Sunday 19 February 2023

छत्तीसगढ़ी कहानी

छत्तीसगढ़ी कहानी

 : भलुवा ल चकमा

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       चैत के महिना चारो कोती मैनपुर के जंगल हर घाम म तको हरियाय , साल, सरई, महुआ, तेंदु के बड़का-बड़का रूख म तोपाय जंगल हर महुआ के सुबास म महमहावत हवय। मुधरहा चरबजी उठ के रधिका हर महुआ बिने बर अपन संगवारी मन संग घर कुरिया ले जंगल डहार निकलगे। महुआ के सुबास ले सफ्फा बन हर महमहावत हे, महुआ फूल हर सुरूज निकले ले टप-टप रुख तरी गिरे ल लगथे। बड़का -बड़का बास के टुकना ल धरे रधिका अपन संगवारी मनटोरा, फगुनी, सुहासिनी अउ रमसिला संग जंगल के रद्दा म रेंगे लगिन।  जंगल पहुंचत थोरकुन अंजोर होवत रहिस, सफ्फा जंगल के रुख-राई सुत के उठ के मुंहकान धोय बरो बर उज्जर दिखत रिहिस।

          जंगल के जेन रद्दा म महुंआ के रुख हर लगे महमहावत रिहिस, तेही डहार सब्बो संगवारी मन रेंगेन लगिस।  फेर का देखथे के जम्मो रुख अउ रुख तरी के पाके महुंआ फूल ल  कोनो ऊखर आय ले पहिली बिन डरे हवय। आगु सब्बो बन हर त महुंआ ले पटाय हवय,  फेर जंगल भीतरी नींगे के कोनो हिम्मत नइ करय। रधिका हर संगवारी मन ले किहिस- "मोला अइसने लागथे के, इहां हमर ले पहिले कोनो आके महुंआ बिन डरे हवय।  चलव संगी आज हमन जंगल के भीतरी निंग के महुंआ बिनबो, नइ त हमन ल दुच्छा टुकना, धर के अपन घर कुरिया जाय ल परहि. राधिका के गोठ ल सुन के मनटोरा हर कहिस- "बहिनी इंही महुंआ फूल हर हमर रोजी -रोटी अउ जिनगी के आधार आय। आज हमन दुच्छा टुकना धर के जाबो त, आज के मजूरी के हमन ल घाटा हो जाही, तीस रूपिया किलो के हिसाब ले हमर एक टुकना म पचास किलो त महुंआ हर धराथे। इहीं घाटा ल हमन कइसे भरबों,चलव आज जंगल के भीतरी म निंगबों।" अइसना कहिके चारों संगवारी जंगल भीतरी म निंगगे।

                जंगल भीतरी नींगत,रमसीला हर चिन्हा बनावत गिस । सब्बो झिन जंगल भीतरी डहार रेंगत गिन। थोरकुन एको मील रेंगिन त का देखथे। चारो मुड़ा महुंआ के रूख रहाय, रूख तरी महुंआ के फूल हर गिरे रहाय, सब्बो संगवारी महुंआ ल देख के खुस होगिन अउ महुंआ  बिने लगिन. देखते-देखत उँखर टुकना हर महुंआ फूल ले भरगे रहाय। बाचे महुंआ फूल ल पहिरे सारी के अंचरा म तको बांध डरिन। चारो संगवारी एक दूसर के टुकना ल मुंड़ी म बोहाय लगिन। घर बस्ती कोती जाय बर, जंगल ले बाहिर निकले लगिन।

               जंगल रद्दा म सबले आगू रमसीला रहाय,ओखर पाछू मनटोरा अउ सुहासनी रहाय, सबले पछुवाय रधिका हर आज चपक -चपके महुंआ फूल ल अपन झऊहा म भरे रहाय,संगे-संग अंचरा म तको अब्बड़ अकन महुंआ ल धरे रहाय। पचास किलो ले जादा महुंआ ल मुंडी़ म बोहे,अंचरा म धरे लकर -लकर रद्दा म पछुवाय रेंगे लगिस।

                 उही बेरा जंगल के भीतरी ले भलुवा के हुंकारु हर सुनाई  परिस। सब्बो झिन के  हाथ -गोड़ फुले लगिस, जुड़ाय लगिस। सबके जीव हर कांपे लगिस के अब का करिन। सबले आगू रमसीला हर पाछू मुंड़ के देखिस त देखते रहिगे। एक झिन भलुवा हर पाछू ले आवत रिहिस; रमसिला हर जोर ले चिचियाइस अउ कहिस-"भलुवा हमर पाछु हावय, भागव-भागव जल्दी दउड़व, भागव संगवारी हो भागव... ।"

