइया दिन फूले लाइक रहय ।मंदार(गुड़हल),दूधमोंगरा,डगर के डोहणु।कोनो सियानिन ममादाई हा डोहणु नइ देवय ता ओखर कोला के भितिहा मा चढ़ के चुपे चुप डोहणु टोर लेवन अउ वोला लाके पानी भरे बाल्टी मा डार देवन।दूसर दिन डोहणु हा फूल जावय।बेल पान अउ दूबी घलौ टोर के ले आवन।रतिहा सुते ले पहिली ताम के लोटा, मा थोरकिन चाउँर भर लेवन। चंदन ,सेंदूर के डब्बा ,ताम के लोटा ,दूबी,बेलपान,बाती,तेल ,माचिस ,दिया सब ला झपुलिया(बाँस के डोलची) मा भर के रख देवन। दूसर दिन भिनसरहा उर्मिला दीदी (बड़े नाना बबा के नतनीन)हमर घर के फइका के सकरी ला खटखटावय मोर ममादाई पहिली ले उठ जाय रहय उही फइका ला खोलय।उर्मिला दीदी के आरो सुन महूँ झट कुन उठ जाववँ ओखर पहिली ममादाई कतको उठाय उठबेच नइ करत  रहेंव।बाल्टी के फूल झपुलिया मा डार ,झपुलिया ला धरके निकल जावन आन संगी मन के फइका ला खटखटवाय बर।सबो संगी पूरन दाई के चौरा मा जुरियान  ,फेर निकल जावन कातिक नहाय कपूरताल तलाव  जाये बर।उर्मिला दीदी अउ ओखर संगी मन कुछु भजन घलौ गावयँ फेर ओखर सुरता मोला नइ हे।वो समय मै हा अबड़े छोटे   रहेंव । तलाव मा पहुँच के बड़े घठौंधा मा उतरन  उही घठौंधा मा हमर पारा के एको दू झिन ममादाई, मामी मन घलौ नहात रहयँ। बने चिभोर चिभोर के नहा धो के ओनहा कपड़ा ला बदल के ताम के लोटा मा पानी भरके महादेव के मंदिर मा जावन जेहा उही घठौंधा के पार मा रिहिस। टिन टिन मंदिर के घंटी बजा मंदिर भीतर जावन ,तीन पइत ताली बजा महादेव ला जगावन ।महादेव मा पानी अउ  फूल ,दुबी  चाउँर चढ़ा पूजा पाठ करके दिया बारन अउ आरती करन आरती करे के बेर भजन गावन । मंदिर मा पूजा कर डारन तहाँ घूमर घूमर के तलाव पार के बर पीपर के पूजा करन पानी डारन।घठौंधा मा जाके दोना मा दिया बार के पानी मा बोहवा देवन ।थोरिक चाउँर ला पानी मा डार देवन मछरी खाही कहिके।अब हँसी ठट्ठा करत घर आये बर निकलन ।आधा दूरिहा मा नहर परय जेखर पुलिया के भितहा मा बचा के राखे चाउँर ला चिरई चिरगुन के खाये बर बगरा देवन इही मेर सुरुज देव के दरसन होवय।सुरुज देव के पाँव पर घर आ जावन।कभू कभू कातिक छेवरहाय  के दिन मा जाड़ जनाय लागय ता उही मेर घाम तापे लागन।घाम ताप के घर आवन ।रस्ता मा गरुवा ढीलात रहयँ। घर मा पहुँच एक लोटा पानी तुलसी चौरा मा डालन तहाँ खेले खाय बर धर लेवन ।हमर कातिक नहा के आवत ले ममादाई हा छरा छिटका दे, नहा धो  गरम गरम अँगाकर परसा के पान मा बना के राखे राहय।गजब के सुवाद रहय आगी के अंगरा मा भूँजाय  सील लोढ़ा मा पीसाय पताल के चटनी चाहे आमा के अथान के संग अँगाकर रोटी मा।

                 शहर मा आय ले ननपन के कातिक नहवाई छूट गिस फेर वो दिन के हर बछर कातिक मा अबड़े सुरता आथे।




चित्रा श्रीवास

बिलासपुर

छत्तीसगढ़

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