                  रमसिला के चिचियई अउ ओखर गोठ ल सुन के सब्बो झिन कांपगे। रमसिला त सड़क के तीर कना आगे रिहिस, फेर जमके दउडे़ लगिस,  ओखर पाछु सब्बो झिन अपन टुकना ल उंही मेर मड़ाके, दउडे़  लगिन । सबले पाछु रधिका हर दउड़त रिहिस, त भलुवा हर ओखर संघरा होगे रहाय. रधिका  भलुवा के मुँहु ल देखके, महुंआ ले भरे टुकना ल ओखर ऊपर पटक दिस अउ कछु नई सूझिस त तेन्दू रूख म चघे लगिस । रधिका ल रूख म चघत देख के, भलवा तको रूख म चघे लगिस। रधिका हर अपन डहार आवत भलुवा  ल देखके डरागे ।  डर के मारे ,रूख के डारा हर ओखर हाथ ले छूटगे  अउ  रूख तरी धडाक ले गिरगे। रधिका रूख ले अइसना गिरिस के,पेट के बल मुंड़ी कान सब्बो भुइयाँ म गढ़ियागे। अइसे लगिस के रूख ले गिरके ओखर प्रान पखेरू उड़ियागे; न हिले न डुले सिरतोन रधिका के जीव छूटगे।

            ऐतीबर रधिका के संगवारी मन सड़क मेर जुरियागे रिहिन अउ रधिका के अगोरा करत रिहिन। भगवान ले सुमिरन करे लगिन, हे भगवान रधिका ल भलुवा ले बचा ले,  रधिका के नान-नान लइका -पिचका हवय; ओहर मर जाही त लइका मन के का होही??

                 जंगल के सड़क के रद्दा तीर म अगोरा करत ,मनटोरा हर सड़क म चलत गाड़ी -मोटर वालामन ल रोक के, रधिका ल बचाय बर गुहार लगाईस फेर कोनो अपन गाड़ी ल नइ रोकिन। इही इलाका हर लाल बबामन के अड्डा हरे, इही पायके कोनो अपन गाड़ी मोटर ल नइ रोकय। अब भइगे बस के अगोरा हवय। बस हर त इही रद्दा म आबे करही, कंडक्टर अउ डायवर हर थोरकुन मदद करबे करही, अइसना बिचार गुनत फगुनी हर जंगल डहार रूवासी मुंह करके देखे लगिस।

              रमसिला हर आंसू पोछत कहे लगिस-"हहो संगवारी हमन  जंगल के रहवइया, आदिवासी कहाथन। इही जंगल के रूख-राई ऐखर ले उपजे  फूल- फर,पाना -डारा -बीजा ,लकड़ी हमर रोजी-रोटी आय, फेर इही थोरकुन साल बीजा, महुंआ फूल, तेन्दुपाना के संग्रहन ले हमन ल थोरकुन रूपिया-पइसा मिलथे.इही रोजी-रोटी बर हमन  अपन जिनगी ल दांव म लगाय परथन। इही जंगल म पग-पग म जिनगी के खतरा हवय। हमर परान लेहे बर कोन जाने तेन्दुआ, भलुवा घात लगाये बइठे हवय।भइगे आज हमन अपन एक झिन संगवारी ल खो देबो।" अइसना कहिके रमसिला अउ सब्बो संगवारी मन रोय लगिस।जंगल म मनखे मन के अगोरा करे लगिन।

              इही पइत कतको घव हुँवा-हुँवा  के हुंकारू लगा डारिन, हुं. ...ऊई-उई.. हुंआ.. हुंआ... जंगल राज के जम्मो हुंकारू ल लगा डरिन।सब्बो झिन के हुंकारू  ले जंगल हर गूंजे लगिस,फेर कोनो जंगल भीतरी नींगे के हिम्मत नइ करिन। सुरुज हर लुकात रिहिस।

जम्मो संगवारी मन बीन पानी मछरी कस तरफत रिहिन। कइसे करन घर कुरिया जांवन के इही मेर थोरकुन अउ अगोरा कर लेन।

             ठउका उही बेरा जंगल भीतरी ले रधिका ल आवत देख के ,सब्बो संगवारी मन

के आँखी म चमक आगिस। माथा फूटे, लहु -लुहान रधिका ल पोटार लिन। सड़क के रद्दा के ओरी म बइठार के ,पानी ल पियायिन । लहुं ल पोछत ,रमसिला हर रधिका ले कहिस-"रधिका तेहर बांचगे, हमन तोला जंगल भितरी अंग छोड़ के भाग के आगे रेहन।"   रधिका हर किहिस- "बने होइस तुमन भागगेव, आज हमन सबो झिन भलुवा के सिकार बन जातेन; मोला खुसी हवय के मेंहर आज भलुवा ल चकमा दे हवव। मिही हर सबले पाछू रेहेव, भलुवा मोर संघरा होगे रहाय, ओला देख के मेंहर  डरागे रेहेव, फेर हिम्मत कर के मेंहर ,भलुवा के मुंड़ी ऊपर महुंआ ले भरे झंउहा ल पटक देव त ले भलुवा हर महुंआ ल खाय बर छोड़ मोर डहार आय लगिस। भलुवा ल अपन कोती आवत देख के मेंहर रूख म चघे लगेव। भलुवा तको रूख म चघे लगिस, त भइगे मेंहर अपन परान ल बचाये बर, रूख ले कूद गेव अउ पेट के बल अपन सांस ल रोक के,अपन तन ल मरे कस बना डारेव। मोर आगू- पीछू भलवा हर किंदर -किंदर के मोला सूंघीस अउ मोला हलाईस -डुलाईस  अउ मोला मरे जान के जंगल डहार नींगगे,फेर तुंहर मन के जंगल हुंकारू ल सुनके भगागे। मेंहर अब्बड़ बेरा ले अइसने परे रेहेव फेर भगवान ल सुमिर के उठेव अउ अपन परान ल बचावत दउड़त-दउड़त आवथव।

             जम्मो संगवारी मन रधिका ल पोटार के ओखर बुद्धि अउ चतुराई ल देखके अब्बड़ खुस होगिन। भगवान ल सुमिरन करिन अउ धन्यवाद करिन। सारदा बस तको उही बेरा आगिस. बस म बइठार के रधिका ल जिला अस्पताल लेगिन, उहां ओखर इलाज कराइन। चारो मुंड़ा पट्टी बंधागे रिहिस। डाक्टर हर दवई तको खाय बर दिस अउ रधिका के बहादुरी के सराहना करे लगिस। उही बेरा पत्रकार मन ओखर फोटु खिंचिन अउ ओखर साहस के बड़ाई करिन  के भलुवा ल चकमा देके रधिका हर मउत ल तको चकमा दे दिस।

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                        लेखिका

             डॉ.  जयभारती चंद्राकर

                     सहायक प्राध्यापक

                         रायपुर (छ.  ग.)

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उड़िया जाही हंस अकेला

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      माटी के तन माटी म मिल जाही,कतको संभाल राखो इही हंस उड़िया जाही।का राजा - रंक के,का अमीर-गरीब के, का डॉक्टर- कलेक्टर के जम्मो गुन इही जग म बगराही, फेर माटी के तन माटी म मिल जाही, हंस अकेला उड़िया जाही।

       अब्बड़ उदिम करिन डॉक्टर के परान बाच जाय । जम्मों गरियाबंद के रहिवासी के तीर-तखार के जम्मों गंवई गाँव के लोगन मन अपन डॉक्टर के जीव बांच जाय।ऐखर सेती अपन-अपन देवता धामी ल सुमिरन करिन। प्रार्थना  सभा करिन,के डॉक्टर हर बांच जाय।फेर विधि के विधान ताय,जम्मों ओखी हर फेल होगे अउ डॉक्टर के परान पखेरू उड़ियागे।पंछी परेवा उड़ियागे। 

       जम्मों लोगन मन के आँखी म धारे-धार आँसू बोहाय लगिस। हमर डॉक्टर सुवरग वासी होगे,अब हमर इलाज ल कोन करही।

        आज बिहिनिया ले जम्मों गरियाबंद के दुकान बंद होगे,लोगन मन सोक म समागे।डॉक्टर के गुन के बखान हर जम्मों मनखे के हिरदय म समागे।का अमीर- गरीब, नेता,अधिकारी कर्मचारी,सियान ,लइका-पिचका,माईलोगन मन ओखर दुवारी म जुरियाय लगिन।

मुसलिम समाज के रीति-रेवाज ले डॉक्टर के तन ल ताबूत म घर के दुवारी म राखिन।जम्मों जुरिया लोगन मन के आँखी म आँसू बोहाय लगिस।जात-पांत के भेद ले उप्पर ,मनखे बर देवदूत रिहिस डॉक्टर मेमन हर दस-बीस रुपिया फीस ले के गरियाबंद के आदिवासी कमार,भुंजिया लोगन मन के इलाज करत रिहिस।अधरथिया  म तको मरीज ल देखे बर दूरिहा-दूरिहा गाँव रेंग देत रिहिस।

     जुरिया भीड़ म हिन्दू,मुसलमान,सिख , 

ईसाई अउ आदिवासी परिवार,कमार ,भुंजिया मन अब्बड़े संख्या म डॉक्टर के परिवार के संगे -संग जुरियाय रिहिन।

         भीखम के लुगाई हर त गोहार पार के रो डरिस अउ कहे लगिस- " हमर डॉक्टर ते हर जी जतेस ,अभे हमर का होही, हमरे अउ लइका-पिचका के इलाज ल कोन करहि।" दयाबती हर कहे लगिस-" डॉक्टर के देहे दवई  म हमन दु-तीन दिन म बने हो जात रेहेन। "

     सुकारो  कहे लगिस- "मनखे-मनखे मां अंतर ,कोनो हीरा त कोनो कंकर' हमर डॉक्टर हर हीरा अस रिहिस।वोखर बोली हर देवता अस रिहिस।मोर कना डॉक्टर ह गोठियावय अउ कहाय -'का ओ दाई बने लागिस ,ले अभी कुन पइसा नई धरे हस त रहन दे ,तोर कना जभे पइसा होही, त दे देबे।अभे कुन इही दवई ल खा अउ जल्दी बने हो जा।' आज इही गोठ हर अब्बड़े सुरता आवत हे।" अइसना कहिके गोहार पार के रो डरिस।ओखर गोठ अउ रोवई ल सुन के जम्मों जुरियाय मनखे मन के छाती हर फाटे अस लागिस।जम्मों लोगन के आँखी म आँसू धारे-धार बोहाय लगिस।

        गरियाबंद के लोगनमन अउ तीर तखार के लोगनमन अपन देवता डॉक्टर के अंतिम दरसन करत,ओखर जनाजा म रद्दा म फूल ल बिछा दीन।जेन डॉक्टर हर जम्मों लोगन मन  के परान ल बचात रिहिस,तेन डॉक्टर के परान ल लोगन मन नइ बचा पाइन।

अपन मयारू,देवदूत ल बिदा करत, हिदय म पथना राख डरिन ।जम्मो लोगनमन ल मया करइया,जम्मो के मयारूक डॉक्टर मेमन हर देवदूत रिहिस,अपन देव लोक म रेंग दिस। माटी के तन माटी म मिलगे अउ जीव हर उड़ियागे।


                            लेखिका

        डॉ.जयभारती चंद्राकर 

              छत्तीसगढ़ 

मोबाइल न. 9424234098

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 समीक्षा--पोखनलाल जायसवाल:

 जात-धरम ले ऊप्पर होथे, मनखे के करम। मनखे के सद्-करम अउ सद् बेवहार ह जग म ओकर नवा पहिचान बनथे। जन-जन के हिरदे म जघा बनाथे। माटी के चोला माटी म मिलना च हे। ए संसार म का हे? जे नश्वर नइ हे। तभे तो कहे जाथे- मनखे! तैं जतन कर लाख, होना च हे एक दिन राख। जिनगी के इही सार ल पहिचाने के जरूरत हे। जेला जान के अनजान बने रहिथे मनखे।

       जब माटी म मिलना च हे, राख होना च हे त का के गरब अउ अभिमान? साँसा के डोर के राहत ले जिनगी के ठाठ (गाड़ी)ल हाँक ले। नर सेवा नरायण सेवा मान के, कखरो हिरदे ल झन दुखा। 

        कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये।

       ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये।।

       कबीर के ये सीख ल असल जिनगी म अपना के जिनगी जियइया कतको हें। अइसन जिनगी जिए बर धन-दोगानी, मान-सम्मान अउ पद के लालच छोड़ के नवा रद्दा बनाना परथे। ये रद्दा जतके सरल होथे, ओतके कठिन घलव होथे। इहू ह एक तपस्या आय। जे ल घर परिवार म रहिके करे जा सकथे। जौन सब के दरी नइ हो सकय। सब के वश के बात नोहय। समाज ल इही मन नवा उजास देथे। मनखे-मनखे म फरक नइ करयँ। 

         सुग्घर कथानक ल लेके कहानी गढ़े के बढ़िया प्रयास हे। बढ़िया संवाद हे। मोर विचार म अभी ए कहानी नइ बन पाय हे। अभी एक वृत्तांत हे, ए अलग बात ए कि कहानी घलव वृत्तांत होथे, जेमा कल्पना के संग एक मोड़ (घटना) रहिथे। जेन ह कहानी अउ वृत्तांत म बारीक विभाजन रेखा खींचथे। अभी लोकप्रिय मनखे के परलोक गमन के शोक म बूड़े वृत्तांत लगत हे।


        जात-धरम ले ऊपर उठे अउ समता के संदेश बगरावत सुग्घर सृजन बर बधाई

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